यह कोरा कागज नहीं, बल्कि एक आदमी के जीवन के करीब 18 साल के पूरे संघर्ष की कहानी है, जिसे निर्माता निर्देशक सतीश कौशिक ने पर्दे पर उतारा है। कागज आगामी 24 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है।
फिल्म की कहानी आजमगढ़ के मुबारकपुर के रहने वाले लाल बिहारी की है जिसके नाम के साथ मृतक जुड़ गया। वो अब अपना नाम भी लाल बिहारी मृतक ही लिखते हैं। एक ऐसा किशोर जिसे मां बाप की मौत के बाद राजस्व रिकार्ड में मृत घोषित कर दिया गया और उसके घर जमीन पर रिश्तेदारों ने कब्जा कर लिया। उसे यह पता ही नहीं था कि सरकारी तंत्र की कारस्तानी के कारण वो जिंदा नहीं बल्कि मरा हुआ है। खुद को जिंदा साबित करने में उसे 18 साल लग गए। फिल्म में उसके इस 18 साल के संघर्ष को दिखाया गया है।
खुद को जिंदा साबित करने के लिए उसने 1988 में इलाहाबाद लोकसभा सीट से पूर्व प्रधानमंत्री और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक के खिलाफ और 1989 में अमेठी सीट से पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ा। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पर्चे फेंके और गिरफ्तारी दी। अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन की मांग की। पूरे 18 साल के बाद 1994 में सरकार ने माना कि वो मरा हुआ नहीं बल्कि जिंदा है।
निर्माता निर्देशक सतीश कौशक कहते हैं कि फिल्म के राइट्स उन्होंने 2003 में ही ले लिए थे। लेकिन उस समय ऐसी फिल्मों का दौर नहीं था। पूरी फिल्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ, सीतापुर, आजमगढ़ समेत अन्य जगहों पर शूट की गई है। फिल्म का कुछ पैच वर्क मुंबई में पूरा किया गया है।
फिल्म में लाल बिहारी की भूमिका में रंगमंच के अदाकार पंकज त्रिपाठी हैं तो उनकी पत्नी की भूमिका मोनल गज्जर ने निभाई है। पूरी फिल्म चूकि लाल बिहारी के संघर्ष की है इसलिए पत्नी की भूमिका छोटी रखी गई है।
एक इंटरव्यू के दौरान सतीश कौशक ने कहा कि वो फिल्म की सफलता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। आजकल वायोपिक खूब बन रही है लेकिन ये बायोपिक किसी सेलेब्रटी की नहीं बल्कि एक आदमी की जीवटता और संघर्ष की पूरी कहानी है।