'तू झूठी मैं मक्कार' देखकर समझ में आता है कि यह रॉम कॉम किस्म की फिल्म है जिसमें लड़की सेर तो कभी लड़का सवा सेर कुछ इस तरीके की आपसी क्रिएटिव लड़ाइयां दिखाई गई है और देख कर लगता है कि शायद यह लोगों को पसंद आए। कम से कम आज की जनरेशन को पसंद आ जाए। अब ऐसे में जब फिल्म के निर्देशक लव रंजन के साथ मीडिया की मुलाकात हुई तो मीडिया वालों ने भी खूब मस्ती में लव से वह सारे सवाल पूछ डालें जो शायद कभी कहीं किसी के मन में उठे होंगे।
आप की जितनी भी फिल्में रही है उसमें दिखाई देता है कि लड़के लड़कियों से बड़े ग्रसित हैं। क्या कहीं आपका यह पर्सनल एक्सपीरियंस तो नहीं?
अरे नहीं नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। मेरी फिल्म प्यार का पंचनामा 1 और 2 और सोनू के टीटू की स्वीटी यह सब देखकर बिल्कुल हो सकता है कि आप पत्रकारों को आम जनता को यह लगे लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मैंने तो अपनी पहली फिल्म 'आकाशवाणी लिखी थी। फिल्म जब बनाई तो वह आकाशवाणी 2 ही बनाई थी। लेकिन हुआ यह कि उसको लोगों ने देखा नहीं तो लोगों को वह याद भी नहीं रहती है। प्यार का पंचनामा 1 जब मैं बना रहा था तब हम लोग सोच चुके थे कि यह एक फिल्म होगी जो लड़कों की तरफ से दिखाई जाएगी और प्यार का पंचनामा 2 जब हम बनाएंगे तो लड़कियों के सोच के हिसाब से बनाई जाएगी।
अब हुआ यह कि आकाशवाणी 2 जब रिलीज भी हुई तब लोगों ने पसंद नहीं किया तो फिर लगा कि हम लड़कियों वाले एंगल को भी नहीं लेते हैं। होता यह है कि आपको मार्केट में बने रहने के लिए भी कुछ एक फिल्में बनानी होती है। कुछ एक बातों पर अमल करना पड़ता है। जैसे ही प्यार का पंचनामा वन पसंद आई लोगों को। लेकिन आकाशवाणी फ्लॉप हो गई। तो फिर वापस से बैठकर नया रोडमैप बनाना पड़ा कि अब जो फिल्म बनाएंगे वह फिर से लड़कों के हिसाब से ही बनाएंगे तो देखिए प्यार का पंचनामा टू भी हिट हो गई तो मार्केट में बने रहने के लिए आपको बहुत सारी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है।
लव रंजन अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि जब मैं पहली बार निर्माता भी बना तो मैंने सोनू के टीटू की स्वीटी बनाई और क्या होता है कि जब आप निर्माता बन जाते हो तब आपको समझ में आ जाता है कि पैसा लग रहा है तो क्यों ना उसी पिच पर खेला जाए जिस पर आपने ज्यादा चौके छक्के जड़े हो। इसलिए मैंने रॉमकॉम बना दिया। अब खुशी की बात यह कि अब फिर से यह फिल्म चल पड़ी। सोचिए ना ऐसा कभी होता है क्या किसी से दोस्ती करने पर कोई अपनी सारी तोड़ लेता है? और इस कहानी को कहने के लिए मुझे रॉमकॉम से बेहतर कोई तरीका नहीं मिल रहा था। कैसे बताएगा कि एक दोस्त अपनेजिगरी दोस्त को कहता है या बचपन के दोस्त को कहता है कि या तो तू शादी कर लिया, मेरे साथ रह ले।
अगर आप मेरे किसी दोस्त को कहेंगे कि लव रंजन रॉम कॉम बना रहा है तो कोई विश्वास ही नहीं करने वाला है क्योंकि मैं ऐसा शख्स था जो गजलें लिखता था, शायरियां लिखता था और सोचता था कि एक दिन ड्रामा फिल्में बनाएंगे। लेकिन क्या होता है ना कि आपको फिल्म इंडस्ट्री में भी बने रहने के लिए कुछ न कुछ ऐसी चीजें करनी पड़ती है। जो चल रही हो जो पसंद की जा रही हो ताकि आप उस मैदान में बने रहे। कई बार लोग सोचते हैं कि मैं ऐसी फिल्म बनाना चाहता हूं और मैं ऐसे तरीके की ही फिल्म बनाऊंगा या फिर फिल्म ही नहीं बनाऊंगा। लेकिन मेरी सोच अलग है। मुझे लगता है मुझे अगले 40 साल तक काम करना है और 40 साल में अगर मैं इस तरीके की फिल्म बनाता रहा तो चलूंगा भी और इस दौरान में कम से कम चार या पांच ऐसी फिल्में जरूर बनाऊंगा जो बनाने का ख्वाब देख कर मैं मुंबई आया था।
रणबीर के बारे में एक बार मनीषा कोइराला ने कहा था कि रणबीर पानी की तरह आप जिस रंग में उसे डालो उसी रंग का हो जाता है। कैसे लगे रणबीर आपको?
