एक दौर ऐसा भी था जब फिल्मी सितारों की तस्वीरों वाले कैलेण्डर पूरे देश में लोकप्रिय थे। विभिन्न मुद्राओं में नायक-नायिकाओं की तस्वीरों के दिनों और तारीखों का हिसाब दीवारों पर लटका हुआ दिखाई देना आम बात थी।
फिल्मी सितारों की तस्वीरों वाले रंगीन कैलेण्डरों का प्रचलन लगभग 90 वर्ष पूर्व शुरू हुआ था तथा पहले ऐसे रंगीन कैलेण्डर पर कृष्ण की भूमिका करने वाले बाल सितारे शाहू मोडक की तस्वीर छपी थी।
अहमदनगर (महाराष्ट्र) के ईसाई परिवार में 25 अप्रैल 1919 को जन्मे शाहू मोडक को कृष्ण की भूमिका के लिए भालजी पेंढारकर ने चुना था।
पूना की सरस्वती सिनेटोन की फिल्म 'श्याम सुंदर' का निर्देशन करते समय बाल कृष्ण की भूमिका के लिए उन्हें चुना गया था। यह फिल्म हिट रही तथा एक ही टॉकीज में लगातार 25 सप्ताह चलने वाली पहली बोलती फिल्म 'आवारा शहजादा' (1933) में शाहू मोडक ने डबल रोल कर भारतीय सिनेमा में डबल रोल की परंपरा का सूत्रपात किया।
इन दो फिल्मों के बाद उन्होंने सरस्वती सिनेटोन छोड़कर महालक्ष्मी सिनेटोन से रिश्ता जोड़ा तथा बंबई आ गए। बंबई आकर वे बाल कृष्ण बने तथा उनकी नायिका हुई जुबैदा। फिल्म थी 'नंद के लाल'।
उन दिनों नायक के लिए गायक होना जरूरी था। शाहू मोडक ने शास्त्रीय संगीत सीखा। वे अच्छे गायक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इसके बाद बालक के स्थान पर वे युवा भूमिकाओं में आने लगे। सेवासदन (1934), हिन्द महिला (1936) तथा होनहार (1936) उनकी सफल फिल्में रहीं।
शाहू मोडक ने अपने समय के सभी प्रतिष्ठित हिन्दी, मराठी फिल्म निर्देशकों के साथ काम किया। वी. शांताराम की आदमी, विजय भट्ट की राम राज्य एवं भरत मिलाप, ए.आर. कारदार की कानून, देवकी बोस की मेघदूत, गजानन जागीरदार की वसंत सेना, दादा गुंजाल की दुल्हन, राजा ठाकुर की मी तुलसी तुझया आंगनी, मोहन सिंहा की श्री कृष्णार्जुन युद्ध, उनकी प्रमुख फिल्में रही हैं।
चार दशक के करियर में उन्होंने विभिन्न भाषाओं की पौने दो सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया। कृष्ण के रूप में वे 29 बार परदे पर आए।
धार्मिक फिल्मों में काम करते-करते उनका झुकाव आध्यात्म की ओर हुआ तथा वे दार्शनिक चिंतक, विचारक एवं शोधक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। अमेरिका के पेल विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र पर उनकी व्याख्यानमाला 1976 में आयोजित हुई थी। 11 मई 1993 को उनका निधन हुआ।
(पुस्तक नायक-महानायक से साभार)