Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

क्या पीएम मोदी करवाएंगे पाकिस्तान के अल्ताफ़ हुसैन की 'घर वापसी'? : ब्लॉग

हमें फॉलो करें क्या पीएम मोदी करवाएंगे पाकिस्तान के अल्ताफ़ हुसैन की 'घर वापसी'? : ब्लॉग

BBC Hindi

, मंगलवार, 19 नवंबर 2019 (10:25 IST)
-राजेश जोशी (संपादक, बीबीसी हिन्दी रेडियो)
 
अल्ताफ़ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा है कि उन्हें और उनके दोस्तों को भारत में शरण दे दी जाए ताकि वो भारत में दफ़्न अपने पुरखों की क़ब्रों पर जा सकें। इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं- राजनीति नहीं करेंगे, अयोध्या में राम मंदिर बनाने के फ़ैसले का समर्थन करेंगे और यहां तक कि ये भी कह रहे हैं कि भारत को हिन्दू राज बनाने का पूरा हक़ है।
 
बोरियत से बचने के लिए कई लोग यू-ट्यूब पर स्टैंड-अप कॉमेडियंस के चुटकुले सुनते हैं या फिर शेरों की लड़ाई, मगरमच्छ के जबड़े में फंसे जिराफ़ या रंग-बिरंगी जंगली चिड़ियों के नाच का वीडियो देखकर अपने मन को बहलाते हैं। मनोरंजन का इससे सस्ता और आसानी से सुलभ और कोई ज़रिया नहीं है। बोरियत तुरंत रफ़ूचक्कर हो जाती है।
 
हिन्दुस्तान में बहुत से लोगों को अंदाज़ा नहीं है कि पाकिस्तान की महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट के सबसे बड़े नेता अल्ताफ़ हुसैन के भाषणों का भी यही असर होता है। मैं भी कभी-कभी बोरियत भगाने के लिए यू-ट्यूब पर अल्ताफ़ भाई की तक़रीरें सुनने लगता हूं।
 
अल्ताफ़ हुसैन अपने भाषणों में रोते हैं, गाते हैं, हुंकारते हैं, धमकाते हैं, लजाते हैं, चीख़ते-चिल्लाते हैं, चुटकुले सुनाते हैं और एक ही लाइन को अलग-अलग तरह से कई-कई बार इस तरह दोहराते हैं कि देखने वाला हंसते-हंसते दोहरा हो जाए। पर अल्ताफ़ हुसैन के भाषण सुनकर उनके विरोधियों की रीढ़ में झुरझुरी दौड़ जाती है।
 
कराची शहर थर-थर कांपता है
 
अल्ताफ़ हुसैन को आप भले ही गंभीरता से न लें, मगर उनके बंदूक़धारी जियालों को गंभीरता से न लेने की हिमाकत कराची में कोई नहीं करता।
 
कराची शहर उनके नाम से थर-थर कांपता है। एक ज़माने में उनकी एक आवाज़ पर शहर में कर्फ़्यू जैसे हालात बन जाते थे, औरतें अपने बच्चों को घरों के अंदर खींच लेती थीं और पुलिस अफ़सर छुट्टी की दरख़्वास्त देने की सोचने लग जाते थे। जो हुक़्म न मानने की जुर्रत करता, उसकी 'बोरी तैयार' हो जाती है।
 
कराची में 'बोरी तैयार करना' एक मशहूर मुहावरा है जिसे मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के उनके लड़ाकू जियाले और ख़ुद अल्ताफ़ हुसैन अक्सर ऐसे ज़िद्दी लोगों को समझाते वक़्त इस्तेमाल करते हैं कि 'तुम अपना नाप तैयार करो, बोरी हम तैयार करेंगे।'
 
कुछ लोग फिर भी सीधी-सपाट उर्दू में समझाई गई बात नहीं समझ पाते हैं। कुछ दिनों बाद कराची के किसी नाले में बोरे में भरी उनकी लाश ही बरामद होती है। 80 के दशक में शहर में बोरी बंद लाश मिलना एक आम बात हो गई थी।
 