रणबीर एक मजदूर इंसान लगा। आप जिस समय बोलो वह उस समय हाजिर हो जाएगा। जितना लंबा काम कराना है उतना लंबा काम करने के लिए तैयार हो जाएगा। कोई ना नुकूर नही। कोई नखरा नहीं। आपको जितना बड़ा कोलैबोरेशन चाहिए। वह उतना बड़ा कोलैबोरेशन आपके सामने लाकर रख देगा। जिस समय वह आपकी फिल्म कर रहा है वह पूरी तरह से उस फिल्म में रच बस जाएगा और रणबीर के साथ मैंने इतना लंबा समय बिताया है। शुरू करने के भी पहले कि उसकी हर छोटी बड़ी बात मुझे स्क्रिप्ट लिखने में बड़ी मदद करती थी। अब जैसे कैरेक्टर की हम बात कर रहे हैं तो ये आकर मुझसे ऐसा कोई सवाल पूछ लेगा जो वह अपने लिए पूछेगा, लेकिन उसका यह सवाल मेरे अंदर तक उतर जाएगा और मुझे मदद कर देगा लगेगा कि अच्छा किसी कैरेक्टर को यह भी सोचना चाहिए। या किसी करैक्टर में यह खूबी भी हो सकती है यानी लगेगा इस तरीके की चीज की जरूरत ही नहीं है। रणबीर आकर कभी आपकी स्क्रिप्टिंग में दखलंदाजी नहीं करेगा, लेकिन अपने होमवर्क के लिए ऐसे सवाल पूछेगा जो आपकी स्क्रिप्टिंग में बतौर निर्देशक आपको बहुत मदद कर जाएगा।
फिल्म का टाइटल बड़ा मजेदार है। कोई रियल लाइफ एक्सपीरियंस तो नहीं हुआ?
हम जब भी फिल्म के बारे में सोचते हैं उससे भी ज्यादा सोचा जाता है फिल्म के टाइटल के बारे में, क्योंकि उससे ही फिल्म का थोड़ा सा आईडिया लगता है। बहुत गहन विचार करते हैं। अब ऐसा सोनू के टीटू की स्वीटी मैंने सोचा नाम भले ही ऐसा रख दिया है तो कोई सिनेमा हॉल में जाएगा तो कोई सोनू नाम से टिकट मांग लेगा। कोई टीटू नाम से मांग लेगा तो कोई स्वीटी नाम से मांग लेगा। वही तू झूठी मैं मक्कार यह टाइटल जब रखा है तो अब कहां ऐसा होता है कि एक ही हफ्ते में रणबीर और श्रद्धा की चार फिल्में रिलीज हो रही है तो किसी को भी नाम को लेकर कहीं कोई कंफ्यूजन पैदा हो जाए।
तो भी टिकट तो मांग ही लेगा टिकट खिड़की से भले ही नाम समझ में ना भी आए। और फिर प्यार का पंचनामा हो या सोनू के टीटू की स्वीटी इस तरीके के नाम के साथ एक कोकीनस आती है। अजीबोगरीब लगता है। वही मुझे अच्छा लगता है। मेरे से लोगों की अपेक्षाएं भी ऐसी ही लगी रहती हैं और फिर फिल्म का टाइटल थोड़ा तो अलग होना ही चाहिए। ना वरना रॉमकॉम कहां इस नाम से बनी है आज तक?