- अंजलि महतो (बीबीसी फ़्यूचर)
कील-मुंहासे लोगों की शक्ल पर दाग़ तो छोड़ ही जाते हैं, ये ज़हन पर भी गहरा असर डालते हैं। कई बार तो लोग मुंहासों से इतना परेशान हो जाते हैं कि तनाव और डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।
मुंहासों से परेशान लोग अक्सर इनसे बचने के लिए खान-पान में बहुत तरह के परहेज़ करने लगते हैं। जब से दुनिया भर में सेहत को लेकर जागरूकता बढ़ी है, तब से ये चलन और बढ़ गया है कि कील-मुंहासों से बचने के लिए लोग कई चीज़ें खाना छोड़ रहे हैं। ये बात बहुत परेशान करने वाली है।
मैं लंदन में लंबे वक़्त से स्किन डॉक्टर के तौर पर मुंहासों से परेशान मरीज़ों को देखती आई हूं। इनमें से ज़्यादातर महिलाएं होती हैं, जो मुंहासों को ख़ूबसूरती पर दाग़ के तौर पर देखती हैं।
अक्सर बड़े घरानों की महिलाएं मुंहासों से निजात पाने के लिए मेरे पास आती हैं। ये पढ़ी-लिखी कामकाजी महिलाएं अपनी त्वचा की ही नहीं बाक़ी शरीर की सेहत को लेकर हलकान रहती हैं। ऐसी बहुत सी महिलाएं जब मेरे पास आती हैं, तो उससे पहले तमाम नुस्खे आज़मा चुकी होती हैं। इनमें स्किनकेयर प्रोडक्ट में तरह-तरह के प्रयोग से लेकर खान-पान में बदलाव तक के नुस्खे शामिल होते हैं।
खाने से क्या संबंध है?
आज, स्किनकेयर में जिस तरह से खान-पान पर ज़ोर दिया जा रहा है, वो परेशान करने वाला है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। बहुत से मरीज़ मुझे ख़ुद बताते हैं कि त्वचा की सेहत के लिए उन्होंने ग्लूटेन, डेयरी उत्पाद और चीनी खाना बंद कर दिया है। उन्हें उम्मीद थी कि इससे उनकी त्वचा पर पड़ने वाले दाग़-धब्बे दूर होंगे।
ऐसे लोग खाने के लिए अपने दोस्तों के साथ बाहर जाना बंद कर देते हैं। जन्मदिन की पार्टियों में केक खाने से इनकार कर देते हैं। खाना छोड़ देते हैं। कॉफ़ी पीने के लिए भी 'साफ़-सुथरे' कैफ़े तलाशते हैं। वहां भी गिनी-चुनी चीज़ों को ही छूते और खाते हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि कुछ ख़ास चीज़ें खाने से उनकी मुंहासों की समस्या और बढ़ जाएगी। पर, क्या इस बात के सबूत हैं कि खान-पान का मुंहासों से सीधा ताल्लुक़ है?
इस संबंध को लेकर पिछले कई दशकों से विचार-विमर्श चल रहा है, मगर तस्वीर साफ़ नहीं हो सकी है। अक्सर इस बात की रिसर्च लोगों की याददाश्त पर आधारित होती है कि उन्होंने पहले क्या खाया था। दस साल पहले के खाने की बात तो छोड़ ही दें, क्या आप सही-सही याद कर के बता सकते हैं कि आप ने पिछले हफ़्ते क्या खाया था?
क्या करना चाहिए?
