बूढ़े होते जापान को आपकी ज़रूरत है

Webdunia
शनिवार, 29 दिसंबर 2018 (11:45 IST)
- ब्रायन लुफ़्किन (बीबीसी कैपिटल)
 
दस साल पहले जब मैं जापान के ग्रामीण इलाकों में रहता था तब वहां मुझे दूसरे गैर-जापानी निवासी शायद ही कभी दिखते थे। टोक्यो में भी स्थानीय लोग एक लंबे गोरे अमेरिकी को देखकर चौंक जाते थे।
 
मैं पिछले महीने वहां गया तो बदलाव को देखकर हैरान रह गया। होटल, शॉपिंग सेंटर और कैफ़े, हर जगह आप्रवासी काम करते दिखे। टोक्यो के उत्तर में कनज़ावा सिटी के एक बार-रेस्तरां में मैंने युवा काकेशियाई सहायक को सुशी शेफ की मदद करते देखा।
 
दूसरे रेस्तरां में एक गैर-जापानी एशियाई वेटर ने हमें खाना परोसा और अंग्रेजी में बात की। संक्षेप में कहें तो जापान का अंतरराष्ट्रीयकरण हो रहा है। यह प्रक्रिया और तेज़ होने वाली है।
 
काम करने वाले लोग चाहिए...
इस बदलाव के पीछे है जापान की डेमोग्राफ़ी। यहां की आबादी तेज़ी से बूढ़ी हो रही है और घट रही है। जापान में बढ़ता विदेशी पर्यटन और 2020 के टोक्यो ओलंपिक की ज़बरदस्त तैयारियां भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। जापान को काम करने वाले लोग चाहिए जो दूसरे देशों से ही आ सकते हैं।
 
घटती और बूढ़ी होती आबादी के बारे में जापान को कई दशक से पता था, लेकिन सरकारें इस दिशा में बड़े कदम नहीं उठा पाईं, जिससे आज के हालात बन गए। प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे कम वेतन वाले ज़्यादा विदेशी मजदूरों को लाना चाहते हैं। जापान पारंपरिक रूप से आप्रवासन को प्रोत्साहन नहीं देता। इसलिए 2025 तक लाखों ब्लू कॉलर नौकरियों में विदेशियों की भर्ती करने के आबे के प्रस्ताव पर विवाद भी बहुत हैं।
 
ज़्यादा बूढ़े और ज़्यादा विदेशी
दिसंबर महीने के दूसरे शनिवार को जापान की संसद ने आबे के अभूतपूर्व प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। इसमें अगले पांच साल में तीन लाख विदेशी मजदूरों को लाने की योजना है। इस पर अप्रैल 2019 से काम शुरू हो जाएगा। भूपाल श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी लेक्चरार हैं।
 
वह टोक्यो के सुगिनामी वार्ड में रहते हैं। यह रिहाइशी इलाका संकरी गलियों, पुराने कपड़ों और प्राचीन वस्तुओं की दुकानों के लिए जाना जाता है। भूपाल 15 साल से जापान में रह रहे हैं। उनके लिए स्थायी निवासी वीजा पाना पहले कभी आसान नहीं था। उन्होंने छोटी-छोटी बुनियादी जरूरतों, जैसे रहने के लिए कमरा खोजने, बैंक खाता खुलवाने, क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन करने में भी भेदभाव का अनुभव किया है।
 
विदेशी कामगार
वह कहते हैं, "जापान का समाज आप्रवासियों के लिए खुल रहा है, लेकिन कई जगहों पर वे अब भी रुढ़िवादी हैं।" "यह आप्रवासियों के साथ सांस्कृतिक मेल-जोल बढ़ाने के मौके की कमी होने की वजह से है।" भूपाल श्रेष्ठ मूल रूप से नेपाल के हैं।
 
 
वह जापान में काम करने वाले 12.8 लाख विदेशियों में से एक हैं। 2008 में जापान में सिर्फ़ 4 लाख 80 हजार विदेशी कामगार थे। विदेशियों की संख्या इतनी तेज़ी से बढ़ने के बाद में जापान की आबादी में उनकी कुल संख्या सिर्फ़ 1 फ़ीसदी है। ब्रिटेन में 5 फ़ीसदी और अमेरिका में 17 फ़ीसदी विदेशी कामगार हैं। जापान में काम कर रहे विदेशियों में से करीब 30 फ़ीसदी लोग चीन के हैं।
 
 
सांस्कृतिक पहचान
वियतनाम, फ़िलीपींस और ब्राजील के लोग भी अच्छी संख्या में हैं। जापान में विदेशियों की संख्या कम होने का कारण यह है कि यहां आप्रवसान कभी लोकप्रिय नहीं रहा। यह द्वीप राज्य कभी बिल्कुल अलग रहता था। 19वीं सदी के मध्य में यहां घुसने वालों और यहां से भागने की कोशिश करने वालों को मौत की सज़ा तक दे दी जाती थी।
 
