मो. रफी की पुण्यतिथि पर विशेष : अकेले हैं, चले आओ, जहां हो ...

Webdunia
गुरुवार, 27 जुलाई 2017 (16:58 IST)
रवीन्द्र गुप्ता



जन्म : 24 दिसंबर 1924 
 
निधन : 31 जुलाई 1980 
 
इस 31 जुलाई 2017 को मो. रफी को हमसे बिछुड़े हुए पूरे 37 वर्ष हो जाएंगे। 37 साल का अंतराल कम नहीं होता है, तो एकदम बहुत ज्यादा भी नहीं। इतने बरस बीत जाने के बाद भी रफी सा. की आवाज का जादू आज भी बरकरार है तथा कल भी बरकरार रहेगा। 
 
मो. रफी का जन्म 
मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को कोटला सुल्तानसिंह (पाकिस्तान) में हुआ था। वे हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्वगायकों में से एक थे। इन्हें 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' भी कहा जाता था। मोहम्मद रफी की आवाज ने वर्तमान के कई गायकों को भी प्रेरित किया है। इनमें सोनू निगम, मुहम्मद अजीज तथा उदित नारायण के नाम उल्लेखनीय हैं हालांकि इनमें से कइयों की अब अपनी अलग पहचान है। 
 
परिवार 
उनके परिवार में पत्नी बिलकिस रफी तथा चार बेटे व तीन बेटियां हैं। 
 
कुल 4,518 गीत‍ गाए हैं
मो. रफी ने 1944 से 1980 तक के कोई 35 सालों में कुल 4,518 गीत‍ गाए हैं। इनमें हिन्दी गानों के अतिरिक्त भजन, देशभक्ति गीत, गजल, कव्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत भी शामिल हैं। उन्होंने मराठी गीत भी गाए हैं।
 
13 वर्ष की आयु में गाया था पहली बार
एक बार आकाशवाणी के प्रोग्राम में बिजली गुल हो जाने की वजह से तब के मशहूर गायक कुंदनलाल सहगल ने गाने से मना कर दिया था। तब बेकाबू भीड़ को शांत करने के लिए मोहम्मद रफी को गाने का मौका दिया गया था। तब 13 वर्ष की आयु में मोहम्मद रफी का ये पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था।
 
मो. रफी ने अपना प्रथम गीत एक पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' (1944) के लिए गाया था। इसके संगीत निर्देशक श्याम सुंदर थे। 1946 में वे बंबई (अब मुंबई) आ गए और निधन तक फिल्मी दुनिया में गायन करते रहे। 
 
उन्होंने अपनी आखिरी फिल्म 'आसपास' (धर्मेन्द्र/ हेमा मालिनी) के लिए गायन किया था। 
 
गीत के बोल थे-
 
शाम फिर क्यूं उदास है दोस्त, तू कहीं आसपास है दोस्त,
महकी-महकी फिजां ये कहती है, तू कहीं आसपास है दोस्त...
 
कई फिल्म कलाकारों को दी आवाज
मो. रफी ने अपने गायन-हुनर की बदौलत कई फिल्म कलाकारों को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया था। इनमें दिलीप कुमार, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, शम्मी कपूर, गुरु दत्त, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र तथा ऋषि कपूर के अलावा गायक-अभिनेता, फिल्म निर्माता-निर्देशक किशोर कुमार तक के भी नाम शामिल हैं।
 
इन कलाकारों की 'फिल्लम' सिनेमाघरों में लगते ही दर्शक समझ जाते थे कि इसमें हमें मो. रफी के ही गाने सुनने को मिलेंगे और दर्शकों का हुजूम सिनेमाघरों की ओर उमड़ पड़ता था।
 
मखमली व सुरमयी आवाज
मो. रफी की आवाज मीठी है। सुनते ही जादू व नशा-सा छा जाता है। बहुत कम ही कलाकार ऐसे हैं, जो मो. रफी की तरह गाने वाले होंगे। कई कलाकारों ने मो. रफी के गाने की नकल करनी चाही, पर वे असफल ही साबित हुए। रफी उम्दा दर्जे के कलाकार थे तथा आवाज के रूप में उन्हें ईश्वरीय वरदान प्राप्त था।
 
जीदारी से होता था गायन
रफी साहब जब गीत गाते थे तो पूरी तन्मयता व उसमें पूरी तरह लीन होकर ही गाते थे। जब कोई उन्हें कहता था कि आपकी आवाज बहुत ही मीठी व सुरीली है, तो वे आसमान की ओर हाथ उठाकर कह देते थे कि- 'सब खुदा की देन है। मेरा अपना क्या है?' उनको अपनी आवाज का कभी गुमान नहीं हुआ। 
 
