झारखंड: आख़िर क्यों बार-बार हिल जाती है मुख्यमंत्री की कुर्सी

BBC Hindi
रविवार, 4 सितम्बर 2022 (07:49 IST)
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता
बात साल 2005 की है। रात के ढाई बज रहे थे और रांची की सुनसान 'मेन रोड' पर अचानक से हलचल मच गई। कुछ तेज़ रफ़्तार गाड़ियां और उन गाड़ियों का पीछा करती पुलिस की सायरन बजाती वैन। रांची मेन रोड पर जितने भी होटल थे, सभी के एक-एक कमरे की तलाशी ली जा रही थी।
 
ये बात उस दिन की है जिस दिन विधानसभा चुनावों के नतीजे आए थे। सबसे ज़्यादा सीटें लाने वाली भाजपा को बहुमत नहीं मिला था।
 
विपक्ष में कांग्रेस और कुछ छोटे दलों का गठबंधन था, जिसे बीजेपी से कम सीटें मिलीं थीं। सरकार बनाने पर पेंच फंस गया क्योंकि कोई भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी। अब सत्ता की चाभी कुछ छोटे दलों और निर्दलीय जीतकर आए विधायकों के हाथ में थी।
 
छोटे दल या निर्दलीय विधायक अपनी जीत का सर्टिफ़िकेट लेकर जैसे-जैसे रांची पहुंच रहे थे, वैसे-वैसे पुलिस उन्हें होटल ले जा रही थी। रांची के पुलिस अधीक्षक एक विधायक को उनका कॉलर पकड़ कर घसीट रहे थे।
 
लोकतंत्र का ये तमाशा पूरी रात चलता रहा उस समय बीबीसी के संवाददाता रहे श्याम सुन्दर और मैं रातभर इस हलचल को रिकॉर्ड कर रहे थे। इस दौरान एक बार एसपी के साथ हमारी नोंक-झोंक भी हो गई क्योंकि पुलिस अधीक्षक नहीं चाह रहे थे कि ये सबकुछ रिकॉर्ड हो।
 
नए राज्यों का गठन
साल 2000 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी तो तीन नए राज्यों का गठन हुआ था। झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़। बिहार से अलग होने के बाद झारखंड के हिस्से में कुल 81 विधानसभा की सीटें आईं।
 
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके और वर्तमान में बीजेपी के विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी हालांकि अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। दरअसल, उनके गठबंधन में ही शामिल दलों के विधायकों ने बग़ावत कर दी थी और उनकी जगह अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
 
ख़ास बातें
 
साल 2014 में पहली बार ऐसा हुआ कि भारतीय जनता पार्टी के रघुबर दास बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा कर पाए। मगर उन्होंने भी निर्दलीय विधायकों या फिर छोटे दलों से गठबंधन किया था और उन्हें तो पार्टी के अंदर से ही बगावत झेलनी पड़ी थी।
 
झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां दो-दो उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं क्योंकि सत्तारूढ़ दल के पास पूर्ण बहुमत नहीं था। छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर सरकार बनी थी। उस समय कुछ विधायक बंगाल जाने की कोशिश कर रहे थे, जिन्हें पुलिस ने जमशेदपुर के पास पकड़ लिया था।
 
झारखंड में ही एक नया प्रयोग भी देखा गया, जब एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को कांग्रेस ने समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन उनका कार्यकाल भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा।
 
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हरिनारायण सिंह ने बीबीसी से कहा कि झारखंड में विधानसभा की सीटें मात्र 81 हैं इसलिए बहुमत का गुणा-भाग हमेशा बहुत करीबी रहता है। राजनीतिक दलों ने कई बार चुनाव आयोग को प्रतिवेदन दिया कि झारखंड में सीटों का परिसीमन हो और उनकी संख्या बढ़ाई जाए।
 
81 सीटों में बहुमत के लिए 41 का आंकड़ा है जिसे सूबे के उलझे समीकरण के कारण हासिल करना किसी भी दल के लिए कठिन रहता है।
 
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी बीबीसी से कहते हैं, "झारखंड की सीमा चार राज्यों से लगी हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल।"
 
वो कहते हैं, "हर क्षेत्र की भाषा अलग है। कहीं भोजपुरी बोली जाती है, कहीं मुंडारी तो कहीं खोरठा और बंग्ला या उड़िया। इन इलाकों के राजनीतिक मुद्दों पर भी अलग-अलग राजनीतिक दलों का प्रभाव है। मसलन जो इलाके बिहार से लगे हैं वहां राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) का प्रभाव है।"
 
इसके अलावा कई इलाकों में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी, झारखंड पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, भाकपा-माले, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी जैसे दलों का प्रभाव है। इसलिए राष्ट्रीय दलों की सबसे बड़ी दुविधा रहती है अपने बल पर चुनाव जीतना।
 
भ्रष्टाचार के आरोप
झारखंड में कोई सरकार ऐसी नहीं बनी जिसके दामन को साफ़ कहा जा सके। जिस समय मधु कोड़ा मुख्यमंत्री थे, उनके और उनके मंत्रियों के ठिकानों पर आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़े। कोड़ा खुद तो जेल गए ही साथ ही उनके कई मंत्री और नौकरशाहों को भी जेल जाना पड़ा था।
 
