यूक्रेन संकट: रूस में आम लोगों का डर- कहीं ईरान या उत्तर कोरिया ना बन जाएं

BBC Hindi
बुधवार, 2 मार्च 2022 (08:04 IST)
एनास्तासिया स्गोनेई (मॉस्को) और साइमन फ्रेज़र (लंदन), बीबीसी न्यूज़
"अगर मैं तुरंत रूस छोड़ पाऊं तो छोड़ दूंगा पर मैं अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकता।" ये शब्द हैं आंद्रे के आंद्रे अब अपने घर की किस्त नहीं दे पाएंगे क्योंकि रूस ने ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी की है। आंद्रे की तरह लाखों रूसी अब पश्चिमी देशों के लगाए आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहे हैं। प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस को यूक्रेन पर हमला करने की सज़ा देना है।
 
31 के साल आंद्रे डिज़ानर हैं। वो कहते हैं, "मैं जितना जल्दी संभव हो रूस के बाहर अपने लिए ग्राहक खोज रहा हूँ। ग्राहक मिलते ही मैं घर की किस्त देने के लिए बचाए पैसों की मदद से रूस छोड़ दूंगा। "
 
"मुझे यहाँ डर लग रहा है। कई लोगों को पार्टी लाइन से हटकर बोलने पर गिरफ़्तार कर लिया गया है। मैं ख़ुद शर्मिंदा महसूस कर रहा हूँ हालांकि मैंने सत्तारूढ़ पार्टी को वोट नहीं दिया था।"
 
सुरक्षा कारणों से इस आर्टिकल में हम लोगों के पूरे नाम या उनके चेहरे नहीं दिखा रहे हैं। कुछ नाम बदल भी दिए हैं।
 
रूस पर लगाए गए इन प्रतिबंधों को अब आर्थिक युद्ध कहा जा रहा है। एक ऐसा युद्ध जो रूस को अलग-थलग कर देगा और उसे एक भयानक आर्थिक मंदी में धकेल देगा। पश्चिमी देंशों के नेताओं को उम्मीद है कि उनके द्वारा उठाए गए अप्रत्याशित क़दमों की वजह से रूस अपनी सोच में बदलाव लाएगा।
 
लेकिन आम नागरिकों का पैसा देखते ही देखते ग़ायब होता जा रहा है। उनकी ज़िंदगियां बुरी तरह से प्रभावित हो रही हैं
 
"फ़ोन से पेमेंट नहीं कर पा रहा हूँ"
कुछ रूसी बैंकों के ख़िलाफ़ पाबंदियों का अर्थ ये है कि इनके जो ग्राहक वीज़ा और मास्टरकार्ड का प्रयोग करते थे, अब नहीं कर पा रहे हैं। इसी वजह से एपल पे और गूगल पे जैसी सेवाएं भी इन बैंकों के ग्राहकों को उपलब्ध नहीं हैं।
 
35 वर्षीय डारिया मॉस्को में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं। वो मेट्रो में सफर नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनका कार्ड रिचार्ज नहीं हो रहा है।
 
"मैं हमेशा अपने फ़ोन से पेमेंट करती थी लेकिन अब वो काम नहीं कर रहा है। मेरे जैसे और भी कई लोग हैं। दरअसल, मेट्रों में एंट्री को वीटीबी बैंक ऑपरेट करता है। अब इस बैंक पर प्रतिबंध लग गया है। इसलिए न तो गूगल पे काम कर रहा है और न ही एपल पे।"
 
डारिया ने बीबीसी को आगे बताया, "मुझे मेट्रो कार्ड ख़रीदना पड़ा है। इसके अलावा अब मैं दुकानों में सामान ख़रीदने के लिए भी फ़ोन से पेमेंट नहीं कर पा रहा हूँ"
 
डॉलर बनाम रूबल
 
सोमवार को रूस ने रूस की ब्याज दरें लगभग दोगुनी करते हुए 20 प्रतिशत कर दी थीं। देश के शेयर बाज़ार भारी बिकवाली के डर से बंद कर दिए गए हैं।
 
रूस की सरकार कह रही है कि उनके पास प्रतिबंधों से निपटने के लिए पर्याप्त साधन हैं लेकिन ये एक बहस का विषय है।
 
बीते हफ़्ते रूस के केंद्रीय बैंक ने माहौल पर शांत बनाए रखने की अपील की थी क्योंकि इस बात का डर बरकरार है कि बहुत सारे लोग एक साथ अपना पैसा निकालने की कोशिश कर सकते हैं। इससे बैंको पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है।
 
