बॉलीवुड में 30 साल पूरे होने पर आमिर खान से वेबदुनिया का Exclusive इंटरव्यू
मैंने कभी नहीं सोचा था कि 30 साल तक काम पर पाऊंगा
आमिर खान के फिल्म इंडस्ट्री में 30 साल हो गए हैं। इस मौके पर आमिर ने कुछ समय पत्रकारों के साथ बिताया और बातचीत लंबी चलती गई। सबसे पहले तो उन्होंने 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष को अपने पानी फाउंडेशन के बारे में बताया।
आमिर ने कहा कि हमने इस साल 75 गांवों में काम किया। इस बार हमारे काम में हमारी मदद करने के लिए आलिया भट्ट और रणबीर कपूर भी आए थे। आलिया से पहले भी मिलता रहा हूं लेकिन एक दिन उन्होंने मेरे फाउंडेशन में आने की बात कही तो मैंने उन्हें बुला लिया। मुझे बहुत अच्छा लगा कि कैसे बाकी के एक्टर्स भी इस फाउंडेशन के लिए मेरे साथ काम करने के लिए तैयार हैं। गावों और एडमिनिस्ट्रेशन वालों से भी बहुत मदद मिली है।
यह पहली बार नहीं है, जब आपने ऐसा कोई काम किया है। तो क्या ऐसा करने से लोग आपको अपने और भी करीब पाते हैं?
मैंने ये सोचकर तो नहीं किया ये काम। देश में कई प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं, चाहे वो भुज का भूकंप हो या उत्तराखंड की आपदा हो। कश्मीर में आई कोई आपदा हो। उस समय सबसे पहले जो चाहिए होता है, वो ये है कि कैसे इस आपदा से लोगों को बाहर निकालें और कैसे जल्द से जल्द राहत काम शुरू हो सके।
लगभग 20 सालों से मैं प्रधानमंत्री राहत कोष में अपना योगदान दे रहा हूं ताकि किसी भी तरह की आपदा के समय राहत कार्य शुरू हो सके और वो चलता रहे। मैं अपनी तरफ से जो मदद बन सके, करता हूं ताकि कोष में पैसा बना रहे और समय आने पर उसका उपयोग हो सके। मेरे पानी फाउंडेशन में हम लोगों को पैसा नहीं देते, बल्कि हम लोगों को पढ़ाते और बताते हैं कि पानी को कैसे बचाएं और कैसे सूखे की हालत न हो सके। इस साल फरवरी और मार्च तक हम लोगों ने 20,000 लोगों को शिक्षित किया। अब ये लोग आगे गांव वालों को पानी की कीमत और उसे बचाए रखने के तरीके सिखाएंगे।
अपने 30 साल के करियर के बारे में क्या कहेंगे?
मैंने कभी इतना सोचा ही नहीं कि मैं 30 साल तक काम कर जाऊंगा। हम सबने एक फिल्म बनाई थी 'कयामत से कयामत तक'। हमने जब यह फिल्म बनाई थी तब ये ही सोचा था कि ये फिल्म चल जाए बस। जब चल गई तब भी नहीं सोचा कि अब क्या? एक बार एक वीडियो मैगजीन के लिए तबस्सुमजी ने मुझसे पूछा था कि जैसे देव, दिलीप और राज कई सालों तक चले हैं तो क्या आप लोगों जैसी नई पीढ़ी भी ये सब कर पाएगी? मैंने जवाब दिया कि मैं तो इतना सोच ही नहीं रहा। मैं तो 1-2 फिल्में भी ढंग से कर लूं तो भी बड़ी बात है।
आज से 30 साल पहले जब 'कयामत से कयामत' तक आई थी, तो लोगों ने हमें बहुत पसंद भी किया था। मुझे और जूही को बहुत प्यार भी मिला था। लेकिन बावजूद इसके, मुझे बड़े निर्माताओं और निर्देशकों के साथ काम करने का मौका नहीं मिल रहा था। वैसे भी उन दिनों में स्टार बनना इतना आसान नहीं होता था। आज तो एक फिल्म की तो सोशल मीडिया में आप स्टार बन जाते हैं। उसमें भी आपका कोई इंटरव्यू छप जाए तो ही बड़ी बात हो जाती थी। उस समय तो फोटो भी नहीं छपते थे। एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट भी नहीं थे। एंटरटेनमेंट मैगजीन में ही कुछ छपता था। मेनस्ट्रीम मीडिया में खबरें न के बराबर होती थीं।
