दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता
रूस ने पिछले सप्ताह जारी किए अपने विदेश नीति दस्तावेज़ में भारत और चीन को अहम जगह दी है। रूस ने अपनी नई विदेश नीति में ब्रिक्स, एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइज़ेशन), सीएसटीओ (कलेक्टिव सिक्यॉरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन) और आरआईसी (रूस, भारत, चीन) जैसे संगठनों की क्षमता और भूमिका बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया है।
रूस ने कहा है कि वह भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करेगा और ख़ासतौर पर द्विपक्षीय कारोबार बढ़ाने पर ज़ोर देगा। पिछले सप्ताह ही शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन की दिल्ली में हुई बैठक में शामिल होने आए रूस की ताक़तवर सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पात्रुशेव ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी।
इस बैठक में क्या चर्चा हुई इस बारे में तो अधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है लेकिन इससे ये साफ़ है कि भारत और रूस दोनों ही एक-दूसरे को कितना महत्व दे रहे हैं।
यूक्रेन युद्ध के बाद से ही भारत और रूस के पहले से ही अच्छे संबंध और मज़बूत हो रहे हैं। यूक्रेन युद्ध से पहले भारत रूस से अपनी ज़रूरतों का महज़ दो प्रतिशत तेल ख़रीदता था। अब भारत 27 प्रतिशत तेल रूस से ख़रीद रहा है।
भारत को ख़ास दर्जा
यूक्रेन युद्ध और उसके बाद पैदा हुई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में रूस के लिए भारत की अहमियत बढ़ी है। विश्लेषक मानते हैं कि यही वजह है कि रूस भारत के साथ अपने संबंधों को और मज़बूत करने पर ज़ोर दे रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार और रूस से जुड़े मामलों के जानकार विनय शुक्ला कहते हैं, "रूस ने जो नई विदेश नीति का दस्तावेज़ जारी किया है, उसमें कोई नई बात नहीं है। रूस ने जितने भी विदेश नीति दस्तावेज़ जारी किए हैं, उनमें भारत और चीन की जगह रही है। इससे ये स्पष्ट होता है कि रूस आज भी भारत को महत्व देता है। दुनिया में जो नए घटनाक्रम हुए हैं, जो भूराजनैतिक स्थिति बनी हैं, उनके मद्देनज़र भी रूस भारत को महत्व दे रहा है। रूस भारत और चीन के साथ संबंधों को संतुलित करना चाहता है।"
रूस ने अपनी नई विदेश नीति में चीन के साथ संबंधों पर भी ज़ोर दिया है। रूस ने कहा है कि वो चीन के साथ अपने संबंधों को और मज़बूत करना चाहता है।
रूस ने कहा है कि वह यूरेशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों में वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर सुरक्षा, स्थिरता और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए चीन के साथ पारस्परिक सहायता का प्रावधान और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में समन्वय में वृद्धि करेगा।
हालांकि रूस ने भारत के साथ संबंधों को 'विशेष रूप से विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' कहा है।
जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र से जुड़े प्रोफ़ेसर संजय पांडे कहते हैं, "रूस ने अपनी विदेश नीति में भारत को प्राथमिकता दी है। भारत उन चुनिंदा देशों में है, जिन्हें रूस के लगभग हर विदेश नीति दस्तावेज में जगह मिली है। हालांकि इस बार भारत को पहले के मुक़ाबले अधिक महत्व दिया गया है।"
बढ़ रहा है भारत-रूस कारोबार
पिछले कई दशकों से रूस और भारत के बीच सालाना व्यापार दस अरब डॉलर से नीचे ही था लेकिन पिछले वित्तीय वर्ष में भारत और रूस के बीच कारोबार 40 अरब डॉलर के आसपास पहुंच गया है।
विनय शुक्ला कहते हैं, "पिछले कई दशकों से रूस और भारत के बीच व्यापार दस अरब डॉलर या कई बार 9 अरब डॉलर पर अटका हुआ था। भारत और रूस के बीच बेहद मज़बूत सैन्य संबंध होने के बावजूद कारोबारी संबंध मज़बूत नहीं हो पा रहे थे। लकिन पिछले एक साल के दौरान भारत-रूस का कारोबार चार गुणा बढ़ गया है। यानी क़रीब 40 अरब डॉलर पहुंच गया है।
शुक्ला कहते हैं,"दोनों देशों के बीच बढ़ रहा कारोबार भी एक बहुत बड़ा कारण है, जिसकी वजह से भारत रूस के लिए महत्वपूर्ण हो रहा है। भारत भी रूस के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाए रखना चाहता है। इसमें भारत को अपने लिए कई तरह के लाभ दिख रहे हैं। ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, खाद्य तेलों की आपूर्ति, उर्वरक की आपूर्ति, इन सबमें पिछले एक साल में चार से पांच गुणा इज़ाफ़ा हुआ है। इससे स्पष्ट है कि रूस के साथ रिश्ता भारत के लिए फायदेमंद हैं।"
भारत को तरजीह क्यों?
