इन 46 बेटियों का जीवन इस बालिका गृह में आने से पहले भी ठीक नहीं था। बालिका गृह में आने के बाद ये हुआ कि इनके नाम पर सरकार हर साल 40 लाख रुपए देने लगी। 40 लाख के बूते ब्रजेश ठाकुर के घर में इन बेटियों को रखा गया। क्या इन लाखों रुपए से उनके जीवन की रोशनी पक्की हुई? यह रिपोर्ट इन बेटियों के ठाकुर के घर में कटे दिन और रातों की कहानी बयां करती है।
ब्रजेश ठाकुर को सरकार से हर साल एक करोड़ रुपए की रकम मिलती थी। केवल बालिका गृह के लिए ठाकुर को हर साल 40 लाख रुपए मिलते थे, लेकिन इसी बालिका गृह की 34 लड़कियों ने अपनी यातना की जो आपबीती बताई है उसे सुन ऐसा लगता है मानो ये 40 लाख रुपए उनके यौन शोषण को सुनिश्चित करने के लिए दिए जा रहे थे।
ठाकुर पर मेहरबान सरकारी महकमा : मुज़फ़्फरपुर में ठाकुर को वृद्धाश्रम, अल्पावास, खुला आश्रय और स्वाधार गृह के लिए भी टेंडर मिले हुए थे। खुला आश्रय के लिए हर साल 16 लाख, वृद्धाश्रम के लिए 15 लाख और अल्पावास के लिए 19 लाख रुपए मिलते थे।
ठाकुर पर सरकारी महकमा इस कदर मेहरबान रहा है कि अब उसके पास किसी सवाल का जवाब नहीं है। किसी एक एनजीओ को एक साथ इतने टेंडर कैसे मिले? इस सवाल का जवाब न बिहार का समाज कल्याण विभाग दे रहा है और न बाल संरक्षण विभाग।
यही सवाल मुजफ्फरपुर की एसएसपी हरप्रीत कौर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ब्रजेश ठाकुर को टेंडर देने में कई नियमों का उल्लंघन किया गया है।
हरप्रीत कौर ने कहा, 'एक-एक कर ऐसी चीजें सामने आ रही हैं जिनसे शक का दायरा और बढ़ता जा रहा है. जिस घर का चुनाव बालिका गृह के लिए किया गया था वो नियमों पर खरा नहीं उतरता है। जहां बालिका गृह था उसी कैंपस में ब्रजेश ठाकुर का घर है। उसी कैंपस से उनका अखबार निकलता है। घर की स्थिति ठीक नहीं है। सीसीटीवी कैमरे का होना अनिवार्य है, लेकिन एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं था। हमने इन सब पर रिपोर्ट मंगवाई हैं और ये सभी बातें जांच के दायरे में हैं।'
एफआईआर के ही दिन मिला एक और टेंडर : ब्रजेश ठाकुर के रुतबे के सामने सारे नियम बौने थे। अपने बालिका गृह में बच्चियों के यौन शोषण के मामले में 31 मई को ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और उसी दिन बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग ने उन्हें पटना में मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना के तहत एक और अल्पावास का टेंडर दे दिया।
समाज कल्याण विभाग के पास टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की रिपोर्ट महीनों से मौजूद थी और उसे पता था कि ब्रजेश ठाकुर का एनजीओ सेवा संकल्प कई मामलों में संदिग्ध है। फिर भी यह टेंडर क्यों दिया गया?
समाज कल्याण विभाग के निदेशक राजकुमार का कहना है कि उन्हें पता चला तो उन्होंने 7 जून को इस टेंडर को रद्द कर दिया। लेकिन राजकुमार की यह बात अपने आप में झूठ है. जब टिस की रिपोर्ट मार्च में आ गई थी तो मई में फिर से नया टेंडर क्यों दिया गया? इस टेंडर लेटर पर राजकुमार का ही हस्ताक्षर है।
इस सवाल का जवाब मिलना भी अभी बाकी है कि ब्रजेश ठाकुर के ख़िलाफ़ इतनी चीजें आने के बावजूद उन्हें टेंडर किसने दिलवाया?
जिस दिन बृजेश ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई उसी दिन उन्हें पटना में मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना के तहत एक और अल्पावास का टेंडर दे दिया गया।
हर नियम बौने साबित हुए : मुजफ्फरपुर के सिटी डीएसपी मुकुल कुमार रंजन का कहना है कि ब्रजेश ठाकुर को कई नियमों की अवहेलना कर टेंडर दिए गए हैं। मुकुल रंजन ने कहा कि हर महीने ठाकुर के बालिका गृह में निगरानी टीम जाती थी, लेकिन कभी किसी ने नहीं कहा कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है।
मुकुल कहते हैं कि यह अपने आप में हैरान करता है। ब्रजेश ठाकुर के अखबार प्रातः कमल ने चार जून को लिखा है कि हर महीने दर्जनों जज बालिका गृह का औचक निरीक्षण करने आते थे और सबने कहा कि कुछ भी गड़बड़ नहीं है, तो अचानक कैसे सब गड़बड़ हो गया?
