ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा अब इस दुनिया में नहीं रहे। 99 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। शायद वो दुनिया के सबसे मशहूर पति थे। अपनी ज़िंदगी के 70 साल, प्रिंस फ़िलिप ने महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय की परछाईं बन कर गुज़ारे लेकिन उनके व्यक्तित्व की ताकत ऐसी थी कि वो सिर्फ़ एक पति बनकर नहीं रह सकते थे। तो महारानी के साथ रहने वाले प्रिंस फ़िलिप कौन थे और उन्होंने महारानी से शादी क्यों की?
महारानी के पति थे, लेकिन राजा नहीं
सबसे पहली बात-ड्यूक की, जिन्हें प्रिंस फ़िलिप भी कहा जाता है, वो कभी भी लाइन ऑफ़ थ्रोन यानी राजगद्दी के उत्तराधिकारी की कतार में नहीं थे। उनके सबसे बड़े बेटे को राजगद्दी विरासत में मिली लेकिन उन्हें कभी राजा की उपाधि भी नहीं मिली।
ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटेन में अगर एक महिला किसी राजा से शादी करती है तो उसे क्वीन की उपाधि मिलती है, लेकिन अगर एक पुरुष किसी रानी से शादी करता है, तो उसे राजा की उपाधि नहीं मिलती। यह उपाधि सिर्फ़ उन्हीं पुरुषों को मिलती है जिनका संबंध सीधे राजपरिवार से होता है।
क्वीन और प्रिंस फ़िलिप के चार बच्चे हैं। प्रिंस चार्ल्स, जो 72 साल के हैं, 71 साल के प्रिंस एंड्रयू, 70 साल की प्रिंसेस ऐन, और प्रिंस एडवर्ड जो 57 साल के हैं। ऐसा कहा जाता है कि उनके बच्चे जब छोटे थे तो प्रिंस फ़िलिप उनसे अपनी बात मनवा लेते थे।
रॉयल जीवनीकार इंग्रिड सीवार्ड से बात करते हुए प्रिंस एंड्रयू ने कहा था, "रानी करुणा की प्रतिमा हैं तो, प्रिंस फ़िलिप कर्तव्य और अनुशासन सिखाते हैं।"
लेकिन एंड्र्यू को ये भी याद है कि कैसे उनके पिता सोने से पहले उनको 'बेड टाइम' स्टोरी सुनाते थे या फिर अपने उन्हें रुडयार्ड किपलिंग की कहानियां पढ़ते हुए सुनते थे।
प्रिंस फ़िलिप ने अपनी नज़रों के सामने अपने आठ पोते-पोतियों को बड़े होते देखा और दस परपोते-परपोतियों को जन्म लेते देखा।
उनकी ज़िदगी कहां से शुरू हुई?
प्रिंस फ़िलिप की बकिंघम पैलेस की यात्रा साल 1922 में, एक नारंगी रंग के पालने से शुरू हुई। प्रिंस फ़िलिप का जन्म 10 जून 1921 को यूनान के कोर्फू द्वीप में हुआ था। वो यूनान के प्रिंस एंड्र्यू और बैटनबर्ग की प्रिंसेस एलिस के सबसे छोटे और इकलौते बेटे थे।
इस विरासत ने उन्हें यूनान और डेनमार्क का प्रिंस बना दिया लेकिन एक साल बाद ही वहां तख़्तापलट हुआ और परिवार को यूनान छोड़ कर जाना पड़ा। ब्रिटेन के एक जंगी जहाज़ ने परिवार को सुरक्षित इटली पहुंचाया। इस दौरान नन्हें फ़िलिप फलों की टोकरी में सोते रहे थे।
कैसे हुआ पालन-पोषण?
