रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी फ़ेडरल सिक्योरिटी सर्विस (एफ़एसबी) ने देश के हाइपरसोनिक मिसाइलों से जुड़ी गुप्त जानकारी पश्चिमी देशों के जासूसों को देने के शक़ में एक स्पेस रिसर्च सेंटर में छापे मारे हैं।
रूस की इस सरकारी स्पेस एजेंसी का नाम रोस्कोस्मोस है। एजेंसी की कहना है कि उसके अधिकारी जांच में एफ़एसबी के अफ़सरों का सहयोग कर रहे हैं।
रूसी दैनिक अख़बार कोमरसैंट में छपी ख़बर के मुताबिक़ एफ़एसबी को स्पेस एजेंसी के तक़रीबन 10 कर्मचारियों पर शक़ है और इसके मद्देनजर एजेंसी के एक डायरेक्टर के दफ़्तर में छानबीन की गई है।
एफ़एसबी ने मॉस्को में मौजूब यूनाइटेड रॉकेट ऐंड स्पेस कोऑपरेशन (ORKK) के दफ्तरों की भी तलाशी ली है। कोमरसैंट की रिपोर्ट के मुताबिक़ गुप्त जानकारी लीक करने के आरोप के संदिग्धों पर राजद्रोह का मामला चल सकता है। हाइपरसोनिक मिसाइल आवाज़ की गति से पांच गुना अधिक गति से उड़ सकती हैं। इस गति को माक 5 कहा जाता है।
गुरुवार को रूसी रक्षा मंत्रालय ने दो नए हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम का वीडियो जारी किया था जिनके नाम 'किंज़ल' और 'आवनगार्ड' हैं। ये दोनों ही परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं। एफ़एसबी के जांचकर्ता के एक नज़दीकी सूत्र ने अख़बार को बताया है कि, "इतना तय है कि ये जानकारियां इसी स्पेस सेंटर के कर्मचारियों ने लीक की हैं।"
अख़बार लिखता है कि इस मामले में कई लोगों से पूछताछ कि जाएगी और इसे यूं ही रफ़ा-दफ़ा नहीं किया जाएगा।
'पुराने प्रोजेक्ट का प्रोपगैंडा'
हालांकि रूस से छपने वाले अख़बार नोवाया गैज़ेटा के साथ जुड़े सैन्य विशेषज्ञ पावेल फ़ेल्गेनार ने बीबीसी से कहा कि उन्हें सरकार के जारी किए वीडियो पर संदेह है। उन्होंने इसे 'प्रोपगैंडा' बताया और कहा कि ये हाइपरसोनिक मिसाइलें काम नहीं करेंगी।
फ़ेल्गेनार ने कहा कि रूस में ऐसी विशालकाय मिसाइलों को प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल किए जाने की परंपरा रही है। यह सिर्फ़ एक प्रोपगैंडा है और सेना का यह तरीका राष्ट्रपति पुतिन को बहुत पसंद है। वो कहते हैं कि इन प्रोजेक्ट्स पर तब से काम चल रहा है जब रूस सोवियत संघ हा हिस्सा था, लेकिन 1990 में काम रोक दिया गया था।
उन्होंने ख़ुफ़िया एजेंसी की इस जांच को 'राजनीतिक रूप से शर्मिंदगी भरा' बताया। पावेल फ़ेल्गेनार कहते हैं कि पश्चिमी देशों की सेनाओं को अपने नेताओं को डराकर उनसे ज़्यादा फंड लेना होता है और इसलिए वो रूस के ख़तरे को हमेशा दस गुना बढ़ाकर बताते हैं।
'किंज़ल' महज एक शॉर्ट रेंज की मिसाइल है जिसे एक प्लेन से जोड़ा गया है। इसमें ऐसा विस्फोटक भी नहीं है जिसे अलग किया जा सके। साथ ही यह चल रही चीजों पर हमला नहीं कर सकती।
वो कहते हैं, सीधे शब्दों में कहें तो इसमें तमाम खामियां हैं। कुछ ऐसा ही हाल 'आवनगार्ड' का भी है और इन दोनों से देश की परमाणु क्षमता पर कुछ ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता है। इसी साल मार्च में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने किंज़ल समेत दूसरे मिसाइलों के बारे में जानकारी दी थी।
उनका कहना था कि किंज़ल माक 10 की स्पीड यानी 12,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है और 2000 किलोमीटर तक मार कर सकती है।