विश्लेषक मानते हैं कि कुछ मामलों में रूस चीन के मुक़ाबले भारत का अधिक सहयोग करता है, जैसे स्पेस टेक्नॉलजी और डिफेंस टेक्नलॉजी के क्षेत्र में।
विनय शुक्ला कहते हैं, "हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस की यात्रा की थी। उसके बाद रूस के स्थानीय अख़बारों में कई लेख प्रकाशित हुए हैं। इनमें सलाह दी गई है कि कई तकनीक ऐसी हैं, जिन्हें चीन के साथ साझा नहीं करना चाहिए। लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं है। रूस भारत के साथ ख़ास रिश्ता रखता है। लेकिन जहां तक चीन का सवाल है, डिफेंस और स्पेस टेक्नॉलजी साझा करने के मामले में रूस संभल कर चलता है। रूस को लगता है कि उसकी कई डिफेंस टेक्नॉलजी ऐसी हैं, जो किसी भी हालत में चीन को नहीं दी जानी चाहिए।"
2014 में क्राइमिया को लेकर हुए संघर्ष के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग कर दिया था। ऐसे में रूस ने भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने पर ध्यान दिया। विश्लेषक मानते हैं कि यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस भारत के साथ संबंधों पर ख़ास ध्यान दे रहा है
संजय पांडे कहते हैं, "2014 में क्राइमिया युद्ध के बाद ही रूस को ये अहसास हो गया था कि उसे अपनी विदेश नीति का केंद्र बदलना पड़ेगा। तब से ही रूस भारत और चीन को अधिक तरजीह दे रहा है। बीते साल जो युद्ध शुरू हुआ, उसके बाद ये रूस की मजबूरी भी हो गई है कि वो भारत को अधिक महत्व दे। इस दौरान रूस के पश्चिमी देशों से संबंध ख़राब हुए हैं और उस पर प्रतिबंध लगे हैं, ऐसे में वो सभी देश जिन्होंने इन प्रतिबंधों का साथ नहीं दिया और अभी भी रूस के साथ खडे़ हैं, रूस उन सभी देशों को तरजीह दे रहा हैं। चीन और भारत बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और इनका वैश्विक महत्व भी अधिक है, इसलिए भी रूस भारत को अधिक महत्व दे रहा है।"
पश्चिमी देशों की आलोचना और दबाव के बाद भी भारत ने रूस के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं। यूक्रेन युद्ध को लेकर भी भारत ने कभी सार्वजनिक रूप से रूस की आलोचना नहीं की है। विश्लेषक मानते हैं कि रूस के साथ संबंध बनाए रखने से भारत के अपने हित भी सुरक्षित होते हैं।
विनय शुक्ला कहते हैं, "किसी भी देश की विदेश नीति में सामरिक या अस्थायी बदलाव आते ही हैं। लेकिन जहां तक भारत की दीर्घकालिक रणनीति का सवाल है, रूस के साथ मज़बूत संबंध रखना उसके हित में है। सोवियत संघ के विघटन के बाद ज़रूर एक दो दशक के लिए भारत रूस के रिश्ते कुछ ठंडे हुए थे लेकिन अब भारत ये समझ गया है कि उसके अपने हित रूस के साथ मज़बूत संबंध रखने में हैं।''
''दुनिया की दो तिहाई खनिज संपदा रूस के पास है। रूस तेल का बड़ा उत्पादक है और भारत को सस्ती दर पर तेल दे रहा है। भारत अगर अपना आर्थिक विकास चाहता है, उसके लिए भारत को अपने सामने पेश हर मौक़े का इस्तेमाल करना होगा। मौजूदा हालात में भारत के पास एक मौक़ा है। ये एक तरह से ऐतिहासिक मौका है। अगर आज भारत इन हालात का फ़ायदा नहीं उठाता है तो ये ऐतिहासिक भूल भी साबित हो सकती है। भारत का रूस के साथ रहना उसके अपने सामरिक और रणनीतिक हितों में है।"
पश्चिम के लिए भी भारत ज़रूरी
हालांकि ये सवाल भी उठता है कि क्या भारत पश्चिमी देशों की नाराज़गी की क़ीमत पर रूस के साथ अपने संबंधों को कब तक मज़बूत करता रह सकता है।
विश्लेषक मानते हैं कि भारत इस समय मज़बूत रणनीतिक स्थिति में है और पश्चिमी दबाव उस पर काम नहीं करेगा।
विनय शुक्ला कहते हैं, "भारत एक बहुत बड़ा देश है और बहुत सोच-समझकर चल रहा है। आज की भू-राजनैतिक दुनिया में सभी के अपने हित हैं। भारत अपने हित देख रहा है। जहां तक अमेरिका के साथ संबंधों का सवाल है, भारत ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हमेशा अमेरिका का साथ दिया है। भारत अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन में नहीं जाना चाहता था इसलिए ही भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान और भारत का सहयोग संगठन) का हिस्सा बना है।
