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किसान बेहाल, मंदी से युवा परेशान, फिर भी मोदी पर मेहरबान: ग्राउंड रिपोर्ट

हमें फॉलो करें किसान बेहाल, मंदी से युवा परेशान, फिर भी मोदी पर मेहरबान: ग्राउंड रिपोर्ट
, मंगलवार, 9 अप्रैल 2019 (08:14 IST)
दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता
चुनाव का मुद्दा सिर्फ मोदी है और कुछ नहीं है। 'कैन्डीडेट को वोट नहीं है, मोदी को वोट है। बीजेपी को भी वोट नहीं है, हमारी तरफ से तो मोदी को वोट है। चुनाव में बस मोदी ही मोदी है।'
 
'हमें तो मोदी के सारे ही काम अच्छे लग रहे हैं। उसने नोटबंदी भी की तो हमें अच्छी लगी। हमारे देश को दुनिया में चौथे नंबर पर ले आया। हमें ये भी अच्छा लगा। अब ये मुल्ला कुछ भी गाये जाएं बस इन्हें ही अच्छा नहीं लग रहा। बाकी सबको अच्छा लग रहा है। 'काम का मंदा है। ऐसा लग रहा जैसे उद्योगपतियों ने काम में पैसा लगाना बंद कर दिया है, मुझे यही शक होता है।' ये राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से कुछ ही दूर दादरी के पास एक गांव के अगड़ी जाति के लोगों की राय है। ये इलाका गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र में आता है।
 
ऋषिपाल ठाकुर भी इन लोगों में से एक हैं। उनके लिए इस चुनाव में राष्ट्रवाद सबसे बड़ा मद्दा है। राष्ट्रवाद क्या है ये पूछने पर वो कहते हैं, 'देश के प्रति प्रेम ही राष्ट्रवाद है। लोगों को मोदी ने ही जागरूक किया है। अभी तक लोग सोए हुए थे। मोदी ने सबको जगा दिया है।; बच्चे बच्चे को बता दिया है कि राष्ट्रवाद क्या है और वोट का अधिकार क्या है। मुझे खुद ये सब पता नहीं था।'
 
वो कहते हैं, 'इस समय सब जागरूक हैं, देश पर मरने मिटने को तैयार हैं, वो लोग गलत हैं जो भारतीय सेना पर, एयरस्ट्राइक पर सवाल उठा रहे हैं। पाकिस्तान माने न माने, विरोधी माने न मानें लेकिन देश को विश्वास है।'
 
पेशे से ड्राइवर ऋषिपाल ठाकुर इस समय काम की मंदी झेल रहे हैं। वो कहते हैं, 'काम पहले से आधा है. मंदी के बावजूद घर चल रहा है लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा तो फिर बहुत दिक़्क़त होगी।'
 
ऋषिपाल कहते हैं, 'मेरे लिए बेरोजगारी या काम की मंदी कोई मुद्दा नहीं है। कई बार बच्चों की फीस भरने में भी दिक्कत हुई फिर भी मेरे लिए सिर्फ राष्ट्रवाद मुद्दा है। हम लोग ऐसी मंदी अगले पांच साल भी झेलने को तैयार हैं।'
 
क्या हिंदुत्व चुनाव में मुद्दा है। ये पूछने पर वो कहते हैं, 'यही मूल मुद्दा है। ये शरम की बात है कि आजादी के बाद से अब तक इस हिंदु बहुल देश को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया। इसकी उम्मीद हमें मोदी से ही है। हमें राम मंदिर की भी जरूरत नहीं हैं। हमें हिंदू राष्ट्र चाहिए और जनसंख्या नियंत्रण क़ानून चाहिए।'
 
हिंदू और राष्ट्रवाद की बात कर रहे इन लोगों ने पास ही टायर पंचर का काम कर रहे मुसलमान नौजवान मुनव्वर खान पर कई बार पाकिस्तान जाने का तंज मारा। इस तंज में हास्य भी था और अपनापन भी। मुनव्वर के लिए महंगाई और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है और वो मोदी के विरोध में मतदान करना चाहते हैं। राष्ट्रवाद की बातें उन्हें शोर लगती हैं। वो कहते हैं, 'बेरोजगारी ज्यादा है, हम पर क्या बीत रही है ये तो हमारे जी को ही पता है।' हालांकि थोड़ा कुरेदने पर वो कहते हैं, 'हम मोदी विरोधी हैं क्योंकि मोदी मुसलमानों के विरोधी हैं।'
 
