एक ग़ुब्बारे ने चीन और अमेरिका के बीच दरार को कैसे और बढ़ा दिया है?

BBC Hindi
रविवार, 19 फ़रवरी 2023 (07:43 IST)
टेसा वोंग, एशिया डिजिटल रिपोर्टर
स्पाई बैलून विवाद के कारण अमेरिका और चीन के बीच दरार बढ़ती जा रही है और इसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी ध्रुवीकरण का ख़तरा मंडराने लगा है।
 
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने शुक्रवार को कहा कि कथित चीनी स्पाई बैलून को गिराने के लिए वो 'माफ़ी नहीं मांगेंगे।' इसके कुछ घंटे बाद ही चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि 'तनाव को बढ़ाते हुए अमेरिका बातचीत जारी रखने को नहीं कह सकता है।'
 
चीन लगातार इस बात का खंडन कर रहा है कि उन्होंने कोई स्पाई बैलून नहीं भेजा था, जबकि अमेरिका भी लगातार अपने आरोपों के समर्थन में नए नए सबूत पेश कर रहा है।
 
लेकिन विवादों से अलग, जिस तरह बीजिंग और वॉशिंगटन प्रतिक्रिया दे रहे हैं, उससे लोग इस मामले पर बारीक़ नज़र रखने लगे हैं क्योंकि इस घटना से राष्ट्रीय सुरक्षा और भू-राजनैतिक स्थिरता की जटिलता का दुनिया पर असर पड़ रहा है।
 
विश्लेषकों का कहना है कि इसका नतीजा ये है कि दोनों पक्ष अपने अपने स्टैंड पर और दृढ़ता हो गए हैं और चीन या अमेरिका के प्रति सजग रुख़ रखने वाले देशों में भरोसा कम हो रहा है। और इसकी वजह से वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच आई दरार को भरना और मुश्किल हो गया है।
 
इस घटना ने चीन की जासूसी की पहुंच को लेकर कुछ देशों की बेचैनी को बढ़ा दिया है और सरकारें इस बात का आंकलन कर रही हैं कि उन्हें चीन के सर्विलांस क्षमता के बारे में कितना कुछ पता है।
 
पड़ोसी देश हुए चौकन्ने
इसी हफ़्ते अमेरिका के क़रीबी सहयोगी जापान ने घोषणा की कि अतीत में आसमान में उड़ने वाली अज्ञात वस्तुओं का दोबारा विश्लेषण किया गया और उनकी दृढ़ आशंका है कि चीन ने 2019 के बाद से उनके हवाई क्षेत्र में तीन स्पाई बैलून छोड़े थे।
 
एक अज्ञात ताईवानी अधिकारी के हवाले से फ़ाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के एक अन्य सहयोगी देश आईलैंड पर दर्जनों बार चीनी मिलिट्री बैलून से जासूसी की गई थी। इस आईलैंड पर चीन अपना दावा करता रहा है।
 
ताईवान रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि उसने मौसम से संबंधित चीनी बैलून को देखा था, शुक्रवार को ऐसे ही एक वस्तु का मलबा उन्हें मिला, लेकिन उसने चेतावनी दी कि उसके हवाई क्षेत्र में कोई संदिग्ध मिलिट्री वस्तु आएगी तो वे उसे मार गिराने में हिचकेंगे नहीं।
 
कार्नेगी चाइना में एक नॉन रेज़िडेंट स्कॉलर डॉ। इयान चोंग ने कहा, "बाकी देश नहीं जानते थे कि पहले क्या किया जाना चाहिए, लेकिन अब वे जान गए हैं। यह दिखाता है कि समझदारी में कितना अंतर है और हैरानी की बात नहीं है कि चीन ने इस मौके का फायदा उठाया है।"
 
जिन देशों को लगता है कि अमेरिका के आरोप सही हैं, उनके लिए ये घटना बताती है कि वे चीन की सर्विलांस क्षमता और चीन क्या कर सकता है, इस बारे में कितना कम करके आंकते हैं।
 
नेशनल यूनिवर्सिटी सिंगापुर में विज़िटिंग सीनियर रिसर्च फ़ेलो और अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के पूर्व अधिकारी ड्रियू थॉम्पसन कहते हैं, "ये साफ़ तौर पर संकेत है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को लगता है कि वे किसी भी टेक्नोलॉजी और किसी भी मिशन को पूरी तरह वैध ठहरा सकते हैं, कि वे चीन की महाशक्ति बनने की क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, जासूसी कर सकते हैं और अमेरिका को ख़तरे में डाल सकते हैं।"
 
उनका कहना है कि 'ये चीन की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचने और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के प्रति बाध्यता को अनदेखा कर किया गया और बिना इसके लाभ पर विचार किए किया गया।'
 
अंतरराष्ट्रीय जगत में क्यों है बेचैनी?
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह इस विवाद में चीन ने प्रतिक्रिया दी है, उससे लगता है कि भरोसा जीतने और एक ज़िम्मेदार सुपरपॉवर की छवि उभारने के अपने खुद के प्रयासों को बीजिंग ने नज़रअंदाज किया है।
 
'बैलून मौसम की जांच करने वाला एक नागरिक यान था', अपने इस दावे को पुख़्ता करने के लिए चीन की ओर से अभी और जानकारी आना बाकी है, मसलन उस कंपनी का नाम जो इसका संचालन करती थी।
 
