कश्मीर में पुलिसवालों को क्यों निशाना बना रहे हैं चरमपंथी

Webdunia
मंगलवार, 4 सितम्बर 2018 (11:18 IST)
- समीर यासिर (कश्मीर से)
 
भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथियों ने इस साल 31 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। पुलिसकर्मी यहां विद्रोह के दुष्परिणाम झेल रहे हैं। 22 अगस्त को मोहम्मद अशरफ़ डार की उनके ही घर में हत्या कर दी गई। वह ईद का दिन था। 45 साल के सब इंस्पेक्टर अशरफ़ की पोस्टिंग केंद्रीय कश्मीर में थी।
 
 
लेकिन, वो अपनी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ छुट्टियां बिताने आए हुए थे। उनका परिवार दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा ज़िले में स्थित लार्वे नाम के छोटे से गांव में रहता है जो धान के खेतों और सेब के बागानों से घिरा हुआ है।
 
 
जुलाई 2016 में चरमपंथी बुरहान वानी की मौत के बाद इस इलाके में हिंसा भड़क उठी थी। इसके बाद पुलिसकर्मी, खासकर स्थानीय मुस्लिम, इस हिंसा के सबसे ज्यादा शिकार बने थे।
 
 
हाल के महीनों में, उन्हें अपने घरों से दूर रहने या घर जाने पर बेहद सावधानी बरतने के लिए ​बोला गया है। डार के सहकर्मियों का कहना है कि उन्हें उनके दोस्तों और परिवार ने घर से दूर रहने के लिए कहा था। लेकिन, डार ने कहा था कि उन्हें छुपने की ज़रूरत नहीं है।',
 
 
उन्होंने कहा था, 'क्या मैं कोई चोर हूं? मैंने किसी के साथ गलत नहीं किया है।'' अशरफ़ डार के पिता गुलाम क़ाद्रिम कहते हैं, ''घरेलू स्तर पर बढ़े विद्रोह से लड़ रहे एक स्थानीय पुलिसकर्मी की जिंदगी लैंडमाइन से भरी सड़क पर चलने जैसी है।''
 
 
पुलिसकर्मियों को ख़तरा
मुस्लिम अलगाववादियों ने 1989 से मुस्लिम बहुलवादी कश्मीर में भारतीय शासन के खिलाफ हिंसक अभियान की शुरुआत की थी। यह क्षेत्र भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव का मसला रहा है और भारत ने तीन में से दो युद्ध इसी के लिए लड़े हैं। भारत पाकिस्तान को कश्मीर में अशांति पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराता आया है लेकिन पाकिस्तान इससे इनकार करता रहा है।
 
 
दशकों से भारत सरकार ने पुलिसकर्मियों को उनके ही शहरों या पड़ोस के इलाकों में पोस्टिंग नहीं दी है ताकि उनकी और उनके परिवार की पहचान सुरक्षित रखी जा सके। लेकिन दक्षिण कश्मीर के कई हिस्सों जैसे पुलवामा में स्थानीय युवाओं के विद्रोह से जुड़ने के बाद पुलिसवालों पर हमले के मामले भी बढ़े हैं।
 
 
जिस शख़्स ने डार की हत्या की, वो जानता था कि वो कहां रहते हैं। वह चोरी-छिपे उनके घर में घुस गए, उन्होंने मास्क पहना हुआ था, उनके पास बैग थे और उनके कंधों पर राइफल टंगी हुई थी। जब हमलावर उनके घर में घुसे, तब डार स्थानीय मस्जिद में शाम की नमाज पढ़ रहा था।
 
 
हमलावरों ने डार की पत्नी शैला गनी को बंदूक दिखाते हुए बोला, ''अपना मुंह बंद रखो।'' उन्होंने डार के दोनों बेटों 12 साल के जिबरान अशरफ़ और 7 साल के मोहम्मद क़्वेम को कोने में धकेल दिया। जिबरान ने बताया, ''उन्होंने मेरा हाथ खींचते हुए पूछा कि तुम्हारे पिता कहां हैं।''
 