हालात कुछ इस क़दर संगीन हो गए थे कि 1992 में अल्ताफ़ हुसैन को पाकिस्तान छोड़कर ब्रिटेन में शरण लेनी पड़ी। तब से वो लंदन के अपने घर से ही फ़ोन के ज़रिए कराची में बड़ी-बड़ी आम सभाओं को संबोधित करते आ रहे हैं। लंदन से ही वो अपने विरोधियों को संगीतमय चेतावनी देते हैं कि 'संभल जाओ वरना तुम्हारा भी कर देंगे... दमादम मस्त क़लंदर'।
webdunia
पीएम मोदी से अल्ताफ़ हुसैन की गुज़ारिश
 
पाकिस्तान में जिसे 'इस्टैब्लिशमेंट' कहा जाता है, उसने हमेशा अल्ताफ़ हुसैन और एमक्यूएम पर भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एजेंट होने का आरोप लगाया है। लंदन में बैठकर अल्ताफ़ हुसैन जब-तब 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...' गाने के वीडियो अपलोड करते रहते हैं। पर अब अल्ताफ़ हुसैन चाहते हैं कि भारत में उनको और उनके साथियों को राजनीतिक शरण दे दी जाए।
 
'इंडियन एक्सप्रेस' की ख़बर के मुताबिक़ पिछले हफ़्ते उन्होंने सोशल मीडिया के ज़रिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गुज़ारिश की कि शरण दे दो, नहीं तो कुछ पैसे ही दे दो ताकि मैं अपने मामले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस तक ले जा सकूं। यहां तक कि उन्होंने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की तारीफ़ कर दी।
 
पर अल्ताफ़ हुसैन हैं कौन?
 
इस सवाल का जवाब कई तरह से दिया जा सकता है। अगर आप पाकिस्तान की मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट के जियाले हैं तो आपकी नज़र में अल्ताफ़ हुसैन का दर्जा किसी पैग़म्बर से बस थोड़ा ही नीचे होगा।
 
भारत के बंटवारे के वक़्त भारी मार-काट के बीच इस्लामी जन्नत का सपना देखते हुए यूपी-बिहार से पाकिस्तान हिजरत करने वाले मुहाजिरों के वंशजों के लिए अल्ताफ़ हुसैन किसी मार्क्स, लेनिन, माओ या चे ग्वेवारा से कम नहीं हैं।
 
पाकिस्तान की पुलिस और फ़ौज की नज़र में वो गैंगस्टर, माफ़िया डॉन, अपराधी, हत्यारे और आतंकवादी हैं। ब्रिटेन की पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ घृणा फैलाने और आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप में मामला दर्ज किया है और फ़िलहाल वो ज़मानत पर हैं और अब भारत के प्रधानमंत्री से शरण मांग रहे हैं। समय का चक्का पूरा घूम चुका है।
 
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने 1948 में भारत छोड़कर पाकिस्तान जा रहे मुसलमानों को पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर खड़े होकर ख़बरदार किया था। उन्होंने कहा था- 'मुसलमानों, मेरे भाइयो, तुम आज ये वतन छोड़कर जा रहे हो। तुमने सोचा इसका अंजाम क्या होगा?'
 
तब बहुत से मुस्लिम लीगी मौलाना आज़ाद को 'हिन्दुओं का पिट्ठू' कहकर दुत्कारते थे। लेकिन आज अल्ताफ़ हुसैन की गुहार सुनकर लगता है कि मौलाना ने जैसे 70 साल पहले भविष्य देख लिया था। उन्होंने मुसलमानों से पूछा था कि वतन छोड़कर जाने का अंजाम जानते हो?
 