फ़िलिप ने बचपन में काफी कुछ खोया और दुख और निराशा का सामना किया। साल 1930 में नर्वस ब्रेकडाउन के कारण उनकी माँ को एक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में जाना पड़ा। अगले कुछ बरसों में उन्हें अपने माता-पिता को देखने के कम ही मौक़े मिले।
उनके पिता ने फ्रांस में एक नदी के किनारे एक महिला के साथ बसने का फ़ैसला किया। ब्रिटेन में उनकी मां के रिश्तेदारों ने उनकी देखभाल की। बाद में उन्होंने उनका सरनेम भी लिया - माउंटबैटन। ये शब्द बैटनबर्ग परिवार से आया है।
पढ़ाई के लिए उनका दाखिला गोर्डनस्टाउन के एक स्कॉटिश बोर्डिंग स्कूल में कराया गया। स्कूल के संस्थापक और हेडमास्टर का नाम कर्ट हैन था। जर्मनी में नाज़ियों की आलोचना करने के कारण उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
स्कूल ने फ़िलिप को मज़बूत इंसान के तौर पर जीवन जीना सिखाया, उन्हें आत्मनिर्भर बनना सिखाया। किसी स्पार्टन शासन की तरह उन्हें ठंड में सुबह उठना पड़ता था, काफ़ी दूर तक दौड़ लगानी पड़ती थी और नहाना पड़ाता था। हैन का मानना था कि इससे युवावस्था के "ज़हरीले जुनून" का मुक़ाबला करने में मदद मिलती है।
साल 1937 में, फ़िलिप की चार बहनों में से एक, सेसिली की उनके जर्मन पति, सास और दो युवा बेटों के साथ एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई। वह उस समय गर्भवती थीं।
सेसिली कुछ समय पहले ही जर्मनी की नाज़ी पार्टी में शामिल हुईं थीं जिसका उस वक़्त जर्मनी पर शासन था। उस वक्त 16 वर्ष के फ़िलिप जब डार्मेस्टैड में अपनी बहन के ताबूत के पीछे चल रहे थे, उनके पीछे आती भीड़ "हेल हिटलर" के नारे लगा रही थी।
प्रिंस फ़िलिप ने बाद में उस घटना को याद करते हुए कहा था, "ये बस घट गया। परिवार टूट चुका था। मेरी माँ बीमार थी, मेरी बहनों की शादी हो चुकी थी। मेरे पिता दक्षिणी फ्रांस में थे। मुझे बस इससे आगे बढ़ना था। एक व्यक्ति यही करता है।"
फ़िलिप और महारानी का प्यार
जब फ़िलिप ने स्कूल छोड़ा तब ब्रिटेन और जर्मनी युद्ध की कगार पर थे। वह डार्टमाउथ (यूके की नौसेना अकादमी) में ब्रिटेन के रॉयल नेवल कॉलेज में शामिल हुए। वहां वो एक शानदार कैडेट साबित हुए और अपनी क्लास में अव्वल रहे।
जुलाई 1939 में जब किंग जॉर्ज VI अपनी आधिकारिक यात्रा पर वहां पहुंचे तो फ़िलिप पर उनकी युवा बेटियों, प्रिंसेस एलिज़ाबेथ और मार्गरेट के साथ घुलने-मिलने के आरोप लगे।
उनकी गवर्नेस, मैरियन क्रॉफ़र्ड (राजकुमारियों के लिए एक संरक्षक के रूप में कार्यरत), ने बाद में याद करते हुए कहा कि फ़िलिप ने "बड़ा काम कर दिया था"। उन्होंने 13 साल की एलिज़ाबेथ पर बहुत प्रभाव डाला, जो जल्द ही स्पष्ट दिखने लगा था।
प्रिंस फ़िलिप ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लिया और पहली बार हिंद महासागर में सैन्य कार्रवाई देखी। अक्टूबर 1942 में, जब वो 21 साल की उम्र के थे, वो रॉयल नेवी के सबसे युवा लेफ्टिनेंट में से एक बन चुके थे। राजकुमारी जो उस वक्त अपनी किशोरावस्था में थी, उनके साथ वो लगातार पत्र के माध्यम से बातें करते रहे।