जब डार घर लौटे तो उनके साथ उनकी एक साल की बेटी इराज थी। लेकिन, वो लोग डार को जबरदस्ती रसोई में ले गए। तब इराज उनकी गोद में ही थी। डार अपनी बेटी का जाने नहीं देना चाहते थे लेकिन हत्यारों ने उन्हें चोट मारी और बेटी छीन ली। डार ने उन लोगों से कहा भी था, ''तुम मेरे भाइयों जैसे हो। मैने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।''
 
 
शैला गनी ने बताया कि उस वक्त वह साथ वाले कमरे में थीं और ये सब सुन रही थीं। तभी उन्होंने गोलियां चलने की आवाज़ सुनी और मौके पर ही अशरफ़ डार की मौत हो गई। शैला गनी कहती हैं, ''मेरी बच्ची की मासूम आंखों ने वो भयानक मंजर देखा।''
 
 
बुरहान वानी की मौत के बाद विरोध तेज
दक्षिण कश्मीर के एक गांव मुतलहामा गांव के रहने वाले 68 साल के अब्दुल गनी शाह कहते हैं, ''क्या पुलिसकर्मी कश्मीरी नहीं हैं? उन्हें निशाना बनाकर चरमपंथी अपने मकसद को नुकसान पहुंचा रहे हैं।''
 
 
बुरहान वानी की मौत के बाद से कश्मीर में हिंसा के मामले बढ़ गए हैं। कश्मीरी युवा विरोध के लिए सड़कों पर उतर आए और पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ 'पैलेट गन' का इस्तेमाल किया। इसके बाद, चरमपंथियों के मारे जाने के मामले भी बढ़े हैं। साल 2017 में 76 चरमपंथी मारे गए थे जो पिछले दशकों की सबसे ज्यादा संख्या थी। इस साल सिर्फ दक्षिण कश्मीर में ही 66 चरमपंथी मारे गए हैं।
 
 
इस दौरान, पुलिसकर्मियों पर भी हमले बढ़ने से कश्मीर में 130,000 पुलिसकर्मी भी चिंता में है। जून 2017 में, सादे कपड़ों में मौजूद मोहम्मद अयूब नाम के एक पुलिस अधिकार को श्रीगनर में भीड़ मार दिया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने कुछ युवाओं से झगड़े के बाद भीड़ पर गोलियां चला दी थीं।
 
 
जुलाई 2018 में, कॉन्स्टेबल मोहम्मद सलीम शाह अपने दोस्तों के साथ मछली पकड़ने गए और अचानक ही गायब हो गए। अगले दिन सेब के बागानों में बाइक से कुचला गया उनका शव मिला था। अधिकारियों के मुताबिक इस साल पुलिसकर्मियों के परिवार के करीब 12 सदस्यों का अपहरण किया गया है।
 
 
28 अगस्त को संदिग्ध चरमपंथियों ने दक्षिण कश्मीर के एक पुलिसकर्मी के बेटे को उठा लिया था। पुलिस की जांच में इस अपहरण के तार हिजबुल मुजाहिद्दीन के प्रमुख रियाज़ नाइको से जुड़े मिले। नाइको ने कश्मीरी पुलिसकर्मियों को ''उनकी नौकरी छोड़ने या नतीजे भुगतने'' की धमकी दी थी।
 
 
पुलिस में जाना चाहते हैं कश्मीरी युवा
लेकिन, कई कश्मीरी युवा अब भी पुलिस बल में जाना चाहते हैं। इसकी एक वजह हिंसा और कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते नौकरियों की कमी होना भी है। पुलिस की नौकरी के लिए प्रशिक्षण ले रहे फुरकान अहमद कहते हैं, ''मैं पुलिस में जाना चाहता हूं क्योंकि मुझे मेरे माता-पिता का ख्याल रखना है।''
 
 
इस बीच, कश्मीरियों और पुलिस बल के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। जून में सीआरपीएफ जवानों की जीप के नीचे आने से एक प्रदर्शनकारी की मौत के बाद भी हिंसा भड़क उठी थी। सीआरपीएफ का कहना था कि जवान अपना बचाव कर रहे थे लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप था कि उन्होंने जानबूझकर भीड़ में जीप चलाई।
 
डार के पिता क़ाद्रिम कहते हैं, ''मानवता ख़त्म हो चुकी है और कश्मीर में तो ये कब की ख़त्म हो चुकी है।''
 

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