हमें ये तो पता है कि मुंहासों का ताल्लुक़ ज़्यादा चीनी वाले खान-पान यानी उच्च ग्लाईसेमिक इंडेक्स वाली चीज़ों से है। इसका मतलब ये नहीं है कि आप को चीनी खाना एकदम बंद कर देना चाहिए। बल्कि मेरी सलाह होगी कि मीठी चीज़ें संभलकर खाएं। ये आपकी त्वचा के लिए अच्छा रहेगा। आपकी बाक़ी सेहत के लिए भी यही ठीक होगा।
डेयरी उत्पादों के मुंहासों से ताल्लुक़ के दावे तो और भी कमज़ोर हैं। हालांकि कुछ लोगों में डेयरी उत्पाद से मुंहासे हो जाते हैं, लेकिन, सब को ऐसी शिकायत हो, ऐसा नहीं है। ख़ास तौर से लो-फैट डेयरी उत्पाद तो फुल क्रीम उत्पादों से भी ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं।
ब्रिटेन या अमेरिका में ऐसी कोई गाइडलाइन्स नहीं हैं कि मुंहासों से बचने के लिए डेयरी प्रोडक्ट न खाएं। मैंने ऐसे बहुत से लोग देखे हैं, जो पूरी तरह से शाकाहारी खाना खाते हुए भी मुंहासों के शिकार हो जाते हैं।
मुंहासों का जेनेटिक्स से भी है संबंध
बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जो खान-पान में तमाम तरह के परहेज़ के बावजूद मुंहासों से परेशान रहते हैं। किसी बीमारी के लिए ख़ास चीज़ों को दोष देना ठीक नहीं है। मुंहासों के बारे में तो ये बात और भी जायज़ है। मुंहासों के कई कारण होते हैं। कोई एक चीज़ खाने से ये परेशानी नहीं होती। इनमें हारमोन से लेकर पारिवारिक जेनेटिक्स तक ज़िम्मेदार हैं।
खानों से परहेज़ के अलावा आज कल एक और चलन है, जो परेशान करने वाला है। किसी को टिक्की चाट या आइसक्रीम खाते हुए देख कर टोकने का चलन बढ़ा है। लोग बिन मांगे मशविरे देते हैं कि ये चीज़ें न खाया करें। सोशल मीडिया पर पिज़्ज़ा के साथ आपकी तस्वीर देखकर लोग टोकते हैं कि पिज़्ज़ा खाओगे तो मुंहासे होंगे ही। या फिर चॉकलेट उठाने पर टोक दिया जाए, तो ये चलन ठीक नहीं।
असल में आज हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां जानकारियों की भरमार है। सोशल मीडिया से लेकर अख़बारों तक सलाह-मशविरों की बाढ़ आई हुई है। आज से बीस साल पहले ऐसे हालात नहीं थे। मगर, ये सलाह दे कौन रहा है, ये भी देखना होगा। क्या हर शख़्स वैद्य-हकीम है? स्किन स्पेशलिस्ट है, जो ऐसे मशविरे बांट रहा है?
अगर आप चेहरों पर दाग़-धब्बों से परेशान हैं। आप को मुंह छुपाना पड़ रहा है, तो बेहतर होगा किसी स्किन स्पेशलिस्ट या अपने डॉक्टर से मिलें। ऐसे सुनी-सुनाई बातों पर यक़ीन न करें, जो आप को सुनने को मिल जाती हैं। एक नुस्खा किसी के लिए कारगर रहा, तो इसका ये मतलब नहीं कि वो दूसरे के लिए भी मुफ़ीद होगा। हम सब अलग-अलग डीएनए, माहौल और विरासत वाले लोग हैं। इसलिए हमारे शरीर की संरचना भी अलग-अलग है।
मुंहासों की वजह से लोगों की दिमाग़ी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। लोग फ़िक्र, डिप्रेशन और सामाजिक अलगाव के शिकार हो जाते हैं। ऐसे लोगों को खान-पान में कटौती की सलाह देना उनकी मुसीबत को और बढ़ाने जैसा है। लेकिन, सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक में यही हो रहा है। लोग मुफ़्त की सलाह बांट रहे हैं। समस्या को जड़ से मिटाने की बात कर रहे हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अच्छी त्वचा का ताल्लुक़ अच्छे और सेहतमंद खान-पान से है। लेकिन, कभी-कभार आइसक्रीम, चॉकलेट या तला-भुना खाना इतना बुरा भी नहीं है। लोगों को इसके लिए शर्मिंदा करना ठीक नहीं है। इससे उनकी दिमाग़ी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। लोग सार्वजनिक रूप से मीठा खाने से परहेज़ करने लगते हैं। खान-पान को लेकर ज़्यादा फ़िक्रमंद हो जाते हैं।
समस्या का समाधान क्या है?
अगर आप मुंहासों से परेशान हैं, तो आप डॉक्टर की मदद लें। अगर आपके प्रियजन कुछ चीज़ों को खाने से कतरा रहे हैं, तो उनसे बात करें। उन्हें स्पेशलिस्ट के पास जाने की सलाह दें। अपने डॉक्टर को खान-पान से जुड़ी बातें भी बताएं। ज़रूरत हो तो डाइटिशियन और मनोवैज्ञानिकों से भी मिलें।
खाना अच्छा या बुरा नहीं होता। अच्छा खाना आपकी अच्छी त्वचा के लिए ज़रूरी है। ये खान-पान लंबे वक़्त तक चलना चाहिए, तभी असर दिखाता है। कभी-कभार चॉकलेट खा लेने से बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ता।