 
नया जापान खुद को समरूपी समाज मानता है, जिसकी मज़बूत सांस्कृतिक पहचान है। ऐतिहासिक रूप से यहां यह माना जाता रहा कि विदेशियों के आने से स्थानीय लोगों का रोजगार छिन जाएगा, सांस्कृतिक अवरोध पैदा होंगे और अपराध बढ़ जाएंगे। अब समस्या यह है कि जापानियों की संख्या घट रही है। साल 2010 से 2015 के बीच ही जापान की आबादी क़रीब 10 लाख घट गई। पिछले साल आबादी में 2 लाख 70 हज़ार की कमी आई।
 
 
जापान की समस्याएं
जापान में 65 साल से ज़्यादा उम्र वाले नागरिकों की संख्या रिकॉर्ड 27 फीसदी को छू गई है। 2050 में यह 40 फीसदी तक पहुंच जाएगी। मई 2018 में रोजगार की उपलब्धता का अनुपात 44 साल में सबसे ज़्यादा हो गया। यहां प्रति 100 कामगारों पर 160 नौकरियां हैं।
 
 
जापान में ऐसी नौकरियों की भरमार है जिसे बूढ़े जापानी नहीं कर सकते और स्थानीय युवा उनको करना नहीं चाहते। अमेरिकी थिंक टैंक वूडरो विल्सन सेंटर की सीनियर एसोसिएट शिहोको गोटो इस स्थिति को "बेहद ख़ौफ़नाक" बताती हैं। उनका कहना है कि आप्रवासन को जापान की समस्याएं सुलझाने के व्यापक उपाय के तौर पर कभी नहीं देखा गया। कुछ कारोबारी और नेता आबे की योजना का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन अन्य लोग सवाल उठा रहे हैं कि यह जापान के समाज को बदल देगा।
 
 
मजदूरों की ज़रूरत
टोक्यो में आप्रवासन मामलों के वकील मसाहितो नकाई कहते हैं, "जापान के कुछ ही लोगों को विदेशियों के साथ रहने और उनके साथ काम करने का अनुभव है।"...फिर भी लोग यह समझने लगे हैं कि कुछ उपाय निकालना ज़रूरी है। "वे अब मानने लगे हैं कि विदेशियों की मदद के बिना देश नहीं चल सकता।"
 
 
भवन निर्माण, खेती और जहाज-निर्माण जैसे क्षेत्रों में तुरंत मजदूरों की ज़रूरत है। पर्यटन बढ़ने से होटल और खुदरा व्यापार क्षेत्र में अंग्रेजी और अन्य भाषाएं बोलने वाले लोगों की ज़रूरत बढ़ी है। रिटायर हो चुके लोगों की देखभाल के लिए नर्सिंग स्टाफ़ की भी तत्काल ज़रूरत है।
 
 
कार्यक्रम की आलोचना
नवंबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक यदि प्रधानमंत्री आबे के प्रस्ताव लागू कर दिए जाते हैं तो इन सभी क्षेत्रों में खाली नौकरियों को भरने के लिए तीन लाख 45 हज़ार विदेशी कामगारों के जापान आने की उम्मीद है।
 
 
जापान अस्थायी "टेक्निकल इंटर्न ट्रेनिंग प्रोग्राम" के रास्ते विदेशी कर्मचारियों को लाता है। इसके तहत युवा मजदूरों या छात्रों को घर लौटने से पहले तीन या पांच साल तक कम-वेतन वाली नौकरियां करने की अनुमति दी जाती है।
 
 
मजदूरों के शोषण, कम वेतन और खराब कार्य स्थितियों की वजह से इस कार्यक्रम की आलोचना भी होती है। पिछले साल पता चला था कि इस प्रोग्राम के तहत आए 24 साल के एक वियतनामी व्यक्ति को फुकुशिमा के रेडियोएक्टिव कचरे की सफ़ाई का काम दे दिया गया था।
 
 
नई वीजा योजना
अब प्रधानमंत्री आबे कम-कुशल मजदूरों को जापान में पांच साल तक रहने की अनुमति देना चाहते हैं। कुशल कामगारों को उन्होंने दोबारा जारी किए जा सकने वाले वीजा देने का प्रस्ताव रखा है। ऐसे वीजा धारक अपने परिवार को भी जापान ला सकते हैं। आबे चाहते हैं कि यह नई वीजा योजना अप्रैल में शुरू हो जाए।
 
 
आबे इन मजदूरों को आप्रवासी कहने से बचते हैं, फिर भी आलोचकों को लगता है कि इससे विदेशियों को जापान में स्थायी निवास बनाने का आसान रास्ता मिल जाएगा। आलोचकों को यह भी चिंता है कि विदेशी मजदूर शहरों में भीड़ बढ़ा देंगे, लेकिन वे ग्रामीण इलाक़ों में रहने नहीं जाएंगे जहां उनकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा है।
 
