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अजय देवगन ने बताया कि क्यों उन्होंने किया रनवे 34 का निर्देशन, क्यों बदला फिल्म का नाम और क्या है उनका डर?

अजय देवगन की फिल्म रन वे 34 रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय के साथ-साथ निर्देशन भी किया है।

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रूना आशीष

, गुरुवार, 28 अप्रैल 2022 (12:10 IST)
"मुझे कभी भी किसी फ्लाइट में डर नहीं लगता है, लेकिन लिफ्ट में डर लगता है। अब आप जानना चाहेंगे, क्यों ऐसा होता है? मुझे  घबराहट क्यों हो जाती है? अब ट्रॉमा बोलो या फिर क्लस्ट्रोफोबिया बोलो वह होने लग जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि कई सालों पहले एक बार मैं कहीं जा रहा था और हमारी लिफ्ट टूट गई और हम सीधे तीसरे माले से नीचे गिरने लगे। उस लिफ्ट में मेरे साथ संजू (संजय दत्त) भी था। उस बात का ट्रॉमा सालों तक रहा। मुझे बाहर निकलने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी। आज भी जब मेरे सामने लिफ्ट में बहुत सारे लोग होते हैं तो मैं उनको बोलता हूं आप पहले चले जाइए, मैं बाद में आता हूं।" यह कहना है अजय देवगन का। 
 
आमतौर पर देखा जाता है कि कोई भी एक्टर अपने डर के बारे में खुलकर नहीं बोलते हैं, लेकिन अजय देवगन जो एक्शन हीरो के तौर पर भी लोगों का खूब प्यार पा चुके हैं अपने इस डर को शेयर कर रहे हैं वेबदुनिया के साथ। हाल ही में 'रन वे 34' फिल्म के प्रमोशन के दौरान अजय ने पत्रकारों को फिल्म से और अपने निजी जिंदगी से जुड़े कई सवालों पर जवाब दिए। 
 
बातों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अजय ने कहा- "इस फिल्म को शूट करते समय हमने कोशिश की कि ज्यादा से ज्यादा सच्चाई हो। कॉकपिट के सीन को शूट करते समय हमने ध्यान रखा कि ज्यादा से ज्यादा सच्ची बातें दिखाई जाए। इसलिए जो कॉकपिट आप देख रहे हैं, उसमें एक भाग हमने सेट पर बनाया है तो वहीं जो दूसरा भाग है, वह असली कॉकपिट बनाया है। बहुत सारे उपकरण और मशीनों को हमने खासतौर पर से बुलाया और उसी तरीके से रखा है। हमारे साथ एटीएस के आफिसर्स अभी हुआ करते थे जो हमें समय-समय पर सही बातों का ज्ञान दिया करते थे। जैसे- अगर अजीब सी टरब्युलेंस की स्थिति हो तो इस ऊंचाई पर हवा कैसी होगी? कॉकपिट में क्या हलचल हो सकती है? किसी भी पायलट की क्या स्थिति हो सकती है? उसकी मनोदशा क्या हो सकती है? यह सही सही आकलन करने के लिए यह ऑफिसर हमें समय-समय पर मदद किया करते थे। यूं तो मैंने कॉकपिट कई बार देखा और बहुत करीब से देखा है। अंदर जाकर पायलट से बात भी की है। लेकिन फिल्म की शूटिंग के दौरान काफी कुछ सीखने को मिला। कॉकपिट में कोई पायलट कैसे बैठता है? उसका हाथ कहां रहता है? किस बटन पर उसकी कौन सी उंगली रहती है? किस बटन को दबाने से क्या होता है? सच कहूं तो कभी-कभी लगता है कि अब छोटा-मोटा प्लेन तो मैं भी उड़ा ही लूंगा। 
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फिल्म का नाम पहले मे डे हुआ करता था। बदला क्यों? 
कुछ समय पहले की बात है। एक बार यूं ही मैं बड़े ही पढ़े-लिखे बुद्धिमान लोगों के बीच बैठा हुआ था और इस फिल्म के बारे में जिक्र निकला। मैंने कहा मे डे नाम रखने का सोच रहे हैं, तो एक महानुभाव ने पूछा कि मे डे से क्या लेबर डे मतलब है या अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस से जुड़ा हुआ तो नहीं है। उस पल इतना डर गया कि जब यह इतने पढ़े-लिखे बुद्धिमान लोगों की सोच है और उन्हें मे डे नहीं समझ में आ रहा है, तो आम जनता से कैसे यह अपेक्षा रखे कि वह इस बात को समझ पाएंगे? मैंने सोचा था कि हम प्रमोशन के दौरान या ट्रेलर के दौरान लोगों को नाम का मलतब समझा लेंगे, लेकिन इस घटना ने मेरी सोच बदली और मैंने फिल्म का नाम 'मे डे' से बदल कर 'रनवे 34' कर दिया। 
 
अजय ऐसा है इस फिल्म में कि आपने निर्देशन की जवाबदारी भी उठा ली?  
कई बार स्क्रिप्ट पढ़ते-पढ़ते मैं उसमें इतना खो जाता हूं कि उस फिल्म को मैं अपनी आंखों के सामने देखने लगता हूं। मेरे विचारों में वह फिल्म दिखाई देने लगती है और यह वह पल होता है जब मुझे लगता है कि अब निर्देशन की कमान मुझे खुद को अपने हाथों में लेनी होगी। इस उनके साथ भी यही हुआ। जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो मुझे लगा कि मैं इस फिल्म के साथ न्याय कर सकूंगा और यह तभी हो सकेगा। जब इस फिल्म को निर्देशित भी मैं ही करूं। अपनी नजर से मुझे फिल्म बड़ी अच्छी लगी। अब देखते हैं दर्शकों को पसंद आती है या नहीं। मुझे लगता है मेरी लिए निर्देशक और अभिनेता एक साथ होना अच्छा रहा। मुझे मालूम था कि मुझे किस तरीके से फिल्म में अपने रोल को निभाना है। मैं यह भी जानता था कि निर्देशक को किस अभिनेता में क्या चाहिए है, तो मेरा काम आसान हो जाता था।
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अपने अभिनय भी किया है। निर्देशन भी किया। निर्माता तो है ही आप, सबसे ज्यादा मुश्किल काम कौन सा लगा? 
मुझे तो कोई काम मुश्किल नहीं लगा।  

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