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शाहजहांपुर : मुमुक्षु आश्रम पर चिन्मयानंद के 'एकाधिकार' की कहानी

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, बुधवार, 18 सितम्बर 2019 (16:21 IST)
-समीरात्मज मिश्र, शाहजहांपुर से
शाहजहांपुर-बरेली मार्ग पर मुख्य सड़क पर ही क़रीब 21 एकड़ में बने मुमुक्षु आश्रम की पहचान जितनी एक धार्मिक संस्था के तौर पर होती है उससे ज़्यादा ये शिक्षा के केंद्र के रूप में पहचाना जाता है। वजह ये है कि आश्रम परिसर में ही इंटर कॉलेज से लेकर पीजी कॉलेज तक पांच शिक्षण संस्थान इसी के तहत संचालित होते हैं।
 
इसी परिसर में स्थित एसएस लॉ कॉलेज की एक लड़की से रेप के आरोपों का सामना कर रहे पूर्व मंत्री स्वामी चिन्मयानंद इस आश्रम के सर्वेसर्वा हैं। गोंडा के मूल निवासी और संन्यासी बनने के बाद हरिद्वार में रहने वाले स्वामी चिन्मयानंद की शाहजहांपुर के इस आश्रम में पहुंचने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है।
 
मुमुक्षु आश्रम की स्थापना इस क्षेत्र के मशहूर संत स्वामी शुकदेवानंद ने आज़ादी से पहले ही की थी। मुमुक्षु आश्रम के प्रबंधक श्रीप्रकाश डबराल बताते हैं, "स्वामी शुकदेवानंद ने यहां आश्रम बनाया और संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की। उनके शिष्य स्वामी सदानंद, फिर धर्मानंद और आख़िर में स्वामी चिन्मयानंद जी यहां के मुख्य अधिष्ठाता बने।"
अस्सी के दशक में... : स्वामी धर्मानंद और स्वामी चिन्मयानंद के बीच भी कुछेक संत हुए जो मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता रहे लेकिन उनका कार्यकाल बहुत लंबा नहीं रहा। आश्रम के संविधान के मुताबिक़, यहां का प्रमुख अधिष्ठाता होता है और जितनी भी शिक्षण संस्थाएं इसके तहत चलती हैं, अधिष्ठाता उन सबका पदेन प्रमुख होता है।
 
स्वामी चिन्मयानंद अस्सी के दशक में शाहजहांपुर आए और स्वामी धर्मानंद के शिष्य बनकर उन्हीं के आश्रम में रहने लगे। स्वामी शुकदेवानंद ने ही श्री दैवी संपद मंडल नामक एक संस्था की स्थापना की थी, जिसका मुख्यालय हरिद्वार में है। श्रीप्रकाश डबराल के मुताबिक़, श्री दैवी संपद मंडल की ओर से ही स्वामी चिन्मयानंद शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम में भेजे गए थे।
 
दरअसल, श्री दैवी संपद मंडल ही वो मातृ संस्था है जिसके तहत मुमुक्षु आश्रम जैसे तमाम आश्रम आते हैं और इन आश्रमों के संतों का यहीं से नाता जुड़ा होता है।
 
शिक्षण संस्थाओं का संचालन : इस मंडल के तहत देश भर में सौ से भी ज़्यादा आश्रम हैं जिनमें क़रीब दस आश्रम काफ़ी बड़े हैं। ये सभी आश्रम परमार्थ, मुमुक्षु और शुकदेवानंद नाम से जाने जाते हैं।
 
एसएसपीजी कॉलेज के प्राचार्य और मुमुक्षु आश्रम की कई संस्थाओं के प्रबंधन से जुड़े डॉक्टर अवनीश मिश्र बताते हैं कि स्वामी शुकदेवानंद की कर्मभूमि शाहजहांपुर थी। साल 1965 में अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने एसएस डिग्री कॉलेज समेत तीन शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की।"
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"शुकदेवानंद के शिष्य धर्मानंद थे जिनके दो शिष्य हुए- चिदानंद और चिन्मयानंद। चिदानंद ऋषिकेश स्थित परमार्थ आश्रम के अधिष्ठाता हैं जबकि चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम और हरिद्वार स्थित परमार्थ निकेतन के।"
 
बाद में चिन्मयानंद ने ही शाहजहांपुर में मुमुक्षु शिक्षा संकुल नाम से एक ट्रस्ट बनाया जिसके ज़रिए कई शिक्षण संस्थाओं का संचालन किया जाता है। इनमें पब्लिक स्कूल से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट स्तर के कॉलेज तक शामिल हैं।
 
इन शिक्षण संस्थाओं में से इंटर कॉलेज और एसएसपीजी कॉलेज सरकार से अनुदान प्राप्त हैं जबकि अन्य संस्थाएं स्ववित्तपोषित हैं। इन संस्थानों के ज़रिए आश्रम को अच्छी ख़ासी आमदनी होती है।
आमदनी के स्रोत : आश्रम की आमदनी के और भी कई स्रोत हैं। मुमुक्षु आश्रम के प्रबंधक श्रीप्रकाश डबराल बताते हैं, "सभी शिक्षण संस्थाओं को मुमुक्षु आश्रम की ओर से 99 साल की लीज़ पर ज़मीन दी गई है। यानी इन संस्थाओं का मालिकाना हक़ मुमुक्षु आश्रम के ही पास है और इसके अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद हैं।"
 