मॉस्को में एक एटीएम के बाहर लाइन में खड़े एंटोन (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "डॉलर तो बिल्कुल नहीं है। रूबल हैं पर मुझे वो चाहिए ही नहीं। मुझे नहीं मालूम अब क्या करना है। मुझे लगता है कि हम ईरान या उत्तर कोरिया की तरह बनते जा रहे हैं।"
 
रूस में विदेशी मुद्रा ख़रीदना अब पिछले हफ़्ते की तुलना में 50% महंगा हो गया है। साथ ही उसकी उपलब्धता भी बहुत कम हो गई है।
 
साल 2022 की शुरुआत में एक अमेरिका डॉलर के बदले 75 और एक यूरो के बदले 80 रूबल मिलते थे। लेकिन इस लड़ाई ने नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए हैं। सोमवार को एक वक़्त तो एक डॉलर की क़ीमत 113 रूबल तक पहुँच गई थी।
 
डॉलर, यूरो निकालने की होड़
रूसियों के लिए रूबल-डॉलर रेट लंबे समय से एक संवेदशील मुद्दा रहा है। सोवियत संघ का विघटन होने के बाद 1990 के दशक में डॉलर ही वो मुद्रा थी जो रूस के लोग अपने बचत के तौर पर पास में रखते थे, लेकिन छुपा कर।
 
जब 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार अपना बकाया चुकाने में नाकाम रही तब जिन्होंने अपने पैसे डॉलर में रखे थे वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे।
 
हालांकि, आने वाले दशकों में कई बैंकिंग उपायों ने रूसियों को रूबल को लेकर आश्वस्त करने का काम किया। और इस तरह लोगों की जमा राशि रूसी मुद्रा में बढ़ी और रूसी कंपनियों के शेयरों में भी निवेश किया गया।
 
लेकिन आज भी जब कभी कोई अनिश्चितता का माहौल बनता है तो लोग झटपट अपने पैसे डॉलर में निकालने के लिए पास के एटीएम में दौड़ पड़ते हैं। ठीक उसी तरह वर्तमान पैदा हुई स्थिति के दौरान भी हो रहा है।
 
बीते हफ़्ते जैसे ही यूक्रेन पर हमला शुरू हुआ, रूसियों ने पिछली बार ऐसी ही किसी परिस्थिति से सबक लेते हुए अलग अलग कैश पॉइंट्स पर लाइनें लगा दीं।
 
30 से कुछ अधिक उम्र के इल्या (बदला हुआ नाम) ने अभी-अभी मॉस्को में अपना क़र्ज़ चुकता किया है। वे कहते हैं कि फ़िलहाल वो यहां से किसी नई जगह पर बसने के लिए जाने में सक्षम नहीं हैं।
 
"जब डोनबास में ऑपरेशन शुरू हुआ था तब मैं एटीएम अपनी बचत निकालने गया था, जो सेब्रबैंक में डॉलर में रखा था। अब उन्हें वाक़ई अपने तकिए के नीचे रखता हूँ।"
 
"बाक़ी बचत अब भी बैंक में ही है, जिसमें से आधी डॉलर में और बाक़ी रूबल में है। अगर चीज़ें बदतर होती हैं तो मुझे बहुत सारी बचत निकालनी होंगी। मैं डरा हुआ भी हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि बड़ी संख्या में लूटपाट हो सकती है। लेकिन अब जो है वो है।"
 
"यहाँ से ज़िंदगी और ख़राब हो जाएगी"
सोशल मीडिया पर जो तस्वीरें दिख रही हैं, उनमें एटीएम और मुद्रा विनिमय (मुद्रा को अदला बदली करने की जगह) केंद्रों पर लंबी क़तारें दिखाई पड़ती हैं। लोगों को ये भी चिंता है कि उनके बैंक कार्ड काम करना बंद कर सकते हैं या फिर लोग कितनी नक़द निकाल सकते हैं, उसकी सीमा भी तय की जा सकती है।
 
हमले के कुछ ही घंटों में डॉलर और यूरो ख़त्म होने लगे थे। तब से वो मुद्राएं बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं और आप कितना रूबल निकाल सकते हैं, उसकी भी एक सीमा है।
 
मॉस्को में एक लाइन में खड़े 45 वर्षीय इवगेनी (बदला हुआ नाम) कहते हैं वो अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए पैसे निकालना चाहते हैं।
 
"मुझे पता है कि हर कोई चिंतित है। सभी तनाव में हैं। इसमें कोई शक नहीं कि यहाँ से ज़िंदगी और ख़राब ही हो जाएगी। ये युद्ध डरावना है।"
 
