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जिसने प्यार किया है उसके लिए है 'चित्रकूट': निर्देशक हिमांशु मलिक से बातचीत

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समय ताम्रकर

, गुरुवार, 28 अप्रैल 2022 (15:47 IST)
फिल्म इतिहास को खंगालेंगे तो कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जब अभिनेता, फिल्म निर्देशक की कुर्सी पर जा बैठे और उन्होंने कामयाब फिल्में बनाईं। हिमांशु मलिक का नाम भी इस सूची में शामिल हो गया है। 'तुम बिन' और 'ख्वाहिश' जैसी सफल फिल्मों में अभिनय कर चुके हिमांशु ने 'चित्रकूट' नामक फिल्म निर्देशित की है जो 20 मई से सिनेमाघरों में दिखाई जाएगी। इस फिल्म को लेकर हिमांशु से हुई बातचीत के मुख्य अंश: 
 
अभिनेता से निर्देशक बनने के पीछे की वजह? 
मुझे सामान्य कहानियों पर बनी फिल्म पसंद नहीं है। बहुत सारी ऐसी कहानिया हैं जिन्हें सुन कर मैं बड़ा हूं पर उन्हें स्क्रीन पर मिस कर रहा था। कई ऐसे विषय थे जिन्हें मैं फिल्मों में ढूंढ रहा था, लेकिन नाकामयाब रहा। ऐसे में लालसा जागी कि मैं अपनी कहानी कहूं। इसके लिए निर्देशक बनना जरूरी था और मैं बन गया। 
 
आप एक्टर भी हैं और निर्देशक भी बन गए हैं। निर्देशन के दौरान आपका एक्टर होना कितना काम आया? 
हद से ज्यादा। मैं तो कहता हूं कि हर डायरेक्टर को एक्टिंग करना चाहिए। एक्टर के अंदर क्या चल रहा है? क्या उसकी परेशानियां हैं? क्या उसके डर हैं? ये निर्देशक आमतौर पर समझ नहीं पाते हैं। वैसे भी हमारी फिल्म इंडस्ट्री में एक्टर की केयर नहीं होती। मैं वैनिटी वैन और पैसे की बात नहीं कर रहा हूं। मैं आर्टिस्टिक केयर की बात कर रहा हूं। एक्टर्स को फरमान जारी हो जाते हैं। ऐसा करना है। ये लाइन बोलना है। लाइन भूल जाए तो बुरी तरह डांटा जाता है। कोई उनके साथ शांति से बात नहीं करता है। एक्टर पूरी जान भी डाल दे तो भी किसी को फर्क नहीं पड़ता। यदि आप एक्टर हैं और फिर डायरेक्शन कर रहे हैं तो एक्टर की मनोस्थिति को भली-भांति जान सकते हैं। 
 
आपके एक्टर्स तो आपसे बहुत खुश होंगे? 
ये तो वे ही बता सकते हैं। हां, मैंने उनकी आर्टिस्टिक केयर जरूर की है।  
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चित्रकूट का नाम सुनते ही राम-सीता याद आते हैं। आपने अपनी फिल्म का नाम 'चित्रकूट' रखा है तो जरूर राम-सीता से कोई कनेक्शन होगा? 
मैं झांसी का रहने वाला हूं। वहां रामचरित मानस पढ़ाई जाती है। मैंने भी खूब पढ़ी है। राम-सीता के बीच श्रृंगार रस सिर्फ चित्रकूट में था। चित्रकूट से ही सीता का अपहरण हो गया था। इसको आधार बनाकर 'चित्रकूट' में दर्शाया गया है। मेरा मानना है कि प्यार सभी को होता है, लेकिन प्यार का भी एक दौर होता है जब आप प्यार में डूबे रहते हैं। इन बातों को फिल्म में समेटा गया है। 
 
फिल्म बनाते समय निर्देशक अक्सर टारगेट ऑडियंस के बारे में सोचते हैं? 'चित्रकूट' की टारगेट ऑडियंस कौन है? 
मुझे लगता है मेरी ऑडियंस शहर की है। कुछ लोग होते हैं जो इमोशनली एक्टिव होते हैं। कुछ लोग नहीं होते हैं। लेकिन प्यार चीज ही ऐसी है जो सबको छूती है। हम सब लोग प्यार करते हैं। जिसने प्यार किया है और जो प्यार समझता है, वो ही मेरी टारगेट ऑडियंस है। 
 
फिल्म चित्रकूट के गाने 'मान ले' को अरिजीत सिंह ने गाया है। सुना है कि वे आपके अच्छे दोस्त हैं। इस बारे में क्या कहेंगे? 
जब मैं और अरिजीत शुरुआती दौर में थे, तब से एक-दूसरे को जानते हैं। हमारी मुलाकात हुई थी। अच्छा तालमेल था। आर्टिस्टिक कनेक्शन था। अरिजीत धीरे-धीरे बढ़ते चले गए। ऊंचाई पर पहुंच गए। जब कोई बड़ा बनता है तो उससे दूर रहना ही बेहतर है क्योंकि वह बहुत व्यस्त होता है और आपके पास फुर्सत होती है। जब चित्रकूट के एक गाने के लिए मैंने अरिजीत के नाम पर वि‍चार किया तो सभी बोले कि अरिजीत तो बड़े बैनर की फिल्म या बड़े संगीतकारों के लिए गाता है। फिर भी मैंने हिम्मत कर अपना गाना भेजा। उनकी टीम ने सुना और अरिजीत ने तो सुनते ही एक सेकंड में हां कह दिया। 
 
इन दिनों दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी फिल्म देखने वाले दर्शकों को बहुत पसंद आ रही है? इसकी वजह क्या मानते हैं? 
ये तो बॉलीवुड की असफलता है कि वो ऐसी फिल्में नहीं बना पा रहे हैं। यदि हिंदी ऑडियंस का ध्यान दक्षिण भारतीय फिल्मकार भी नहीं रखेंगे तो वे भी लड़खड़ा जाएंगे। ये देखना दिलचस्प रहेगा कि वे कैसे आगे बढ़ते हैं। 
 
भविष्य में एक्टिंग करेंगे या डायरेक्टर के रूप में ही अपनी जर्नी को आगे बढ़ाएंगे? 
मेरा बस चले तो मैं कुटिया बनाकर समुंदर किनारे बस जाऊं या फिर टैक्सी ड्राइवर बन जाऊं। फिलहाल तो सारा ध्यान 'चित्रकूट' पर है।

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