बीबीसी मराठी सेवा, नई दिल्ली
महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में अचानक से विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल की भूमिका बेहद अहम हो गई है। दरअसल शिवसेना के बाग़ी गुट के 37 नेताओं ने शुक्रवार को जिरवाल को एक ख़त लिखा है और कहा है कि एकनाथ शिंदे उनके नेता हैं।
इससे दो दिन पहले एकनाथ शिंदे ने 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र जिरवाल को लिखा था जिसमें एकनाथ शिंदे को समूह का नेता और भरत गोगावले को व्हिप जारी करने वाले नेता के तौर पर मान्यता देने की सिफारिश की गई थी।
लेकिन जिरवाल ने कहा है कि 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र अभी उनकी नज़रों में नहीं आया है। जिरवाल ने गुरुवार सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कई मुद्दों पर अपनी बात रखी है।
नितिन देशमुख ने किया दावा
वैसे एकनाथ शिंदे के 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाले पत्र के बारे में बालापुर के विधायक नितिन देशमुख ने दावा किया है कि इस पत्र में उनके हस्ताक्षर फर्जी हैं। उन्होंने कहा कि वे अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते आए हैं, जबकि इस पत्र में उनके हस्ताक्षर मराठी में हैं।
बहरहाल, नरहरि जिरवाल ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह ज़रूर कहा है कि उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का पत्र ज़रूर मिला था जिसके आधार पर उन्होंने अजय चौधरी को विधानसभा में पार्टी का नेता और सुनील प्रभु को पार्टी की ओर से व्हिप जारी करने वाले नेता के तौर पर नियुक्त किया है।
जिरवाल से जब पूछा गया कि अगर उन्हें शिवसेना के दो तिहाई विधायकों का पत्र मिलता है तो क्या वे उन्हें अलग गुट के तौर पर मान्यता देंगे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में वे सोच विचार करके ही फ़ैसला लेंगे।
नरहरि जिरवाल की भूमिका अहम क्यों है?
नरहरि जिरवाल महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष हैं। महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष पद से नाना पटोले ने महाराष्ट्र कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए इस्तीफ़ा दे दिया था, इसके बाद से यह पद खाली पड़ा हुआ है।
इसके चलते विधानसभा की देखरेख की ज़िम्मेदारी उपाध्यक्ष के तौर पर नरहरि जिरवाल ही करते आ रहे हैं, इसलिए मौजूदा समय में वे अचानक से महत्वपूर्ण हो गए हैं।
नरहरि जिरवाल की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इसको जानने के लिए बीबीसी मराठी ने राजनीति और संवैधानिक मामलों के जानकार अशोक चौसालकर से बातचीत की।
उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में जिरवाल की भूमिका बेहद अहम है क्योंकि -
1. अगर एकनाथ शिंदे अपने गुट की अलग मान्यता के लिए आवेदन करते हैं, तो उनका आवेदन नरहरि जिरवाल के पास ही आएगा और वे इस पर फ़ैसला लेंगे।
2. अगर जिरवाल ने अलग गुट को मान्यता दी तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार गिर सकती है।
3. जिरवाल अगर शिंदे गुट को मान्यता नहीं देते हैं तो यह मामला अदालत में जाएगा।
4. अगर उद्धव ठाकरे सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पास होता है तो सदन की कार्यवाही चलाने की ज़िम्मेदारी जिरवाल पर होगी और ऐसे में उनकी भूमिका अहम होगी।
5. अशोक चौसालकर यह भी याद दिलाते हैं कि पाकिस्तान में नेशनल असेंबली ने इमरान ख़ान सरकार के ख़िलाफ़ लाया गए अविश्वास प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था।
वैसे सबसे अहम पहलू यह है कि विधानसभा उपाध्यक्ष बनने से पहले जिरवाल एनसीपी के विधायक थे।
मौजूदा घटनाक्रम पर एनसीपी नेता शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को समर्थन देने की बात की है। उन्होंने कहा है कि अगर बाग़ी नेताओं को उद्धव ठाकरे सरकार से अपना समर्थन वापिस लेना है तो इसके लिए उन्हें महाराष्ट्र आना होगा और इसका फ़ैसला सदन में फ्लोर टेस्ट कराकर किया जाना चाहिए।
नरहरि जिरवाल कौन हैं?
नरहरि जिरवाल नासिक ज़िले के डिंडोरी से एनसीपी विधायक हैं। वे विधानसभा उपाध्यक्ष के पद पर निर्विरोध चुने गए थे।
जिरवाल को समाज के उपेक्षित और वंचित लोगों के लिए काम करने वाले जन प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है। उन्हें जानने वाले लोगों के मुताबिक़ वो बेहद सरल और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं।
बीबीसी मराठी से जुड़े पत्रकार प्रवीण ठाकरे के मुताबिक़ आदिवासी इलाकों में काम करने से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी।
बहरहाल, जिरवाल को शरद पवार का बेहद क़रीबी माना जाता है और वे खुद भी लोगों से संपर्क बनाए रखने में यक़ीन करने वाले नेता है।
प्रवीण ठाकरे के मुताबिक़ जिरवाल की पहचान आदिवासी समुदाय के लिए लगातार काम करने वाले नेता की रही है।