डॉ। चोंग का कहना है, "पारदर्शिता में कमी के चलते और सवाल खड़े हो रहे हैं और पहले से आशंकित लोगों के लिए वजह मिल गई है।"
 
उनके मुताबिक, बाद में बीजिंग ने दावा किया कि अमेरिका ने अतीत में चीन में 10 स्पाई बैलून छोड़े थे, ये भी बहुत भ्रामक है, हालांकि वॉशिंगटन ने इसका खंडन किया है।
 
चोंग का कहना है, "क्या चीन ये बताना चाहता है कि एक दूसरे के इलाके में बहुत सारे बैलून छोड़ना एक स्वीकार्य बात थी?"
 
उनके मुताबिक, अगर ऐसा है तो बीजिंग संप्रभुता का सम्मान किए जाने के खुद के स्टैंड को ही ग़लत साबित करता है। लेकिन जिस तरह अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी उसने भी कुछ लोगों को बेचैन कर दिया, ख़ासकर वे जो चीन की तरफ़ हैं।
 
इसी हफ़्ते अमेरिकी अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि उत्तरी अमेरिका के आसमान में जिन तीन अन्य वस्तुओं को गिराया गया वे विदेशी स्पाई यान नहीं लगते थे।
 
विवाद से वार्ता में मुश्किल
बाइडन ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि कमर्शियल एयर ट्रैफ़िक को सुरक्षित करने के लिए ये ज़रूरी था और इसलिए भी कि उस समय इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता था कि संवेदनशील संस्थानों पर सर्विलांस का ख़तरा था।
 
बीजिंग के थिंक टैंक सेंटर फॉर चाइना एंड ग्लोबलाइजेशन के वाइस प्रेसीडेंट विक्टर गाओ ने बैलून को गिराने की घटना को ज़रूरत से अधिक प्रतिक्रिया करार दिया, जिसे अमेरिका के 'लगातार हिस्टीरिकल' होने के रूप में देखा जा सकता है।
 
वो कहते हैं, "चीन बहुत पेशेवर और ज़िम्मेदार रहा है। वो अमेरिका और पूरी दुनिया को हालात के बारे में स्पष्टीकरण दे रहा था और विवाद की बजाय सहयोग की बात कर रहा था। ये अमेरिका के अंधराष्ट्रवाद से बिल्कुल अलग है। उन्हें याद रखना चाहिए के वे पश्चिम के किसी जंगल में किसी जानवर को नहीं मार रहे, वे एक ऐसी वस्तु को गिरा रहे हैं जिस पर चीन की मिल्कियत है।"
 
हालांकि अन्य देशों ने इस हालात से निपटने में अमेरिका की तारीफ़ की। ऑस्ट्रेलिया के डिप्टी पीएम रिचर्ड मार्लेस ने चीनी बैलून को मार गिराने की घटना को, घुसपैठ से निपटने में 'बेहद सधा हुआ तरीका' कहा।
 
दोनों पक्ष अपने तर्क पर अड़े हैं, लेकिन जो बात बिल्कुल साफ़ है वो ये कि बैलून विवाद ने दोनों देशों के बीच बचाव वार्ता को और मुश्किल बना दिया है।
 
क्या चीन को बहाना मिल गया?
गाओ का कहना है कि बैलून को गिराने और इसके बाद माफ़ी मांगने से बाइडन के इनकार ने चीन के लोगों के लिए ये एक अभूतपूर्व उदाहरण बन गया है।
 
उन्होंने कहा, "अब उन्हें चीन की हवाई सीमा में इसी तरह की किसी वस्तु के लिए ऐसी ही कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा। अगर इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटना दोबारा घटती है तो फिर ये शिकायत मत करिएगा कि चीन माफ़ी नहीं मांगता।"
 
उन्होंने कहा कि इससे चीन उन इलाक़ों में अमेरिकी हवाई जहाज़ों और जलपोतों पर कड़ा रुख़ अपना सकता है जहां चीन अपना दावा करता है जैसे कि ताईवान।
 
अमेरिकी नेवी ताईवान स्ट्रेट में फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन के नाम पर नियमित रूप से अपने युद्धपोत भेजती रहती है। लेकिन संवाद को लेकर दोनों पक्षों की तरफ़ से नरमी के संकेत भी हैं।
 
ऐसी भी ख़बरें है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से इसी सप्ताहांत म्यूनिख में मुलाक़ात कर सकते हैं। बैलून विवाद के बाद दोनों देशों के बीच ये पहली उच्चस्तरीय बैठक होगी।
 
जब चीनी बैलून की घटना प्रकाश में आई तो इस महीने की शुरुआत में ब्लिंकन ने बीजिंग की अपनी बहुत पहले से तय यात्रा को रद्द कर दिया था। बाइडन ने भी कहा है कि वो इस घटना पर बात करने के लिए शी जिनपिंग को फ़ोन करने वाले हैं।
 
दोनों ही नेताओं पर न झुकने का घरेलू दबाव है। अब एक बड़ा सवाल है कि तनाव कम करने के लिए दोनों नेताओं के पास कितना राजनीतिक समर्थन मौजूद है।
 

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