दीपक शर्मा भी पेशे से ड्राइवर हैं। उनके लिए मोदी ने सबसे बड़ा काम डाटा फ्री करके किया है। वो कहते हैं, 'मेरी नजर में मोदी ने सबसे बड़ा काम ये किया है कि उन्होंने डाटा फ्री कर दिया है। पब्लिक जो जागरूक हुई है उसका मेन रीज़न है डाटा। आज की डेट में हमारे पास जो सेलफोन है उससे हम कैसी भी ख़बर कहीं भी ले सकते हैं। चाहें फिर अनपढ़ हों या पढ़े लिखे। सबसे मेन चीज़ ये फ्री डाटा है।'
 
श्याम बाबू यहीं की एक फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं और इटावा के रहने वाले हैं। भारत सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उनके कच्चे मकान को पक्का बनवा दिया है। श्याम बाबू कहते हैं, 'मेरा मकान बन गया, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मेरे लिए मोदी ही सब कुछ हैं। मैं मोदी को विकास के लिए वोट दूंगा।'
 
दादरी क्षेत्र का बिसाहड़ा गांव यहां से कुछ ही दूर है। साल 2015 में अख़लाक़ की हिंसक भीड़ के हाथों हत्या के बाद ये चर्चा में आया था और इसी हत्याकांड के बाद भारत में अल्पसंख्यकों की लिंचिंग पर बहस शुरू हुई थी।
 
बीते कुछ सालों में गौरक्षा एक बड़ा मुद्दा बना है। प्रदेश की सरकार गौहत्या को लेकर बेहद सख़्त है और लोगों ने गायों को कहीं लाना-ले जाना तक बंद कर दिया है। इसका नतीजा ये हुआ कि किसान अपने पशुओं को जंगलों में छोड़ने पर मजबूर हो गए। आवारा गायें और बछड़े फसलों को बर्बाद कर रहे थे जिससे किसानों में नाराजगी थी। लेकिन अब यहां को लोगों को थोड़ा राहत है।
 
बीते कुछ महीनों में जगह-जगह गौशालाएं खुल गई हैं। ऐसी ही एक गौशाला बिसाहड़ा में भी ग्राम प्रधान के सौजन्य से खोली गई है जिसमें करीब तीन सौ आवारा पशु रह रहे हैं। यहीं काम करने वाले विनोद ठाकुर कहते हैं, 'गौशाला बनने की वजह से किसानों की नाराजगी कुछ कम हुई है। अगर ये गायें यहां बंद न होती तो आसपास के इलाक़े में फ़सलें ही न हो पातीं।'
 
विनोद के मुताबिक फिलहाल किसानों को राहत है। वो कहते हैं कि ये गौशाला निजी प्रयास से चल रही है और फसल कटने के बाद गायों को फिर से जंगल में छोड़ा जा सकता है। विनोद कहते हैं, 'आवारा पशुओं को लेकर किसानों में नाराज़गी तो है लेकिन इतनी नहीं कि वो बीजेपी के खिलाफ मतदान कर दें।' विनोद के मुताबिक़ चुनावों में मूल मुद्दा राष्ट्रवाद है और लोग मोदी के नाम पर वोट कर रहे हैं।
 
दादरी के इस गांव से कुछ किलोमीटर आगे ही गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र का निधावली गांव हैं। यहां सरकारी स्कूल पर लगे नीले बोर्ड पर लिखा है, 'द ग्रेट जाटव ग्राम निधावली'। यहां अधिकतर दलित समुदाय के लोग रहते हैं। यहां के युवाओं में अपने आप के जाटव होने पर गर्व का नया भाव है।
 
एक स्थानीय युवा कहते हैं, 'हम जाटव हैं, हमारा वोट मायावती का है और उन्हीं का रहेगा। हम अपनी जाति के लिए वोट करते हैं। इसके अलावा हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है। हम मर भी जाएंगे तब भी मायावती से अलग वोट नहीं देंगे।'
 
यहां मैंने जितने भी युवाओं या बुज़ुर्गों से बात की सभी की भावना यही थी। बोर्ड के बारे में सवाल पूछने पर एक बुजुर्ग कहते हैं, 'ये हमने अपने लिए लगाया है, किसी को अच्छा लगे या न लगे।'
 
