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निर्मला सीतारमण की घोषणा से सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों को ही फ़ायदा या प्राइवेट सेक्टर के लिए भी है कुछ?

हमें फॉलो करें निर्मला सीतारमण की घोषणा से सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों को ही फ़ायदा या प्राइवेट सेक्टर के लिए भी है कुछ?

BBC Hindi

, मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020 (13:07 IST)
आलोक जोशी, पूर्व संपादक, सीएनबीसी आवाज़
संयोग ही कहिए कि कल यानी सोमवार को ही इकोनॉमिक साइंस या अर्थशास्त्र के लिए इस साल के नोबेल पुरस्कार का एलान हुआ और कल ही भारत की वित्त मंत्री ने एक ऐसा एलान किया जिसने पिछले साल यही पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और उनकी सहयोगी/जीवन संगिनी एस्टर डुफ़्लो की याद दिला दी।
 
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार जो एलान किया है उससे लाखों सरकारी कर्मचारी खुश होंगे। तमाम दुकानदार खुश होंगे। उद्योगपति और बड़े व्यापारी भी खुश होंगे और वो सारे आर्थिक विशेषज्ञ भी खुश होंगे जो लंबे समय से मांग कर रहे थे कि सरकार सीधे लोगों की जेब में पैसा डालने का इंतज़ाम करे।
 
वित्तमंत्री ने बताया कि सरकारी कर्मचारियों को दो सुविधाएं दी जा रही हैं। एक उन्हें दस हज़ार रुपए तक का इंटरेस्ट फ्री लोन दिया जाएगा और दूसरे छुट्टी लेकर घूमने के लिए मिलने वाली रक़म यानी उनके लीव ट्रैवल कंसेशन या एलटीसी का भुगतान इस बार बिना घूमे-फिरे ही कर दिया जाएगा।
 
इन दोनों का ही फ़ायदा उठाने की एक शर्त है। शर्त यह कि उन्हें 31 मार्च 2021 तक यह पैसा ख़र्च करना पड़ेगा और खर्च भी सिर्फ़ उन चीज़ों पर जिन पर जीएसटी की दर 12 प्रतिशत या उससे अधिक है।
 
कोरोना दौर में मिडिल क्लास के लिए राहत
शर्त यह भी है कि इस ख़रीदारी के लिए सिर्फ़ डिजिटल भुगतान का इस्तेमाल हो। नकद ख़रीदारी पर यह लाभ नहीं मिलेगा। दस हज़ार रुपये का एडवांस या बिना ब्याज़ का लोन सरकार एक प्रीपेड 'रुपे कार्ड' के तौर पर देगी।
 
सरकारी कर्मचारी और अफ़सर इस कार्ड से दस हज़ार रुपए तक की ख़रीदारी 31 मार्च के पहले कर सकते हैं और जो भी रकम कार्ड पर ख़र्च हुई होगी उसकी वसूली अगले वित्त वर्ष में दस बराबर किश्तों में वेतन से काटकर की जाएगी।
 
कोरोना संकट और लॉकडाउन के बाद से यह पहली ख़बर है जो मिडिल क्लास को न सिर्फ़ राहत देने वाली है बल्कि उन्हें ख़ुश करने वाली है। एलटीसी के बदले कैश वाउचर की योजना में भी हरेक कर्मचारी या अधिकारी को जितनी रकम एलटीसी में मिलनी है उतने के कैश वाउचर दिए जाएंगे।
 
यह रकम एलटीसी की पात्रता के बराबर या किराए की रकम के तीन गुना के बराबर होगी। यहां शर्त यह है कि जितने का वाउचर मिलेगा उससे तीन गुना रकम ख़र्च करने की रसीद लगानी होगी तभी इस पर इनकम टैक्स की छूट मिल पाएगी और यहां भी प्रीपेड कार्ड जैसी ही शर्तें लागू हैं।
 
यानी ख़र्च 31 मार्च से पहले, डिजिटल माध्यम से और सिर्फ़ 12 प्रतिशत से ज़्यादा जीएसटी वाली चीज़ों पर होना चाहिए।
 
फ़ायदा-नुकसान
सवाल है कि इस स्कीम का फ़ायदा क्या है और नुकसान क्या? तो सबसे पहले सबसे बड़ा फ़ायदा- अगर सभी सरकारी कर्मचारी एलटीसी स्कीम का फ़ायदा उठाने की सोचते हैं तो सरकारी ख़ज़ाने से 5675 करोड़ रुपए की रकम कर्मचारियों के खाते में जाएगी। सरकारी कंपनियों और बैंकों को भी मिला लें तो इसमें 1900 करोड़ की रकम और जुड़ जाएगी।
 