स्थानीय लोग बताते हैं कि आश्रम को ज़मीनें यहां के लोगों ने स्वेच्छा से दान में दी थीं। इसकी वजह ये थी कि स्वामी शुकदेवानंद का यहां बेहद सम्मान था और वो क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं, संस्कृत कॉलेज इत्यादि की स्थापना कर रहे थे।
 
लंबे समय तक स्थानीय लोगों के प्रतिनिधियों की भी आश्रम से संबंधित संस्थाओं में सक्रिय भूमिका रही, लेकिन 1989 में चिन्मयानंद के आने के बाद ये सिलसिला धीरे-धीरे ख़त्म होता गया।
 
विवादों में होने की वजह : शाहजहांपुर के ही रहने वाले समाजसेवी धीरेंद्र कुमार बताते हैं कि आश्रम को ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा शहर के मशहूर ज्वेलर काशीनाथ सेठ ने दिया था। उनके परिजन भी इस बात की तस्दीक़ करते हैं, लेकिन उनका कहना है कि विवादों में होने की वजह से वो लोग संस्था से दूर रहने लगे।
 
काशीनाथ सेठ के कुछ परिजनों से हमने बात की लेकिन उन्होंने 'बात करके अनावश्यक रूप से विवादों का साझीदार बनने' से इनकार कर दिया। शाहजहांपुर के चौक इलाक़े में रहने वाले बिशनचंद सेठ यहां से सांसद भी रह चुके हैं।
 
उनके परिजन बताते हैं कि बुज़ुर्गों ने भले काम के लिए ज़मीन दान में दे दी थी लेकिन वो लोग अब इन संस्थाओं से कोई मतलब नहीं रखते हैं। परिजन तो इस बारे में कुछ भी नहीं कहते लेकिन स्थानीय लोग बताते हैं कि इसके पीछे वजह यही है कि आश्रम से जुड़ी संस्थाओं और लोगों का विवादों में रहना एक अहम कारण है।
 
मुमुक्षु आश्रम का उत्तराधिकारी : स्थानीय पत्रकार बीपी गौतम ने इस बारे में गहरी पड़ताल की है और कई लेख लिखे हैं। वो कहते हैं, "ढाई-तीन दशक पहले तक शाहजहांपुर के संभ्रांत और धनाढ्य वर्ग के लोग जिनके पूर्वजों ने ज़मीनें दी थीं, वो लोग भी समिति के सदस्य होते थे और बाक़ायदा बैठकें होती थीं नियमित रूप से।"
 
"लेकिन चिन्मयानंद ने धीरे-धीरे अपने लोगों को और आश्रम के कर्मचारियों को समितियों में शामिल कर लिया और पूरे आश्रम और समितियों पर एक तरह से एकाधिकार क़ायम कर लिया। कई बार तमाम चीज़ों की जांच भी हुई है लेकिन कभी कोई जांच पूरी नहीं हुई और न ही कोई कार्रवाई हुई। संभ्रांत लोगों ने विवादों को देखते हुए ख़ुद ही किनारा कर लिया।"
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इसके अलावा स्वामी धर्मानंद और चिन्मयानंद के बीच शाश्वतानंद और निश्चलानंद भी इस आश्रम के मुख्य अधिष्ठाता रह चुके हैं। ये दोनों संत भी श्री दैवी संपद मंडल से ही भेजे गए थे।
 
एक व्यक्ति की सत्ता : स्थानीय लोगों के मुताबिक़, इन संतों की मौत भी काफ़ी संदिग्ध रही और इसे लेकर भी कई सवाल उठे लेकिन अब लोग ये सब भूल चुके हैं। मुमुक्षु आश्रम का उत्तराधिकारी श्री दैवी संपद मंडल से ही तय होता है।
 
स्थानीय लोगों के मुताबिक़, चिन्मयानंद की राजनीतिक पहुंच के चलते संस्थाओं का विकास भी हुआ, लेकिन इसका एक दुष्परिणाम ये हुआ कि आश्रम समेत सभी संस्थाएं एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रित होती गईं। हालांकि संस्थाओं में शहर के आम लोग अभी भी नामित हैं, लेकिन उनकी भूमिका नाममात्र की रह गई है और ये लोग ख़ुद भी दिलचस्पी नहीं लेते।
शहर के रहने वाले एक व्यवसायी रामानुज कहते हैं कि एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रित रहने का असर ये हुआ कि जब तक उस व्यक्ति की सत्ता क़ायम रही, संस्थान भी आगे बढ़ते रहे और जब व्यक्ति आरोपों के घेरे में आया तो संस्था पर आंच आना स्वाभाविक है।
 

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