"मैं यह तो जानती थी कि मेरी फिल्म शेरनी को लोग देखना चाहेंगे। लेकिन मैं यह बिल्कुल नहीं सोच पा रही थी कि वह कब देखेंगे। उस दिन देखेंगे जब रिलीज हुई या फिर उस दिन देखेंगे जब उनके पास समय होगा या फिर किसी वीकेंड पर शेरनी को देखना पसंद करेंगे। होता यह है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जब समय मिले आप देख लीजिए। लेकिन मैं इतनी खुश हूं यह बात जानते हुए कि जैसे ही फिल्म रिलीज हुई उसे देखने वालों की भरमार हो गई। इस फिल्म को लेकर मुझे कई लोगों के मैसेजेस आए और हर बधाई मेरे लिए उतनी ही मायने रखती है लेकिन एक मैसेज ऐसा है जो मैं चाह कर भी भूल नहीं पाऊंगी। यह मैसेज किया था, यह बधाई दी थी शर्मिला टैगोर जी ने जिसे पाकर मैं खुशी से झूम उठी। शर्मिला जी ने मुझे कहा कि उन्हें फिल्म बहुत पसंद आई। उन्हें इस बात की सबसे ज्यादा खुशी है कि शेरनी जैसी फिल्में अब भारत में बनना शुरू हुई है और मैंने इस फिल्म में काम किया है।"
यह कहना है विद्या बालन का, जिनकी फिल्म शेरनी हाल ही में लोगों के सामने आई है। अमेजॉन प्राइम पर रिलीज होने वाली यह फिल्म जंगल में होने वाले अवैध कामों पर बनाई गई है। फिल्म के सक्सेस इंटरव्यू के दौरान वेबदुनिया दुनिया ने विद्या बालन से बातचीत की।
मेरी जिंदगी का शेरनी मोमेंट
मेरी जिंदगी में भी मुझे एक बार ऐसा लगा था कि मैं यह जो कदम उठाने जा रही हूं, वह सही होगा या नहीं? जब मुझे इश्किया ऑफर की गई थी तो मुझे स्टोरी तो पसंद आई, लेकिन कुछ लोगों से जब बात की तो उन्होंने कहा कि ऐसे कैसे इस रोल को कर सकती हो? यह रोल अगर तुम करोगी तो उम्र के दायरे में फंस जाओगी। तुम्हें फिर वैसे ही रोल मिलेंगे। इसमें तुम्हें अपनी उम्र बढ़ाकर दिखानी होगी या फिर तुम्हारे सामने जिन्हें कास्ट किया गया है उनकी उम्र भी तो देखो। तुम तो एक कैटेगरी में बंध जाओगी। मैंने सबकी बातें सुनी, लेकिन फिर अपने कान बंद कर लिए। वही किया जो दिल और दिमाग ने कहा और उसके बाद अंजाम क्या हुआ आप सभी जानते हैं। उसकी सफलता की कहानी सभी को पता है।
शेरनी बनने का समय
आज हमारे समाज में जितनी भी लड़कियां हैं, सब अपने अपने तरीके से अपने अंदर की शेरनी को बनाए रख रही हैं, लेकिन बहुत बार जरूरी हो जाता है कि हम बर्ताव भी असल शेरनी की तरह ही करें। यानी चुपचाप रहो, कोई ताने दे रहा है, कोई बात नहीं मान रहा है, आपका अपमान कर रहा है या फिर आपके सपनों को कोई तवज्जो नहीं दे रहा है। चुपचाप बैठी रहो, कोई ध्यान मत दो, अनसुना कर दो और फिर जैसे ही मौका मिले झपट कर अपने सपनों को अपने वश में करना क्योंकि जिंदगी तो एक ही है, तो आपको पूरा हक है अपनी ज़िंदगी जीने का। आप अपने कौनसे सपनों के साथ जीना चाहती है, उनको पूरा करते जाइए। मैं जानती हूं सारे सपने पूरे नहीं होते कि हम कोशिश तो कर ही सकते हैं। सुनो मत अगर वह आपके सपनों को खत्म कर रहा हो, चाहे वो पराया हो या कोई अपना ही क्यों ना हो।
असली गांव वालों के साथ शूट करना
