पिछले सप्ताह आए दो महिलाओं के वायरल वीडियो ने पूरी दुनिया को बता दिया कि मणिपुर में मैतेई और कुकी लोगों के बीच का हिंसक संघर्ष किस भयावह दौर में जा पहुंचा है।
राज्य में जारी हिंसा को लेकर अब एक के बाद एक चौंकाने वाली ख़बरें सामने आ रही हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन हिंसा की ख़बरों ने लोगों को झकझोर दिया है।
लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता उन ख़बरों पर जताई जा रही हैं, जिनमें कहा गया है कि ऐसे हमलों में महिलाएं भी हमलावरों का साथ दे रही हैं।
द हिंदू की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इम्फाल ईस्ट में कुकी समुदाय की 18 वर्षीय युवती ने अपनी एफआईआर में कहा है कि उन्हें मीरा पैबी से जुड़ी महिलाओं ने पकड़ कर हमलावरों के हवाले कर दिया था।
लेकिन इंफ़ाल की एक कॉलेज में पढ़ाने वाली निगोम्बाम श्रीमा कहती हैं कि घटनाओं के लिए मीरा पैबी को ज़िम्मेदार ठहराना ठीक नहीं।
उन्होंने बीबीसी को बताया, ''मीरा पैबी ऐसा काम नहीं कर सकतीं। मीरा पैबी महिलाओं ने तो इस मामले में पकड़े गए दो लोगों के घर जला दिए हैं।
मीरा पैबी (मशालधारी महिला) मणिपुर की महिलाओं का संगठन है, जिसे मदर्स ऑफ मणिपुर भी कहा जाता है। मणिपुर में इस संघर्ष के दौरान इन महिलाओं ने अपने समुदाय की ओर से मोर्चा संभाल रखा है।
मौजूदा संकट में 'मीरा पैबी' की भूमिका
पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह अपना इस्तीफा देने राज्यपाल अनुसुइया उइके के पास पहुंचे थे तो मीरा पैबी से जुड़ी एक बुजुर्ग महिला ने इसे फाड़ दिया था।
राज्य में पिछले ढाई महीने से भी अधिक वक़्त से चल रहे हिंसक संघर्ष के दौरान ये महिलाएं जगह-जगह सेना का रास्ता रोकती दिखीं। कई जगह उन्होंने दंगाइयों को सुरक्षा बलों के हाथों से छुड़ा लिया।
भारतीय सेना के स्पीयर कोर ने खुद ऐसे वीडियो जारी किए थे, जिनमें इन महिलाओं को हथियार समेत दंगाइयों के साथ चलते हुए दिखाया गया था।
कई जगह ये सेना का रास्ता रोकते और दंगाइयों को सुरक्षा बलों से छुड़ाती दिख रही थीं। इस वीडियो में कहा गया था कि ये महिलाएं दंगाइयों को भागने में मदद कर रही हैं। लिहाजा मणिपुर और इसके बाहर लोग मीरा पैबी की गतिविधियों पर सवाल उठा रहे हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब मणिपुर गए थे तो उन्होंने मीरा पैबी महिलाओं से मुलाकात की थी। उन्होंने मणिपुरी समाज में इन महिलाओं के योगदान की तारीफ की थी और कहा था कि सरकार और ये महिलाएं मिलकर यहां शांति और सुरक्षा बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
मीरा पैबी कौन हैं?
मीरा पैबी यानी मशाल लेकर चलने वाली महिलाओं को इमास या 'मदर्स ऑफ मणिपुर भी कहा जाता है। ये घाटी में रहने वाली मणिपुरी महिलाएं हैं।
मणिपुरी में इन महिलाओं को नैतिकता का संरक्षक माना जाता है। मीरा पैबी महिलाओं का कोई बंधा-बंधाया संगठन नहीं होता है। लेकिन इनका नेतृत्व उम्र में बड़ी महिलाओं का समूह करता है। अमूमन इनका राजनीतिक झुकाव भी नहीं होता।
1977 में मीरा पैबी एक अनौपचारिक संगठन के तौर पर उभरा। शुरू में ये महिलाएं शराबबंदी के समर्थन में सड़कों पर उतरी थीं। फिर बाद में ये मानवाधिकार उल्लंघन के ख़िलाफ़ और सामाजिक विकास के लिए आंदोलन करने लगीं।
आजादी से पहले यहां 1904 और 1934 में 50 से 70 साल की महिलाओं ने मीरा पैबी संगठन बनाए थे। उस समय उन्हें इमास यानी मां कहा गया। उसी समय से उन्हें 'मदर्स ऑफ मणिपुर' कहा जाने लगा था।
अफस्फा के ख़िलाफ़ आंदोलन
इन महिलाओं ने मणिपुर में लगे अफस्पा कानून के ख़िलाफ़ काफी संघर्ष किया। सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA) एक संसदीय अधिनियम है। इसके तहत भारतीय सशस्त्र बलों और अर्धसैनिक बलों को अशांत क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत क्षेत्रों में विशेष शक्तियां दी गई हैं।
