ज़ुबैर अहमद (बीबीसी संवाददाता)
कांग्रेस पार्टी के 137 साल के इतिहास में सोमवार को 6ठी बार पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ, आज़ादी के बाद से पार्टी की कमान अधिकतर गांधी परिवार के हाथों में रही है या फिर सर्वसम्मति से अध्यक्ष का चुनाव होता रहा है। सियासी विश्लेषकों में आम सहमति है कि पार्टी का अगला अध्यक्ष जो भी बने उसके सामने अनेक चुनौतियां होंगी।
गांधी परिवार ने जब ये फ़ैसला किया है कि वो पार्टी अध्यक्ष बनने की दौड़ में शामिल नहीं होंगे तो इस पद के लिए 2 नेता दावेदार बने- मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर।
कांग्रेस केंद्रीय चुनाव समिति के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री के अनुसार, मतदान के योग्य 9,900 पार्टी प्रतिनिधियों में से 9,500 ने मतदान में अपना मत डाला, विजेता लंबे समय तक पद पर रहने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की जगह लेगा।
चुनाव का परिणाम बुधवार को घोषित किया जाएगा लेकिन पार्टी के अंदर लोगों को पूरा यक़ीन है कि खड़गे उनके अगले अध्यक्ष होंगे, सोमवार को दिल्ली में पार्टी के मुख्यालय 24 अकबर रोड में मतदान करके लौटने वाले एक कांग्रेसी ने जोश में कहा कि शशि थरूर की ज़मानत ज़ब्त हो जाएगी।
सियासी विश्लेषकों में आम सहमति है कि पार्टी का अगला अध्यक्ष जो भी बने उसके सामने अनेक चुनौतियां होंगी।
नए अध्यक्ष की सबसे अहम चुनौती
विश्लेषकों और पार्टी के कुछ अंदरूनी लोगों के मुताबिक़, नए अध्यक्ष की सबसे महत्वपूर्ण चुनौती होगी पार्टी पर अपना नियंत्रण कायम करना, अपना सिक्का जमाना, अपनी बात मनवा पाना। कई विश्लेषकों का मानना है कि असली ताक़त गांधी परिवार के हाथों में ही रहेगी, अध्यक्ष का 'रिमोट कंट्रोल' सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी के पास होगा।
रिमोट कंट्रोल वाली बात इसलिए भी की जा रही है क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के क़रीब माने जाते हैं और उन्हें प्रथम परिवार के उम्मीदवार की तरह से देखा जा रहा है।
कुछ दिन पहले पार्टी के बाग़ी नेता संजय झा के एक लेख पर इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की हेडलाइन थी, 'मल्लिकार्जुन खड़गे की आधिकारिक उम्मीदवारी - कांग्रेस कैसे ख़ुद को गिरा रही है'। उनका तर्क था कि अध्यक्ष पद का चुनाव केवल एक मज़ाक़ है क्योंकि उनके मुताबिक़ खड़गे गांधी परिवार के केवल एक 'दरबारी' हैं।
तो क्या पार्टी की कमान असल में गांधी परिवार के पास ही रहेगी?
पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अखिलेश प्रताप सिंह ने बीबीसी हिन्दी को बताया, 'नहीं एकदम नहीं। उनका ऐसा स्वभाव ही नहीं है। जिस पद के लिए दुनिया लड़ती है, सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को वह पद दे दिया, और एक बार नहीं, 2 बार, और ये दिखा दिया कि उन्हें पद का लोभ नहीं है।'
वो ये भी कहते हैं कि अध्यक्ष का चुनाव कराके इस बात का सबूत दिया गया है कि परिवार को पद का लालच नहीं है।
अखिलेश प्रताप सिंह कहते हैं, 'पार्टी अध्यक्ष पर गांधी परिवार के फ़ैसले थोपे नहीं जाएंगे, वो कहते हैं, 'हमारे यहां सामूहिक तरीके से फ़ैसले होते हैं। वो अपने फ़ैसले नहीं थोपेंगे, मैं राहुल जी और सोनिया जी का स्वभाव जानता हूं।'
खड़गे दलितों को पार्टी में वापस ला सकते हैं?
