एक नज़र आज़ाद भारत में हुए उन घोटालों पर जिनमें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके बाद उनके परिवार के लोगों पर आरोप लगे हैं।
अगस्ता हेलिकॉप्टर घोटाला- 2013 :
2013 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर इतालवी चॉपर कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड से कमीशन लेने के आरोप लगे। अगस्ता वेस्टलैंड से भारत को 36 अरब रुपए के सौदे के तहत 12 हेलिकॉप्टर ख़रीदने थे।
इतालवी कोर्ट में रखे गए 15 मार्च 2008 के एक नोट में इशारा किया गया था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया इस वीआईपी चॉपर ख़रीद के पीछे अहम भूमिका निभा रही थीं।
वाड्रा-डीएलएफ़ घोटाला- 2012 :
2012 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ़ से 65 करोड़ का ब्याजमुक्त लोन लेने का आरोप लगा।
ये आरोप भी लगे कि इस बिना ब्याज पैसे की अदायगी के पीछे कंपनी को राजनीतिक फ़ायदा पहुंचाना मक़सद था। यह भी कहा गया कि इस दौरान केंद्र में कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा ने देश के कई हिस्सों में बेहद कम क़ीमतों पर जमीनें खरीदीं।
नेशनल हेराल्ड केस-2011 :
कांग्रेस के पैसे से एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी 1938 में बनी और तीन अख़बार चलाती थी– नेशनल हेरल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज। एक अप्रैल 2008 को ये अख़बार बंद हो गए।
मार्च 2011 में सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी ने यंग इंडिया लिमिटेड नाम की कंपनी खोली, जिसमें दोनों की 38-38 फीसदी हिस्सेदारी थी। कंपनी को खड़ा करने का मक़सद एजेएल पर मौजूद 90.21 करोड़ रुपए की देनदारियां उतारना था।
पार्टी ने हेरल्ड हाउस में एक करोड़ रुपया और लगाया जो कभी एजेएल के पास होता था। इस मामले में सोनिया और राहुल के खिलाफ सुब्रमण्यम स्वामी अदालत गए और संपत्ति के बेजा इस्तेमाल का केस दर्ज कराया।
बोफोर्स घोटाला– 1990-2014 :
इस घोटाले ने 1980 और 1990 के दशक में गांधी परिवार और ख़ासकर तब प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया।
आरोप थे कि स्वीडन की तोप बनाने वाली कंपनी बोफोर्स ने कमीशन के बतौर 64 करोड़ रुपए राजीव गांधी समेत कई कांग्रेस नेताओं को दिए थे ताकि वो भारतीय सेना को अपनी 155 एमएम हॉविट्ज़र तोपें बेच सके।
बाद में सोनिया गांधी पर भी बोफ़ोर्स तोप सौदे के मामले में आरोप लगे जब सौदे में बिचौलिया बने इतालवी कारोबारी और गांधी परिवार के क़रीबी ओतावियो क्वात्रोकी अर्जेंटिना चले गए।
मारुति घोटाला- 1973 :
कार कंपनी मारुति की स्थापना से भी पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम मारुति घोटाले में आया था, जब उनके बेटे संजय गांधी को यात्री कार बनाने का लाइसेंस मिला था।
1973 में सोनिया गांधी को मारुति टेक्निकल सर्विसेज़ प्राइवेट लि. का एमडी बनाया गया, हालांकि सोनिया के पास इसके लिए ज़रूरी तकनीकी योग्यता नहीं थी। कंपनी को इंदिरा सरकार की ओर से टैक्स, फ़ंड और ज़मीन को लेकर कई छूटें मिलीं। मगर कंपनी बाज़ार में उतारने लायक एक भी कार नहीं बना सकी और 1977 में बंद कर दी गई।
नागरवाला स्कैंडल- 1971 :
सेना के एक पूर्व कैप्टेन रुस्तम सोहराब नागरवाला ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज़ की नकल करके संसद मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा को फ़ोन किया और उससे 60 लाख रुपए निकलवा लिए।
घोटाला तब खुला जब नागरवाला ने पैसा लेने के बाद टैक्सी वाले को ढेर सारे नोट दिए। इसके बाद एसबीआई के हैड कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को इस्तीफ़ा देना पड़ा। नागरवाला को पकड़ा गया और उनकी जेल में ही मौत हो गई।
नागरवाला ने रुपए निकलवाने के लिए बहाना किया था कि प्रधानमंत्री दफ़्तर के आदेश पर उन्होंने पैसा मांगा है और पैसा बांग्लादेश संकट से निपटने के लिए चाहिए।
मूंदड़ा स्कैंडल– 1951 :
कलकत्ता के उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को आज़ाद भारत के पहले ऐसे घोटाले के बतौर याद किया जाता है जिसे तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जोड़कर देखा गया। 1957 में मूंदड़ा ने सरकारी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी के ज़रिए अपनी छह कंपनियों में 12 करोड़ 40 लाख रुपए का निवेश कराया।
यह निवेश सरकारी दबाव में एलआईसी की इन्वेस्टमेंट कमेटी की अनदेखी करके किया गया। जब तक एलआईसी को पता चला उसे कई करोड़ का नुक़सान हो चुका था।
इस केस को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दामाद फिरोज़ गांधी ने उजागर किया, जिसे नेहरू खामोशी से निपटाना चाहते थे क्योंकि इससे देश की छवि खराब होती थी। नेहरू ने अपने वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को बचाने की कोशिश भी कीं, मगर आखिरकार उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।