याद नहीं आता कि बॉलीवुड के लिए इतना बुरा साल पहले कभी रहा हो। शायद यह सबसे बुरा था। व्यापार तो चौपट रहा ही, साथ ही बॉलीवुड की प्रतिष्ठा को करारी चोट इस साल ने पहुंचाई है। फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों की छवि को नोंच डाला गया। जम कर बेइज्जती हुई। नेपोटिज्म, ड्रग्स और मौत के नाम रहा यह साल। कुछ को कुदरत ने छीन लिया तो कुछ को बेरोजगारी और नाइंसाफी ने। फिल्मों से ज्यादा फिल्मवालों के बुरे कारनामों के लिए यह साल याद किया जाएगा।
कोरोना का कहर
साल के 12 महीनों में बमुश्किल ढाई महीने ऐसे मिले जब फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर प्रदर्शन करने का मौका मिला। कोरोना वायरस की चपेट में देश आया और फिल्म व्यवसाय सीधे वेंटिलेटर पर पहुंच गया। सिनेमाघरों में ताले लटक गए और अधिकांश में अभी भी खुले नहीं हैं। जो फिल्म दिखा रहे हैं वो अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं कि कब दर्शक सिनेमाघर लौटेंगे। भय और तनाव के माहौल में भला कौन जान में जोखिम डाल कर मनोरंजन के लिए टिकट खरीदेगा।
इक्का-दुक्का फिल्में सफल
तान्हाजी द अनसंग वॉरियर एकमात्र ऐसी फिल्म रही जो सुपरहिट रही। जनवरी में प्रदर्शित इस फिल्म ने जम कर दर्शक जुटाए। शुभ मंगल ज्यादा सावधान और मलंग जैसी फिल्में औसत रहीं। बागी 3, अंग्रेजी मीडियम के व्यवसाय को कोरोना लील गया। छपाक, स्ट्रीट डांसर 3डी, पंगा, भूत, लव आज कल, शिकारा, इंदू की जवानी जैसी फिल्म असफलता के खाते में गई।
करोड़ों का नुकसान
यह तो हुई फिल्मों की बात। कोरोना के कारण सिनेमाघर बंद रहे और करोड़ों का नुकसान हुआ। इस नुकसान को जोड़ा नहीं जा सकता। वैसे कहने वाले कहते हैं पांच हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। महीनों तक फिल्म प्रोडक्शन बंद रहा जिसका असर आगामी महीनों में देखने को मिलेगा। कई कलाकार और क्रू मेंबर्स के आगे भूखे मरने की नौबत आ गई। फिल्म स्टारों की चमक खो गई। सिनेमाघर मालिकों और फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स की बोलती बंद हो गई। कई कर्मचारियों को काम से हाथ धोना पड़ा। किसी के पास इस बात का जवाब नहीं है कि कब परिस्थितियां सामान्य होगी।
ओटीटी का हथौड़ा
दर्द से कराह रहे फिल्म व्यवसाय पर, खासतौर पर डिस्ट्रीब्यूटर्स और सिनेमाघर वालों पर, ओटीटी प्लेटफॉर्म ने जोरदार हथौड़े से चोट की। फिल्म निर्माताओं ने तो इनको फिल्म बेच कर कुछ पैसा कमा लिया, लेकिन फिल्मों का प्रदर्शन सिनेमाघर में नहीं होने से दूसरे लोगों को करारा झटका लगा। ओटीटी प्लेटफॉर्म को अपनी पैठ जमाने का सुनहरा मौका हाथ लगा जिसे उन्होंने हाथों-हाथ लिया। बड़े सितारों से सजी फिल्मों को सीधे सिनेमाघर में प्रदर्शित करने के बजाय ओटीटी पर रिलीज कर दिया गया और दर्शकों को यह बात पसंद आई। अब उनकी आदत में यह शुमार हो गया है और इस आदत को छुड़ाना आसान बात नहीं होगी।
बेचने लगे सब्जी
कलाकारों की हालत भी खराब है। कई जूनियर कलाकार और क्रू मेंबर्स जिन्हें रोजाना पैसा मिलता था, सब्जी बेचने लगे। दूसरे काम करने लगे। घर लौट गए। बड़े सितारे अपनी चमक को धुंधली होते हुए असहाय रूप से देखते रहे। अब पता चला कि एक अदने से वायरस ने आम और खास के फर्क को बहुत कम कर दिया। कई मौत के मुंह में चले गए और कुछ ने मौत को खुद ही गले लगा लिया। आर्थिक रूप से स्थिति चरमरा गई।
नेपोटिज्म नामक कांटा
बॉलीवुड की प्रतिष्ठा पर जबरदस्त आंच आई है। जिन कलाकारों के पोस्टर लोग सीने से लगाए रखते थे उनको उन्होंने जूते तले दबा लिया। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद जो आंधी चली उससे बड़े-बड़े दरख्त उखड़ गए। नेपोटिज्म की ऐसी हवा चली कि सितारा पुत्र-पुत्रियों को दिन में तारे नजर आने लगे। समझ आने लगा कि बॉलीवुड में कुछ लोगों की इतनी सख्त लामबंदी है कि बाहरी व्यक्ति को अपना स्थान और पहचान बनाने में कांटों पर चलना पड़ता है। उसकी राह में अंगारे बिछा दिए जाते हैं और जिनके बाप-दादा बॉलीवुड में हैं उनकी राह में फूल नजर आते हैं।
ड्रग्स का दलदल
इस आंधी में इतना उथल-पुथल हुआ कि सतह के नीचे बहती सड़ांध ऊपर आ गई। सुंदर-सलोनी हीरोइनें और हट्टे-कट्टे हीरो के स्याह चेहरे सामने आए। ये अंदर से इतने डरे हुए हैं कि ड्रग्स के नशे में गुम हो जाना इन्हें पसंद है। कई कलाकारों से पूछताछ हुई। कुछ बच गए और कुछ घिर गए। गेहूं के साथ घुन भी पीस गया। लेकिन यह बात सामने आ गई कि ड्रग्स का बॉलीवुड से तगड़ा कनेक्शन है और युवाओं के ये रोल-मॉडल बहुत ही लिजलिजे हैं। दूसरी ओर सोनू सूद सहित कुछ ऐसे हीरो भी सामने आए जो रियल हीरो लगे। मदद देने के मामले में उन्होंने अपना सब कुछ बेच डाला।
लम्बी है काली रात
2020 खत्म होने से यह काली, गहरी और सन्नाटेदार रात खत्म नहीं होने वाली। अभी यह रात और लंबी चलने वाली है। बॉलीवुड के लिए 2021 में सूरज जरूर उदय होगा, लेकिन इसके लिए इंतजार करना होगा। फिल्म व्यवसाय पटरी पर लौट सकता है, लेकिन खोई प्रतिष्ठा हासिल करने में समय लगेगा।