अनिल कपूर बेहतरीन एक्टर हैं और अभी भी फिल्मों में दमदार भूमिकाएं निभाते नजर आते हैं। हाल ही में उनकी फिल्म पागलपंती भी रिलीज हुई है। पेश है अनिल से मुलाकात... जिसमें उन्होंने कई बातें बताईं।
पागलपंती के बारे में
'पागलपंती में जीजा-साला की जोड़ी है जो साथ काम करते हैं। यह रोल मैंने और सौरभ शुक्ला ने निभाया है। पहले जलेबी बेचते थे, फिर समोसे बेचने लगे और धीरे-धीरे डॉन बन जाते हैं। एक दिन वो लंदन में चले जाते हैं और वहीं बस जाते हैं। लेकिन फिर भी वो दिल से रहते हैं जलेबी बेचने वाले या मलाड (मुंबई का एक उपनगर) के डॉन ही।
जब कभी भारत क्रिकेट में हार जाए तो वे बुरा मान जाते हैं। वे कहने लगते हैं कि इंडिया हारी नहीं, ये मैच में ही कोई गड़बड़ी थी। कपड़े वे लंदन वाले पहनते हैं लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूले।
अनीस बज्मी के बारे में
अनीस बहुत नीचे से उठ कर आया है। जब वह ये किरदार मुझे समझा रहा था तो बतौर निर्देशक और बतौर एक्टर हम दोनों एक ही बात बोल और समझ रहे थे। एक तालमेल सा हो गया था।
अनीस ने भी फ़िल्मों में बहुत काम किया है। मैंने भी कई छोटे-मोटे रोल किए हैं। कभी दोस्त बन गया हीरो का तो कभी छोटा रोल कर लिया। शायद इसीलिए मेरा और अनीस का तालमेल अच्छा जम जाता है।"
मजनू भाई का किरदार
"मजनू भाई के किरदार में मुझे अपनी ज़िंदगी के तजुर्बे ने बहुत मदद की। मैं मुंबई में तिलक नगर में रहा, फिर सायन कोलीवाड़ा में रहा, फिर चेंबूर में भी रहा। वहां मेरे कई दोस्त हैं जैसे मुन्ना या बबन।
मैं इन लोगों के साथ रहा, बड़ा हुआ और घूमा-फिरा। जब ये किरदार मुझे दिया गया तो मैंने उससे रिलेट किया। मैं जानता था कि ऐसे लोग होते है।
रोल महसूस करना होता है
"मेरे रोल में मुझे हमेशा विश्वास रहा है क्योंकि जब मैं कहता हूँ कि मेरी माँ बर्तन माँजती थी या पिता ट्रेन में लटक कर जा रहे थे खंबा आया तो गिर गए तो मुझे मालूम है कि लोग कैसे थर्ड क्लास में लटक कर जाते हैं।
मैं चर्चगेट में अपने कॉलेज जाने के लिए तीन लोकल ट्रेन बदल कर जाता था। जब मैं चेंबूर से जूहू विले पार्ले रहने आया तो तब क्लासी होने के तौर तरीके सीखे और मैं वैसा ही बन गया। दिल धड़कने दो में मैंने वही रूप दिखाया है।
जब आप अपने रोल को महसूस करते हो तो वो किरदार यादगार बन जाते हैं। वरना आप कपड़े या हेयर स्टाइल वैसे कर लो लेकिन दिल से वो किरदार नहीं निभा रहे हो तो आपका ये आचरण कैमरे पर समझ आ जाता है।
मुझे लगता है कि अपने किरदार में जो सच्चाई अमित जी (अमिताभ बच्चन) डालते हैं वो कोई नहीं कर पाया। क्लासी तो वो हैं ही लेकिन जब उन्हें गरीब दिखना हो या दुखी रोल करना हो तो लगता है कि सचमुच उन्होंने ये सब सहा है।
अमिताभ के साथ फिल्म
अमिताभ बच्चन और मैंने आज तक कोई फिल्म साथ नहीं की। की भी तो शायद एक या आधे सीन साथ किए।'शक्ति' में मैं उनका बेटा बना। जरा सा रोल था मेरा। 'अरमान' में वो फिल्म में थे लेकिन उसमें भी एक साथ बहुत सारा परफॉर्म हमने नहीं किया। टेक्निकली हमने कोई फिल्म साथ में की ही नहीं।
एक बार राजकुमार संतोषी ने फिल्म बनाने की बात की थी। एक बार अनीस बज़्मी ने साथ फिल्म को लिए कहा था, हालाँकि वो बनी नहीं लेकिन क्या पता अब बन जाए।
दीवार का किस्सा
दीवार से जुड़ा अपना क़िस्सा बताता हूँ। डैनी उस समय अच्छे मित्र थे और परवीन बाबी से उनकी अच्छी दोस्ती थी। उन्होंने कहा कि चलो 'दीवार' का प्रीमियर है।
उस समय मैं अपने पिता (सुरिंदर कपूर) की फ़िल्मों के कामों में लगा रहता था। कभी एक्टर्स के लिए नाश्ता ले जाता था तो कभी मम्मी जो खाना बनाती वो देने जाता था। खाने का सामान लेने कभी कोलीवाड़ा पहुंच गया तो कभी समोसे लेने चला जाता था। दिल में एक बात कि हमारे एक्टर्स खुश रहना चाहिए।
जब ऐसे लड़के को 'दीवार' का प्रीमियर देखना मिले और आज अमिताभ बच्चन से उसकी तुलना की जाए तो मैं बता नहीं सकता अपने दिल की बात। मेरे पास एक कहानी है जो मैं अमितजी के साथ मिल कर करना चाहूँगा। देखते हैं कब मुमकिन होता है।