उन्होंने आंखों में पाकिस्तान का सपना पाले मुसलमानों से यह भी कहा था कि 'अगर तुम बंगाल में जाकर आबाद हो जाओगे तो हिन्दुस्तानी कहलाओगे। अगर तुम पंजाब में आबाद हो जाओगे तो भी हिन्दुस्तानी कहलाओगे। अगर तुम सूबा सरहद और बलोचिस्तान में जाकर आबाद हो जाओगे तो हिन्दुस्तानी कहलाओगे। अरे तुम सूबा-ए-सिन्ध में जाकर भी आबाद हो जाओगे तो भी हिन्दुस्तानी ही कहलाओगे।'
 
सूबा-ए-सिन्ध के सबसे बड़े कराची शहर में जाकर बसे उन मुहाजिरों और उनके बच्चों को जल्दी ही समझ में आ गया कि पाकिस्तान में उन्हें हिन्दुस्तानी ही माना जाता है। अल्ताफ़ हुसैन ने इसी वजह से मुहाजिरों को एकजुट करके 1984 में मुहाजिर क़ौमी मूवमेंट की स्थापना की जिसे बाद में मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट नाम दिया गया।
 
नाइन-ज़ीरो का आतंक
 
कराची में जिस जगह पर एमक्यूएम का सदर मुक़ाम है, उसे वहां के पिनकोड के कारण नाइन-ज़ीरो कहा जाता है और शहर में इस इलाक़े की अंडरवर्ल्ड जैसी धमक है। कई साल पहले पाकिस्तान के चुनाव की रिपोर्टिंग करते हुए मैंने एक ऑटो वाले से पूछा- भाई, नाइन-ज़ीरो चलोगे? पहले उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया और फिर उसने मुझे ऊपर से नीचे तक ऐसे घूरा, जैसे मैं आंखें बंद करके किसी अंधे कुएं में कूदने जा रहा हूं।
 
नाइन-ज़ीरो में किसी डॉन के अड्डे जैसी कड़ी सुरक्षा होती है। पार्टी के कार्यकर्ता हर गली में नाक़ेबंदी किए खड़े रहते हैं और क्या मजाल है कि उनकी इजाज़त के बिना चिड़िया भी पर मार जाए। जब एमक्यूएम कराची में हड़ताल का आह्वान करती थी तो शहर में एके-47 से खुलेआम गोलियां चलाते, बम फेंकते जियाले नज़र आते थे। पूरा शहर युद्ध के मैदान में बदल जाता था और ये प्राचीन इतिहास की नहीं, अभी कुछ बरस पहले की ही बात है और इन सब कार्रवाइयों को अल्ताफ़ हुसैन हज़ारों मील दूर लंदन में बैठे कंट्रोल करते रहे हैं।
 
पर अगर वो राजनीतिक शरण लेकर हिन्दुस्तान आ गए तो यहां करेंगे क्या? उनकी इस गुज़ारिश को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है, पर ये अल्ताफ़ हुसैन भी जानते हैं और भारतीय नेता भी कि अल्ताफ़ हुसैन की भारत आने की मंशा जताने में ही गहरी राजनीति छिपी हुई है। कहा तो उन्होंने ये है कि वो भारत में किसी तरह की राजनीति में दख़ल नहीं देंगे और अपने दादा-परदादा और दूसरे दर्जनों रिश्तेदारों की क़ब्रों पर जाना चाहेंगे।
 
कैसी विडंबना है कि अल्ताफ़ हुसैन ऐसे वक़्त में भारत में शरण मांग रहे हैं, जब भारतीय मुसलमानों के सहमे होने की ख़बरें अक्सर सामने आती हैं और सरकार ऐसा नागरिकता क़ानून लाने वाली है जिसमें पड़ोसी देशों से मुसलमानों के अलावा सभी धर्मों के लोगों को शरण देने की बात कर रही है।
 
तो अब अल्ताफ़ हुसैन के पास घर वापसी का एक ही रास्ता बचा है- वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बजाए विश्व हिन्दू परिषद के संतों के नाम अर्ज़ी लिखें। शायद घर वापसी हो जाए!

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अयोध्या में शुरू हुआ अब नया विवाद