Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

सोशल मीडिया के नुकसान और फ़ायदे से वाकिफ हों तभी करें ये नौकरी

हमें फॉलो करें facebook office
, सोमवार, 22 अक्टूबर 2018 (11:20 IST)
"बीते तीन साल से जब भी मैं दफ़्तर से घर के लिए निकलती, मैं किसी से हाथ नहीं मिलाती। मैंने देखा है कि लोग क्या-क्या कर सकते हैं और कितना नीचे गिर सकते हैं। मैं लोगों को छूना नहीं चाहती। क्योंकि मैंने मानवता का घिनौना रूप देखा है और मैं इससे नफ़रत करती हूं।"
 
 
रोज़ बॉवडेन माइस्पेस में कंटेंट मॉडरेटर के तौर पर काम करती थीं। माइस्पेस पहली सोशल मीडिया वेबसाइट मानी जाती है। बॉवडेन ने अपनी नौकरी के दौरान इंटरनेट पर बेहद बुरे और विचलित करने वाले कंटेंट देखे हैं। उन्होंने ये सब देखा ताकि दूसरे लोगों को ऐसी चीज़ें देखने को न मिलें।
 
 
इंटरनेट की दुनिया में तेज़ी से बढ़ती सोशल मीडिया वेबसाइट्स और यूज़र जेनरेटेड कंटेंट ने मॉडरेटर के काम को बेहद अहम बना दिया है। केवल फ़ेसबुक में 7500 कंटेंट मॉडरेटर हैं। इन लोगों का काम है हिंसा और भ्रामक कंटेंट पर नज़र रखना। जिसमें बच्चों के यौन उत्पीड़न से लेकर बलात्कार और यातनाओं के वीडियो और तस्वीरें शामिल हैं।
 
 
कितनी मुश्किल है ये नौकरी
सेलेना स्कोला उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने फ़ेसबुक पर मुकदमा किया है। ये केस उन्होंने उस मनोवैज्ञानिक चोट के लिए किया है जो उन्हें फ़ेसबुक पर हज़ारों घंटों तक ऐसे हिंसापूर्ण वीडियो देखने के कारण सहनी पड़ी।
 
 
सेलेना कहती हैं, "फ़ेसबुक एंड प्रो अनलिमिटेड फ़र्म ने मुझे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट के लिए नौकरी पर रखा गया था। लेकिन ये फ़र्म मेरे भावनात्मक स्वास्थ्य की रक्षा नहीं कर सकी।"
 
 
ये एक ऐसा मामला है जो इंटरनेट कंटेंट मॉडरेटर की ज़िंदगी के उस अंधेरे पहलू पर रोशनी डालता है जिस पर कभी बात नहीं की जाती। इस मामले के प्रकाश में आने के बाद सवाल ये भी उठता है कि क्या इस तरह की नौकरियां की जानी चाहिए?
 
 
कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफसर सारा रॉबर्ट ने आठ साल तक कंटेंट मॉडरेशन का अध्ययन किया है। वो कहते हैं, "सोशल नेटवर्क मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा संकट पैदा कर सकता है।"
 
 
"ऐसा कोई भी अध्ययन नहीं है जो इस तरह के नौकरी के दूरगामी प्रभाव की बात करता हो।"...."इससे प्रभावित लोगों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है और ये तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। हमें भविष्य के लिए परेशान होने की ज़रूरत है। ऐसे मॉडरेटर्स के लिए कोई सुविधा नहीं होती।"
 
 
बॉवडेन पहले फ़ाइनेंस सेक्टर में काम किया करती थीं। साल 2005 से 2008 तक उन्होंने माईस्पेस कंपनी में काम किया। अब वो दोबारा फ़ाइनेंस सेक्टर से जुड़ गई हैं। वह कहती हैं, "अब मैं केवल आंकड़ों का विश्लेषण करती हूं।"
 
webdunia
जब बॉवडेन ने माइस्पेस में अपनी नौकरी शुरू की थी तो उन्हें उस वक़्त इस बात की बेहद कम जानकारी थी कि आख़िर काम कैसे होगा?
 
