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नज़रिया: डोकलाम में जो काम यूएन नहीं कर पाया उसे भारत ने कर दिया

हमें फॉलो करें नज़रिया: डोकलाम में जो काम यूएन नहीं कर पाया उसे भारत ने कर दिया
, शनिवार, 2 सितम्बर 2017 (11:30 IST)
- कंवल सिब्बल (भारत के पूर्व विदेश सचिव)
पश्चिम के देशों ने चीन के बारे में कई मिथ गढ़े हैं। चीन के बारे में मिथों को भारत समेत कई देशों ने बिना कोई चुनौती दिए स्वीकार कर लिया है। यह मिथ पैदा किया गया है कि एशिया में चीन सदियों से ताक़तवर रहा है और वह अपनी ताकत फिर से हासिल कर रहा है। चीन एक साथ दो काम करता है।
 
वह आक्रामक रूप से अपना भौगोलिक विस्तार कर रहा है तो दूसरी तरफ़ ख़ुद को पीड़ित भी बताता है। डोकलाम में उसने ऐसा ही किया। वह कह रहा था कि भारत ने उसके इलाक़े में घुसपैठ की है। जबकि वह ख़ुद के बारे में बताने की कोशिश करता है कि वह अतीत में इतना बड़ा था और उसे हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
 
यह सवाल कभी नहीं पूछा जाता है कि चीन पर भारत कब हावी रहा। सभ्यता की गहराई, जनसांख्यिकी और भूगोल के मामले में एशिया के दूसरे बड़े देश भारत की तुलना अक्सर चीन से की जाती है। क्या चीन कभी भी भारत पर राजनीतिक रूप से, आर्थिक रूप से और सैन्य रूप से हावी रहा है?
 
अगर ऐसा नहीं है तो चीन फिर एशिया में शक्तिशाली कैसे है? चीन के मुक़ाबले एशिया के ज़्यादातर हिस्सों में भारत का प्रभाव ज़्यादा रहा है। इसके बावजूद लंबे समय तक पश्चिमी देश एशिया में भारत की उपेक्षा करते रहे। पश्चिम के देशों को लगता है कि एशिया जापान से म्यांमार तक ही है। इन्हें लगता है कि मंगोलियाई नाक-नक्श वाले ही एशियाई हैं।
 
एशिया में चीन का सांस्कृतिक प्रभाव
एशिया-प्रशांत इकनॉमिक कॉर्पोरेशन की स्थापना 1989 में की गई। दावा किया गया कि यह एशिया का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन इसमें भारत को अलग रखा गया। भारत 2008 में इसका सदस्य बना। अगर आप भारत को अलग कर देते हैं तो चीन स्वाभाविक रूप से एशिया का शक्तिशाली देश बन जाता है।
 
सभ्यता और संस्कृति के लिहाज से देखें तो चीन का भारत में कोई प्रभाव नहीं है। दूसरी तरफ़ सांस्कृतिक रूप से भारत का प्रभाव चीन में काफ़ी ताक़तवर है। चीन में बौद्ध का प्रभाव जबर्दस्त है। पश्चिम के देशों ने हिन्दुस्तान को एशिया में उपेक्षित रखा।
 
म्यांमार, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, जापान समेत कई एशियाई देशों में भारत की प्राचीन संस्कृति का जबर्दस्त प्रभाव है। इन देशों में चीन का लंबे समय तक नामोनिशान नहीं रहा है।
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इन देशों की संस्कृतियों और कलाओं पर चीन का कोई असर नहीं है। थाइलैंड की पुरानी राजधानी का नाम ही अयोध्या था। इंडोनेशिया और थाईलैंड में तो बौद्ध के साथ हिन्दू संस्कृति का भी काफ़ी प्रभाव है। चीन आर्थिक शक्ति है लेकिन सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव होने में लंबा वक़्त लगता है।
 
चीन का राजनीतिक प्रभाव बढ़ा
इसमें कोई शक नहीं है कि अब चीन का राजनीतिक रूप से प्रभाव बढ़ा है। हर देश में प्रगति की चाहत है और वो व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं। ऐसे में चीन का महत्व बढ़ जाता है। लेकिन ऐसा कभी नहीं रहा है कि एशिया में चीन का प्रभुत्व रहा। चीन की दीवार बीजिंग के कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही है।
 
चीन ने यह दीवार अपनी सुरक्षा के लिए बनाई थी। चीन की दीवार से हम उसके भौगोलिक विस्तार को समझ सकते हैं। चीन को एशिया के भीतर ही वियतनाम और जापान से बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। 1937 में जापान के युद्ध को तो चीन अब तक नहीं भूल पाता है।
 
जापान से हार का दुख उसे इसलिए भी सालता है क्योंकि उसी के कारण एशिया में अमरीका की मजबूत मौजूदगी दर्ज हुई। चीन अपने देश में राष्ट्रवाद बढ़ाना चाहता है इसलिए भी वह जापान से मिली हार को बार-बार याद करता रहता है।
 
चीन दिखाना चहता है कि अतीत में उसका लोगों ने हक़ मारा है और अब वह पश्चिम प्रभुत्व को ख़त्म करना चाहता है। जापान से मिली हार में चीन को काफ़ी नुक़सान हुआ था।
 
भारत ने अपनी छवि तोड़ी
हाल में भारत और चीन के बीच जो तनाव रहा उसमें भी उसके मिथ को झटका लगा है। भारत ने अपनी छवि तोड़ते हुए साहसिक क़दम उठाया और चीन को चुनौती दी। अब उसके लिए इतना आसान नहीं है कि वह डोकलाम में सड़क बना ले। चीन की नीति रही है कि पहले इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करो और बाद में वहां जम जाओ।
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भारत ने समझदारी दिखाई कि शुरू में ही पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। डोकलाम में जिस काम को संयुक्त राष्ट्र नहीं कर पाया वो हमने कर दिया। मैंने पश्चिमी मीडिया में हुई बहस को भी देखा और लोगों ने कहा कि भारत ने हमें सबक दिया है कि चीन को शुरू में ही रोक दो नहीं तो उसे इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के बाद पीछे नहीं धकेला जा सकता है।
 
भारत ने यह भी संदेश दिया है कि अगर उसकी सुरक्षा पर आंच आएगी तो वह चुप नहीं बैठेगा। भारत ने बिल्कुल सही क़दम उठाया। वहां चीन अगर सड़क बना लेता तो भूटान और भारत दोनों के लिए ठीक नहीं होता। हालांकि समस्या अभी ख़त्म नहीं हुई है। चीन इतनी आसानी से मान नहीं जाएगा।
 
चीन ताक़तवर तो है लेकिन वो भारतीय सीमा पर कितनी दिखा पाता है ये अहम है। तिब्बत के ज़रिए उसे आना पड़ता है। तिब्बत इतना ऊंचा है कि उसे पार करना ही काफ़ी मुश्किल है।
 
एशिया में अमेरिका सेना की भी पर्याप्त मौजूदगी है। भारत अब 1962 का नहीं है। चीन को जापान, ताइवान और वियतनाम से समस्या है। ऐसे में उसके लिए भारत से उलझना आसान नहीं है।
 
(बीबीसी संवाददाता रजनीश कुमार से बातचीत पर आधारित)

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