National Youth Day 2024: प्रतिवर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। उन्होंने शिकागो की धर्मसभा में भारत और हिंदू धर्म की पताका लहराई थी। उनके भाषण के कारण विश्व धर्मसंसद में सनातन धर्म को लोग जानने लगे थे। आओ जानते हैं उनके जन्मदिन पर मनाए जाने वाले राष्ट्रीय युवा दिवस के बारे में 4 रोचक बातें।
- इस बार देशभर में 40वां राष्ट्रीय युवा दिवस समारोह मनाया जाएगा। इस समारोह पर देशभर में राष्ट्रीय और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है।
- पहली बार भारत सरकार ने 1984 में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया था।
- 1985 से राष्ट्रीय युवा दिवस लगातार एक कार्यक्रम के रूप में मनाया जा रहा है।
- राष्ट्रीय युवा दिवस कार्यक्रम भारत के युवाओं को प्रेरित करता है और उनमें धर्म एवं राष्ट्र के प्रति जगाता है।
शिकागो में भाषण : 1886 में रामकृष्ण के निधन के बाद जीवन एवं कार्यों को उन्होंने नया मोड़ दिया। 25 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गेरुआ वस्त्र पहन लिया। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। गरीब, निर्धन और सामाजिक बुराई से ग्रस्त देश के हालात देखकर दुःख और दुविधा में रहे। उसी दौरान उन्हें सूचना मिली कि शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है।
सन् 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानंदजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे। योरप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला। विश्व धर्म सम्मेलन 'पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन्स' में अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने 'बहनों और भाइयों' कहकर की। इसके बाद उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए।
फिर तो अमेरिका में उनका बहुत स्वागत हुआ। वहां इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। 'अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा' यह स्वामी विवेकानंदजी का दृढ़ विश्वास था। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित कीं। अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। शिकागो से आने के बाद देश में प्रमुख विचारक के रूप में उन्हें सम्मान और प्रतिष्ठा मिली। 1899 में उन्होंने पुन: पश्चिम जगत की यात्रा की तथा भारतीय आध्यात्मिकता का संदेश फैलाया। विदेशों में भी उन्होंने अनेक स्थान की यात्राएं की।