स्कीम के नज़रिए से देखिए तो यह सारा पैसा मार्च तक बाज़ार में खर्च हो जाना चाहिए। शर्तों को और बारीकी से देखिए तो पता चलेगा कि बाज़ार में ख़र्च होने वाली रकम इससे कहीं अधिक होगी।
 
एलटीसी योजना का लाभ उठाने वालों को समझना होगा कि एलटीसी में मिलने वाली रकम के दो हिस्से होते हैं। एक छुट्टी के बदले मिलने वाली रकम यानी लीव एन्कैशमेंट - इस पर टैक्स चुकाना होता है। और दूसरा हिस्सा है छुट्टी पर जाने के लिए मिलने वाला किराया - यह कर मुक्त होता है।
 
अब सरकार ने शर्त रखी है कि इस पर टैक्स छूट के लिए ज़रूरी है कि कर्मचारी किराए की रकम से तीन गुना ख़र्च करेगा तभी उसे पूरा पैसा भी मिलेगा और टैक्स छूट भी। कोरोनाकाल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाई है।
 
एलटीसी का क्लेम जमा करते समय टिकट भी लगाना पड़ता है। इस वक़्त कर्मचारी घूमने जा नहीं सकते तो सरकार ने उन्हें छूट दे दी है कि वो बिना कहीं जाए ही टिकट वाला हिस्सा भी ले लें। लेकिन फिर सवाल उठेगा कि ऐसे में कहां से कहां जाने का टिकट मिलेगा?
 
तो इसका जवाब भी सरकार ने दे दिया है। अलग अलग वेतन वाले लोगों के लिए किराए की रकम तय हो गई है। जिन्हें बिज़नेस क्लास का हवाई किराया मिलता है उन्हें 36 हज़ार रुपये, इकोनॉमी क्लास वालों को 20 हज़ार रुपये और रेलवे से किसी भी क्लास की यात्रा के पात्रों को छह हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से किराया मिलेगा।
 
लेकिन योजना का पूरा फ़ायदा उठाने के लिए उन्हें वाउचर की कीमत का तीन गुना ख़र्च करना ज़रूरी होगा।
 
सरकारी सर्कुलर में ही एक उदाहरण है जिसमें गणित जोड़कर दिखाई गई है। एक लाख अड़तीस हज़ार पांच सौ रुपये वेतन पाने वाले एक अधिकारी चार सदस्यों के परिवार के साथ। इनका छुट्टी का भुगतान होगा 54015 रुपये, बीस हज़ार के हिसाब से किराया अस्सी हज़ार।
 
यानी कुल रकम मिली 134015 रुपये। लेकिन छूट का लाभ लेना है तो इन्हें ख़र्च करना होगा किराए का तीन गुना यानी दो लाख चालीस हज़ार रुपये और छुट्टियों का पूरा भुगतान यानी 54015 रुपये। कुल खर्च होगा 294015 रुपये।
 
एक तीर से दो शिकार
साफ़ है कि सरकार ने एक तीर से दो निशाने मार लिए हैं। जेब में पैसा आएगा, यह सुनकर कर्मचारी अधिकारी सब ख़ुश। प्राइवेट सेक्टर से भी आग्रह किया गया है कि इसी गणित से वो भी भुगतान कर दे तो उनके स्टाफ़ को भी टैक्स में छूट मिल जाएगी।
 
एलटीसी के लिए चार साल का ब्लॉक अगले मार्च में ख़त्म हो रहा है तो बहुत से लोग अपना एलटीसी लेना भी चाहते हैं। अब अगर उन्हें छूट का लाभ लेना है तो जितना मिलेगा उससे दोगुना ख़र्च भी करना पड़ेगा।
 
बिना ब्याज का लोन तो सभी लोगों को अगले साल लौटाना ही है। तो सरकार ने जितना दिया उससे ज़्यादा आपकी जेब से निकालने का इंतज़ाम साथ में कर लिया। इसके साथ दूसरी शर्त पर ध्यान देना भी ज़रूरी है।
 
दूसरी शर्त यह है कि आपका सारा ख़र्च डिजिटल होना चाहिए और ऐसी चीज़ों पर जिन पर कम से कम 12% जीएसटी ज़रूर लगता हो। यानी आप बेहद ज़रूरी सामान पर ख़र्च करेंगे तो कोई फ़ायदा नहीं। साफ़ है कि सरकार ग़ैर-ज़रूरी चीज़ों या दूसरे शब्दों में विलासिता के सामान पर ख़र्च या डिस्क्रीशनरी स्पेंडिंग बढ़ाना चाहती है।
 
