Sardar Patel: लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को

WD Feature Desk
बुधवार, 30 अक्टूबर 2024 (12:59 IST)
Sardar Vallabh bhai Patel : भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती प्रतिवर्ष 31 अक्टूबर को मनाई जाती है। उन्हें आधुनिक राष्ट्र के निर्माता और लौह पुरुष के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन राष्ट्रीय एकता दिवस भी मनाया जाता है। आइए जानते हैं उनके बारे में खास बातें....
 
Highlights 
सरदार वल्लभ भाई पटेल जीवनी : सरदार वल्लभ भाई पटेल या वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। दुनियाभर में उन्हें लौह पुरुष के नाम से जाना जाता है। वल्लभभाई ने अपने प्रारंभिक शिक्षा काल में ही एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ा कर उन्हें सही मार्ग दिखाया जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के बाध्य करते थे।

सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने सन् 1897 में 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। सन्‌ 1908 में वे विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई थी, और जब वे मात्र 33 वर्ष के थे, तब ही उनकी पत्नी का निधन हो गया था। उनके पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश और धाक जमाई। 
 
भारत छोड़ो आंदोलन में भागीदारी : महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई। उन्होंने पत्रकार परिषद में कहा था- ऐसा समय फिर नहीं आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझ कर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा, तो आप यह न भूलें कि आपके हाथ में वो शक्ति है, जिससे 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।
 
जब सरदार पटेल गृहमंत्री बने : सितंबर 1946 में जब नेहरू जी की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत में विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर 1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था, जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी। मैंने यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा।

इस समस्या को हम सुलझाएंगे और निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करना में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।
 
सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्य : जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा।

नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। उनके ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा कितनी बलवती थी, इसका उद्धहरण ही काफी है। 
 
जब एक बार वे भारतीय युद्धपोत द्वारा बंबई से बाहर यात्रा पर थे तो गोआ के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसरों से पूछा- इस युद्धपोत पर तुम्हारे कितने सैनिक हैं, जब कप्तान ने उनकी संख्या बताई, तो पटेल ने फिर पूछा- क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त है। सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- अच्छा चलो जब तक हम यहां हैं गोआ पर अधिकार कर लो। किंकर्तव्यविमूढ़ कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती की, तब पटेल चौंके फिर कुछ सोचकर बोले- ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा। जवाहरलाल इस पर आपत्ति करेंगे।
 
सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था फिर भी गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे। गंभीर बातों को भी वे विनोद से कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर उन्होंने कहा था, सब जगह तो मेरा वश चल सकता है पर जवाहरलाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा। उनका यह कथन भी कितना सटीक था भारत में केवल एक व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है- जवाहरलाल नेहरू शेष सब सांप्रदायिक मुसलमान हैं।

सरदार पटेल का निधन कब हुआ था : यह भी सच है कि गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया तो नेहरू ने उस कल्पना और दृष्टिकोण को विस्तृत आयाम दिया। इसके अलावा जो शक्ति और संपूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम था। ज्ञात हो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने ज्वलंत प्रश्न था कि छोटी-बड़ी 562 रियायतों को भारतीय संघ कें कैसे समाहित किया जाए। जब इस जटिल कार्य को भी आधुनिक राष्ट्र निर्माता और महापुरुष सरदार वल्लभ भाई ने निहायत सादगी तथा शालीनता से सुलझाया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन 15 दिसंबर 1950 को प्रातः 9.37 पर 76 वर्ष की आयु में हुआ था।
 
सरदार पटेल की सेवाओं, दृढ़ता व कार्यक्षमता के कारण ही उन्हें लौहपुरुष कहा जाता है। आज भी यदि हम भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर करें, तो देश का लगभग आधा भाग सांप्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रद्रोहियों की चपेट में फंसा दिखाई देता है, ऐसी संकट की घड़ी में सरदार पटेल की स्मृति हो उठना स्वभाविक है। अंग्रेजों द्वारा विभक्त भारत को अखंड बनाने का श्रेय सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है। उनका प्रसिद्ध नारा, 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' आज भी देशवासियों को प्रेरित करता है।
 
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