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#UnseenKashmir- चिट्ठी 2: 'क्या सचमुच कश्मीर में सिर्फ़ मुस्लिम रहते हैं?'

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, मंगलवार, 6 जून 2017 (11:30 IST)
क्या आपने कभी सोचा है कि दशकों से तनाव और हिंसा का केंद्र रही कश्मीर घाटी में बड़ी हो रहीं लड़कियों और बाक़ी भारत में रहनेवाली लड़कियों की ज़िंदगी कितनी एक जैसी और कितनी अलग होगी? यही समझने के लिए हमने वादी में रह रही दुआ से दिल्ली में रह रही सौम्या को ख़त लिखने को कहा। सौम्या और दुआ कभी एक दूसरे से नहीं मिले। उन्होंने एक-दूसरे की ज़िंदगी को पिछले डेढ़ महीने में इन ख़तों से ही जाना। आपने श्रीनगर से दुआ का पहला ख़त पढ़ा।
 
प्रिय दुआ
मुझे तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि तुम भी मेरी तरह वन डायरेक्शन को पसंद करती हो! मैं सबसे पहले तुम्हें अपने आप से परिचित करवाती हूं। मेरा नाम सौम्या सागरिका है। मैं 16 साल की हूं और भारत की राजधानी दिल्ली में रहती हूं।
 
मेरा एक छोटा और ख़ूबसूरत परिवार है। मेरे परिवार में केवल तीन लोग हैं, मैं, मेरी मम्मी और मेरे पापा। मेरा कोई भाई-बहन तो नहीं है, पर हां मेरे पड़ोस में एक पांच साल का बच्चा रहता है और उसका नाम है समर्थ। वो मुझे भाई की कमी नहीं महसूस होने देता, बिल्कुल छोटे भाई की तरह मुझे परेशान करता है। वह मेरे मम्मी-पापा के प्यार को दो हिस्सों में बांट लेता है।
 
मैं अपने घर के पास के ही एक स्कूल में पढ़ती हूं। मेरे स्कूल में मेरे बहुत सारे दोस्त हैं जो मेरी ज़िंदगी में बहुत अहमियत रखते हैं। मैं सबको तो नहीं पर हां अपनी सबसे अच्छी और पक्की सहेली के बारे में तुम्हें बताती हूं। उसका नाम है पलक (वो बहुत पतली है इसलिए हम उसे 'पिद्दी' बुलाते हैं)।
जैसा कि तुमने मुझसे मेरे पसंदीदा खेल के बारे में पूछा था, तो मैं तुम्हें बताना चाहती हूं मेरा सबसे पसंदीदा खेल है ताइक्वॉन्डो। मैं स्टेट-लेवल चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल भी जीत चुकी हूं। मैं अब अगर तुम्हें अपने बारे में बताऊं तो सिर्फ़ इतना ही बता सकती हूं कि मैं बाक़ी लड़कियों से थोड़ी अलग हूं (ऐसा मुझे लगता है)।
 
मुझे बाक़ी लड़कियों की तरह सजना-संवरना बिल्कुल पसंद नहीं है। मैं जानती हूं यह थोड़ा अजीब है, पर मैं ऐसी ही हूं। मुझे मेरे ख़ाली वक़्त में किताबें पढ़ना और तुम्हारी तरह गाना सुनना पसंद है। जैसा कि मैंने तुम्हें बताया कि मैं दिल्ली में रहती हूं तो मैं तुम्हें बताना चाहती हूं कि यहां के मौसम का कुछ भरोसा नहीं है, कभी धूप तो कभी तेज़ बारिश। काश! यहां का मौसम भी कश्मीर की तरह हो जाए।
 
मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं, यहां पर लोग जब भी कश्मीर का नाम सुनते हैं तो उनके दिमाग़ में केवल एक शब्द आता है और वो है 'मुस्लिम'। मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या सच में वहां सिर्फ़ मुस्लिम लोग ही रहते हैं?
 
मैं जानती हूं कि तुम्हें लग रहा होगा कि मैं बार-बार अलग-अलग बातें कह रही हूं, पर मैं क्या करूं मुझे तुमसे बहुत सारी बातें कहनी हैं। उम्मीद है तुम्हें मेरा पत्र पसंद आया होगा और तुम जल्द ही इसका जवाब दोगी।
 
सौम्या
(ख़तों की ये विशेष कड़ी इस हफ़्ते जारी रहेगी)
(रिपोर्टर/प्रोड्यूसर - बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य)

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