मणिपुर की मशहूर एक्टिविस्ट इरोम शर्मिला जब अफस्पा के ख़िलाफ़ 2000 से 2016 के बीच भूख हड़ताल कर रही थीं तो इन महिलाओं ने उनका भरपूर समर्थन किया।
मीरा पैबी का इतिहास गौरवशाली रहा है। 1970 से महिलाओं के लिए ये काम कर रहा है। 1974 में रोज निगशेन नाम की महिला का बीएसएफ के तीन जवानों ने रेप किया था। उस समय मीरा पैबी ने उस घटना के ख़िलाफ़ जबरदस्त आंदोलन किया और उस रोज चनू कहा। चनू का मतलब होता है बेटी। कुछ दिनों के बाद उसने आत्महत्या कर ली थी।
जब 2004 असम राइफल्स के जवानों ने थांगजाम मनोरमा का कथित तौर पर रेप किया था तब भी मीरा पैबिस की महिलाओं ने अफस्पा के ख़िलाफ़ विरोध किया था।
उस समय ऐसी 30 महिलाओं ने इम्फाल में नग्न प्रदर्शन किया था। उनके हाथ में बैनर थे- जिसमें लिखा था कि भारतीय सेना हमारा रेप करती है।
मीरा पैबी पर आरोप
मीरा पैबी पर उठ रहे सवालों के जवाब जानने कि लिए हमने मणिपुर यूनिवर्सिटी के नामबोल एल सनोई कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर निगोम्बाम श्रीमा से बात की।
उन्होंने कहा, "मणिपुर और इसके बाहर ये समझा जा रहा है कि मीरा पैबी हिंसा का समर्थन कर रही हैं। उसे उकसा रही हैं या सेना के काम में दखल दे रही हैं। आजकल ऐसी ख़बरें आ रही हैं। लेकिन आपको देखना होगा कि आखिर ऐसी ख़बरों क्यों आ रही हैं।
उन्होंने कहा "दरअसल चार मई को इंटरनेट बैन होने से पहले ये अफवाह बहुत तेजी से फैली कि चुराचांदपुर में कुकी चरमपंथियों ने बड़ी तादाद में मैतेई महिलाओं के साथ रेप किया।"
व्हॉट्सऐप, इंटरनेट, सोशल मीडिया के जरिये ये अफवाह बड़ी तेजी से फैली। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है और घाटी में कुकी लोगों पर हमले होने लगे।
कुकी महिलाओं पर हमलों की खबर पर वो कहती हैं "ऐसे हमले हुए हैं। कुछ जगहों पर यौन हमले हुए होंगे। लेकिन इसके लिए मीरा पैबी पर इलजाम लगाना ठीक नहीं है। दो-चार लोगों की इस तरह की करतूतों के लिए पूरे मीरा पैबी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
निगोम्बाम श्रीमा कहती हैं। ''मीरा पैबी ऐसा काम नहीं कर सकतीं। मीरा पैबी महिलाओं ने तो इस मामले में पकड़े गए दो लोगों के घर जला दिए हैं। इससे पता चलता है मैतेई समुदाय की महिलाएं इसे लेकर कितनी संवेदनशील हैं। वो ऐसा कदम नहीं उठा सकतीं।
सेना की शिकायत
बहरहाल, मणिपुर में तैनात सुरक्षा बलों के शीर्ष अधिकारियों ने मीरा पैबी के तेवरों को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा महिला अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग की है।
इन अधिकारियों का कहना है कि मीरा पैबी केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों के मूवमेंट को रोक रही हैं। कई जगह वो हिंसा फैलाने वालों को गिरफ़्तारी से बचाने के लिए अर्द्धसैनिक बलों के जवानों से भिड़ जा रही हैं।
अधिकारियों का कहना है कि असम राइफल्स और सेना के जवान जब हिंसा रोकने के लिए किसी इलाके में पहुंचते हैं तो ये महिलाएं अफसरों या जवानों से उनके आइडेंटिटी कार्ड मांगती हैं।
ख़बरों के अनुसार आपको 20 या इससे ज्यादा महिलाओं का समूह इम्फाल के चौराहों पर चौकसी करता दिख जाएगा। ये महिलाएं हर किसी की चेकिंग करती हैं ताकि पहाड़ी इलाकों में फंसे कुकी समुदाय के लोगों तक जरूरी सामान न पहुंच पाए।
पीटीआई के अनुसार मणिपुर कवर करने पहुंचे पत्रकारों से भी ये महिलाएं पूछताछ करती हैं। एजेंसी के मुताबिक जब ये महिलाएं ड्यूटी पर तैनात जवानों से सवाल-जवाब कर रही होती हैं तो पुलिस कुछ नहीं कर पाती।
पिछले दिनों इम्फाल के बाहरी इलाकों में एक नगा मेरिंग महिला की हत्या के सिलसिले में पांच मीरा पैबी को गिरफ्तार किया गया था।
जून में मीरा पैबी महिलाओं पर प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन केवाईकेएल के 12 कैडरों को छुड़ाने का आरोप लगा था।