 
वह बताती हैं, "हमें मानक तय करने थे। मसलन कितना सेक्स से जुड़ा कंटेंट प्लेटफ़ॉर्म के लिए ज़्यादा होगा। क्या बिक़नी पहनी लड़की की तस्वीर प्लेटफ़ॉर्म के लिए सही होगी इसके बाद बिकनी किस तरह की होगी जो हमारे प्लेटफ़ॉर्म के लिए ठीक हो? इस तरह के सवाल हम ख़ुद से पूछा करते थे।"
 
 
"ये भी सवाल हमारे सामने था कि क्या एक शख़्स द्वारा दूसरे के सिर काटने का वीडियो हमें नहीं दिखाना चाहिए लेकिन अगर ये कार्टून वीडियो हो तो क्या करना चाहिए। ऐसे कई मानक हमें तय करने थे।"
 
 
"मैंने अपनी टीम को कहा था कि ये ठीक है अगर हम रोते हैं, परेशान होते हैं या दुविधा की स्थिति में आती है। लेकिन इस प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ गलत शेयर नहीं होना चाहिए।"
 
 
मनोवैज्ञानिक मदद
पिछले साल अपने एक ब्लॉग में फ़ेसबुक ने कंटेंट मॉडरेटर्स के योगदान की तारीफ़ की थी। फेसबुक ने कहा था, "ये बिना पहचान के हीरो हैं जो हमारे लिए फ़ेसबुक को सुरक्षित रखते हैं।"
 
 
हालांकि फ़ेसबुक ने ये भी माना कि ये काम सबके लिए करना संभव नहीं है। इसलिए कंपनी उन्हें ही ये काम देती है जो इस तरह की चुनौती से निपट सकें। फ़ेसबुक ने इस मामले की ओर ध्यान देने की बात कही थी लेकिन इसके इतर उसने ऐसे लोगों को सबकॉन्ट्रैक्ट करना शुरु कर दिया है।
 
 
प्रोफ़ेसर सारा रॉबर्ट का मानना है कि फ़ेसबुक का ये कदम आरोपों से बचने का तरीका है। वे कहते हैं, "तकनीकी इंडस्ट्री में अक्सर कर्मचारियों को आउटसोर्स किया जाता है। कंपनियां इस तरह अपने पैसे बचाती हैं। लेकिन इसका कंपनियों को सबसे बड़ा फ़ायदा ये होता है कि वे इन कर्मचारियों से दूरी बना सकती हैं। ये कर्मचारी किसी कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट पर किसी दूसरी कंपनी के लिए काम करते हैं।"
 
 
फ़ेसबुक अपने मॉडरेटर्स को ट्रेनिंग देता है। 80 घंटे की ट्रेनिंग में इन लोगों को इस काम की पेचीदगी बताई जाती है। इसके अलावा इन मॉडरेटर्स को मनोवैज्ञानिक सहायता भी दी जाती है।
 
 
लिव वर्ल्ड ऐसी ही कंपनी है जो पिछले 20 सालों से एओएल, ईबे और एपल जैसी कंपनियों को कंटेंट मॉडरेटर उपलब्ध कराती है। इसके निदेशक पीटर फ़्राइडमैन कहते हैं, "हमारे कर्मचारियों ने शायद ही कभी मनोवैज्ञानिक थैरपी ली होगी।"
 
 
इस बयान पर प्रोफ़सर रॉबर्ट कहते हैं, "कर्मचारी ये नहीं चाहते कि उनके बॉस को ये पता चले कि वह इस काम को नहीं कर पा रहे हैं।"
 
 
*ये बेहद अहम है कि मॉडरेटर मज़बूत और सशक्त महसूस करें। कई बार ऐसा होता है कि किसी ख़ास वीडियो से मॉडरेटर विचलित हो जाते हैं।
*इनके लिए एक आरामदायक माहौल होना जरूरी है। कॉल सेंटर वाला माहौल नहीं होना चाहिए।
*मॉडरेटर्स की शिफ़्ट तुलनात्मक रूप से कम होनी चाहिए।
*इस नौकरी के लिए सबसे उपयुक्त शख़्स वो है जो सोशल मीडिया के नुकसान और फ़ायदे को बेहतर तरीके से समझता हो।
*भावनात्मक रूप से परिपक्वता बेहद ज़रूरी है।
 

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

#MeToo : मी टू से मुंबई में मची खलबली