Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

23 मार्च : डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती, पढ़ें 10 अनसुने तथ्य

हमें फॉलो करें 23 मार्च : डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती, पढ़ें 10 अनसुने तथ्य

WD Feature Desk

HIGHLIGHTS
 
• राम मनोहर लोहिया भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे।
• डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म जन्म 23 मार्च 1910 को हुआ था। 
• लोहिया जी प्रखर चिंतक तथा समाजवादी राजनेता थे।

ALSO READ: Shaheedi diwas 2024 : शहीद भगतसिंह के बारे में 10 रोचक बातें
 
Ram Manohar Lohia : 23 मार्च को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती है। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन भारतीय समाजवाद के विकास तथा अन्याय के खिलाफ लड़ने हेतु समर्पित कर दिया था। आइए जानते हैं उनकी जयंती पर 10 रोचक बातें.... 
 
1. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था। उनके पिताजी हीरालाल उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में एक व्यापारी तथा हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे। राममनोहर जी ने मुंबई के मारवाड़ी स्कूल से पढ़ाई की। मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम आकर इंटर की 2 वर्ष की पढ़ाई बनारस के काशी विश्वविद्यालय में की। 
 
2. तत्पश्चात बनारस से इंटरमीडिएट और कोलकता से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने उच्‍च शिक्षा के लिए लंदन के स्‍थान पर बर्लिन का चुनाव किया और मात्र तीन महीने में जर्मन भाषा पर अपनी मजबूत पकड़ बनाकर अपने प्रोफेसर जोम्‍बार्ट को चकित कर दिया। राम मनोहर लोहिया जी ने केवल 2 वर्षों में ही अर्थशास्‍त्र में डॉक्‍टरेट की उपाधि प्राप्‍त कर ली। जर्मनी में 4 साल बिताने के बाद वे स्‍वदेश वापस लौटे और सुविधापूर्ण जीवन जीने के बजाय जंग-ए-आजादी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी।
 
3. राम मनोहर लोहिया अपने पिताजी के साथ सन् 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। अगर जयप्रकाश नारायण ने देश की राजनीति को स्वतंत्रता के बाद बदला तो वहीं राम मनोहर लोहिया ने देश की राजनीति में भावी बदलाव की बयार आजादी से पहले ही ला दी थी। उनके पिताजी गांधी जी के अनुयायी थे। जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राममनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। जिस वजह से गांधी जी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ। 
 
4. डॉ. लोहिया अक्सर यह कहा करते थे कि उन पर केवल ढाई आदमियों का प्रभाव रहा, एक मार्क्‍स का, दूसरे गांधी का और आधा जवाहरलाल नेहरू का। 
 
5. डॉ. लोहिया मानवता की स्थापना के पक्षधर तथा समाजवादी थे। वह समाजवादी भी इस अर्थ में थे कि, समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था और वह अपने कार्यक्षेत्र को जनमंगल की अनुभूतियों से महकाना चाहते थे। वह चाहते थे कि व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद, कोई दुराव और कोई दीवार न रहे। सब जन समान हो, सब जन का मंगल हो। उन्होंने सदा ही विश्व-नागरिकता का सपना देखा था। वह मानव-मात्र को किसी देश का नहीं बल्कि विश्व का नागरिक मानते थे। जनता को वह जनतंत्र का निर्णायक मानते थे। 
 
6. डॉ. लोहिया पर स्वतंत्र भारत की राजनीति और चिंतन धारा पर जिन गिने-चुने लोगों के व्यक्तित्व का गहरा असर हुआ है, उनमें डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण प्रमुख रहे हैं। भारत के स्वतंत्रता युद्ध के आखिरी दौर में दोनों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण रही है। 1933 में मद्रास पहुंचने पर लोहिया गांधी जी के साथ मिलकर देश को आजाद कराने की लड़ाई में शामिल हो गए। इसमें उन्होंने विधिवत रूप से समाजवादी आंदोलन की भावी रूपरेखा पेश की। 
 
7. सन् 1935 में उस समय कांग्रेस के अध्‍यक्ष रहे पंडित नेहरू ने लोहिया को कांग्रेस का महासचिव नियुक्‍त किया। बाद में अगस्‍त 1942 को महात्‍मा गांधी ने भारत छोडो़ आंदोलन का ऐलान किया जिसमें उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और संघर्ष के नए शिखरों को छूआ। 
 
8. जयप्रकाश नारायण और डॉ. लोहिया हजारीबाग जेल से फरार हुए और भूमिगत रहकर आंदोलन का शानदार नेतृत्‍व किया। लेकिन अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 1946 में उनकी रिहाई हुई।
 
9. सन् 1946-47 के वर्ष लोहिया की जिंदगी के अत्‍यंत निर्णायक वर्ष रहे। आजादी के समय उनके और पंडित जवाहर लाल नेहरू में कई मतभेद पैदा हो गए थे, जिसकी वजह से दोनों के रास्ते अलग हो गए। राम मनोहर लोहिया ने अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही अपने विरोधियों के मध्‍य भी अपार सम्मान हासिल किया। 
 
10. देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया जिनमें से एक  राम मनोहर लोहिया थे। 30 सितंबर 1967 को लोहिया जी को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल (जिसे अब लोहिया अस्पताल कहा जाता है) में पौरुष ग्रंथि के ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया, जहां मात्र 57 वर्ष की आयु में 12 अक्टूबर 1967 को उनका निधन हो गया था। इसके साथ ही देश ने एक प्रखर चिंतक, समाजवादी राजनेता और स्वतंत्रता संग्राम के महान धनी को खो दिया।

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध : भारत के लिए तेल का आयात फिर हुआ महंगा