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चंद्रयान-3 की कामयाबी पर विदेशी मीडिया में भारत और पीएम मोदी पर क्या छपा है?

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BBC Hindi

, गुरुवार, 24 अगस्त 2023 (15:51 IST)
Chandrayaan-3: भारत के चंद्रयान-3 के लैंडर ने सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी ध्रुव में सॉफ्ट लैंडिंग कर ली है। भारतीय मीडिया में तो इससे जुड़ी ख़बरें छाई ही हुई हैं, विदेशी मीडिया में भी भारत की इस उपलब्धि की चर्चा है। ब्रितानी अख़बार 'द गार्डियन' लिखता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडर उतारकर भारत ने वो कारनामा कर दिखाया है, जो अब तक कोई देश नहीं कर पाया है।
 
अख़बार लिखता है कि इसके साथ ही भारत अब एक स्पेस पॉवर बन गया है। अख़बार ने लिखा कि जैसे-जैसे चंद्रयान के चांद पर उतरने की तारीख़ नज़दीक आ रही थी, लोगों में इसे लेकर घबराहट बढ़ रही थी। इसकी सफलता के लिए मंदिरों और मस्जिदों में ख़ास प्रार्थना सभाएं आयोजित की गईं। वाराणसी में गंगा किनारे साधुओं ने मिशन की सफलता की कामना की।
 
और फिर बुधवार की शाम क़रीब 6 बजे लैंडिंग हुई और उसके बाद भारत के लोग चांद पर सफलतापूर्वक लैंड करने वाला चौथा देश बनने की और चांद के दक्षिणी ध्रुव में लैंड उतरने वाला पहला देश बनने का जश्न मना रहे थे।
 
अख़बार लिखता है, 'आख़िरी के कुछ पलों में लैंडर ने बेहद जटिल काम को अंजाम दिया। इसने अपनी स्पीड 3,730 मील प्रतिघंटे से कम कर लगभग शून्य मील प्रति घंटे कर दी। साथ ही इसने अपनी पोज़िशन बदली और उतरने की तैयारी के लिए सीधी यानी वर्टिकल पोज़िशन ली।'
 
'इस वक्त लैंडर को सही पोज़िशन में सही धक्का दिए जाने की ज़रूरत थी, क्योंकि ज़ोर से धक्का देने से इसके लड़खड़ा जाने की ख़तरा था, वहीं ज़रूरत से कम ताक़त से धक्का देने पर ये चांद पर ग़लत जगह पर उतर सकता था।'
 
अख़बार लिखता है कि इससे पहले 2019 में भेजे गए भारत के चंद्रयान-2 मिशन की नाकामी की वजह आख़िरी के कुछ पल थे। इसका लैंडर अपनी स्थिति बदलने में कामयाब नहीं हो सका था और तेज़ी से चांद की तरफ आ गया था।
 
अख़बार ने ये भी लिखा है कि चांद तक पहुंचने के लिए अमेरिका ने जो रॉकेट सालों पहले इस्तेमाल किए थे, भारत नेउससे भी कम शक्तिशाली रॉकेट का इस्तेमाल किया। बल्कि सही स्पीड के लिए चंद्रयान ने पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाए जिसके बाद उसने चांद की तरफ़ छलांग लगा दी।
 
भू-राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण
 
लेखक डेविड वॉन रियली ने 'वॉशिंगटन पोस्ट' में लिखा कि खोज के लक्ष्य के साथ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर गया चंद्रयान का लैंडर अमेरिका की उस कहानी की तरह है, जो एक तरह की दौड़ की शुरुआत करता है।
 
उनका कहना है कि भारत की ये कामयाबी भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतीक भी है। उन्होंने रूस के लूना-25 की नाकामी का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये लैंडर चांद की सतह की तरफ़ ऐसे बढ़ा, जैसे रूस के ताबूत की आख़िरी कील की तरफ़ हथौड़ा बढ़ा रहा हो।
 
उन्होंने चांद के लिए रूस के अभियानों के बारे में लिखा कि रूस (पहले सोवियत संघ का हिस्सा) ने वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने स्पेस कार्यक्रम का इस्तेमाल किया।
 
उसी ने सबसे पहले इंसान को अंतरिक्ष में भेजा, सैटलाइट को कक्षा में स्थापित किया और चांद पर स्पेसक्राफ्ट उतारा। अमेरिका से 3 साल पहले 1966 में उसका लूना-6 चांद के ओशियानस प्रोसेलारम में उतरा, हालांकि बाद में अमेरिका ने सबसे पहले इंसान को चांद पर उतारकर इतिहास बनाया।
 