यानी वो चाहती है कि आप उन चीज़ों पर ख़र्च करें जिनकी आपको वास्तव में ज़रुरत नहीं है। वह भी ऐसे समय पर जब लोग अपनी बचत का एक एक पैसा पकड़ कर बैठे हैं और ज़रूरी चीजों पर ख़र्च करने में भी कई बार सोचते हैं।
 
अर्थशास्त्री पहले ही दे चुके थे ऐसी सलाह
अभिजीत बनर्जी, एस्टर डुफ़्लो और कई आर्थिक विशेषज्ञों और विपक्ष के नेताओं ने भी लॉकडाउन शुरू होने के बाद कई बार सलाह दी थी कि सरकार को लोगों की जेब में सीधे पैसा डालना चाहिए और ऐसे डालना चाहिए ताकि लोग उसे दबाकर न रखें बल्कि सीधे ख़र्च करें।
 
पहली नज़र में देखें तो सरकार ने एकदम यही काम किया है। ये समझदारी भी दिखाई है कि जितना ख़र्च किया जाए उससे अधिक फ़ायदा हो। यह स्कीम सरकारी कर्मचारियों- अधिकारियों के लिए है जिन्हें नौकरी का ख़तरा भी आमतौर पर नहीं है।
 
इसलिए मानना चाहिए कि बड़ी संख्या में लोग इसका फ़ायदा उठाएंगे। वो हिम्मत दिखाएंगे, कुछ पैसा सरकार से लेंगे, कुछ अपनी जेब से निकालेंगे और दीवाली से लेकर होली तक की ख़रीदारी में हाथ खोलकर ख़र्च करेंगे।
 
सिर्फ़ सरकारी मिडिल क्लास को फ़ायदा!
 
इसके साथ ही सरकार ने यह शिकायत भी एक सीमा तक दूर कर दी है कि वो मिडिल क्लास के लिए कुछ नहीं सोचती।
 
यह स्कीम मोटे तौर पर मिडिल क्लास के ही काम की है। लेकिन सिर्फ़ सरकारी मिडिल क्लास के लिए। प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाले, अपना कारोबार करने वाले और रिटायर हो चुके मिडिल क्लास के लिए तो इसमें भी कुछ नहीं आया। तो क्या मान लेना चाहिए कि सरकार उनके लिए कुछ नहीं करेगी?
 
इसके जवाब में यह गिनाया जा सकता है कि लोन मॉरेटोरियम की स्कीम में कंपाउंड इंटरेस्ट पर जो ब्याज माफ़ होगा उसका फ़ायदा तो सबको मिलेगा।
 
लेकिन तब सवाल यह उठता है कि जो लोग सरकारी नौकरी नहीं करते, जिन्होंने कोई कर्ज़ नहीं ले रखा था और जो ईमानदारी से टैक्स भरते रहे हैं उन्हें क्या सरकार से कोई राहत नहीं मिलनी चाहिए?
 
यह एक बड़ा सवाल है लेकिन इसका जवाब आसान नहीं है। या तो सरकार कोई ऐसी स्कीम लाए जिसमें बिना भेदभाव हर नागरिक के खाते में कुछ रकम डालने का इंतज़ाम किया जाए ताकि सभी लोग ख़र्च करने निकलें।
 
लेकिन जैसी शर्तें एलटीसी में लगी हैं और प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों पर जिस तरह तलवार लटक रही है उसमें तो वहां इस स्कीम का फ़ायदा लेने बहुत लोग सामने आएंगे ऐसे भी आसार नहीं दिखते।
 
अब सिर्फ़ यह उम्मीद की जा सकती है कि अभी वित्त मंत्री शायद फिर कुछ वक़्त इंतज़ार करेंगी।
 
एक बार इन क़दमों का कुछ असर दिखने लगे, बाज़ार में कुछ जान लौटे, टैक्स वसूली में तेज़ी आए, तब शायद फिर सरकार इसके आगे कोई और बड़ा क़दम उठाने की सोच सकती है जिससे उन लोगों के चेहरों पर भी मुस्कान लौटे जो सरकार से राहत की उम्मीद करते करते अब मायूस हो चुके हैं।
 
और अब शायद अगले बजट का भी इंतज़ार शुरू होगा क्योंकि पिछले बजट के सारे आंकड़े तो कोरोना के चक्कर में बेकार हो चुके हैं। लेकिन अगर हालात तेजी से सुधरने लगें तो संभव है कि अगला बजट बाकी बचे मिडिल क्लास के लिए टैक्स के मोर्चे पर कोई खुशखबरी लेकर आए।
 

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