Sadhana Birth Anniversary : बॉलीवुड में साधना को एक ऐसी अभिनेत्री के तौर पर याद किया जाता है अपनी विशिष्ट अदायगी से सिनेप्रेमियों को अपना दीवाना बनाया, साथ हीं वह अपने बालों की स्टाइल साधना कट की वजह से भी वह प्रसिद्ध थीं। साधना का जन्म 2 सितंबर 1941 को कराची पाकिस्तान तब ब्रिटिश इंडिया में हुआ था। माता-पिता की एक मात्र संतान होने के कारण साधना का बचपन बड़े प्यार के साथ व्यतीत हुआ था।
वर्ष 1947 में भारत के बंटवारे के बाद साधना का परिवार कराची छोड़कर मुंबई आ गया था। इस समय साधना की आयु मात्र छ: साल थी। साधना का नाम उनके पिता ने अपने समय की पसंदीदा अभिनेत्री साधना बोस के नाम पर रखा था। साधना जब स्कूल की छात्रा थीं और नृत्य सीखने के लिए एक डांस स्कूल में जाती थीं, तभी एक दिन एक नृत्य-निर्देशक उस डांस स्कूल में आए।
नृत्य निर्देशक ने स्कूल में बताया कि राजकपूर को अपनी फिल्म के एक ग्रुप-डांस के लिए कुछ ऐसी छात्राओं की जरूरत है, जो फिल्म के ग्रुप डांस में काम कर सकें। साधना की डांस टीचर ने कुछ लड़कियों से नृत्य करवाया और जिन लड़कियों को चुना गया, उनमें से साधना भी एक थीं। इससे साधना बहुत खुश थीं, क्योंकि उन्हें फिल्म में काम करने का मौका मिल रहा था।
राजकपूर की फिल्म 'श्री 420' के डांस सीन की शूटिंग से पहले रिहर्सल हुई। वह गाना था- रमैया वस्ता वइया..। साधना शूटिंग में शामिल होती थीं। नृत्य-निर्देशक जब जैसा कहते साधना वैसा ही करतीं। शूटिंग कई दिनों तक चली। लंच-चाय तो मिलते ही थे, साथ ही चलते समय नगद मेहनताना भी मिलता था। वर्ष 1955 में राज कपूर की फिल्म श्री 420 के गीत ईचक दाना बीचक दाना में साधना को कोरस लड़की की भूमिका मिली थी।
वर्ष 1958 में साधना को सिंधी फिल्म अबाणा में काम करने का मौक़ा मिला जिसमें उन्होंने अभिनेत्री शीला रमानी की छोटी बहन की भूमिका निभाई थी और इस फिल्म के लिए इन्हें एक रुपए की टोकन राशि का भुगतान किया गया था। बॉलीवुड में साधना ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म 'लव इन शिमला' से की। फिल्म के सेट पर उन्हें फिल्म के निर्देशक आर.के. नैय्यर से प्रेम हो गया और बाद में उन्होंने उनसे शादी कर ली।
वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म 'हम दोनो' साधना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्हें देवानंद के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म में देवानंद ने दोहरी भूमिका निभायी थी। साधना और देवानंद की जोड़ी दर्शकों को बेहद पसंद आई। इसके बाद साधना ने राज खोसला के निर्देशन में बनी फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना में काम करने का अवसर मिला। फिल्म की कहानी एक ऐसे फौजी अफसर की जिंदगी पर आधारित थी जिसकी याददाश्त चली जाती है।
वर्ष 1963 में साधना की एक और सुपरहिट फिल्म मेरे महबूब प्रदर्शित हुई। वर्ष 1964 में साधना को एक बार फिर से राज खोसला के निर्देशन में बनी फिल्म वह कौन थी में काम करने का अवसर मिला। फिल्म के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निमी का चयन किया गया था लेकिन राज खोसला ने निमी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गए। इस फिल्म के लिए साधना को मोना लिसा की तरह मुस्कान के साथ शो डाट कहा गया था।
वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म वक्त साधना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुईं। इस फिल्म के लिए भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामांमित किया गया। वर्ष 1967 में राज खोसला ने एक बार फिर से साधना को लेकर फिल्म अनिता का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गई।
इस बीच साधना बीमार रहने लगी। बीमारी को छिपाने के लिए उन्होंने अपने गले में पट्टी बंधी पर अक्सर गले में दुपट्टा बांध लेती थी, यही साधना आइकन बन गया था और उस दौर की लड़कियों ने इसे भी फैशन के रूप में लिया था। इन सबके बीच साधना ने राजकुमार, आरजू, मेरा साया, इंतकाम, एक फूल दो माली जैसी कुछ सफल फिल्मों में काम किया।
हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए, अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी (आईफा) द्धारा साधना को 2002 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से समानित भी किया गया। अपनी विशिष्ट अदायगी से दर्शकों के दिलों पर खास पहचान बनाने वाली साधना 25 दिसंबर 2015 को दुनिया को अलविदा कहा गईं।