"मुझे लगता है कि सभी देश दोहरे मापदंड अपनाते हैं और अब बड़े देश एक दूसरे की ताक़त का माप रहे हैं कि कौन कितना कूल है। और आम लोगों को ये सब भुगतना पड़ रहा है।
 
35 वर्षीय मार्टर ने कहा, "आज वो पहला दिन है जब मैंने पैसे निकालने को सोचा और मुझे कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। वैसे मैंने रूबल निकाला है। मैं कोई अनुमान लगाने में बेहतर नहीं हूँ लेकिन इस बात का संदेह ज़रूर है कि हमारी ज़िंदगी यहाँ से ख़राब ही होगी। लेकिन ये सब समय ही बताएगा।"
 
अब बैंक जाकर फॉर्म साइन करना पड़ रहा है
बीबीसी रूस ने बताया कि कैश की समस्या केवल मॉस्को तक ही सीमित नहीं है, लोग डॉलर या यूरो पाने के लिए पर्म, कोस्त्रोमा, बेलग्रॉद और अन्य प्रांतीय शहरों में भी दौड़ रहे हैं।
 
एक अनाम आईटी-एक्सपर्ट ने एक टेलीग्राम बॉट भी बनाया है जो निजी बैंक टिंकऑफ के एटीएम में यूरो या डॉलर है या नहीं इसकी जानकारी देता है। ये अपने सब्सक्राइब को उन एटीएम का लोकेशन बताता है।
 
कई लोगों ने अपने बैंकिंग ऐप के ज़रिए प्री-कैश-ऑर्डर करने की कोशिश कर रहे हैं। ये रूस की बैंकिंग में एक उन्नत सुविधा है।
 
रविवार की शाम को जब रूस के केंद्रीय बैंक पर प्रतिबंधों की घोषणा की गई थी तब भी आप वहां 140 रूबल तक के मूल्य के डॉलर और 150 रूबल तक के यूरो ऐप के ज़रिए ऑर्डर कर सकते थे।
 
लेकिन सोमवार को रूस के सबसे बड़े सरकार समर्थिक बैंक सेब्रबैंक ने बीबीसी रूस को कहा कि ऐप के ज़रिए कैश ऑर्डर नहीं कर सकते। इसके लिए अब बैंक की शाखा में जाकर वहां एक फॉर्म पर हस्ताक्षर करने होंगे।
 
असमंजस में लोग
हालांकि बैंक इस बात से इनकार करते हैं कि नक़दी की कमी है और जानकारों की नज़र में ये आगे एटीएम में कैश की कमी न हो और बैंक बिना किसी बाधा के चले ये उसका उपाय दिखता है।
 
क्रेमलिन ने कहा है कि रूस पहले से इन प्रतिबंधों के लिए तैयार था हालांकि उसने ये नहीं बताया कि क्या बिज़नेस को कुछ अतिरिक्त मदद दी जाएगी जैसा कि कोरोना महामारी के दौरान किया गया था।
 
लेकिन आम रूसी, जिनमें से कइयों को ख़बरें सरकारी नियंत्रण वाले टेलीविजन से मिलती हैं और वो सरकार की कही बातों को ही दोहराते हैं, उम्मीद है कि वो भी जल्द ही अपनी ज़िंदगी में बदलाव देखना शुरू करेंगे।
 
राजधानी मॉस्को के लोग खाद्य भंडारों के आगे लगी कतारों की ख़बरें दे रहे हैं। वहाँ लोग इस बात से चिंतित हो कर की आने वाले वक़्त में इनकी सप्लाई में कमी आएगी और प्रतिबंधों की वजह से कीमतें बढ़ेंगी, वो अधिक से अधिक सामान अपने पास स्टोर करना चाह रहे हैं।
 
प्रतिबंधों की वजह से रूस की कंपनियों के उत्पादन में कटौती देखने को मिल सकता है या ये ठप भी पड़ सकता है। साथ ही उनकी बचत का भी अवमूल्यन हो रहा है। पश्चिम के साथ आर्थिक गतिविधियां थमने से अर्थव्यवस्था में गिरावट आई तो कई रूसियों की नौकरियां जाने का भी ख़तरा है।
 
आज जो कुछ भी हो रहा है उससे रूसियों को छह साल पहले जब 2014 में क्राइमिया पर क़ब्ज़ा किया गया था तब की याद आ गई क्योंकि तब भी लोगों की क़तारें एटीएम के बाहर घंटों देखी जाती थी। तब एक डॉलर की क़ीमत आमतौर पर 30 से 35 रूबल हुआ करती थी जिसकी आज की तारीख़ में कल्पना करना भी बेमानी है।
 
साथ में : मॉस्को से बीबीसी संवाददाता अमालिया ज़टारी

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