वो लिखते हैं, 'ये वो दौर था जब हॉलेट-पैकार्ड ने अपना पहला कम्प्यूटर बनाया था, आज रूस 1966 में किया अपना कारनामा दोहराना चाहता है, लेकिन वो नाकाम रहा। ये बताता है कि बेहद अधिक क्षमता वाले एक मुल्क ने कैसे अपनी क़ाबिलियत खो दी।'
 
'1989 में भारत की अर्थव्यवस्था सोवियत संघ की तुलना में आधी थी, लेकिन आज वो रूस से 50 फ़ीसदी बड़ी है। अमेरिका के साथ क़दम मिलाने की बात छोड़ दें, रूस आज भारत के साथ क़दम नहीं मिला पा रहा है।'
 
भू-राजनीति और मौजूदा विश्व व्यवस्था की बात करते हुए डेविड वॉन रियली लिखते हैं कि आधुनिक दुनिया की कल्पना में रूस की अहम जगह थी, लेकिन ये स्तंभ बिखर गया और चीन एक ताक़त के रूप में उभरने लगा।
 
वो लिखते हैं, 'चीन की अपनी परेशानियां हैं। स्थिरता और योग्यता के मामले में दुनिया एक बार फिर अमेरिका की तरफ़ देख रही है। यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोप के देश पहले से अधिक मज़बूती के साथ नाटो के साथ आए हैं। पूर्वी पैसिफिक के देश चीन से नाराज़ हैं और अमेरिका की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं।'
 
उन्होंने भारत की तरफ इशारा करते हुए लिखा, 'कई देश चांद के लिए मानव मिशन की योजना बना रहे हैं लेकिन अमेरिका ने मंगल पर हेलिकॉप्टर उड़ाया है, डीप स्पेस में एक टेलीस्कोप लगाया है, बृहस्पति के वायुमंडल तक पहुंचा और सौर मंडल में और दूर जाने की कोशिश कर रहा है।'
 
लैंडिंग, मगर स्टाइल में
 
इस ख़बर को द इकोनॉमिस्ट ने भी जगह दी है। अख़बार लिखता है कि भारत का लैंडर न केवल चांद पर उतरा बल्कि उसने ये कारनामा स्टाइल के साथ किया।
 
अख़बार लिखता है कि इस महत्वपूर्ण घटना को भारत में ऐसी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है, जो केवल कुछ ही महान देश कर सकते हैं और ये विश्व मंच पर एक नेता के तौर पर उसकी छवि को मज़बूत करता है। देश में अगले साल चुनाव हैं और मोदी के राष्ट्रवादी संदेश में ये छवि फिट बैठती है।
 
सोवियत संघ ने 1960 और 70 के दशक में चांद पर बेहद जटिल रोवर उतारे, वहां से चांद की मिट्टी के सैंपल इकट्ठा किए लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस ऐसा कोई कारनामा नहीं कर पाया है। लूना-25 के साथ रूस ऐसा करना चाहता था लेकिन वो इसमें कामयाब नहीं हो सका।
 
अख़बार लिखता है कि एक वक़्त ऐसा था, जब मून मिशन से जुड़े मामलों में भारत रूस से मदद लेता था।
 
अख़बार ने लिखा है, 'क़रीब दस साल पहले भारत के चंद्रयान-2 के लिए रूस लैंडर बनाने वाला था। लेकिन रूस के मंगल अभियान को मिली नाकामी के बाद भारत न अपने दम पर ही काम करने का फ़ैसला किया। चंद्रयान-2 कामयाब नहीं हुआ लेकिन चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद लग रहा है कि भारत का फ़ैसला सही था।'
 
'ये दुख की बात है कि अपने ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट का वॉरंट होने के कारण रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ब्रिक्स सम्मेलन के लिए जोहानिसबर्ग नहीं गए, लेकिन अगर वो वहां होते आमने-सामने मोदी को मुबारकबाद देना उनके लिए थोड़ा अटपटा होता।'
 
अख़बार लिखता है कि 'चांद को लेकर अमेरिका एक महत्वाकांक्षी आर्टेमिस मिशन पर काम कर रहा है जिसके तहत वो इंसान को इस दशक के आख़िर तक चांद पर भेजेगा। लेकिन उससे पहले उसकी योजना चांद पर रोबोट भेजने की है। अब तक तो वो चांद पर रोबोट नहीं भेज सका है। ऐसे में मौजूदा वक़्त में चांद पर अगर किसी एशियाई मुल्क की मौजूदगी है तो वो भारत ही है।'
 
'मज़बूत छवि और मज़बूती का संकेत'
 
