शशिकला रील लाइफ में ज्यादातर परिवार की ऐसी महिला के रूप में दिखाई दीं जिसका काम अपने रिश्तेदारों की जिंदगी में आग लगाने का होता था। कभी वे ननद बन कर भाभी को सताती हुई दिखाई दीं तो कभी सास बन बहू की जिंदगी हराम करती रहीं। परदे की यह कुटील इंसान रियल लाइफ में मानव और समाज सेवा करने वाली सहृदय इंसान रहीं। रियल लाइफ और रील लाइफ में जमीन-आसमान का अंतर था। शशिकला को इस रूप में देख वे लोग दंग रह जाते थे जो फिल्मी कलाकार की छवि से उसका आंकलन करते थे। दरअसल यह छवि बहुत ही प्रभावी होती है और रील लाइफ को ही रियल लाइफ का हिस्सा मान लिया जाता है। प्राण और प्रेम चोपड़ा को देख पार्टियों में महिलाएं छिप जाती थीं। उसी तरह शशिकला को भी उस तरह का शख्स माना गया जो लोगों की खुशहाल जिंदगी में कड़वाहट भर देती हैं, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के अंतिम कई वर्ष लोगों की सेवा करते हुए बिताए।
इस बात को शशिकला की कामयाबी भी कह सकते हैं कि वे इतना अच्छा अभिनय करती थीं कि लोग फिल्म देखते समय ही उन्हें गालियां बकने लगते थे। ये शशिकला का दुर्भाग्य रहा कि उन्हें टाइप्ड कर दिया गया और वे एक जैसी भूमिकाएं अदा करती रहीं। दरअसल शशिकला ने आरती (1962) नामक एक फिल्म की थी, जिसमें अशोक कुमार, मीनाकुमारी और प्रदीप कुमार जैसे कलाकार थे। इस फिल्म में शशिकला ने निगेटिव किरदार निभाया था। उनका अभिनय इतना बेहतरीन था कि फिल्मफेअर अवॉर्ड भी शशिकला को मिला। दर्शकों के साथ निर्माता-निर्देशकों को भी उन्होंने प्रभावित किया और सपोर्टिंग और निगेविट भूमिकाएं ही उन्हें ऑफर होने लगी।
4 अगस्त 1932 को सोलापुर (महाराष्ट्र) में जन्मी शशिकला जवालकर को बचपन से ही गाने, अभिनय और डांस करने का शौक था। वे बेहद सुंदर भी थीं। जब वे किशोरावस्था में पहुंचीं तो उनके पिता को मुंबई भाग कर आना पड़ा क्योंकि बैंकों को पैसा चुकाना था और उनकी हालत खराब थी। पिता ने सोचा कि सुंदर शशिकला को फिल्मों में काम मिल जाएगा तो माली हालत ठीक हो जाएगी। स्टूडियो दर स्टूडियो चक्कर लगाना शुरू हो गए। नूरजहां के पति शौकत हसन रिज़वी ने अपनी फिल्म ज़ीनत में एक कव्वाली सीन में शशिकला को अवसर दिया। इसके बाद छोटे-मोटे रोल फिल्मों में मिलते रहे। शम्मी कपूर के साथ डाकू (1955) और वी. शांताराम की तीन बत्ती चार रास्ते (1953) प्रमुख फिल्में रहीं।
बीस की उम्र के आसपास शशिकला ने ओमप्रकाश सहगल से शादी कर ली इस वजह से हीरोइन बनने की राह में रूकावट आ गई, लेकिन शशिकला ने सपोर्टिंग रोल्स से कोई परहेज नहीं किया और छोटे रोल में ही अपनी छाप छोड़ने लगीं। निगेटिव रोल में उनकी अदाकारी देखते ही बनती थी। सुजाता, फूल और पत्थर, अनुपमा, गुमराह, छोटे सरकार से लेकर तो सौतन, सरगम जैसी उनकी उल्लेखनीय फिल्में हैं। 1945 से लेकर तो 2005 तक वे फिल्में करती रहीं। 100 से ज्यादा फिल्में की। टीवी धारावाहिक भी करती रहीं।
फिल्म आरती और गुमराह के लिए उन्हें 1962 और 1963 में फिल्मफेअर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला। 2007 में पद्मश्री भी मिला। इसको लेकर उन्होंने शिकायत भी कि यह सम्मान बहुत पहले मिल जाना था। बहरहाल एक चरित्र अभिनेत्री के रूप में शशिकला ने अपनी पारी खूब खेली। कई हीरोइनों को भी पीछे छोड़ दिया और रियल लाइफ में भी वे नायिका रहीं।