श्रीलंका में सभी नौ मुस्लिम मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया है। इसके अलावा दो प्रांतीय गवर्नरों ने भी इस्तीफ़ा सौंप दिया है। इन इस्तीफ़ों से साफ़ हो गया है कि बौद्ध बहुल श्रीलंका में ईस्टर के दिन चर्च पर हुए हमले के बाद से सब कुछ ठीक नहीं है। इस हमले में 250 लोग मारे गए थे।
अथुरालिये रतना श्रीलंका के प्रभावी बौद्ध संन्यासी हैं और उनकी भूख हड़ताल को देखते हुए इन मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दिया है। रतना ने कहा था, ''उनका यह आमरण अनशन है और जब तक दो प्रांतीय मुस्लिम गवर्नर और एक मंत्री इस्तीफ़ा नहीं दे देते हैं तब तक यह जारी रहेगा।''
रतना राष्ट्रपति से इन मंत्रियों को हटाने के लिए कह रहे थे। इस बौद्ध संन्यासी का कहना था कि इन मंत्रियों के आत्मघाती हमलावर से संबंध थे। रतना ने आठ मुस्लिम मंत्रियों को निशाने पर नहीं लिया था लेकिन जिन मु्स्लिम मंत्रियों पर इनके आरोप थे, उनके साथ एकता दिखाते हुए सारे मुस्लिम मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दे दिया।
क्या इस्तीफ़े से सरकार पर कोई फ़र्क़ पड़ेगा?
इन मंत्रियों के इस्तीफ़े से सरकार की स्थिरता पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि सांसद के तौर पर ये सरकार के साथ खड़े हैं। श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस के सांसद राउफ़ हाकीम ने कहा है कि उन्होंने और अन्य मुस्लिम नेताओं ने इसलिए इस्तीफ़ा दिया है ताकि सरकार आरोपों की जांच कर सके।
रउफ़ ने कहा कि श्रीलंका में मुस्लिम विरोधी कैंपेन और आरोपों से हम मुक्त होना चाहते हैं इसलिए इस्तीफ़ा ज़रूरी था। 21 अप्रैल को ईस्टर के दिन चर्च और होटलों में आत्मघाती हमले हुए थे और उसके बाद से श्रीलंका में मुसलानों की दुकानों और घरों पर हमले शुरू हो गए थे। इस हमले का संबंध इस्लामिक स्टेट से जोड़ा जा रहा है।
रउफ ने कहा, ''अगर जांच में हम किसी भी तरह से दोषी पाए जाते हैं तो जो भी सज़ा होगी भुगतने के लिए तैयार हैं। लेकिन निर्दोष लोगों को परेशान नहीं किया जाए।''
हिंदू सांसदों ने क्या कुछ कहा?
मुस्लिम मंत्रियों के इस्तीफ़े पर हिन्दू सांसदों और नेताओं ने कड़ा ऐतराज जताया है। द तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) का कहना है कि मुस्लिम मंत्री भेदभाव के शिकार हो रहे हैं। टीएनए के प्रवक्ता और सांसद एम सुमनतिरन ने कहा, ''आज ये निशाने पर हैं कल हम लोग होंगे और आगे कोई और होगा। आज सभी श्रीलंकाई नागरिकों को साथ रहने की ज़रूरत है। हम लोग मुसलमानों से मिलकर रहेंगे।''
तमिल प्रोग्रेसिव अलायंस और श्रीलंका के हिन्दू नेता मनो गणेशण ने कहा है कि अगर सरकार बौद्ध संन्यासियों के हिसाब से चलेगी तो गौतम बुद्ध भी मुल्क को नहीं बचा पाएंगे। गणेशन ने कहा कि मुसलमानों पर कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है और न ही ये आज तक ऐसी गतिविधि में शामिल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम मंत्रियों को इस्तीफ़े के लिए मजबूर करना गौतम बुद्ध का अपमान है और अगर ऐसा ही रहा तो दुनिया श्रीलंका को बौद्ध देश को रूप में स्वीकार नहीं करेगी।
अथुरालिये रतना इस्तीफ़े की मांग को लेकर चार दिन से भूख हड़ताल पर थे। इस भूख हड़ताल का कोलंबो में प्रदर्शनकारी समर्थन कर रहे थे। मुस्लिम मंत्रियों के इस्तीफ़ा होने के बाद रतना ने अपनी भूख हड़ताल ख़त्म कर दी। इससे पहले सोमवार को रोज़ा खोलने से पहले नौ मंत्रियों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वो अशांति ख़त्म करने के लिए इस्तीफ़ा दे रहे हैं।
