विद्युत जामवाल के सिनेमा में 10 साल, खुशी में बने प्रोड्यूसर

समय ताम्रकर
सोमवार, 19 अप्रैल 2021 (11:37 IST)
विद्युत जामवाल का सिनेमा में दसवां वर्ष है। दस वर्ष तक बतौर हीरो बॉलीवुड में टिके रहना, वो भी बिना गॉडफादर के, बड़ी बात है। इसका जश्न मनाते हुए विद्युत ने फिल्म प्रोड्यूसर बनने की घोषणा की है। उनके प्रोडक्शन हाउस का नाम होगा 'एक्शन हीरो फिल्म्स'। नाम से ही जाहिर है कि वे अपने बैनर तले एक्शन मूवी का निर्माण करेंगे। को-प्रोड्यूसर होंगे अब्बास सईद। 


 
10 दिसम्बर 1980 को पैदा हुए विद्युत जामवाल जम्मू से हैं। वे ऑर्मी ऑफिसर के बेटे हैं इसलिए देश के विभिन्न प्रदेशों में रहे हैं। जब वे तीन साल के थे तब केरल में थे। केरल में विद्युत की मां एक आश्रम चलाती थी जिसमें कलारिपयट्टू (Kalaripayattu) की ट्रेनिंग दी जाती थी और विद्युत ने तीन साल की उम्र में यह कला सीखना शुरू कर दी थी। इसी से उनका रूझान मार्शल आर्ट्स की तरफ बढ़ा। 
 
मार्शल आर्ट्स में विद्युत इतने पारंगत हो गए कि लाइव एक्शन शो परफॉर्म करने लगे। 25 से ज्यादा देशों में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया। 


 
मजबूत शरीर और आकर्षक शख्सियत के मालिक होने के कारण विद्युत को तुरंत मॉडलिंग के प्रस्ताव मिले। मॉडल बनते ही फिल्मों की राह खुल गई। तेलुगु फिल्म 'शक्ति' उनकी पहली फिल्म थी। 
 
हिंदी फिल्मों में विद्युत ने शुरुआत निशिकांत कामत की फिल्म 'फोर्स' से की। इस फिल्म में जॉन अब्राहम हीरो थे और विद्युत जामवाल ने निगेटिव किरदार निभाया।
 
विद्युत के अभिनय और स्टंट्स की तारीफ हुई, लेकिन खलनायक बन शुरुआत विद्युत गलती कर गए। भेड़चाल के लिए बॉलीवुड प्रसिद्ध है। विद्युत को खलनायक के रोल ही ऑफर होने लगे, जबकि वे हीरो के रूप में बॉलीवुड के कई हीरो से बेहतर हैं। 
 
विद्युत ने कई फिल्में ठुकरा दी क्योंकि वे हीरो के रूप में स्थापित होना चाहते थे। 2013 में रिलीज हुई 'कमांडो' ने विद्युत की साख को बढ़ाया। इसके बाद कमांडो 2 और कमांडो 3 भी बनी। 
 
बॉलीवुड में आपका कोई गॉडफादर हो तो फिल्में हासिल करना और कम प्रतिभा होने के बावजूद ज्यादा सफलता हासिल करना आसान हो जाता है। विद्युत का कोई गॉडफादर नहीं है। दस साल में उन्होंने बहुत कम फिल्में की हैं, लेकिन जो कुछ भी हासिल किया है अपने बूते पर किया है। 
 
एक एक्शन हीरो के रूप में विद्युत को लेकर अच्छी कमर्शियल फिल्में बनाई जा सकती हैं, लेकिन विद्युत अभी भी इससे वंचित हैं। शायद इस बात को उन्होंने बेहतर तरीके से समझा है और अपना खुद का बैनर बनाया है। अपने बैनर से वे मनचाही फिल्में बना सकेंगे। शायद अपनी प्रतिभा का सही उपयोग भी कर सकेंगे।  

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