हर महीने बाल संरक्षण इकाई के अधिकारी और शहर के सरकारी अस्पताल की दो महिला डॉक्टर भी निगरानी में जाती थीं, लेकिन सबने अच्छी रिपोर्ट दी और कोई शिकायत नहीं की।
किसी ने नहीं कहा कि बालिका गृह के लिए इमारत का चुनाव गलत है। किसी ने सीसीटीवी कैमरे नहीं होने का मुद्दा नहीं बनाया और न ही किसी ने ये कहा कि बच्चियों का वहां यौन शोषण हो रहा है। ब्रजेश ठाकुर की बेटी निकिता आनंद का कहना है कि टिस (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस) के बच्चे आए थे और उनकी रिपोर्ट को सच नहीं माना जा सकता है।
यातना का अंतहीन सिलसिला: सिटी एसएसपी मुकुल कुमार रंजन कहते हैं कि टिस की रिपोर्ट एकमात्र आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि टिस की रिपोर्ट के बाद बच्चियों ने जज के सामने जो बयान दिया है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
मुकुल रंजन के मुताबिक बच्चियों ने जज के सामने कहा है कि उनके प्राइवेट पार्ट पर चोट की जाती थी और सुबह उठती थीं तो उनकी पैंट बदन से अलग होती थी। बाल संरक्षण यूनिट के सहायक निदेशक देवेश कुमार शर्मा भी बालिका गृह में निगरानी के लिए जाया करते थे। आखिर शर्मा को कोई भनक तक भी क्यों नहीं लगी कि वहां इतना कुछ चल रहा था?
देवेश शर्मा का कहना है कि हो सकता है कि उनका पुरुष होना इस मामले में समस्या बनी हो। क्या यहां मसला पुरुष और महिला का है? डॉक्टर लक्ष्मी और डॉक्टर मीनाक्षी भी महिला डॉक्टर के तौर पर वहां जाती थीं, लेकिन उन्होंने भी कभी आपत्ति नहीं जताई।
मुकुल रंजन का कहना है कि ब्रजेश ठाकुर ने एनजीओ को चलाने में बहुत चालाकी की है। उन्होंने कहा कि किसी रमेश ठाकुर के नाम से उनका एनजीओ सेवा संकल्प चलता है। जांच में अब तक रमेश ठाकुर नाम का कोई व्यक्ति सामने नहीं आया है। मुकुल रंजन को लगता है कि ब्रजेश ठाकुर ने ही अपना नाम यहां रमेश ठाकुर कर लिया है।
डर के साये में अधिकारी : मुजफ्फरपुर कलेक्टेरियट में इसी रिपोर्ट के तथ्यों को जुटाने के क्रम में एक अधिकारी बातचीत के दौरान भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि वो बुरी तरह से डरे हुए हैं कि कहीं उन्हें कोई मार न दे। उन्हें लोग कहते हैं कि गलत आदमी से पंगा ले लिया है।
उन्हें ऐसा लगता है कि जल्द ही वो भी सलाखों के पीछे होंगे या मार दिए जाएंगे। उस अधिकारी ने 27.12.2017 का एक पत्र भी दिखाया जिसमें ब्रजेश ठाकुर के घर से बालिका गृह को कहीं और शिफ्ट करने की बात कही गई है।
इसे लेकर सीटी एसएसपी हरप्रीत कौर से बात की तो उन्होंने कहा कि वो इस बात को लेकर सजग हैं।
अरबपति ठाकुर : मुजफ्फरपुर पुलिस ने अपनी सुपरविज़न रिपोर्ट में ब्रजेश ठाकुर की करोड़ों की अवैध संपत्ति होने की बात कही है।
सुपरविजन रिपोर्ट में कहा गया है, 'ठाकुर के फर्जी एनजीओ में पदधारक उनके सगे संबंधी, पेड स्टाफ या डमी नाम होते हैं। ऐसे गलत कारनामों से ठाकुर ने करोड़ो रुपए कमाए हैं और इस कमाई में विभाग के आला अधिकारी, कर्मचारी और बैंकर्स शामिल हैं। ठाकुर की पकड़ इतनी मजबूत है कि विज्ञापन की शर्तों को पूरा नहीं करने पर भी कई टेंडर दिए गए और ऐसा अब भी जारी है। बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति ने बिना विज्ञापन प्रकाशित किए सेवा संकल्प को समस्तीपुर में लिंक वर्कर स्कीम उपहार के तौर पर दे दी।'
इस रिपोर्ट में ठाकुर के पास पटना, दिल्ली, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और बेतिया में करोड़ों की संपत्ति होने का जिक्र किया गया है।
सिटी डीएसपी मुकुल रंजन का कहना है कि ब्रजेश ठाकुर ने पूछताछ के दौरान कहा है कि बालिका गृह में आने से पहले ही लड़कियां यौन प्रताड़ना की शिकार बन चुकी थीं। इस पर मुकुल रंजन का कहना है कि 'अगर ऐसा था तो ठाकुर ने बालिका गृह में इन लड़कियों के रखने से पहले मेडिकल रिपोर्ट की मांग क्यों नहीं की?'
जिदगी या यौन शोषण का टेंडर? : ब्रजेश ठाकुर के बालिका गृह में 2015 से 2017 के बीच तीन बच्चियों की मौत हो चुकी है. टिस की रिपोर्ट के बाद जांच शुरू हुई तो इन मौतों को लेकर भी चर्चा शुरू हुई।
सिटी एसएसपी हरप्रीत कौर का कहना है कि शहर के सरकारी अस्पताल से इन मौतों की बिसरा रिपोर्ट मंगवाई गई तो मौत की वजह बीमारी बताई गई है। इन मौतों के बाद भी ब्रजेश ठाकुर को बालिका गृह का टेंडर मिलता गया। यह टेंडर इन बेटियों की ज़िंदगी में उम्मीद भरने के लिए था पर इन बच्चियों ने जो आपबीती बताई है उसे सुन ऐसा लगता है कि यह टेंडर रेप और यौन प्रताड़ना का था।