सिनेमा एक वैश्विक माध्यम है, इसका देश की सीमाओं से कोई लेना देना नहीं है। इस समय पूरे विश्व में जो मेनस्ट्रीम सिनेमा है वह प्रतिरोध का सिनेमा है। वरिष्ठ पत्रकार निर्मला भुराड़िया से खास बातचीत मेंं जाने माने आर्ट और फिल्म क्रिटिक अजीत राय ने ये बात कही। कई बार कान्स फिल्म फेस्टिवल में भाग ले चुके अजीत राय कई तरह की अलग-अलग फिल्मों पर पैनी पकड़ रखते हैं जिसमें भारतीय फिल्मों से लेकर, भाषाई और वैश्विक फिल्में भी शामिल हैं।
प्रतिरोध के सिनेमा प्रभाव के सवाल पर अजीत रूस, अमेरिका और ईंग्लैंड जैसे देशों का उदाहरण देकर समझाते हैं कि यह किस तरह से काम करता है।
स्पाइक ली द्वारा निर्देशित फिल्म ब्लैकक्लैंसमैन, जिसे कान फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड भी मिला है के बारे में बताते हुए वे कहते हैं - ये फिल्म जाहिर करती है कि अमेरिका के ब्लैक, पिछड़े या लाचार लोगों में अब भी विद्रोह की भावना है। वे बताते हैं कि ईंग्लैंड में बनी - आई डैनियल ब्लैक जैसी फिल्म या इस तरह का प्रतिरोध सिनेमा ईंग्लैंड को आईना दिखा रहा है, वहां की स्थिति को लेकर, कि वे कितने गर्त में है। उन्होंने रूस, चाइना और श्रीलंका में बनी प्रतिरोध फिल्मों के बारे में भी विस्तार से चर्चा की।
अजीत कहते हैं कि सिनेमा में बेईमानी की गुंजाइश नहीं होती बल्कि बेसिक ऑनेस्टी से ही फिल्में बनती हैं। हिन्दुस्तान में बाकी माध्यमों की तुलना में फिल्म का माध्यम आज भी खुलकर अपनी बात कहता है। यहां भी प्रतिरोध सिनेमा काम करता है जिसमें सोन चिरैया, शंघाई, राहुल ढोलकिया की परजानिया जैसी फिल्में इसमें शामिल है।
अब फिल्म मीडियम कई छोटे प्लेटफार्म पर भी है, इसे लेकर वे कहते हैं कि तकनीक ने सिनेमा को आसान कर दिया है, हिन्दुस्तान के खून में सिनेमा का इतना असर है कि हर आदमी की एक फिल्म है और सबका अपना एक क्रिकेट। उसे तकनीक ने अवसर दे दिया है कि प्रतिभा जूनून या तकनीकी नॉलेज है तो हर कोई फिल्म बना सकता है।
5 साल बाद स्टार सिस्टम और 100 करोड़ वाला खत्म हो जाएगा। सैकड़ों ऑनलाइन डिजिटल प्लेटफार्म माध्यम हो जाएंगे और सिनेमा अब आम लोगों की पहुंच में होगा, सिर्फ देखने के लिए नहीं बनाने के लिए भी। इसके अलावा अजीत राय कान्स फिल्म फेस्टिवल में भारतीय फिल्मों की स्थिति और उनसे जुड़े लोगों के बारे में भी रोचक खुलासे किए जो कई लोग नहीं जानते। देखिए बातचीत का वीडियो -