पीएमसीः छह महीने में ऐसा क्या हुआ कि मुनाफ़े में चल रहा बैंक डूब गया

Webdunia
गुरुवार, 26 सितम्बर 2019 (07:51 IST)
दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता
'पंद्रह तारीख़ को मेरी बेटी की शादी है, गांव जाना है। काम कर करके मैंने बैंक में पैसा जमा किया है। मुझे अपना पैसा लेना है, अगर बैंक ने पैसा नहीं दिया तो मैं बेटी की शादी कैसे करूंगी।' दूसरों के घरों में काम करके पाई-पाई जोड़ने वाली अनवर बी शेख अपनी बेटी की शादी के लिए अब पैसा नहीं निकाल सकेंगी।
 
भारतीय रिज़र्व बैंक ने पंजाब और महाराष्ट्र को-आपरेटिव बैंक यानी पीएमसी को अपनी निगरानी में ले लिया है और कई तरह के प्रतिबंध बैंक पर लगा दिए हैं। आरबीआई ने आदेश दिया है कि अगले छह महीनों में खाताधारक अपने बैंक अकाउंट से अधिकतम एक हज़ार रुपए ही निकाल सकेंगे।

आरबीआई के इस आदेश ने उन खाताधारकों को सड़क पर ला दिया है जिन्होंने अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को बैंक में जमा कराया था। आरबीआई ने 24 सितंबर को ये आदेश जारी किया। लेकिन इससे एक दिन पहले तक बैंक खाताधारकों को ये भरोसा दे रहा था कि बैंक में सबकुछ ठीक चल रहा है।
 
मुंबई में बैंक की शाखा के बाहर खड़ी एक 79 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला रुआंसी आवाज़ में बताती हैं कि उन्होंने 23 सितंबर को ही बैंक में अपना फिक्सड डिपॉज़िट रिन्यू कराया है। वो कहती हैं, "मेरे घर में एक विशेष ज़रूरतों वाला ऑटिस्टिक बच्चा है, जिसके लिए मैंने सारा जीवन पाई-पाई जोड़ी। अब मैं अपना ही पैसा नहीं निकाल सकूंगी।"
 
वो कहती हैं, 'मैंने बैंक कर्मी से पूछा था कि बैंक में सबकुछ ठीक है ना। उसने कुछ हिचकिचाहट के साथ कहा कि मैं अपना पैसा निश्चिंत होकर जमा करा सकती हूं। और मैंने उस पर भरोसा कर लिया। अब मेरा दिल चाह रहा है कि उस बैंककर्मी को एक थप्पड़ रसीद कर दूं। उसने मुझे बर्बाद कर दिया है।'
 
दरअसल बैंक ने 24 सितंबर को ही अपने खाताधारकों को जानकारी दी कि बैंक आरबीआई की निगरानी में जा रहा है और अब खाताधारक अपना पैसा नहीं निकाल सकेंगे। रिज़र्व बैंक ने ये भी कहा है कि बिना उसकी लिखित अनुमति के पीएमसी बैंक फिक्स डिपॉज़िट नहीं कर सकता है और न ही क़र्ज़ दे सकता है। रिज़र्व बैंक ने पीएमसी बैंक के नया निवेश करने या क़र्ज़ देने पर भी रोक लगा दी है।
 
पीएमसी की स्थापना साल 1984 में मुंबई के सियान इलाक़े में हुई थी। अब इस बैंक की देश के छह राज्यों में 137 शाखाएं हैं। मार्च 2019 के अंत तक बैंक में 11,617 करोड़ रुपए जमा थे जबकि बैंक ने 8,383 करोड़ रुपए क़र्ज़ के तौर पर दिए थे। महाराष्ट्र के अलावा बैंक की शाखाएं दिल्ली, कर्नाटक, गोवा, गुजरात, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी हैं।
 
बैंकिंग विशेषज्ञ और महाराष्ट्र बैंक एंप्लाएइज़ एसोसिएशन के महासचिव विश्वास उटागी बताते हैं कि इस साल मार्च तक बैंक की हालत ठीक थी।
 
उटागी बताते हैं, 'पंजाब और महाराष्ट्र को आपरेटिव बैंक महाराष्ट्र के शीर्ष को-आपरेटिव बैंकों में से एक है। ये बैंक क़रीब 17 हज़ार करोड़ रुपए का कारोबार करती है। मार्च 2019 की बैलेंसशीट के मुताबिक बैंक ने 99 करोड़ रुपए का मुनाफ़ा भी कमाया है।'
 
उटागी के मुताबिक बैंक को मार्च 2019 में ही आरबीआई ने ए ग्रेड की रेटिंग दी थी। उनके मुताबिक, 'बैंक का रिज़र्व सरप्लस भी ठीक है। इसका ग्रॉस एनपीए और नेट एनपीए भी आरबीआई के पैरामीटर के दायरे में ही आता है। बैंक को आरबीआई ने ए ग्रेड का प्रमाणपत्र भी दिया था।'
 
अब सवाल ये है कि बैंक में बीते छह महीने में ऐसा क्या हुआ कि इसकी सेहत ख़राब हो गई। उटागी इसकी वजह एक हाउसिंग डेवलपमेंट कंपनी को दिया गया ढाई हज़ार करोड़ रुपए के क़र्ज़ को बताते हैं।
 
