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चीन और भारत के सैनिकों में भिड़ंत होती क्यों है?

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BBC Hindi

, गुरुवार, 18 जून 2020 (08:04 IST)
गुरप्रीत सैनी, बीबीसी संवाददाता
भारत और चीन के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक झड़पें हुई, जिनमें दोनों तरफ़ जानी नुक़सान की बात कही जा रही है। लेकिन इस तरह की झड़पें कैसे हो जाती हैं?
 
दरअसल भारत और चीन के बीच अब तक सीमांकन नहीं हुआ है। यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन ऑफ़ ऐक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी तय की गई है लेकिन गलवान समेत कुछ 15 ऐसे बिंदु हैं, जहां एलएसी को लेकर सहमति नहीं है। इन विवादित इलाक़ों में दोनों देशों के सैनिक पेट्रोलिंग करते रहे हैं और इस पेट्रोलिंग के तय प्रोटोकॉल हैं।
 
सैन्य जानकारों के मुताबिक़, कई बार दोनों के गश्त दल एक ही वक़्त पर पेट्रोलिंग के लिए आ जाते हैं। ऐसे में प्रोटोकॉल है कि अगर एक पक्ष को दूसरे का गश्ती दल दिख जाए और दूसरे को पहले का दिख जाए, तो वहीं रुक जाएंगे।
 
कुछ बोलेंगे नहीं, सिर्फ बैनर उठाएंगे। चीन के बैनर पर लिखा होगा - 'आप चीन के इलाक़े में हैं। वापस जाओ।' भारत के सैनिकों के बैनर पर लिखा होगा - 'आप भारत के इलाके में हैं आप वापस जाओ।'
 
भारत के बैनर पर चीनी और अंग्रेज़ी भाषा में लिखा होता है और चीन के बैनर पर हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखा होता है। ये बैनर काफी बड़ा होता है। तक़रीबन आठ से नौ फ़ीट लंबा होता है। दोनों तरफ़ डंडे होते हैं। उसे पकड़कर ऊंचा उठा दिया जाता है, ताकि दूर से ही दिख जाए।
 
हालांकि सियाचिन में तैनात रहे रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ये भी कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में देखने में आया है कि दोनों देशों के सैनिक पीछे हटने के बजाए, आपस में भिड़ रह हैं।
 
कुछ घटनाओं के वीडियो भी सामने आए, जिनमें सैनिक धक्का-मुक्की करते और गाली-गलौज करते दिख रहे हैं। उनके मुताबिक़, ये झड़पें 15-20 मिनट या आधा-एक घंटा चलती हैं। लेकिन बीते कुछ वक़्त में ये झड़पें हिंसक होती दिखीं।
 
ऐसी झड़पें क्यों होती हैं?
संजय कुलकर्णी कहते हैं कि ऐसा इसलिए होता हैं क्योंकि बैनर दिखाने पर भी कई बार दोनों पक्ष पीछे नहीं हटते हैं। दोनों एक दूसरे को कहते हैं कि ये इलाक़ा मेरा है, आप जाओ। ऐसे में धक्का-मुक्की शुरू हो जाती है।
 
गश्ती टीमों के पास हथियार भी होते हैं लेकिन वो एक-दूसरे के ख़िलाफ़ उनका इस्तेमाल नहीं करते। यही वजह है कि बीते 43 साल में किसी की जान नहीं गई थी, स्थिति शांत थी। लेकिन सोमवार की घटना धक्का-मुक्की से आगे बढ़कर जानलेवा हो गई। हालांकि, इस घटना में भी गोली नहीं चली।
 
संजय कुलकर्णी उदाहरण देते हैं, 'जैसे अमेरिका में पुलिस वाले ने एक शख़्स को पकड़ा और उसकी गर्दन पर घुटना रख दिया। गोली नहीं चलाई लेकिन शख़्स की जान चली गई। यहां पर भी गोली नहीं चली, लेकिन जो मिला उससे एक दूसरे को पीटना शुरू कर दिया। किसी ने पत्थर उठाया, किसी ने डंडा उठाया। कुछ नहीं मिला तो धक्के मारे। इस तरह दोनों पक्षों का जानी नुक़सान हुआ।'
 