सादगी से रहा करते थे
वे अपनी निजी जिंदगी में बेहद सादगी से रहा करते थे। उन्हें देखकर कोई भी कह नहीं सकता था कि वे एक बहुत बड़े कलाकार हैं। फिल्मी दुनिया के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने एक बार कहा था कि 'हां, फिल्मी दुनिया में बहुत हेरफेर होती है, पर हमने कभी किसी का दिल नहीं दु‍खाया।' उन्होंने अपनी सफलता के लिए कभी शॉर्टकट नहीं अपनाया। उनके लिए गायन ही खुदा की इबादत के समान था। 
 
मीठा व फरिश्ता इंसान
एक गायक के रूप में मोहम्मद रफी बहुत लोकप्रिय रहे लेकिन उनसे बात करने पर उनके व्यक्तित्व की मिठास का भी अंदाजा होता था। शिखर पर विराजमान होने के बावजूद वे बहुत ही विनम्र इंसान थे और बहुत ही मीठी आवाज में बात करते थे। वे एक फरिश्ता इंसान भी थे। गरीबों व जरूरतमंदों की सेवा करना, बदहाली में जी रहे कलाकार की मदद करना और वो भी इस कदर कि दाएं हाथ से देंगे तो बाएं हाथ को भी खबर न हो। मदद करने के बाद भूल जाना उनका स्वभाव रहा है। 
 
किशोर दा को दी आवाज उधार
सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक किशोर कुमार को इन्होंने ही अपनी आवाज उधार दी थी। किशोर की एक फिल्म में मो. रफी ने गाना भी गाया था और इसके बदले में केवल 1 रुपया पारिश्रमिक लिया था, वह भी शगुन के तौर पर।
 
पुरस्कार
6 फिल्मफेयर और 1 नेशनल अवॉर्ड मो. रफी के नाम हैं। इन्हें 'पद्मश्री' सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। रफी साहब ने हिन्दी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं जैसे असमी, कोंकणी, पंजाबी, उड़िया, मराठी, बंगाली, भोजपुरी के साथ-साथ पारसी, डच, स्पेनिश और इंग्लिश में भी गीत गाए थे। 
 
मो. रफी के कुछ लोकप्रिय गीत
ए नरगिसे मस्ताना, बस इतनी शिकायत है... (आरजू)
जो उनकी तमन्ना है, बरबाद हो जा... (इंतकाम)
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे... (पगला कहीं का)
ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफसोस हम न होंगे... (मेला)
आदमी मुसाफिर है, आता है, जाता है... (अपनापन) 
सुहानी रात ढल चुकी, न जाने तुम कब आओगे... (दुलारी)
अकेले हैं, चले आओ, जहां हो, कहां आवाज दे तुमको... (राज)
आजाऽऽऽ तुझको पुकारे मेरा प्यार... (नीलकमल)
बाबुल की दुआएं लेती जा... (नीलकमल)
बहारों फूल बरसाओ, मेरा मेहबूब आया है... (सूरज)
एक तेरा साथ हमको दो जहां से प्यारा है... (वापस)
हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं... (घराना)
ओ दुनिया के रखवाले... (बैजू बावरा)
क्या से क्या हो गया... (गाइड)
चाहे कोई मुझे जंगली कहे... (जंगली)
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं... (गुमनाम)
राज की बात कह दूं तो... (धर्मा)
मन तड़पत हरि दर्शन को आज... (बैजू बावरा)
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं... (दिल दिया दर्द लिया)
दिलरुबा मैंने तेरे प्यार में... (दिल दिया दर्द लिया)
सावन आए या ना आए... (दिल दिया दर्द लिया)
मधुबन में राधिका... (कोहिनूर)
मन रे तू काहे ना धीर धरे... (चित्रलेखा)
आज मेरे यार की शादी है... (आदमी सड़क का)
चाहूंगा मैं तुझे... (दोस्ती)
छू लेने दो नाजुक होठों को... (काजल)
 
...और वो 31 जुलाई 1980 का मनहूस दिन
वो 31 जुलाई 1980 का मनहूस दिन था। इसी दिन आवाज के बेताज बादशाह मो. रफी का हार्टअटैक से 56 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे। भारी वर्षा हो रही थी, जैसे कि आसमान भी इस अजीम फनकार के निधन पर रो रहा हो। जनाजे में कोई 10,000 लोगों की भीड़ उमड़ी, जैसे हर कोई अपनी आदरांजलि इस महान गायक को देना चाहता हो। 
 
और चलते-चलते मैं भी रफी साहब को उनके ही इन गीतों के माध्यम से उनके सम्मान में अक़ीदत (श्रद्धा) के फ़ूल चढ़ाता हूं... 
 
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे/ जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, 
संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे...
 
ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफ़सोस हम न होंगे...
 
आदमी मुसाफ़िर है, आता है, जाता है/ 
आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है...
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