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मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की आठ लड़कियां जाएंगी घर, बाक़ियों का क्या?

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, शुक्रवार, 13 सितम्बर 2019 (19:57 IST)
-नीरज प्रियदर्शी, पटना से
मुज़फ़्फ़पुर बालिकागृह की आठ लड़कियां अब अपने घर जाएंगी। क्योंकि TISS (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़) ने लड़कियों के पुनर्वास के लिए किए गए अध्ययन के बाद सुप्रीम कोर्ट में जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें कहा है कि इन लड़कियों के माता-पिता और घर-परिवार के बारे में पता है, ये लड़कियां फिट हैं, इसलिए इन्हें घर भेजा जाना चाहिए।
 
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति एमएम शांतानागौडार और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने पुनर्वास रिपोर्ट पर सुनवाई करते हुए न सिर्फ़ आठ लड़कियों को उनके घर भेजने के लिए कहा, साथ ही यह भी निर्देश दिया कि सभी लड़कियों को आवश्यक वित्तीय और मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई जाए।
 
बेंच ने राज्य सरकार को इस तरह की पीड़िताओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं के तहत दिए जाने वाले मुआवज़ा का आकलन करने और उसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को भी कहा है।
 
TISS ने अभी 28 लड़कियों की स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में पेश की है। बाक़ी लड़कियों की स्थिति रिपोर्ट आठ हफ्ते के अंदर पेश करने को कहा गया है। रिपोर्ट में जिन 28 लड़कियों के बारे में कोर्ट को बताया गया है, उनमें 20 लड़कियों की हालत अभी भी ख़राब है। रिपोर्ट के अनुसार उनमें से कुछ लड़कियां अभी भी सदमे से गुज़र रही हैं और उनके घरवाले उन्हें अपनाने में असमर्थ या उदासीन हैं।
 
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड को उजागर हुए एक साल से भी अधिक समय बीत चुका है। मामले की जांच सीबीआई कर रही है और सुनवाई दिल्ली के साकेत कोर्ट में चल रही है।
 
पिछले साल 29 मई को बालिकागृह में रह रहीं 44 बच्चियों के साथ दुष्कर्म और प्रताड़ना की ख़बर सामने आने के बाद पिछले साल उन्हें पटना, मधुबनी, मोकामा के बालिकागृहों में शिफ्ट कराया गया था। बाद में मधुबनी बालिकागृह से लड़कियों के रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता होने और गृह के कुप्रबंधन के कारण उसे बंद कर दिया गया और वहां की लड़कियों को दूसरे बालिकागृहों में शिफ्ट कराया गया।
 
मोकामा के बालिकागृह से भी मुज़फ़्फ़रपुर की लड़कियां ग़ायब हो चुकी हैं। मगर उस गृह को अभी भी चलाया जा रहा है। पुलिस ने 48 घंटे के अंदर लड़कियों को दरभंगा के पास से बरामद कर लिया था।
 
जब भी बालिकागृहों से लड़कियों के लापता अथवा ग़ायब होने की ख़बरें आईं, पुलिस और प्रशासन ने यही कहा कि लड़कियां साज़िश रचकर भाग गईं। पिछली बार जब मोकामा से पांच लड़कियां लापता हुई थीं तब भी पुलिस ने यही कहा था। बाद में ये भी बताया गया कि लड़कियां भागकर अपने घर जा रही थीं। लड़कियों की बरामदगी उन्हीं में से एक लड़की के घर दरभंगा के गंगौली थाने से हुई थी।
 
कांड उजागर होने के क़रीब 16 महीने बाद मुज़फ़्फ़रपुर की 44 में से आठ लड़कियां अब अपने घर जाएंगी। ख़ास बात यह है कि इस बार उन्हें भागना नहीं पड़ेगा। बल्कि इन्हें इनके घर भेजने की अनुमति पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन ख़ुद बिहार सरकार की तरफ़ से दिया गया था।
 
लेकिन सवाल ये है कि क्या केवल आठ लड़कियों के ही माता-पिता और घर-परिवार के बारे में पता चला है? क्या ये वही लड़कियां हैं जो इसके पहले कथित रूप से बालिकागृह से भागने की साज़िश रच चुकी हैं? यदि इनके घर-परिवार के बारे में पता था तो पहले क्यों नहीं भेजा गया? 
 
हमने सबसे पहले यह सवाल TISS की "कोशिश" टीम के मुखिया मोहम्मद तारिक़ से पूछा। वे कहते हैं, "हमें केवल बच्चियों के पुनर्वास पर स्टेटस रिपोर्ट तैयार करने को बोला गया था। हमारी पड़ताल में जो भी आया है, हमने वो कोर्ट में जमा कर दिया। अब बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग को एक्शन लेना है। जहां तक बात इसकी है कि कब उनके घर-परिवार का पता चला तो हम तो यही कहेंगे कि जब हमने ढूंढा और जानने की कोशिश की तो पता चल गया। बहुत जल्दी ही हम बाक़ी बच्चियों की स्टेटस रिपोर्ट भी कोर्ट देंगे।"
 