विश्लेषक कहते हैं कि जब केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार को सदन में अपना बहुमत सिद्ध करना था उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के तीन सांसदों पर 'समर्थन देने के बदले में पैसे लेने' का आरोप लगा था।
 
इनमें झारखंड मुक्ति मोर्चा से संस्थापक शिबू सोरेन और उन्हीं की पार्टी के ही शैलेन्द्र महतो और सूरज मंडल पर भी आरोप लगा और वो जेल भी गए।
 
सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, इन सांसदों ने 'रिश्वत की रक़म को सीधे बैंक में ही जमा करवा दिया था।'
 
अब हेमंत सोरेन पर आरोप हैं कि ख़ुद मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने खनन का पट्टा अपने नाम से जारी करा लिया। इसीलिए उनकी विधानसभा की सदस्यता भी जा सकती है। चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए राज्यपाल को चिठ्ठी भी लिखी है।
 
क्या हेमंत सोरेन की सरकार गिर जाएगी
इस पर बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि आंकड़ों के हिसाब से झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास 30 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के पास 18। इनके पास पूर्ण-बहुमत है। बीजेपी को इन विधानसभा चुनावों में सबसे कम 18 सीटें मिली हैं जबकि उसके गठबंधन के साथी आजसू पार्टी को 2 सीटें।
 
उनका कहना है, "सब निर्दलीय विधायकों को मिला भी लिया जाए तो बहुमत नहीं आ रहा है। इसलिए हम कुछ नहीं कर रहे हैं। हम इंतज़ार कर रहे हैं कि राज्यपाल क्या कहते हैं। इसके बाद ही बीजेपी की तरफ से हम कोई स्टैंड लेंगे।"
 
झारखंड की राजनीति को क़रीब से देखने वाले गौतम बोस को लगता है कि हेमंत सोरेन के सामने एक ही विकल्प बचा है। वो अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना सकते हैं और अगले ढाई साल का कार्यकाल सरकार पूरा कर लेगी।
 
हरि नारायण सिंह का मानना है कि ये तय दिख रहा है कि हेमंत सोरेन को गद्दी छोड़नी पड़ सकती है और इसी को देखते हुए विधानसभा का विशेष सत्र भी 5 सितम्बर को बुलाया गया है।
 
हरि नारायण सिंह संभावना जताते हैं कि संभव है कि किसी बड़ी घोषणा के साथ हेमंत सोरेन अपना पद त्याग दें और अपनी पत्नी को कुर्सी पर बिठाकर सत्ता चलाएंगे।
 
लेकिन गौतम बोस कहते हैं, "इसी राजनीतिक अस्थिरता के कारण जंगल, नदियों और खनिज सम्पदा से भरपूर ये राज्य कभी तरक्क़ी नहीं कर पाया। जबकि छत्तीसगढ़ भी इसी राज्य के साथ अस्तित्व में आया और उस राज्य में तेज़ी से विकास हुआ। "
 
गौतम बोस कहते हैं, "लेकिन अस्थिरता की भेंट चढ़ा झारखंड कुछ नहीं कर पाया। यहां की सरकारें कुछ नहीं कर पाईं। मुख्यमंत्री जिस घर में रहते हैं उसमे अविभाजित बिहार के दौर में रांची के संभागीय कमिश्नर रहा करते थे। रांची के हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन की ज़मीन और भवनों से सरकार चलती रही। राज्य की राजधानी रांची 'चोक' यानी पूरी तरह से जाम हो चुकी है।"
 
उनके अनुसार, "कई बार हुआ कि नई राजधानी बनाई जाएगी। इलाके का चयन भी हुआ। मगर मामला जस का तस रह गया। झारखंड की नयी विधानसभा बनी तो ज़रूर है, मगर एचईसी की ज़मीन पर ही। अब भी मंत्री और अधिकारियों को रहने के लिए एचईसी के ही बंगले दिए गए हैं।"
 
गौतम बोस कहते हैं कि झारखंड एक 'असफल राज्य' के रूप में ही काम करता रहा है।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

कब-कब हुई भगदड़ की बड़ी घटनाएं, डराने वाले इन आंकड़ों को देखिए

बंगाल की धरती से मोहन भागवत ने बताया RSS का अगला प्लान, हिन्दुओं को लेकर कही बड़ी बात

दिल्ली के CM पर कल खत्म हो सकता है सस्पेंस, शपथ ग्रहण समारोह को लेकर बड़ा अपडेट

अघाड़ी में पड़ी दरार, फडणवीस से मिले उद्धव, शिंदे की शरद पवार ने की तारीफ, महाराष्ट्र में नए सियासी समीकरण

फालतू है कुंभ, लालू यादव ने बताया किसकी गलती से मची नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Samsung का सबसे सस्ता स्मार्टफोन हो गया लॉन्च, पॉवरफुल हैं फीचर्स

Realme 14 Pro : रियलमी का सस्ता Phone, ठंड में बदलेगा कलर, फीचर्स भी हैं धमाकेदार

पोको ने लॉन्च किए 2 सस्ते स्मार्टफोन Poco X7 Pro 5G और Poco X7 5G, जानिए फीचर्स

नए साल पर सस्ता हुआ iphone 16, जानिए कितने घटे दाम

Vivo Y29 5G : सस्ते स्मार्टफोन में महंगे फोन के फीचर्स

अगला लेख
More