न्यू यॉर्क टाइम्स ने भारत के चंद्रयान-3 को स्पेस अनुसंधान में एक नया अध्याय बताया है। इसी लेख को जापान टाइम्स ने भी छापा है।
 
अख़बार लिखता है कि भारतीय नेता एक ऐसे बहुध्रुवीय वैश्विक ऑर्डर के पक्ष में बात करते रहे हैं, जिसमें भारत की अहम भूमिका होगी।
 
अख़बार ने लिखा है, 'दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले इस देश की सरकार एक तरफ़ लोगों की आम ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है तो दूसरी तरफ़ देश की मोदी सरकार का संदेश स्पष्ट है- नेतृत्व की भूमिका भारत लेगा तो दुनिया एक न्यायपूर्ण जगह होगी।'
 
'देश में लोकसभा चुनाव होने हैं और मोदी की पार्टी एक बार और सरकार बनाने की उम्मीद कर रही है। वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मज़बूत करना उसके अभियान के प्रमुख संदेश में से एक है। आर्थिक, कूटनीतिक और तकनीकी क्षेत्र में विकास को मोदी अपनी छवि के साथ जोड़ कर दिखाते रहे हैं।'
 
2014 में मंगल मिशन के दौरान, 2019 में चंद्रयान-2 की लैंडिंग के वक़्त मोदी ख़ुद इसरो के मिशन कंट्रोल रूम में मौजूद थे, लेकिन चंद्रयान-3 की लैंडिंग के वक़्त वो ब्रिक्स के सम्मेलन के लिए जोहानिसबर्ग में थे। बेंगलुरु में मौजूद कंट्रोल रूम में उनका चेहरा वीडियो लिंक के ज़रिए स्क्रीन पर दिखा।
 
अख़बार लिखता है कि मोदी के कार्यकाल के दौरान भारत में सांप्रदायिक तनाव की कई घटनाएं हुई हैं लेकिन चंद्रयान-3 की सफलता को लेकर अलग-अलग समुदायों के बीच भेदभाव मिटता हुआ दिखा। मिशन की सफलता के लिए मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों में प्रार्थना सभाएं की गईं।
 
भारत की विदेश नीति अमेरिका और चीन के बीच बैंलेंस बनाए रखने की है, लेकिन हाल के वक़्त में चीन के साथ भारत के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा है।
 
अख़बार लिखता है, 'लद्दाख में सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव 3 साल से लगातार बना हुआ है और चीन की तरफ़ से बढ़ रहा ख़तरा भारत के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है। स्पेस समेत दूसरे क्षेत्रों में चीन से बढ़ रही नाराज़गी के बीच भारत और अमेरिका का सहयोग बढ़ रहा है और स्पेस के मामले में चीन, अमेरिका का बड़ा प्रतिद्वंद्वी बना हुआ है।'
 
टाइम पत्रिका में जेफरी क्लूगर लिखते हैं कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए भारत और रूस के बीच रेस लगी थी।
 
रूस से भारत ने 26 दिन भारत ने चंद्रयान-3 लॉन्च किया जो धीमी-गति से आगे बढ़ता रहा। वो पृथ्वी के चक्कर लगाता रहा और हर चक्कर के साथ उसने अपना दायरा बढ़ाया। जब दायरा इतना बढ़ गया कि चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति उसे अपन तरफ खींच ले, तो उसने चांद की तरफ़ छलांग ली।
 
टाइम ने लिखा है, 'रूस के लूना-25 ने सीधा रास्ता लिया और चंद्रयान से दो सप्ताह पहले चांद तक पहुंचा। दोनों को 23 अगस्त के दिन ही लैंडिंग करनी थी। लूना-25 ऑर्बिट में स्थापित हो गया लेकिन फिर चांद की सतह पर उतरते वक़्त वो सतह से टकरा गया।'
 
जिस दिन लूना-25 के साथ संपर्क बाधित हुआ, उसी दिन भारत के चंद्रयान-3 ने चांद पर उतरने के लिए चांद की कक्षा में आ गया।
 
वहीं सीएनएन लिखता है कि चंद्रयान का लैंडर और रोवर दो सप्ताह तक चांद पर रहेंगे, वहीं उसका प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑर्बिट में रहेगा और रोवर जो जानकारी इकट्ठा करेगा प्रोपल्शन मॉड्यूल उसे पृथ्वी तक पहुंचाएगा।
 
अख़बार लिखता है कि चांद के लिए 60 और 70 के दशक के दौरान जो रेस शुरू हुई थी, उसके बाद अब एक दूसरी रेस शुरू हो गई है और इसमें भारत की अहम शक्ति के रूप में उभर रहा है।(Photo Courtesy: BBC)

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