अटकन चटकन की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अगर आप बातें सुनेंगे तो आपको ना तो कोई हीरोइन के आगे जी लगते और ना ही सर या मैडम सुनाई देगा बल्कि आपको सुनाई देगा लीडन भैया या स्पर्धा दीदी और फिर आप समझ जाएंगे कि बच्चों की फिल्म है। यहां संबोधन भी बच्चों वाले ही होंगे। कुछ इसी तरह का नजारा हमको देखने को मिला जब वेबदुनिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचा।
शिक्षक दिवस के अवसर पर जी5 पर अटकन चटकन नाम की बच्चों की फिल्म रिलीज की जा रही है। जिसके साथ एआर रहमान निर्माता के तौर पर अपना पहला कदम रख रहे हैं। पत्रकारों से बात करते हुए एआर रहमान ने बताया कि यह फिल्म एक बच्चे की महत्वकांक्षी और उसकी इच्छा को लेकर बनाई गई है।
यह कैसे एक बच्चा चाहे जिस जगह पर रहता है, उसकी माली हालत जैसी भी हो लेकिन अगर वह सपना देखता है और उस सपने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है तो दोस्तों का साथ भी मिलेगा और बड़ों का आशीर्वाद मिलेगा। और यह तीनों चीजें मिलाकर आपको अपने सपने को साकार करने के लिए काफी हो जाएंगी।
एआर ने कहा, मैं हमेशा इस बात में यकीन रखता हूं कि अगर कोई सपना देखा जाए। उसकी तरफ मेहनत की जाए और उस सपने पर और अपने आप पर यकीन किया जाए तो पूरी कायनात आपको सपने तक खुद पहुंचा कर आती है। मुझे यही लगता है कि बस आगे बढ़ो अपनी महत्वाकांक्षा रखो और उसी की राह पर चलते रहो।
शिवमणि और अपनी दोस्ती के बारे में बताते हुए एआर रहमान कहते हैं कि मैं शिवमणि को उस समय से जानता हूं जब मेरी उम्र सिर्फ 12 साल की थी। मैं हमेशा देखा था कि शिवमणि बहुत ही ज्यादा टैलटेड है, संगीत में उसे एकदम महारत हासिल है। जहां जाते हैं वहां वह पॉपुलर हो जाता है और तो और कई लड़कियां उस पर फिदा होती थी तो एक 12 साल के बच्चे के लिए सामने अगर कोई ऐसा शख्स खड़ा हो जाए तो बहुत बड़ी बात होती थी। फिर कितनी जगह हम लोगों ने साथ में परफॉर्म किया है। साथ में आते जाते थे तो दोस्ती तो इतनी गहरी ही रही है। मैं तो यह कहता हूं कि मैं शिवमणि से इतनी सारी बातें सीखा हूं जिसने मुझे संगीतकार बनने में बहुत मदद की है।
इस दौरान रियलिटी शोज में भी कई बच्चे जीते हैं। आप उन बच्चों के लिए क्या कहना चाहेंगे?
मुझे ऐसा लगता है एक शब्द होता है इन स्टडी फिकेशन! उसमें नहीं छुप जाना चाहिए। किसी भी बच्चे ने अगर कोई रियालिटी शो जीता है। सिंगिंग कंपटीशन जीता है तो बस वही मत रुक जाओ। यह तो आपके संगीत के सफर की एक शानदार शुरुआत भर है। इसके बाद आपको संगीत, खूब जमकर सीखना होगा। फिर चाहे वह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत हो या फिर वेस्टिन संगीत हो संगीत की कोई भी विधा हो, आप उसे सीखे और उसमें पारंगत बने।
आप अगर एक जीत के बाद यह सोच लेंगे कि अब और कुछ नहीं मैंने अपना सबसे बड़ा मुकाम पा लिया तो ऐसा नहीं है। जीत कर रुक नहीं जाना। मैं सच बताऊं तो मुझे आज भी बहुत सारी चीजें रोज सीखने को मिलती है। कभी किसी शख्स से सीख लेता हूं लीडन की ही बात कर लीजिए। इस उम्र के बच्चे को जब आप देखते हैं तो आपको समझ में आता है कि बोल्ड होना किसे कहते हैं? बेधड़क होना किसे कहते हैं? तो संगीतकार के तौर पर बेधड़क होकर कोई नया काम कर लेते हैं।
अटकन चटकन इस फिल्म के निर्देशक हैं शिव हरे अपनी फिल्म के बारे में उन्होंने ने बताया, मुझे संगीत हमेशा से पसंद था। और कई सारी फिल्में ऐसी बनी है जो बच्चों के बारे में बात करती हैं लेकिन वाद्यों बारे में या फिर ताल वाद्यों के बारे में बात लगभग नहीं के बराबर हुई है। तो मैंने कहा चलिए इसी बहाने एक ऐसी फिल्म बनाते हैं।
अटकन चटकन नाम भी इस लिए रखा क्योंकि कई बार हम बचपन में यह नाम सुन चुके हैं। मुझे कई लोगों ने कहा था कि बच्चों के साथ जब फिल्में बनाते हैं तो यह ध्यान रखना पड़ता है कि उनसे कैसी बात की जाए, उन्हें क्या सिखाया जाए। क्या बात बिल्कुल नहीं बताएं? पर सच कहूं तो जब मैंने इन बच्चों के साथ काम किया तो मुझे लगा ही नहीं कि मैं कोई मेहनत का काम कर रहा हूं। मेरे लिए तो रोज के लिए खेल का एक नया जरिया बन गए थे।