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बैंक ने एचडीआईएल (हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) नाम की कंपनी को ढाई हज़ार करोड़ रुपए का क़र्ज़ दिया है।

उटागी कहते हैं, 'ये बात सामने आई है कि बैंक ने एचडीआईएल को 2500 करोड़ का क़र्ज़ दिया है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने बैंक से कहा है कि वो दो हज़ार पांच सौ करोड़ रुपए का इंतेज़ाम करे। बैंक को सौ प्रतिशत इंतेज़ाम करना पड़ेगा। बैंक का मुनाफ़ा और सरप्लस कुल मिलाकर हज़ार करोड़ भी नहीं है। ऐसे में ये बैंक पूरी तरह से साफ़ हो सकती है। हैरत की बात ये है कि आरबीआई के मुताबिक मार्च 2019 तक जिस बैंक की सेहत ठीक थी उस पर अब 35ए लगाकर आरबीआई का प्रशासक बिठाया जा रहा है।'
 
उटागी कहते हैं, 'एचडीआईएल दिवालिया होने जा रही है। जिस तरह से आईएलएफ़स में समस्या चल रही है उसी तरह से एचडीआईएल ने भी दिवालिया होने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसका सीधा असर पीएमसी पर पड़ा है। आरबीआई को लग रहा है कि बैंक अब चल नहीं पाएगा इसलिए प्रशासक बिठा दिया गया गया है।'
 
आरबीआई ने पीएमसी पर छह महीने के लिए प्रतिबंध और शर्तें लगाई हैं। इसी बीच बैंक के प्रबंध निदेशक जॉए थॉमस ने खाताधारकों से कहा है कि बैंक छह महीनों के भीतर फिर से पहले की तरह कारोबार करने लगेगी।
 
थॉमस ने एक बयान जारी किया है और अव्यवस्था की ज़िम्मेदारी ली है। थॉमस ने कहा है, 'बैंक का एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर होने के नाते मैं इस सबकी पूरी ज़िम्मेदारी लेता हूं और खाताधारकों को आश्वस्त करता हूं कि छह महीने के दौरान काम की अनियमितताओं को दूर कर लिया जाएगा।'
 
उटागी को लगता है कि जोसेफ़ खाताधारकों से झूठा वादा कर रहे हैं। वो कहते हैं, 'आरबीआई ने जब भी सेक्शन 35 लगाया है, बीते बीस सालों में महाराष्ट्र या किसी भी दूसरे राज्य में कोई बैंक पुनर्जीवित नहीं हुआ है। बैंकें अततः दिवालिया ही हुई हैं, कुछ बैंकों का बड़ी बैंकों में विलय ज़रूर हुआ है। लेकिन पीएमसी इस हालत में नहीं है कि कोई बैंक उसका विलय करने में रूची ले।'
 
यदि बैंक डूबा तो इसका मतलब ये होगा कि बैंक के खाताधारकों को अधिकतम एक लाख रुपए तक की ही जमा की गई रक़म मिल सकेगी। जिन लोगों के एक लाख रुपए से अधिक जमा हैं उनका पैसा नहीं निकल सकेगा। उटागी कहते हैं कि जो घटनाक्रम हुआ है उसका सबसे ज़्यादा असर खाताधारकों पर ही पड़ेगा क्योंकि अंततः पैसा उन्हीं का डूबेगा।
 
बैंकिंग रेग्यूलेशन एक्ट के तहत आरबीआई देश की सभी बैंकों के खातों की जांच करती है। आरबीआई के पास बैंकों का प्रति सप्ताह डाटा भी जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर बैंक की वित्तीय हालत ख़राब हो रही थी तो आरबीआई को पता क्यों नहीं चला।
 
उटागी सवाल उठाते हैं कि इससे आरबीआई कार्य प्रणाली, विनियमन प्रक्रिया और पारदर्शिता पर भी सवाल उठा है क्योंकि जो पीएमसी में हुआ है उससे ये संकेत जा रहा है कि आरबीआई ने बड़े अधिकारियों को जनता से जानकारियां छुपानें दी।
 
विश्वास उटागी कहते हैं कि आम लोगों का पैसा डूबने से बचाना आरबीआई का काम है। पीएमसी प्रकरण से ये स्पष्ट हुआ है कि आरबीआई के ऑडिटरों ने अपनी जांच सही से नहीं की। इससे आरबीआई की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। रिज़र्व बैंक ने फिलहाल बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 35ए के तहत अपनी निगरानी में ज़रूर लिया है लेकिन बैंक का लाइसेंस रद्द नहीं किया है।
 
पीएमसी बैंक पर लगे प्रतिबंधों के बाद बैंक में पैसा जमा कराने वाले कई लोगों का भरोसा भी टूटा है। बैंक की एक ब्रांच के बाहर उदास खड़े अशरफ़ अली कहते हैं, आज हम लोग किस बैंक पर भरोसा करें। घर पर भी पैसा न रखें बैंक में भी ना रखें तो करे क्या? पैसा सभी बैंकों में कोई ना कोई लफ़ड़ा चलता ही रहता है। हमें लगा था कि ये बैंक अच्छा है। अब इस बैंक में ही हमारा पैसा डूब गया।

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