Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
Thursday, 13 March 2025
webdunia

फकीर की प्रेरणा से पार्श्वगायन की दुनिया के सरताज बने थे मोहम्मद रफी

Advertiesment
हमें फॉलो करें फकीर की प्रेरणा से पार्श्वगायन की दुनिया के सरताज बने थे मोहम्मद रफी

WD Entertainment Desk

, रविवार, 24 दिसंबर 2023 (12:32 IST)
mohammed rafi birth anniversary: अपने लाजवाब पार्श्वगायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले आवाज की दुनिया के सरताज मोहम्मद रफी को पार्श्वगायक बनने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी। पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे जिससे उनके दिल में संगीत के प्रति एक अटूट लगाव पैदा हो गया।
 
रफी के बड़े भाई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन मे संगीत के प्रति बढ़ते रुझान को पहचान लिया था और उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। लाहौर मे रफी संगीत की शिक्षा उस्ताद अव्दुल वाहिद खान से लेने लगे और साथ हीं उन्होंने गुलाम अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखना शृरू कर दिया। एक बार हमीद रफी को लेकर केएल सहगल संगीत कार्यक्रम में ले गए, लेकिन बिजली नहीं होने के कारण केएल सहगल ने गाने से इंकार कर दिया।
 
हमीद ने कार्यक्रम के संचालक से गुजारिश की कि वह उनके भाई रफी को गाने का मौका दें। संचालक के राजी होने पर रफी ने पहली बार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के बीच पेश किया। दर्शकों के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफी को मुंबई आने के लिए न्यौता दिया। श्याम सुंदर के संगीत निर्देशन मे रफी ने अपना पहला गाना सोनियेनी हिरीये नी पार्श्व गायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गाया। साल 1944 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना हिन्दुस्तान के हम है पहले आप के लिए गाया।
 
साल 1949 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म मे गाए गीत सुहानी रात ढ़ल चुकी के जरिए वह सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच गए और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिलीप कुमार देवानंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, शशि कपूर, राजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी अपने संपूर्ण सिने करियर मे लगभग 700 फिल्मों के लिये 26000 से भी ज्यादा गीत गाए।
 
अमिताभ बच्चन के प्रशंसक थे रफी
मोहम्मद रफी बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े प्रशंसक थे। मोहम्मद रफी फिल्म देखने के शौकीन नही थे लेकिन कभी-कभी वह फिल्म देख लिया करते थे। एक बार रफी ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार देखी थी। दीवार देखने के बाद रफी अमिताभ के बहुत बड़े प्रशंसक बन गए। साल 1980 में रिलीज फिल्म नसीब में रफी को अमिताभ के साथ युगल गीत 'चल चल मेरे भाई' गाने का अवसर मिला। अमिताभ के साथ इस गीत को गाने के बाद रफी बेहद खुश हुए थे। अमिताभ के अलावा रफी को शम्मी कपूर और धर्मेन्द्र की फिल्में भी बेहद पसंद आती थी। मोहम्मद रफी को अमिताभ-धर्मेन्द्र की फिल्म शोले बेहद पंसद थी और उन्होंने इसे तीन बार देखा था।
 
मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वाभाव के कारण जाने जाते थे लेकिन एक बार उनकी कोकिल कंठ लता मंगेश्कर के साथ अनबन हो गयी थी। मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ो गीत गाए थे लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी। लता मंगेशकर गानों पर रॉयल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की। 
 
रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रॉयल्टी किस बात की मांगी जाए। दोनों के बीच विवाद इतना बढा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनो ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में 'दिल पुकारे' गीत गाया।
 
मोहम्मद रफी ने हिन्दी फिल्मों के अलावा मराठी और तेलुगू फिल्मों के लिये भी गाने गाए। मोहम्मद रफी अपने करियर में 6 बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किए गए। साल 1965 मे रफी पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। 30 जुलाई 1980 को आस पास फिल्म के गाने शाम कयू उदास है दोस्त, गाने के पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारे लाल से कहा, शूड आई लीव जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल अचंभित हो गए क्‍योंकि इसके पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नही की थी। अगले दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को हीं छोड़कर चले गए।
Edited By : Ankit Piplodiya

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बिग बॉस 17 : पति विक्की जैन का अंकिता लोखंडे ने किया बचाव