1943 के क्रिसमस के बाद जब फ़िलिप शाही परिवार के साथ थे, तब नौसेना की वर्दी में उनकी एक तस्वीर सामने आई जिसमें वो राजकुमारी के ड्रेसिंग टेबल पर दिखाई दे रहे थे। यह तस्वीर खुलकर सामने नहीं आने वाली लेकिन दृढ़निश्चयी युवती का एक निर्णायक इशारा था।
कुछ सहायकों को संदेह हुआ। सुनी गई बातों के मुताबिक़ (चूंकि इसे एक से अधिक अधिकारियों ने बताया है) प्रिंस 'अजीब थे, अशिक्षित थे और शायद वफादार नहीं थे'। लेकिन ये बातें भविष्य की रानी को रोकने के लिए ये बातें काफ़ी नहीं थीं।
रॉयल जीवनीकार फ़िलिप ईड के अनुसार, 1946 के दौर की फ़िलिप की भेजी गईं चिट्ठियां एक युवा व्यक्ति और उसके अंदर की नई चाहतों को दर्शातीं हैं।
उन्होंने अपनी होने वाली सास को लिखा, "मुझे यकीन है कि मैं उन सभी अच्छी चीजों के लायक नहीं हूं जो मेरे साथ हुईं हैं। मैं युद्ध से बच कर निकला, मैं जीत का साक्षी बना। मुझे रुककर ख़ुद को फिर से समझने का मौक़ा मिला, मुझे पूरी तरह से प्यार में पड़ने का मौक़ा मिला, मुझे सबको अपना बनाने का भी मौक़ा मिला, यहां तक कि दुनिया की परेशानियां छोटी लगने लगी हैं।"
किंग जॉर्ज ने फ़िलिप को अपनी बेटी से शादी करने की इजाज़त दे दी लेकिन इससे पहले उन्हें कुछ बदलाव करने थे। शादी से पहले यूनान और डेनमार्क के पूर्व प्रिंस ब्रिटेन का हिस्सा बने, आधिकारिक रूप से चर्च ऑफ़ इंग्लैंड से जुड़े और अपनी विदेशी उपाधियों को उन्होंने छोड़ दिया।
20 नवंबर 1947 को अपनी शादी के दिन वो ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा बने। ये एक नया नाम था जिससे जीवनभर जाने गए। तब वो 26 साल के थे और उनकी पत्नी 21 साल की। इस रॉयल दंपती की शादी को चार साल ही हुए थे ज़िम्मेदारियों ने दस्तक दी। इस वक्त उनके दो बच्चे हुए थे।
साल 1952 में जब वो कीनिया में कॉमनवेल्थ देशों के दौरे पर थे, तब उन्हें किंग जॉर्ज IV, जो 56 साल के थे, उनकी मौत की ख़बर मिली।
ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा के दोस्त और निजी सचिव कमांडर माइकल पार्कर ने उस पल का वर्णन किया जब फ़िलिप को एहसास हुआ कि उनकी पत्नी अब रानी बन गईं थी।
उन्होंने कहा, "उन्हें देखकर लग रहा था जैसे आपने आधी दुनिया उनके कंधों पर गिरा दी है। मैंने अपने पूरे जीवन में कभी किसी के लिए इतना ख़ेद महसूस नहीं किया है। उन्होंने ज़ार से सांस ली, जैसे वह सदमे में थे। उन्होंने तुरंत समझ लिया था कि उनका सुखद जीवन अब ख़त्म हो चुका है।"
फ़िलिप की नौसैनिक महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लग गया। नई महारानी एलिज़ाबेथ को अपने साथ अपने पति की ज़रूरत थी। ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा को 'क्वीन्स कॉन्सोर्ट' कहा गया। उनकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी अपनी पत्नी की मदद करना था ताकि वो बेहतर तरीके से अपना काम कर सकें।
1950 के दशक में नाम को लेकर एक लंबा विवाद हुआ। फ़िलिप चाहते थे कि राजपरिवार में उनके सरनेम यानी माउंटबैटन का इस्तेमाल किया जाए। जब रानी ने विंडसर रखने की गुज़ारिश को तो उन्हें ग़ुस्सा आया
"मैं देश का इकलौता आदमी हूं, जिसे अपने बच्चों को अपना नाम देने की अनुमति नहीं दी गई है!"