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (एनएसएबी) के सदस्य और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पूर्व कोर कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल एसएल नरसिम्हन कहते हैं कि ये स्थिति तब ही बनती है जब तय प्रक्रिया (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीज़र) को दोनों पक्ष अपनाते नहीं हैं।
 
ये झड़पें इतनी हिंसक कैसे हो जाती हैं?
संजय कुलकर्णी कहते हैं कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ग्राउंड लेवल पर तनाव बहुत ज़्यादा होता है। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि सोमवार की झड़प इसलिए भी इतनी हिंसक हो गई होगी क्योंकि पिछले महीने से एलएसी पर तनाव चल रहा था।
 
सोमवार की घटना से पहले पांच और छह मई को पैंगोंग झील के नज़दीक जो झड़पें हुईं, उनमें भी पथराव और दो-तीन सैनिकों के घायल होने की ख़बर आई। हालांकि ये झड़पें उतनी हिंसक नहीं हुई थीं, जितनी सोमवार को हो गई और कई सैनिकों की जानें गईं।
 
फिर सोमवार की घटना इतनी हिंसक कैसे हो गई? इसपर संजय कुलकर्णी कहते हैं कि हो सकता है कि ग्राउंड लेवल के कमांडर गरम स्वभाव के हों लेकिन वो भी तब तक ये सब नहीं करेंगे जबतक ऊपर से आदेश ना आए।
 
सोमवार को क्या हुआ था?
दोनों देशों के बीच पिछले महीने से सीमा विवाद चल रहा है। दोनों एक-दूसरे पर यथास्थिति में बदलाव करने का आरोप लगा रहे हैं।
 
भारत कह रहा है कि चीन विवादित इलाक़े में आगे बढ़ रहा है। वहीं चीन का कहना है कि भारत वहां सड़क निर्माण कर रहा है। इस विवाद को सुलझाने की कोशिश में बैठक भी हुई थी। जिसके बाद कहा भी गया कि दोनों देशों के सैनिक डिस-इंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू करेंगे।
 
डिस-इंगेजमेंट यानी आमने-सामने की बातचीत के दौरान कहा जाता है कि पहले आप इतनी दूर पीछे हटिए और इस तरीक़े से हटिए और उसी के मुताबिक़, फिर सामने वाली फौज बोलती है कि इस प्रकार से आप पीछे हटिए और इसके लिए इस प्रकार का तरीका अपनाइए।
 
पूर्व कोर कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल एसएल नरसिम्हन का मानना है कि सोमवार को डिस-इंगेजमेंट प्रक्रिया के बारे में चर्चा करते हुए कुछ गरमा-गरमी हो गई, जिस वजह से ये स्थिति बनी होगी।
 
उनका मानना है, बातचीत में कुछ बाधा आई होगी। एक पक्ष ने कुछ बोला होगा, दूसरे पक्ष ने कुछ बोला होगा। इस वजह से मामले में गरमा-गरमी बढ़ गई होगी।
 
मौसम ख़राब होने से गई होंगी ज़्यादा जानें
सियाचिन में तैनात रहे रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं कि गलवान घाटी में जहाँ ये झड़पें हुईं उस ऊँचाई पर मौसम बहुत ही ख़राब है, दुर्गम इलाका है, सांस लेने में आफ़त आती है और रात में तापमान बहुत कम हो जाता है।
 
वो कहते हैं, ''सैनिक सुबह पेट्रोलिंग के लिए निकलते हैं और आते-आते शाम हो जाती है। दिन में धूप होती है तो वो सामान्य कपड़े पहनकर जाते हैं, लेकिन झड़प हुई होगी तो वो घायल होकर वहीं गिर गए होंगे। हो सकता है ठंड में पड़े-पड़े जान चली गई हो। कोई नदी में गिर गया हो, कोई पहाड़ से गिर गया हो। इस मौसम के कारण कई लोग मरे होंगे। कुछ सैनिकों की जान हार्ट अटैक से भी जा सकती है।"
 
हालांकि, बॉर्डर पर्सनल लेवल की बैठक में ऐसी झड़पों को रोकने के तरीक़ों पर लगातार चर्चा होती रहती है।

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