'ख़ौफ़ में मुस्लिम आबादी'
शहरी विकास, जल एंव आपूर्ति मंत्री रउफ़ हकीम ने कहा, ''बीते दो दिनों से देश की मुस्लिम आबादी ख़ौफ़ में है।'' हकीम श्रीलंका की सबसे बड़ी मुस्लिम पार्टी के मुखिया हैं। उन्होंने कहा, ''हमारे लोग ख़ूनी संघर्ष से डरे हुए हैं।''
अप्रैल में हुए धमाके श्रीलंका के इतिहास के बड़े हमलों में से एक है। इससे पहले सालों तक श्रीलंका में छिड़े गृह युद्ध में हज़ारों लोगों की जान गई थी। ये गृह युद्ध साल 2009 में एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरन की मौत के बाद ख़त्म हुआ था। श्रीलंका में अप्रैल में हुए धमाकों की इस्लामिक स्टेट ने ज़िम्मेदारी ली थी।
हमले के बाद से ही श्रीलंका की 10 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी डर के साए में जी रही है। बीते महीने एक भीड़ ने मुस्लिमों के घर और दुकानों पर हमला किया था। इसके बाद सरकार ने आपातकाल घोषित करते हुए कर्फ्यू लगा दिया था। साल 2014 में सिरिसेना की जीत में मुस्लिम मतदाताओं और तमिल समुदाय की अहम भूमिका रही थी। इस्तीफ़ों के बावजूद, कैबिनेट के चार और पांच जूनियर मंत्रियों ने कहा है कि वो ऐसे वक़्त में कमज़ोर होती सरकार का समर्थन करना जारी रखेंगे ताकि सरकार न गिरे।
'कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु हुए एकजुट'
वहीं, भूख हड़ताल पर बैठे बौद्ध भिक्षु के समर्थन में एक और कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु आए थे, जिनका नाम गलागोडा अथे ज्ञानसारा है। ज्ञानसारा पर भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने के आरोप हैं और वो 'बुद्धिस्ट पावर फ़ोर्स' मुहिम चलाते हैं। ज्ञानसारा न्यायालय की अवमानना के मामले में छह साल जेल में भी बिता चुके हैं। हालांकि हाल में उन्हें राष्ट्रपति ने अवमानना के आरोपों से माफ़ी दे दी थी।
रविवार को ज्ञानसारा ने रविवार को सरकार को एक अल्टिमेटम देते हुए कहा था कि अगर सभी तीन मुस्लिम मंत्रियों को सोमवार दोपहर तक पद से नहीं हटाया गया तो पूरे श्रीलंका में 'तमाशा' होगा। हालांकि पुलिस को ईस्टर धमाके के सिलसिलेवार धमाकों में इन तीनों अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले हैं।
तीन मुसलमान मंत्रियों के इस्तीफ़े की पूरे श्रीलंका में निंदा हो रही है। कई वरिष्ठ राजनेताओं ने भी बौद्ध भिक्षुओं के सांप्रदायिक मांगों की आलोचना की है। वित्त मंत्री मंगला समरवीरा ने कहा, "ये हमारे प्यारे श्रीलंका के लिए एक शर्मनाक दिन है।"
तमिल गठबंधन के एक वरिष्ठ मंत्री अब्राहम सुमन्तीरन ने कहा, "ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुस्लिम मंत्रियों को ऐसे नस्लवादी दबावों के आगे झुकना पड़ा। कल हम इसके शिकार थे, आज आप हैं और कल कोई दूसरा होगा।"
मुसलमान मंत्रियों के इस्तीफ़े के बाद डर था कि श्रीलंका में भयावह हालात पैदा हो सकते हैं। इससे पहले भी वहां बौद्ध राष्ट्रवादी विचारधारा का उफ़ान देखा जा चुका है। इस पूरे वाकए के बाद श्रीलंका के सियासी हालात डगमगाने की भी आशंका थी।
कोलंबो में 'सेंटर फ़ॉर पॉलिसी आल्टरनेटिव्स' के एग्ज़िक्युटिव डायरेक्टर पायकिसोती सर्वणमुट्टु ने कहा, "बौद्धों की श्रीलंका में इतनी महत्वपूर्ण जगह है कि अब ऐसा लगता है जैसे कि वो सरकार में न होते हुए भी सरकार में हैं।"