मैं जब भी इस बारे में सोचता हूं तो मुझे फ्लैश में यादें आती हैं। फिर कभी लगता है कि कैसे इतनी जल्दी समय बीत गया। मेरे लिए सबसे ज्यादा अगर सीखने का कोई समय रहा, तो वो था मेरे करियर का शुरुआती दौर।
30 साल पहले फिल्म के प्रमोशन का तरीका बहुत अलग हुआ करता था, 'कयामत से कयामत' तक के प्रमोशन बहुत अलग थे उस समय के लिए। ये नासिर साहब का आयडिया था। माहिम जंक्शन पर एक बड़ा सा पोस्टर लगाया गया था जिसमें मेरा चेहरा था लेकिन वो पूरी तरह से दिखाई नहीं दे रहा था। तो एक हफ्ते तक तो पोस्टर की ही चर्चा रही। समझ में नहीं आ रहा था कि फिल्म का पोस्टर है या किसी एड फिल्म का। फिर एक हफ्ते बाद हम लोगों ने एक लाइन और जोड़ दी कि 'अपने नेक्स्ट डोर नेबर से पूछो'। इसके बाद हमने फिल्म का नाम जोड़ा कि देखिए आमिर खान को फिल्म 'कयामत से कयामत' तक में।' इस फिल्म का टाइटल बड़ा था जबकि उस समय छोटे नामों वाले टाइटल की फिल्में आती थीं।
सुना है कि फिल्म बेचने में परेशानी हुई थी?
नासिर साहब को इस फिल्म को बेचने में एक साल लगा। फिल्म बनकर तैयार पड़ी थी लेकिन कोई खरीदने को तैयार नहीं था। हर डिस्ट्रीब्यूटर स्क्रीनिंग में देखने आता था फिर बोलता था कि हमें अच्छी लगी फिल्म, हम रोए भी लेकिन फिर भी उन्हें विश्वास नहीं होता था कि फिल्म चलेगी। नए लोग हैं, नया निर्देशक है, संगीत भी नए लोगों का है आनंद-मिलिंद। नासिर साहब की दो फिल्में 'मंजिल-मंजिल' और 'जबरदस्त' भी नहीं चल पाई थी। फिर जाकर फिल्म वितरकों ने फिल्म को खरीदा। उन्होंने एक मीटिंग रखी जिसमें कहा गया कि मंसूर की हमने फिल्म ले ली है, आशा है कि फिल्म अच्छी चलेगी। लेकिन हम चाहते हैं कि आप इस फिल्म में 3 बातें बदल दें। एक तो इस फिल्म का टाइटल बदल दीजिए। दूसरा इसका अंत बदल दीजिए, क्योंकि हमें मालूम है कि आपने हैप्पी एंडिंग शूट की है, तो वो रख लीजिए। और तीसरा इसके गाने हमें पसंद नहीं आए हैं उन्हें बदल लीजिए, आपने 4 गाने रखे हैं और 4 रख लीजिए। उन्हें रिकॉर्ड करा लीजिए और वापस से शूट करके उसे फिल्म में डाल दीजिए।
फिर मंसूर ने क्या कहा?
मंसूर ने कहा कि ये मेरी फिल्म है। इसका टाइटल भी ये ही रहेगा। इसका अंत भी सैड वाला ही रहेगा और जहां तक गानों का सवाल है, क्या मालूम आपको बाकी के 4 गाने भी पसंद न आएं, तो मैं तो कुछ नहीं बदल रहा हूं। आपको भरोसा नहीं है, तो आप छोड़ दीजिए फिल्म को। फिर वो मान गए।
इसकी रिलीज डेट को लेकर भी बहुत सारी बातें हुई थीं?
मेरा और मंसूर का ये मानना था कि हमारी फिल्म लोगों को पसंद आएगी। तो जब बड़ी फिल्म रिलीज हो रही हो, तब ये फिल्म न रिलीज करें वर्ना हम कब आए और कब चले गए, मालूम भी नहीं पड़ेगा। आज तो इंटरनेट के जरिए रिलीज व फिल्म के बारे में लोगों को मालूम पड़ जाता है तो हम दोनों चाहते थे कि उस समय जब ऐसा कोई जरिया नहीं था तो फिल्म को वर्ल्ड ऑफ माउथ से फैलने का समय मिले। तो मैंने नासिर साहब को कहा था कि आप सिनेमा कैलेंडर में से सबसे धीमा माने जाने वाले समय पर रिलीज करें। एक तो कोई बड़ी फिल्म रिलीज नहीं होगी दूसरी 2 से 3 हफ्ते तक कोई फिल्म नहीं आएगी। तो हमें अच्छा-खासा समय मिल जाएगा अपने आपको जमाने में।
तो फिर रिलीज डेट कैसे तय की?