फ़िलिप अपनी निर्धारित सीमित भूमिका में उद्देश्य खोजने के लिए संघर्ष करते रहे। अपने व्यवहार के मुताबिक़, उन्होंने बकिंघम पैलेस के गलियारों में एक नई बयार लाने की कोशिश की।
फ़िलिप ने राजशाही को कैसे बदला?
ड्यूक यूनान से अपने परिवार के पलायन की बात को कभी नहीं भूल पाए। वो मानते थे कि राजशाही को अगर जीवित रखना है तो समय के साथ बदलाव लाना होगा। उन्होंने अनौपचारिक दावतों की शुरुआत की, जहां रानी अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों से मिल सकें।
उन्होंने फुटमैन-पारंपरिक वर्दी वाले महल के नौकरों के बालों पर पाउडर लगाने को बंद करवाया। जब उन्हें पता चला कि राजमहल में राजघराने के लोगों के लिए अलग से रसोईघर की व्यवस्था है तो उन्होंने एक रसोईघर को बंद करवा दिया।
कुछ बदलाव उनकी निजी ज़िंदगी के लिए थे। उन्हें गैजेट का बहुत शौक था। राज्याभिषेक से पहले, जब फ़िलिप और भविष्य की रानी 1949 में क्लैरेंस हाउस में गए, उन्होंने वहां कई नई डिवाइसें वहां लगवाई। इनमें एक अलमारी भी शामिल थी, जिसका बटन दबाने पर सूट निकलता था।
ड्यूक ने रॉयल फ़ैमिली नामक एक 90 मिनट की बीबीसी डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई जिसे 1969 में प्रसारित किया गया। इसे टीवी इतिहास में एक बड़ा पल माना जाता है। इसमें रानी घोड़े को गाजर खिलाते हुए, टीवी देखते और एक बाल्मोरल बारबेक्यू में सलाद पर चर्चा करते हुए दिखीं जबकि राजकुमारी ऐनी सॉसेज पकाती दिखीं।
बकिंघम पैलेस में, फ़िलिप ने इंटरकॉम लगावाया था ताकि नौकरों को अपनी पत्नियों को लिखित संदेश न भेजना पड़े। वो अपना सामान खुद उठाते थे और अपने कमरे में एक इलेक्ट्रिक फ्राइंग पैन पर नाश्ता बनाते थे। हालांकि महारानी की गंध आने की शिकायत के बाद उन्हें ये बंद करना पड़ा।
वो अपना समय कैसे बिताते थे?
ब्रिटिश इतिहास में सबसे लंबे समय तक काम करने वाले कॉन्सोर्ट के रूप में राजकुमार ने 22,191 कार्यक्रमों में भाग किया। जब वो 2017 में शाही कर्तव्यों से सेवानिवृत्त हुए, तब वो 780 से अधिक संगठनों के संरक्षक, अध्यक्ष या सदस्य थे।
राष्ट्रमंडल देशों के दौरों और राज्य के दौरे पर क्वीन के साथ उन्होंने आधिकारिक क्षमता में 143 देशों का दौरा किया जहां वो अपने धाराप्रवाह फ्रेंच और जर्मन भाषा का इस्तेमाल करते थे। इन देशों में दक्षिण प्रशांत द्वीप का राष्ट्र वनुआतु शामिल था, जहां उन्हें एक प्राचीन योद्धा के पुनर्जन्म के रूप में पूजा जाता है।
लेकिन उनकी सबसे महत्वपूर्ण विरासत में से एक है ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा का पुरस्कार, जिसे उन्होंने 1956 में अपने पूर्व हेडमास्टर कर्ट हैन के आग्रह पर शुरू किया था।
14-25 वर्ष की आयु के लोगों को समाजसेवा के लिए वालंटियर करने, शारीरिक गतिविधियां और कौशल सीखने, पर्वतारोहण या नौकायन जैसे अभियान का संचालन करने लिए ये पुरस्कार दिया जाता है। 2016 तक दुनिया के 130 देशों के लगभग 13 लाख युवा इस योजना में भाग ले चुके थे।