बिहार सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर राज कुमार कहते हैं, "हम उन आठ लड़कियों के बारे में तो नहीं बता सकते। लेकिन जहां तक बात भागने वाली लड़कियों की है तो वहां रह रही हर एक लड़की की यही टेंडेंसी है। सभी वहां से भागना ही चाहती हैं।"
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राज कुमार आगे कहते हैं, "लेकिन ये कहना ग़लत है कि जो वहां से भागती हैं उन सबको उनके घर-परिवार का पता ही रहता है। किसी एक के उकसावे और बहकावे में आकर दूसरी लड़कियां ऐसा करती हैं। हम लोगों का यही तो काम है कि उनके घरवालों को ढूंढा जाए और उन्हें उनके घर तक पहुंचाया जाए। जब किसी के घर का पता नहीं चल पाता है तो ऐसी हालत में हमें उन्हें रखना पड़ता है। बाक़ी की लड़कियों के घर-परिवार के बारे में भी पता लगाया जा रहा है। जैसे ही पता चलेगा, उन्हें भी भेज दिया जाएगा। लेकिन चुंकि ये लड़कियां मुज़फ़्फ़रपुर शेल्टर होम की हैं, इसलिए इन्हें इनके घर भेजने से पहले हमें अदालत से अनुमति चाहिए थी।"
 
लेकिन मुजफ़्फ़रपुर बालिकागृह मामले में सबसे पहले हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले संतोष कुमार कहते हैं, "सवाल तो यही है ना कि लड़कियां भाग कैसे जाती हैं और क्यों भाग जाती हैं? जवाब सीधा है कि उन्हें ठीक से नहीं रखा जाता है। बालिका गृह से मतलब बालिकाओं के लिए घर से है, लेकिन हमारे यहां के बालिकागृह जेल जैसे बन गए हैं।"
 
संतोष कुमार मुजफ़्फ़रपुर के सिकंदरपुर में चल रहे एक बालगृह की ख़बर साझा करते हुए कहते हैं, "वहां के 26 बच्चे अपने घर का पता बता रहे थे। अपने घर जाना चाहते थे। लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया जा रहा था। ये बात डीएम की जांच में निकलकर आई थी। इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि जिन बच्चे-बच्चियों को उनके घर का पता-ठिकाना मालूम रहता है और वे अपने घर जाना चाहते हैं, कई बार उन्हें नहीं भेजा जाता है। क्योंकि उन्हीं के नाम पर तो फंड मिलता है। अगर वहां बच्चे नहीं रहेंगे तो उनके नाम पर फंड उठाएगा कौन।"
 
क्या जानबूझकर बच्चों/बच्चियों को शेल्टर होम में रखा जाता है ताकि उनके नाम पर पैसा उठाया जा सके? इस सवाल का जवाब देते हुए सोशल वेलफेयर के डायरेक्टर राज कुमार कहते हैं, "ये ग़लत आरोप है। जो ऐसा कह रहे हैं उन्हें नहीं मालूम कि बीते एक साल के दौरान हमनें तीन हज़ार बच्चे/बच्चियों को उनके घर भेजा है।"
 
बहरहाल, मुजफ़्फ़रपुर की बाक़ी लड़कियों को पटना, मोकामा, मखदूमपुर में चार अलग-अलग बालिकागृहों में रखा गया है। राजकुमार कहते हैं कि वहां जाने की इजाजत किसी को नहीं है। सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। सुरक्षा गार्ड्स हैं। अलग-अलग संस्थाओं को उनके देखभाल की ज़िम्मेदारी दी गई है। चूंकि ये विशेष लड़कियां हैं, इसलिए इनके लिए व्यवस्था भी विशेष प्रकार की गई है।
 
मुजफ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले की सुनवाई दिल्ली के साकेत कोर्ट में चल रही है। सीबीआई ने केस की जो चार्जशीट अदालत में सौंपी थी उस पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता झा और अन्य की तरफ़ से याचिका दायर की गई थी। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को फटकार लगाई थी और गड़बड़ियों को सुधारकर तीन महीने के अंदर जांच पूरी करने का आदेश दिया था।
 
तीन महीने का समय हो चुका है। अब देखना है सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई कब होती है। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर समेत 21 लोगों को अभियुक्त बनाया है। साकेत के विशेष पॉक्सो कोर्ट में बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान पीड़ित बच्चियों ने अभियुक्तों की पहचान भी कर ली है।
 
हालांकि, सीबीआई अभी तक बच्चियों की हत्या की गुत्थी को सुलझा नहीं सकी है। सुप्रीम कोर्ट में इसी पर सवाल भी उठे थे। सीबीआई ने अपने हलफ़नामे में कहा था कि जांच के दौरान दर्ज पीड़ितों के बयानों के अनुसार 11 लड़कियों के नाम सामने आए हैं, जिनकी ब्रजेश ठाकुर और उनके सहयोगियों ने कथित रूप से हत्या कर दी थी। जांच के दौरान श्मशान से हड्डियों की पोटली भी बरामद की गई थी। लेकिन सीबीआई ने तबतक हत्या का मुक़दमा दर्ज नहीं किया था।
 
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को अपनी जांच का दायरा बढ़ाने और कांड में "बाहरी लोगों" के शामिल होने की जांच का पता लगाने का कहा था। साथ ही इस मामले में अप्राकृतिक यौनाचार के आरोपों की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत जांच करने के निर्देश दिए थे।
 

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