हमने इसे रमजान के महीने में रिलीज किया था। उस समय रमजान का महीना, श्राद्ध और दिवाली के पहले का समय बहुत कमजोर माना जाता था। इस समय कोई फिल्म नहीं लगाता था। हमने रमजान के पहले हफ्ते में फिल्म लगाई थी ये सोचकर कि 3 हफ्ते तक तो कोई फिल्म नहीं आने वाली। तो पहले हफ्ते में हमने 88 या 82% की कमाई की, उस समय के हिसाब से यह बहुत ही अच्छी कमाई कही जाएगी। दूसरे हफ्ते में गिरकर 70% तक कमाई पहुंच गई और तीसरे हफ्ते में कलेक्शन 60% तक गया और फिर चौथे हफ्ते में 96% तक चला गया। बात फैलने में समय लगा था।
फिल्म की सफलता के बाद क्या किया? निर्माताओं में होड़ मच गई होगी आपको साइन करने की?
अपनी पहली फिल्म के बाद मैंने तकरीबन 8 या 10 फिल्में साइन कर ली थीं। उस वक्त मैंने एक लिस्ट बनाई थी कि मुझे इन निर्देशकों के साथ काम करना है और उसमें से एक ने भी मुझे वो फिल्म ऑफर नहीं की। कभी कोई निर्देशक किसी और फिल्म में लगा हुआ था तो कभी मुझे उनका दिया रोल बहुत छोटा लगा था। नाम तो नहीं बताऊंगा लेकिन ऐसे हर निर्देशक के साथ ऐसा हुआ और मुझे काम नहीं मिला।
उस समय फिर मैंने कई नए निर्देशकों के साथ काम कर लिया, कहानियां भी पसंद आ गईं। फिर फिल्में बनना शुरू हुईं, तब जाकर समझ में आया कि अगर आपकी, निर्देशक और निर्माता की समझ एक-सी न हो तो जो फिल्म आप बनाने चले हैं, वो कहीं और ही पहुंच जाती है। तो उसी दिन सोच लिया कि जिनसे मेरी समझ मिले, मैं उन्हीं के साथ काम करूंगा। तो जब मैं उन फिल्मों में काम कर रहा था, उसमें मैं खुश नहीं था। मैं निर्देशकों के सारे निर्देश मान रहा था लेकिन जब मैं घर पहुंचता था तो मैं रोता था कि ये मैं क्या कर रहा हूं? इसके लिए थोड़े ही मैं फिल्म इंडस्ट्री में आया था। ये सब 2 से 3 साल तक चला। जितनी फिल्में मैंने साइन की थीं उतना मुझे समय लगेगा। मैं जान गया था कि मुझको ये सब झेलना ही होगा।
जब ये फिल्में रिलीज हुईं, तब क्या हुआ?
ये फिल्में आना शुरू हुईं और लोगों के सामने आना शुरू हुईं। मुझे अपना करियर खत्म होते दिखने लगा, क्योंकि ये 2-3 फिल्में नहीं चलीं और आगे आने वाली फिल्में भी ऐसी ही थीं। ये बात मैं तो जानता था कि दर्शक मुझे नहीं जान रहे हैं। मुझे लगने लगा कि मैं दलदल में फंसने लगा हूं। मुझे मालूम था कि मैं दलदल में धंसता जा रहा हूं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा था। मुझे मालूम था कि आने वाले 3 साल के बाद मैं खत्म हो जाने वाला हूं। उस विकट समय में मैंने अपने आपसे वादा किया कि अब मैं कभी भी ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे मैं खुश न होऊं। मैंने ठान लिया कि मैं भले ही घर बैठ जाऊंगा लेकिन ऐसी फिल्म नहीं करूंगा जिसे करने में मुझे खुशी न हो रही हो। मैं कोई फिल्म भी साइन नहीं करूंगा। वो बात अलग है कि कोई फिल्म ऑफर भी नहीं हो रही थी। मीडिया में मुझे 'वन फिल्म वंडर' कहा जाने लगा और वो लोग गलत भी तो नहीं थे ना। मैं उस समय 'वन फिल्म वंडर' ही बन गया था। उस दिन सोचा कि जब में निर्देशक कहानी और निर्माता इन तीनों से खुश न हो जाऊं, मैं काम ही नहीं करने वाला हूं।
फिर वो ब्रेक कैसे मिला?
