बॉलीवुड एक्ट्रेस परिणीति चोपड़ा का कहना है कि उन्होंने अपनी डेब्यू फिल्म से ही यह नैरेटिव बदलने की कोशिश की है कि महिलाओं को स्क्रीन पर किस तरह से दिखाया जाए। परिणीति ने लेडीज वर्सेज रिकी बहल, इश्कजादे, शुद्ध देसी रोमांस, हंसी तो फंसी जैसी अपनी कई फिल्मों में बेहतरीन पर्फॉर्मेंस देकर बॉलीवुड के उस चलन के खिलाफ खुद को एक असरदार और अपारंपरिक काउंटरप्वाइंट बना लिया है, जिसके तहत यह तय कर दिया जाता है कि हीरोइनें खास किस्म के रोल करेंगी और खास तरीके से दिखेंगी।
परिणीति बताती हैं, मेरा पक्के तौर पर यह मानना है कि अभिनेत्रियों को यह नैरेटिव बदलना ही होगा कि स्क्रीन पर उनको कैसे पेश किया जाए। मैंने अपनी डेब्यू फिल्म के साथ ही यह कोशिश शुरू कर दी थी। मैं सामान्य चलन से हटकर कुछ नया काम करने की जिम्मेदारी हमेशा खुद लेती हूं। मैं कोशिश करती हूं कि जिस तरह की सर्वगुणसंपन्न हीरोइन बॉलीवुड दशकों से दिखाता चला आ रहा है, वैसी हीरोइन हरगिज न दिखूं।
परी ने अपनी पिछली तीन फिल्मों- द गर्ल ऑन द ट्रेन (टीजीओटीटी), संदीप और पिंकी फरार (एसएपीएफ) तथा साइना के दम पर ऐसे मुख्तलिफ रोल प्ले करने का इरादा साफ कर दिया है, जो स्क्रीन पर आत्मविश्वासी, गैर-परंपरागत हीरोइनों को परदे पर पेश करते हैं। ये महिला किरदार अपनी किस्मत खुद लिखते हैं।
उनका कहना है, मेरी पिछली तीन फिल्में- टीजीओटीटी, एसएपीएफ और साइना दर्शकों के सामने अलग किस्म की, साहसी, निडर, आत्मविश्वासी और महत्वाकांक्षी हीरोइनें प्रस्तुत करने का प्रयास भी मानी जानी चाहिए। मैं जो भी अगली फिल्में चुनूंगी, उनमें इसी विचार-प्रक्रिया की झलक मिलेगी, क्योंकि महिलाओं का बेहतर चित्रण करने में यकीनी तौर पर मैं अपना योगदान देना चाहती हूं।
परिणीति की तमन्ना है कि बॉलीवुड की हर एक्ट्रेस इस चीज को लेकर जागरूक और सचेत रहे कि स्क्रीन पर महिलाओं को वह किस तरह पेश करने जा रही है। वह कहती हैं, अगर हम सब मिलकर महिलाओं को स्क्रीन पर पेश करने का तरीका बदलने में कामयाब हो जाएं, तो हमारे समाज में लड़कियों को देखने का नजरिया बदलने में इसका बहुत बड़ा हाथ होगा। सिनेमा दर्शकों के दिलोदिमाग पर असर डाल सकता है, इसलिए समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हमें इस माध्यम का उपयोग करना ही चाहिए।