वो कहते हैं, 'पहले हमसे मजदूरी करवाकर पैसे नहीं देते थे। लेकिन अब जागरूकता आ गई है। अब हम डांट कर अपनी मजदूरी का पैसा मांगते हैं।' ये दलित मतदाता मायावती के साथ मजबूती से जुड़े हैं। एक बुजुर्ग दलित महिला कहती हैं, 'देखो भैया हम तो मायावती को ही वोट देंगे। हम मायावती के ही हैं. चाहे कोई हमें लाख दो लाख रुपए दे दे लेकिन हम अपना वोट मायावती से अलग नहीं देंगे।'
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका अपनी बेहद उपजाऊ जमीन के लिए भी जाना जाता है। बिजनौर लोकसभा क्षेत्र के चुड़ियाली गांव में मेरी मुलाकात कुछ किसानों से हुई जो फसल के कम दामों से तो नाराज हैं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी को एक बार फिर वोट देने का मन बना चुके हैं।
 
किसान हरजीत सिंह कहते हैं, 'गन्ने का रेट न बढ़ने से किसान नाराज है जी। बीजेपी से उम्मीद थी कि कुछ करेगी लेकिन उसने भी कुछ नहीं किया। दूसरी पार्टियों की तरह ही रह गई फसल का दाम नहीं मिल रहा है। किसान का मनोबल टूटा हुआ है लेकिन फिर भी मोदी की वजह से बीजेपी को वोट दे रहे हैं।
 
किसान रूपेंद्र सिंह कहते हैं, 'बीजेपी ने किसानों के लिए कुछ खास नहीं किया है। फसल के दाम वहीं हैं लेकिन दवाई, खाद और डाई के दाम बढ़ गए हैं। आवारा पशुओं ने जीना हराम कर दिया है। लेकिन फिर भी हम बीजेपी को वोट दे रहे हैं क्योंकि मोदी जी ने पुलवामा का बदला लिया है।
 
युवा किसान प्रमोद चौधरी ने होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। वो दिल्ली के एक पांच सितारा होटल की नौकरी छोड़ने के बाद अब गांव में खेती कर रहे हैं। बेरोजगारी उनके लिए बड़ा मुद्दा है।
 
वो कहते हैं, 'आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख बढ़ रही है। हमें ऐसा ही नेता चाहिए जो दुनियाभर में हमारा कद ऊंचा कर सके। मोदी जी ऐसा कर रहे हैं इसलिए मैं उनका समर्थन कर रहा हूं।'
 
वो कहते हैं, 'लेकिन जरूरी नहीं है कि हम लोग मोदी जी का समर्थन करते ही रहें। हमारी सीट पर बेहद खराब उम्मीदवार उतारा है। हर बार हम मोदी के नाम पर ही वोट नहीं दे सकते। अगर अबकी बार हालात नहीं बदले तो ये जनता है, मोदी को भी लात मार देगी।'
 
बिजनौर के ही एक गन्ना क्रय केंद्र पर मुझे युवा किसान अनंत चौधरी मिले। राष्ट्रीय लोक दल से जुड़े अनंत बीजेपी की नीतियों पर सवाल करते हुए कहते हैं, 'हमने पिछले साल गन्ना बोया, अपनी जेब से लागत लगाई। इस साल हम गन्ना डाल रहे हैं लेकिन पेमेंट अगले साल मिलेगा। यानी दो साल का अंतर आ गया। हमने जो किसान क्रेडिट कार्ड लिया है उस पर तो हमें ब्याज देना पड़ता है लेकिन हमारे अपने पैसों पर हमें ब्याज नहीं मिलती। बेरोजगारी और बैंकों का एनपीए बढ़ रहा है लेकिन सरकार इस पर कोई जबाव नहीं दे रही।'
 
इसी क्रय केंद्र पर गन्ना बेचने आए आशीष बालियान प्रधानमंत्री मोदी के पक्के समर्थक हैं। उन्हें भी गन्ने का पेमेंट नहीं मिल रहा है। क्रेडिट कार्ड का ब्याज वो नहीं दे पा रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के छप्पन इंच के सीने के लिए वो इन दिक्कतों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
 
बालियान कहते हैं, 'हमारा गन्ने का पेमेंट जब मिलेगा मिल ही जाएगा। क्रेडिट कार्ड पर ब्याज लग रहा है। बैंक वाले तीसरे दिन घर आ जाते हैं तो हम भी कह देते हैं जब गन्ने के पैसे मिल जाएंगे दे देंगे। भूखे तो हम मर नहीं रहे हैं।'
 