उसी वक्त में मुझे भट्ट साहब का फोन आया। भट्ट साहब ने उस समय सारांश, अर्थ और नाम जैसी फिल्में बनाई थीं यानी वो ऊपर की तरफ बढ़ रहे थे। वो बहुत पॉपुलर निर्देशक बन गए थे। तो जब भट्ट साहब का फोन आया तो मैंने राहत की सांस ली। सोचा, अब भट्ट साहब का फोन आया है तो अब मैं उस दलदल से निकल गया हूं और इसी खुशी में मैं उनसे मिलने भी गया। अगर अनाउंसमेंट भी गया कि मैं भट्ट साहब की फिल्म में काम कर रहा हूं तो भी मेरे 3-4 साल निकल ही जाएंगे। सभी लोग उस फिल्म का इंतजार करेंगे। मैं मिला उनसे लेकिन मुझे कहानी नहीं पसंद आई। तो अब मैंने उनसे कहा कि मुझे एक दिन का समय दीजिए और मैं घर वापस आ गया।
ये मेरी जिंदगी का सबसे कठिन वक्त था। मेरे सामने दो रास्ते थे कि मैं समय की मांग के अनुसार चलूं और फिल्म साइन करके उस दलदल से तो बाहर निकलूं जिसमें मैं फंसा हुआ हूं। आगे की सोचेंगे आगे या फिर मैं उस वादे को निभाऊं, जो मैंने अपने आपसे किया था। तो बहुत सोचा और अगली शाम मैं भट्ट साहब से मिलकर बोला कि मुझे कहानी पसंद नहीं आई तो मैं तो नहीं कर पाऊंगा। हो सकता है कि अब आप आगे मुझे किसी फिल्म में भी न लें। वैसे भी मैं कौन होता हूं आपको मना करने वाला। मैं नया हीरो और आप इतने बड़े निर्देशक। लेकिन मैंने भी अपने आपसे वादा किया है कि जब मैं खुश होऊंगा तभी फिल्म करूंगा और मैं स्क्रिप्ट से खुश नहीं हूं। तो भट्ट साहब ने मेरी बातों को सुनकर कहा कि ऐसे मत सोचो कि काम नहीं करेंगे। हम आगे भी काम करेंगे। ये मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट था।
तो उस समय ने आपको कुछ सिखाया?
हां, मुझे बहुत ताकत मिली मेरे इस एक निर्णय से, क्योंकि जिस समय आप सबसे कमजोर हों और आपके पीछे और आगे कुछ न हो तो उस समय अगर आप नहीं डगमगाते तो आप जीवन में कभी नहीं डगमगाते। हालांकि लगभग 1 साल बाद मैंने और भट्ट साहब ने 'दिल है कि मानता नहीं' की, जो हम दोनों को दिल से बहुत पसंद है। उस समय अगर मैं समय के आगे झुक जाता तो शायद अपने करियर में झुकता ही चला जाता। तो उस फिल्म को रिजेक्ट करने के मेरे निर्णय ने मुझे कड़े और कठोर कदम लेना सिखाया।
'कयामत से कयामत' तक और 'राजा हिन्दुस्तानी' में आपके किसिंग सीन बहुत मशहूर हुए हैं, तो कैसे लिया था इन बातों को उस समय में इंडस्ट्री ने?
'कयामत से कयामत' तक के किसिंग सीन का ऐसा हुआ था कि शायद दशकों के बाद किसी फिल्म में किसिंग सीन था। फिर 'राजा हिन्दुस्तानी' और 'जो जीता...' में भी किसिंग सीन था। ऐसा सीन मेरे लिए बहुत छोटी-मोटी बात है। 'राजा हिन्दुस्तानी' का जो किसिंग सीन था, वो फिल्म में बहुत जरूरी था। मेमसाब और राजा के बीच में बहुत अंतर था। मेमसाब का जो कैरेक्टर था वो कभी सोच ही नहीं सकता कि उसका राजा के साथ कोई रिश्ता हो सकता है। वो उसको पसंद करती है। वो जब राजा को किस करती है तो उसके सबकॉन्शस दिमाग को समझ में आता है कि उसे राजा बहुत पसंद है। धर्मेश को आयडिया था, तो स्क्रिप्ट के हिसाब से ये सीन बहुत जरूरी था। मेमसाब से ऐसे ही कोई अगर पूछता कि क्या उसे राजा पसंद है, तो वो कह देती कि नहीं राजा तो दोस्त है। लेकिन उस माहौल में उसे खुद को मालूम पड़ता है कि वो तो राजा को पसंद करती है। तो किस वो करती है, न कि राजा और जब ये पैशनेट किस खत्म होता है तो उसे लगता है कि उसने क्या कर दिया है, तो फिर वो जगह छोड़कर भाग जाती है।
आपने बचपन में आर्थिक तौर पर बहुत ही बड़ा चुनौती से भरा समय देखा है?