80 वर्षीय खड़गे कांग्रेस के सबसे प्रमुख दलित चेहरों में से एक हैं और कर्नाटक जैसे एक ऐसे राज्य से ताल्लुक रखते हैं जहां पार्टी की पकड़ बनी हुई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं जिनके संबंध बड़े नेताओं से अच्छे हैं, खास तौर से गांधी परिवार से। लेकिन आम कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पकड़ कमज़ोर बताई जाती है।
सोमवार को वोट देकर लौटने वाले एक दलित कांग्रेसी नेता ने कहा कि खड़गे के अध्यक्ष बनने से दलित और पिछड़े समाज के वो लोग जो पार्टी छोड़ कर चले गए थे, वापस लौट जाएंगे।
उनके अनुसार वो पार्टी और गांधी परिवार के बीच एक कड़ी की तरह हैं। उनके अनुसार उन्हें गांधी परिवार की कठपुतली कहना सही नहीं होगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने सोमवार को एनडीटीवी चैनल से कहा कि रिमोट कंट्रोल वाली बात ग़लत है लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि नए अध्यक्ष को गांधी परिवार से सलाह और मशविरा करना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार पंकज वोहरा ने कांग्रेस पार्टी पर दशकों से नज़र रखी हुई है, वे कहते हैं कि नए अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती 'बैलेंस ऑफ़ पावर' होगा जिसके तहत नए अध्यक्ष को ये सुनिश्चित करना होगा कि गांधी परिवार की पार्टी में पकड़ बनी रहे।
पंकज वोहरा को लगता है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार वाला मॉडल अपनाया जा रहा है जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो थे लेकिन कहा जाता है कि असली ताकत सोनिया गांधी के हाथ में थी।
सोनिया गांधी सबसे लंबे अरसे तक अध्यक्ष
एक समय गांधी परिवार की पार्टी पर पकड़ बिल्कुल ढीली-सी हो गई थी और सोनिया गांधी अलग-थलग हो कर रह गई थीं। साल 1992 से 1998 तक पार्टी की बागडोर पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के हाथों में थी।
लेकिन फिर सोनिया गांधी का समय आया। वो 1998 से 2017 तक पार्टी की अध्यक्ष रहीं और 2 आम चुनाव में पार्टी को जीत दिलाई, फिर वो 2019 में राहुल गांधी के पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनीं।वो कांग्रेस की सबसे लंबे अरसे तक अध्यक्ष रही हैं।
अगर नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के समय जैसा हाल हुआ और नए अध्यक्ष ने पार्टी में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली तो गांधी परिवार धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो जाएगा? और पार्टी में परिवार की अहमियत ख़त्म हो जाएगी?
इस पर अखिलेश प्रताप सिंह कहते हैं, 'अप्रासंगिक कैसे हो जायेगा परिवार? लीडर तो लीडर होता है।' उनके मुताबिक़, इसके अलावा पार्टी के सभी प्रमुख निर्णयों में अन्य नेताओं के साथ-साथ गांधी परिवार भी शामिल होगा, चाहे वो कांग्रेस कार्यसमिति के हवाले से हो या फिर पार्टी के संसदीय बोर्ड के सदस्य के हवाले से।
पंकज वोहरा भी मानते हैं कि गांधी परिवार अप्रासंगिक नहीं होगा।
वो कहते हैं, 'उन्होंने अपने प्यादे रखे हुए हैं पार्टी के मुख्य पदों पर, जो गांधी परिवार के लिए काम करेंगे, न कि पार्टी अध्यक्ष के लिए' वो आगे कहते हैं, 'अगर शशि थरूर को 9900 में से 1000 या 2000 वोट मिलें जिसकी संभावना बहुत कम है, तो इसका मतलब ये होगा कि पार्टी में गांधी परिवार के उम्मीदवार से कई लोग खुश नहीं हैं और तब उन्हें थोड़ी समस्या हो सकती है। पार्टी को 2024 के आम चुनाव के लिए तैयार करना नए अध्यक्ष की सब से बड़ी चुनौतियों में से एक होगी।
संजय झा अपने लेख में कहते हैं कि कांग्रेस को एक ऐसे अध्यक्ष की ज़रुरत है जो 2024 के आम चुनाव और उससे पहले कई राज्यों के चुनाव जीतने में मदद कर सके। पंकज वोहरा के अनुसार नए पार्टी अध्यक्ष का पहला इम्तिहान हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों में होगा जिसके लिए उनके पास समय बहुत कम है।
लेकिन अखिलेश प्रताप सिंह की राय में पार्टी को चुनाव में जीत हासिल कराने से पहले नए अध्यक्ष की एक बड़ी चुनौती ये होगी कि राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' पैदा हुए 'गुडविल' को कैसे वोट में तब्दील कराया जाए। वो कहते हैं, 'जब भारत जोड़ो यात्रा ख़त्म होगी उसके एक साल बाद लोकसभा का चुनाव है। यात्रा से बनी गति और आंदोलन को बनाए रखना एक एक बड़ी चुनौती होगी।'
पंकज वोहरा इस विश्लेषण से सहमत नज़र आते हैं। वो कहते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा का अब तक केरल और कर्नाटक में अच्छा असर हुआ है लेकिन इसको कैसे मज़बूत किया जाए और आगे आम चुनाव तक इसे संभालकर रखा जाए इस पर पार्टी अध्यक्ष को काम करना पड़ेगा।
पार्टी को मौजूदा संकट से निकलना एक बड़ा चैलेंज
विश्लेषक कहते हैं कि पार्टी की हालत बहुत ख़राब है। उसे मौजूदा संकट से निकालना और पार्टी में ज़मीनी स्तर पर ऊर्जा पैदा करना नए अध्यक्ष की एक बड़ी चुनौती होगी। पंकज वोहरा कहते हैं, 'ब्लॉक स्तर पर, ज़िला स्तर पर आपको पार्टी को पुनर्जीवित करना होगा, खड़गे की पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच कर्नाटक के बाहर पकड़ बहुत कम है।'
'पुराने नेताओं का पार्टी वर्कर्स के साथ एक कनेक्ट था। खड़गे के बारे में हम ऐसा नहीं कह सकते, तो पार्टी को ज़मीनी स्तर पर पुनर्जीवित करना नए अध्यक्ष के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। चुनाव में जीत के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। क्या एक 80 वर्ष के नेता से आप ये उम्मीद कर सकते हैं?'