 
जापानी समाज
उधर, मानवाधिकारों की वकालत करने वालों को लगता है कि जापान अब तक यह नहीं सीख पाया है कि विदेशी मजदूरों को शोषण से कैसे बचाया जाए। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफ़ेयर्स के प्रोफेसर ताकातोशी इतो को लगता है कि जापानी समाज भूमंडलीकरण के प्रति जग रहा है।
 
 
वह कहते हैं, "ज़्यादातर विदेशी मजदूर जापान की आर्थिक तरक्की में मदद कर रहे हैं। वे वह काम कर रहे हैं जिनको जापान के लोग नहीं करना चाहते।".. आप्रवासन के वकील नकाई का कहना है कि वीजा मिल जाना केवल एक शुरुआत है। विदेशियों के लिए जापान की संस्कृति में घुल-मिल जाना बहुत मुश्किल होगा।
 
 
विदेशी लोगों से संपर्क
वह भाषा और संस्कृति की खाइयों की ओर इशारा करते हैं, जिनको पार करना आप्रवासियों के लिए चुनौती है। "यदि करदाता राजी हों तो सरकार उनको जापानी भाषा सिखाने के लिए मुफ़्त या सस्ते कोर्स शुरू कर सकती है।" अन्य लोगों को लगता है कि सरकार विदेशी लोगों से संपर्क भी नहीं करती।
 
 
भूपाल श्रेष्ठ कहते हैं, "मुझे लगता है कि मेल-जोल बढ़ाने के मौके बहुत कम हैं। यहां एक ही अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों के बीच भी संवाद नहीं होता।" "जब पड़ोसियों के बीच भी आपसी समझ न हो तब बहुसांस्कृतिक समाज नहीं बन सकता।"
 
 
सांस्कृतिक टकराव
सेंट लुइस में मिसौरी यूनिवर्सिटी की समाजशास्त्री चिकाको उसूई का कहना है कि जापान में आप्रवासियों के साथ रुखे व्यवहार के कई कारण हैं।
 
 
"इनमें अलगाववादी इतिहास से लेकर समरूपता के बारे में इसकी खुद की मान्यताएं जिम्मेदार हैं। जापानी समाज का ढांचा कुछ अलिखित नियमों और मान्यताओं से बना है।" "इस ढांचे में स्थानीय समाज भी कई स्तरों में बंटा है। ये नियम बाहरी लोगों के प्रति उनकी उपेक्षा को बढ़ाते हैं।"
 
 
उसूई "हवा को पढ़ने" की जापानी अवधारणा के बारे में बताती हैं। जापान के लोग सोचते हैं कि वे अपनी अलिखित सामाजिक बारीकियों को टेलीपैथी से समझ लेते हैं। "जापानियों को लगता है कि विदेशियों के लिए यह संभव ही नहीं है। हकीकत यह है कि मैं भी जापान में हमेशा यह नहीं कर सकती।"
 
 
जापानी होने का मतलब
वूडरो विल्सन सेंटर की गोटो का कहना है कि जापानी होने का मतलब एक मुश्किल कोड में है। "ये सिर्फ़ नागरिकता के बारे में नहीं है। ये नस्ल के बारे में है, यह भाषा के बारे में है, ये शरीर की भाषा के बारे में है। इन सूक्ष्म चीजों को एक गैर-जापानी नहीं पकड़ सकता।"
 
 
लेकिन नज़रिया खुल रहा है। गोटो को लगता है कि जापान के लोगों के पास आज 10 साल पहले के मुक़ाबले अपने से अलग लोगों के साथ रहने के ज़्यादा मौके हैं।" जैसे-जैसे जापानी समाज बूढ़ा हो रहा है और ओलंपिक नजदीक आ रहा है, जापान पर दबाव बढ़ रहा है कि वह विदेशी मजदूर लाने के क्या उपाय करता है। भूपाल का कहना है कि जो लोग जापान जा रहे हैं उनको पता होना चाहिए कि वे कहां जा रहे हैं।
 
 
मजदूर समस्या का अंत
भूपाल को जापान में रहना अच्छा लगता है। यहां "कड़ी मेहनत की पूजा होती है और नियमों का पालन होता है।" वह कहते हैं कि जापान की संस्कृति और दैनिक जीवन के नियमों की थोड़ी जानकारी लेकर आना अच्छा होगा। आने वाले साल 2019 में जापान को विदेशी मजदूरों के बारे में एक मान्य समाधान निकालना है। जब तक यह समाधान नहीं निकलेगा, जापान की मजदूर समस्या का अंत नहीं होगा।
 

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