मैं सच कहूं तो मेरा बचपन बहुत अच्छा गया है। अब्बाजान फिल्मों का निर्माण करते थे। जितना हो सके, हमें बहुत आरामदायक बचपन भी मिला है। कई कामयाब फिल्में बनाई हैं। वो बिजनेसमैन अच्छे नहीं थे। उन्होंने बहुत कमाया नहीं है। लेकिन उनके जीवन में एक समय वो भी था, जब उन पर माली तौर पर बड़ा बुरा समय भी आया। उनकी एक फिल्म 3 साल अटकी रही। इसमें उनका बहुत सारा पैसा अटक गया था। नाम था 'खून की पुकार' और 'लॉकेट' में उन्हें 8 साल लग गए। तो कई बार ऐसा होता था कि लोगों के घर पर फोन आते थे और वे पैसे मांगते थे और अब्बाजान कहते थे कि मुझे डैट्स मिलती हैं लेकिन वो कैंसल हो जाती हैं। जब फिल्म पूरी हो जाएगी तो मैं पैसे चुका सकूंगा। वो पूरी कोशिश कर रहे थे। ये खराब समय लगभग 4 साल तक चला था।
आपका नजरिया क्या था?
हमें अपने अब्बाजान के लिए बहुत बुरा लगता था। वो कोशिश भी कर रहे थे। वैसे भी अब्बाजान बहुत ही ईमानदार किस्म के इंसान थे। कभी किसी का पैसा नहीं रखते थे या ऐसा नहीं कि वो पैसा नहीं देंगे। हमें अपने अब्बाजान को ऐसा देखना अच्छा नहीं लगता था। हम सारे ही फायनेंशियल क्रायसिस से गुजरे हैं। मैं शायद 10 साल का था तो इतना सबकुछ याद है और मैंने इन सबसे ये सीखा कि कभी फिल्मों का निर्माण न करो। कभी आपने मेरे पुराने इंटरव्यू देखें होंगे तो कभी कोई पूछे कि क्या आप निर्माता और निर्देशक बनेंगे? तो मैं कहता था कि निर्देशन कर लूंगा, निर्माता नहीं बनूंगा। मैंने अपने पिता के टार्चर देखे हैं।
लेकिन 'लगान' के बारे में आशुतोष गोवारीकर ने कहा था कि 'लगान' के निर्माण के लिए सबसे पहले आपने ही हां कही थी?
मुझे 'लगान' को लेकर ये नहीं पता था कि ये फिल्म बनने के बाद कैसी लगने वाली है लेकिन मुझे ये मालूम था कि अगर 'लगान' बनेगी तो अच्छे से बनेगी। इसीलिए उस फिल्म के निर्माण के लिए मैं आगे आया।
आप असल जिंदगी में कितने जज्बाती हैं?
मैं बहुत ही इमोशनल हूं। मुझे इस बात पर यकीन नहीं है कि अगर आप मर्द हैं तो रोना नहीं है। मुझे कुछ लगता है तो वो मैं छुपाता नहीं हूं। मैं तो इतना इमोशनल हूं कि कभी आउटडोर के लिए जाता हूं 15 दिन या 2 महीने के लिए, तो मैं बहुत जल्दी होम सिक हो जाता हूं और मुझे घर की याद सताने लगती है। इसमें बड़ी अजीब सी कैफियत हो जाती है। मैं बयान ही कर सकता हूं। एक एड आता था जिसमें एक बूढ़ा शख्स फोन पर सुनता है और खुश होकर कहता है कि मेरा बेटा पास हो गया तो मैं उसके इमोशन को देखकर रोने लग जाता हूं।
'सत्यमेव जयते' में भी हमने आपकी भीगी पलकें देखी हैं?
हां, उसमें भी मैं कई बार रोया हूं और वो तो आपको एडिटेड वर्जन देखने को मिलता है, वर्ना अच्छा नहीं लगता न कि मैं कितना रोता हूं? वो लाइव शूट होता था, तो हम कई बार रोक नहीं सकते थे लेकिन फिर कम से कम मेरा पार्ट दिखाते थे। मुझे नहीं लगता कि शख्स रोने से छोटा या बड़ा हो जाएगा।