भारतीय संगीत दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है, लेकिन मुझे लगता है कि अब इसमें पाश्चात्य धुनों का समावेश ज्यादा हो गया है। यही कारण है कि भारतीय संगीत में अधूरापन नजर आने लगा है। यह कहना है सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का।
'बीबीसी हिन्दी एक मुलाकात' कार्यक्रम में उन्होंने संगीत और खुद के जीवन से जुड़ी कई बातों पर चर्चा की।
भारतीय संगीत में पश्चिमी धुनों के घालमेल से लता मंगेशकर काफी व्यथित नजर आती हैं। वे कहती हैं कि भारतीय संगीतकार मेहनत तो जमकर कर रहे हैं, लेकिन उसमें वह रस नहीं है।
आजकल एक दिन में एक से ज्यादा गाने बन जाते हैं, जबकि पहले नौशाद, लक्ष्मी-प्यारे, शंकर-जयकिशन जैसे संगीतकारों को एक गाना बनाने में 15 दिन तक का समय लग जाता था।
मैं आशा जैसी नहीं : आशा ने गाना तब शुरू किया जब उसकी शादी हो गई।
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आशा ने अपने गाने में कई प्रयोग किए और आज भी उसकी आवाज के दीवानों की कमी नहीं। वह मुझसे ज्यादा मेहनती है और इसी कारण सफल भी है। मुझे आशा की स्टाइल बेहद पसंद है, क्योंकि मैं उसकी तरह कभी नहीं गा सकती।
पसंद है फोटोग्राफी : मेरी क्रिकेट, टेनिस और फुटबॉल में काफी रुचि है, लेकिन यह केवल टीवी पर देखना पसंद करती हूँ। सचिन तेंडुलकर और सुनील गावसकर जैसे कुछ खिलाड़ियों से मिली भी हूँ। हाँ, फोटोग्राफी मुझे बेहद पसंद है।
अभिनय से की शुरुआत : मुझे अभिनय शुरू से पसंद नहीं था, लेकिन पिताजी की थिएटर कंपनी में मैंने छोटे बच्चे का रोल किया है। पिता की मौत के बाद घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई थी,
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इसलिए जो काम मिला, मैंने किया। मैंने फिल्म 'महल' से गाने की शुरुआत की। इसमें 'आएगा आने वाला' गाया, जो काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद अंदाज, बरसात, बड़ी बहन के गीत भी पसंद किए गए।
नूतन और मीनाकुमारी पर मेरी आवाज बिलकुल फिट बैठती थी। नई अभिनेत्रियों में काजोल और माधुरी दीक्षित के लिए मेरी आवाज सबसे बेहतर मानी जाती है। पसंदीदा संगीतकारों में एआर रहमान और जतिन-ललित हैं।