इस अवार्ड के संस्थापक ने बीबीसी को बताया, "यदि आप युवाओं को किसी भी क्षेत्र में सफल होने में मदद करते हैं, तो उस सफलता का असर बहुत दूर तक फैलता है।"
फ़िलिप एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी भी थे। उन्होंने गॉर्डनस्टाउन में सेल करना सीखा, और आइल ऑफ़ वाइट के प्रतियोगी बने, जहां गर्मियों के दिनों में नौकायन प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी।
गाड़ी चलाने और खेल-कूद से उन्हें प्यार था। 1960 के दशक के मध्य में ब्रिटेन के शीर्ष चार पोलो खिलाड़ियों में वो भी एक थे। वो पर्यावरण बचाने की मुहिम से भी जुड़े रहे। वह 1961 में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फंड (यूके) के अध्यक्ष बने। हालांकि उन्हें उस समय आलोचना का सामना करना पड़ा जब भारत में रानी के साथ एक बाघ के शिकार की उनकी तस्वीरें सामने आईं।
उनके अपने शब्दों में, और रानी के शब्दों में... ब्रिटिश जीवन में अपने योगदान पर बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैंने अभी जो किया है वह मेरा सबसे अच्छा प्रदर्शन है। कुछ लोग सोचते हैं कि यह सब ठीक है, कुछ को ऐसा नहीं लगता। आप क्या कर सकते हैं? मैं अपने काम करने के तरीक़े को बदल नहीं बदल सकता। यह मेरी शैली का हिस्सा है। अगर ये बुरा है तो उन्हें इसे झेलना पड़ेगा। " कई बार उनकी कुछ मुखर या नस्लीय रूप से असंवेदनशील टिप्पणियों से विवाद भी खड़ा हुआ।
साल 1986 में उन्होंने चीन में ब्रिटिश छात्रों के एक समूह से कहा, "अगर आप यहां अधिक समय तक रहेंगे हैं तो आप सभी की आंखें छोटी हो जाएंगी"
आलोचकों ने उन्हें गैफ़े-प्रोन (शर्मिंदा करना वाला) और ऑउट ऑफ़ टच बताया जबकि उनके समर्थक उन्हें अपने समय का वो व्यक्ति मानते थे जो मज़ाक करने की कोशिश कर रहा था।
महल के भीतर के लोगों का कहना था कि हँसी वह चंबक था जिसने प्रिंस और महारानी को एक साथ बांधकर रखा था। उन्होंने खुद कहा था इसकी वजह महारानी की सहनशीलता थी।
1960 के दशक में रानी अपने भाषणों की शुरुआत, "मेरे पति और मैं ...", से करतीं थीं। व्यंग्यकारों ने इसका मजाक उड़ाया और इसे पुराना तरीका बताया। फिर उन्होंने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया लेकिन वो भावना हमेशा बरकरार रही।
महारानी, जो अब सिर्फ "मैं" का उपयोग करतीं हैं, उन्होंने अपनी शादी की 50वीं सालगिरह पर प्रिंस फ़िलिप की तारीफ़ में कहा था, "मुझे कई बार डर लगता है कि प्रिंस फ़िलिप मुझे बोलते हुए सुनेंगे। हमने कई बार अपने भाषण से पहले हमने उस पर चर्चा की है और जैसा की आपको उम्मीद है कि उन्होंने अपने विचारों को बिल्कुल सही तरीके से व्यक्त किया है।"
महारानी ने कहा था, "वो ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें अपनी तारीफ़ सुनना बहुत पसंद नहीं है, लेकिन आसान शब्दों में कहूं तो इतने सालों से वो, मेरी और मेरे परिवार की ताकत बने हुए हैं। और वो सभी देश जो उनके बहुत बड़े कर्ज़दार हैं- न तो वो कभी इसका दावा करेंगे, और न ही इसके बारे में हमें कभी पता चलेगा।"