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सम्राट पृथ्वीराज ऑफर हुई तो मेरा पहला सवाल था- यह रोल कैसे निभा पाऊंगा: अक्षय कुमार

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हमें फॉलो करें Akshay Kumar
, शनिवार, 4 जून 2022 (06:57 IST)
अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' रिलीज हो चुकी है। इसमें पृथ्वीराज के रोल में अक्षय कुमार नजर आएंगे। अपने करियर में इस तरह का रोल वे पहली बार निभा रहे हैं। साथ ही यह मूवी उनके करियर की सबसे महंगी फिल्म है। इस फिल्म और रोल को लेकर उनका क्या कहना है, इस बारे में वेबदुनिया से बात कर उन्होंने बताया। 
 
कैसे निभा सकूंगा ये रोल? 
मैंने डॉक्टर साहब (डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी) से पूछा कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान का रोल मैं कैसे निभा सकूंगा? मैं तो वैसा दिखता भी नहीं हूं। मुझे डॉक्टर साहब ने ने कहा, अक्षय किसी के भी पास सम्राट पृथ्वीराज की कोई फोटो नहीं है। लोगों के पास सम्राट की एक कल्पना है। उन्होंने वैसा सोचा और हो सकता है वह सही हो। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि सम्राट पृथ्वीराज बड़े ही मजबूत शरीर वाले शख्स रहे होंगे। उन्होंने 18 के आसपास कुछ जंग जीती। हर एक जंग 20 से 25 दिन चली और हर दिन वे जंग में थे। कम से कम 10 से 11 घंटे तो वह रोज लड़ते थे, तो कोई भी कोमल काया वाला यह रोल को निभाने में सक्षम ही नहीं था। इसलिए मुझे लगा कि तुम वह पृथ्वीराज हो जिसे मैं लोगों के सामने लेकर आना चाहता हूं। पृथ्वीराज की मृत्यु 36 वें साल में हो गई थी। यह सब बातें जब मुझे डॉक्टर साहब ने बताईं तो मैं चौक गया। सोचने लगा कि जो शख्स रोज 35 से 40 किलोग्राम के कवच पहन कर लड़ता होगा। उसकी तलवार बीस किलोग्राम की होगी। इससे साफ है कि सम्राट पृथ्वीराज सशक्त काया वाले रहे होंगे। 

Akshay Kumar
 
मैंने कोई रिसर्च नहीं की 
मैंने इस रोल के लिए यह रिसर्च की कि मैंने कोई रिसर्च नहीं की। मेरे सामने डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी हैं जिन्होंने सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर 18 सालों तक रिसर्च की है। उससे बड़ी रिसर्च में कहां लेकर आऊं। यह तो बड़ी ज्यादती हो जाएगी कि मैं जाऊं और ऐलान कर दूं कि नहीं भाई मैंने यह पृथ्वीराज चौहान साहब को इस तरीके से पढ़ा है। यही सही है। मिसाल के तौर पर मेरी पत्नी इंटीरियर डिज़ाइनर है। दिन-रात घर सजाने का काम करती है। एक दिन में अचानक से पांच जाऊं और बोल दूं कि डाइनिंग टेबल यहां नहीं, यहां लगाओ तो वह तो बड़ी अजीब सी बात हो जाएगी। मेरे निर्देशक ने जो कहा जैसा कहा, मैंने उस रोल को वैसे ही निभाया। चंद्रप्रकाश द्विवेदी के बिना यह रोल मैं कर ही नहीं सकता था। मेरे दिमाग में तो सम्राट पृथ्वीराज की वही छवि है जो मैंने स्कूल में या किताबों में देखी है। चंद्र प्रकाश जी ने कहा कि उनके सपनों के और खयालों के सम्राट पृथ्वीराज कुछ ऐसे हैं। उन्हें जब मुझे यकीन दिलाया तब जाकर मैंने इस फिल्म के लिए हां कहा, कोई और होता तो शायद मैं हां क्या सोच भी नहीं पाता?
 
पृथ्वीराज की सोच समय से आगे 
डॉक्टर साहब के पास पिछले 18 साल से यह सब्जेक्ट रखा था। उन्होंने इतनी रिसर्च की है कि आप या मैं सब मिल बैठकर भी सोचें तो भी इतना ज्ञान हम में से किसी के भी पास नहीं होगा। इस दौरान डॉक्टर साहब ने मुझे सम्राट की कई छोटी बड़ी बातें भी बताईं। उन्होंने कहा कि सम्राट पृथ्वीराज उस समय में भी महिलाओं की समानता की बात लोगों के सामने रखते थे। उन्होंने सिंहासन में एक खास जगह बनवाई और रानी को वहां बैठाया। सब को बताया कि राज साथ में ही करेंगे। यानी कि महिलाओं को समान साथ देना। यह बात जो व्यक्ति उस समय सोच सकता था उसकी सोच का अंदाजा लगाइए। 
इस फिल्म का एक्शन दूसरी एक्शन फिल्मों से अलग
मेरे द्वारा की गई एक्शन फिल्में और इस फिल्म के एक्शन में बहुत अंतर रहा है। मैंने इसके पहले 'केसरी' में 1891 के उस समय को दिखाते हुए एक्शन सींस किए थे, लेकिन उसमें फिर भी हमारे पास कुछ हथियार थे। यह उससे भी पुरानी फिल्म है। तो जाहिर है इसमें कुछ अलग तरीके की एक्शन की जरूरत थी। मैंने बहुत सारे धातु से बने कपड़े पहने, तलवारें चलाई, यह सब मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग रहा। एक और बात, जो इस फिल्म को करने के पीछे थी वो ये कि मेरी मां मुझे इतिहास पढ़ाया करती थी। वह कई बार हमें जिक्र करके बताती थी। हमारे इतिहास की किताबों में भी पृथ्वीराज चौहान सम्राट के बारे में कुछ नहीं लिखा है। जब मैं यह फिल्म कर रहा था तो मुझे अपनी मां की बातें याद आती थी। अब लगता है कि काश कि वह हमारे साथ होती तो उन्हें अपनी फिल्म जरूर दिखाता। 
 
एक प्रतिशत भी उतार सका तो उपलब्धि 
सम्राट पृथ्वीराज की कई सारी ऐसी बातें या सभी बातें ऐसी हैं जो मैं अपने जीवन में उतार सका तो बहुत अच्छा होगा। इसके पहले भी मैं बता चुका हूं, महिलाओं को समानता का अधिकार देने वाली बात। यह बात मुझे बड़ी अच्छी लगी। वे अपने शत्रु को भी सम्मान दिया करते थे। कहने वाली कहते हैं कि पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 17 बार हराया और फिर 18 वीं बार वह जीत गया। लेकिन क्षमा कर देना बहुत बड़ा गुण है। हम आम तौर पर कह देते हैं कि हमने माफ कर दिया है, लेकिन हम किसी को दिल से माफ कर नहीं पाते हैं। अगर इसका एक भाग भी मैं अपने जीवन में उतार सकूं तो मेरे लिए वह बड़ी उपलब्धि होगी।

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