शेरनी फिल्म में कई ऐसे लोग थे जो एक्टर्स नहीं थे। जिन को तो यह भी नहीं मालूम था कि कैमरा के सामने खड़े कैसे रहना है, लेकिन उनके साथ काम करने का अपना अलग मज़ा था। उनको देखकर बिल्कुल नही लग रहा था कि वह नौसिखिए हैं। उनके अंदर का आत्मविश्वास उनके अंदर की ऊर्जा इतनी अच्छी थी कि मैं उस अनुभव का मजा ले रही थी। इन सारे गांव वालों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता था कि लोग उनके बारे में कुछ कहेंगे या नहीं कहेंगे। उनको लगता था कि चलो आए हैं, देखते हैं, हम लोग फिल्म में काम कर रहे हैं और काम करके घर चले जाएंगे। वैसे इस बात का श्रेय तो मैं रोमिल और तेजस को जो हमारे कास्टिंग डायरेक्टर थे, उनको भी देना चाहूंगी क्योंकि इसमें फॉरेस्ट ऑफिसर भी थे जिन्हें बस एक मामूली सी ट्रेनिंग दी गई। उन्हें बताया गया कि भाई जब आप शूट कर रहे हो तो कैमरा के अंदर नहीं देखना है बल्कि उनको देखना है जिनसे आप बात कर रहे हो। इस बारे में भी बताया कि कैमरे के सामने क्या नहीं करना है, लेकिन जिस तरीके से सहजता थी गांव वालों में और इन फॉरेस्ट ऑफिसर में, देख कर बहुत अच्छा लगता था।
शेर के शावकों के साथ शूट
मैंने शेर के शावकों के साथ शूट नहीं किया। मैं तो एक परदे को देखकर शूट कर रही थी लेकिन जब फिल्म में देखा तब ऐसा लगा कि अगर यह शेर के बच्चे मेरे सामने होते तो मैं उनको प्यार से गोदी में उठा लेती, वे बहुत प्यारे, निर्मल और अबोध थे। उस शॉट में बहुत सारे भाव थे। दुख था कि इसकी मां यानी कि टी 12 को मैं बचा ना सकी, तो गुस्सा भी थी कि जो नांगिया सर को जो समझ रही थी, वह तो शेर से प्यार ही नहीं करते। वह अपने ही गेम में कहीं लगे हुए थे। मेरे किरदार को इस बात की तसल्ली थी कि फॉरेस्ट फ्रेंड्स यानी जंगल मित्र और ज्योति का साथ अच्छा लगा। उसे लगा कि जो मुहिम थी, भले ही पूरी तरह से सफल नहीं हुई, लेकिन असफल भी नहीं हुई। मैंने बच्चों बचा लिया और शायद इतना ही मुमकिन था।
विद्या विंसेंट एक मुश्किल किरदार था
ये एक ऐसा किरदार था जो मैं आसानी से नहीं कर पा रही थी। मैं बहुत एक्सप्रेस करती हूं। लेकिन निर्देशक का कहना था कि मुझे महसूस हर चीज होगी, लेकिन मैं उसके बारे में कुछ नहीं बोलूंगी। एक्सप्रेस बिल्कुल नहीं करूंगी। शब्द बिल्कुल भी नहीं निकलेंगे मेरी ज़ुबान से। शूट के दौरान मुझे कई बार लगा कि मैं कुछ बोलूं, किसी चीज के खिलाफ आवाज उठाऊं, लेकिन मैंने नहीं उठाई। मैंने हमेशा अपने आसपास अलग-अलग तरीके की महिलाओं को देखा। जाना कि वे अपनी बात सही और सटीक तरीके से लोगों के सामने कैसे रखती हैं। विद्या विंसेंट ने मुझे सिखाया कि जरूरी नहीं है कि मजबूत महिला अपनी हर बात लोगों के सामने रख सके। उसकी जुबान हो यह भी जरूरी नहीं है। चुपचाप भी रह सकती है और समय आने पर वह ऐसा काम कर जाती है जो उसके दिल को सही लगता है। फिर चाहे उस काम करने के बाद उसको सजा के तौर पर कुछ भी कह दिया जाए। विद्या विंसेंट ने मुझे सिखाया कि मजबूत महिला कभी भी एक जैसी नहीं होती। कम बोलने वाली या चुपचाप रहने वाली भी मजबूत हो सकती है।