वहीं संजय पांडे मानते हैं कि मौजूदा स्थिति में पश्चिमी देश भारत को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं।
पांडे कहते हैं, "भारत के रूस के क़रीब जाने के बावजूद मौजूदा भू-राजनैतिक स्थिति में पश्चिमी देश, ख़ासकर अमेरिका भारत को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं। बल्कि ये कहा जा सकता है कि पश्चिमी देश भारत की अपनी मजबूरियों को समझते हैं। वो जानते हैं कि भारत की अपनी ज़रूरतें हैं। 2014 के बाद जब अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाए और इनकी आंच भारत के रूस से मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 की ख़रीद पर भी पड़ी तब आगे चलकर अमेरिका ने भारत को ये मिसाइ सिस्टम ख़रीदने की छूट दी।"
पांडे कहते हैं, "अमेरिका ये भी समझता है कि अगर भारत रूस से दूरी बनाएगा तो रूस का झुकाव चीन की तरफ़ बढ़ेगा और इससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव होगा। ये भारत के खिलाफ जाएगा और इससे अमेरिका के हित भी प्रभावित होंगे।"
भारत की सैन्य ज़रूरतें
भारत अपनी सैन्य ज़रूरतें पूरा करने के लिए रूस पर निर्भर रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत ने अपनी सैन्य ज़रूरतों के लिए रूस पर निर्भरता कम करने की कोशिश की है। भारत ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के अलावा पश्चिमी देशों से हथियारों की ख़रीद बढ़ाई है।
विनय शुक्ला कहते हैं, "रूस आज भी सैन्य क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा सहयोगी है और किसी भी देश के लिए इस मामले में रूस की जगह लेना आसान नहीं होगा। रूस आगे भी भारत का अहम सहयोगी बना रहेगा क्योंकि अमेरिका या दूसरे देश भारत के साथ उस स्तर पर टेक्नॉलजी ट्रांसफर नहीं कर रहे हैं जिस स्तर पर रूस करता है।''
''उदाहरण के तौर पर अमेरिका ने परमाणु पनडुब्बी तकनीक अभी तक किसी देश को नहीं दी है, लेकिन रूस ने ये तकनीक भारत को दी है। भारत अपनी रक्षात्मक ज़रूरतों के लिए रूस पर निर्भर है। जो तकनीक भारत को पश्चिमी देशों से कभी नहीं मिलेगी, वो रूस से मिल जाती है। भारत के पास जो आक्रामक हथियार हैं, वो सभी रूस से मिले हैं। ये पश्चिमी देशों से नहीं मिले हैं।"
तटस्थ रहा है भारत
पश्चिमी देश भारत की यह कहकर आलोचना करते हैं कि उसने यूक्रेन युद्ध पर कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया। हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि भारत ने तटस्थता की नीति अपनाई है।
प्रोफ़ेसर संजय पांडे कहते हैं, "ऐसा कहना गलत होगा कि यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत ने कोई स्टैंड नहीं लिया है। जब बूचा में जनसंहार की ख़बरें आईं थीं तब भारत ने रूस का नाम लिए बिना कहा था कि मानवाधिकारों का उल्लंघन स्वीकार्य नहीं है। 15 सितंबर को एससीओ समिट में भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा था कि ये युद्ध का युग नहीं है। उस सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने रूस का नाम नहीं लिया था। लेकिन ये स्वभाविक है कि ये बयान पुतिन के लिए नहीं था। भारत ने अपना पक्ष स्पष्ट किया है कि यूक्रेन युद्ध नहीं होना चाहिए था। हालांकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस के ख़िलाफ़ किसी प्रस्ताव पर वोट नहीं किया है। इसे इस तरह से भी देखा जा सकता है कि भारत की अपनी अलग वैश्विक दृष्टि और सोच है।"
पांडे कहते हैं, "भारत की वैश्विक दृष्टि में ये निहित है कि भारत का राष्ट्रीय हित किसी एक पक्ष की तरफ जाने में हों। भारत के अपनी स्वतंत्र सोच है और अपने अलग हित हैं और भारत अपनी नीति इसी आधार पर तय करता है। भारत ने स्पष्ट किया है कि वो विदेश नीति के मामले में किसी के कहने पर नहीं चलेगा।"