वो कहते हैं, 'राष्ट्रवाद के नाम पर वोट दे रहे हैं। हमारी सेना की ताकत बढ़ रही है। सर्जिकल स्ट्राइक कर दी। पुलवामा का हमला हुआ, हमारे चालीस मरे तो हमने तीन सौ मार दिए। तो हमारा वोट तो मोदीजी के छप्पन इंच के सीने को है जो पूरे विश्व में भारत का परचम लहरा रहे हैं। मोदी जी की योजना भारत को विश्वगुरू बनाने की है।'
 
मुज़फ़्फ़रनगर के खतौली इलाक़ के बस स्टॉप पर बैठी सावित्री देवी कहती हैं कि सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है। वो कहती हैं, 'ये बच्चे खाली फिर रहे हैं, इन्हें हिल्ला मिलना चाहिए। ये अपना रोजगार पर लग जाएं। चाहें मोदी आएं या कोई और आएं।' यहां खड़े कुछ दलित युवा उनकी हां में हां मिलाते हुए कहते हैं कि सरकारें नौकरियां ही नहीं निकाल रही हैं। चुनाव का समय आया तो वैकेंसी ओपन कर दीं। लेकिन बीते चार साढ़े चार साल से कुछ नहीं किया।
 
इनमें से एक दलित युवा ने पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी के वादों में भरोसा जताते हुए उनकी पार्टी को वोट किया था लेकिन इस बार उनका मन बदल गया है।
वो कहते हैं, 'बेरोजगारी ही सबसे बड़ा मुद्दा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोजगार पैदा करने में नाकाम रहे हैं इसलिए मैं इस बार गठबंधन को वोट कर रहा हूं।'
 
प्रदीप कुमार कई सालों से सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कई विभागों में फॉर्म भरे लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। वो कहते हैं, 'हम जैसे दलित समुदाय के युवाओं को काम ही नहीं मिल रहा है। जब रोजगार ही नहीं होगा तो हम आगे कैसे बढ़ेंगे।'
 
रोहित कुमार ने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया था। लेकिन बेरोज़गारी के मुद्दे पर वो अब प्रधानमंत्री से नाराज हैं। वो कहते हैं, 'सरकार बनने के छह माह बाद प्रधानमंत्री मोदी ने हर साल दो करोड़ नए रोजगार पैदा करने का वादा किया था जो पूरा नहीं किया। अब जब चुनाव का समय आया है तो कुछ वैकेंसी निकाली हैं लेकिन दलित छात्रों की फ़ीस जो वापस मिलनी थी वो वापस नहीं मिली है।'
 
इसी बस स्टॉप पर खड़ी शिक्षिका आयुषि कहती हैं, 'रोजगार और विकास की दिशा में बीजेपी ने काम किया है लेकिन हम सबसे ज़्यादा ख़ुशी पाकिस्तान पर कार्रवाई से हैं। जब हमने पाकिस्तान पर एयरस्ट्राइक की तो मुझे गर्व की अनुभूति हुई।
 
आयुषि कहती हैं, 'एयरस्ट्राइक की खबर देखकर मुझे अच्छा लगा कि हमने पुलवामा का बदला लिया। रोजगार के लिए काम हुआ है, अगर सरकार दोबारा आई तो और अधिक काम होगा।'
 
शोभा रानी भी कई सालों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं लेकिन उन्हें अभी तक कोई मौका नहीं मिल सका है। वो कहती हैं, 'हमें ऐसी सरकार चाहिए जो रोजगार दे। चाहें सरकार किसी की भी हो। हमारी उम्र निकल रही है लेकिन नौकरियां नहीं निकल रही हैं।'
 
रोहित कहते हैं, 'हमें नहीं लगता कि पाकिस्तान पर हमला कोई मुद्दा है। हमने यूट्यूब पर ऐसे भी वीडियो देखे हैं जिन्होंने इस हमले पर सवाल उठाए हैं।'
 
नोयडा से निकलकर सहारनपुर पहुंचते-पहुंचते ये अहसास हो जाता है कि पश्चिमी यूपी में इस बार मतदाता स्पष्ट रूप से धर्म और जाति के आधार पर बंटे हुए हैं। देवबंद के एक मुस्लिम मतदाता कहते हैं, 'मोदी के राज में किसी को कुछ नहीं मिला, सिवाए मुसीबत के अलावा गरीब आदमी को। हम किसान तो हैं नहीं, किसानों के तो लाख-दो लाख रुपए माफ कर दिए लेकिन हम जैसे गरीब मजदूरों का किसी ने कुछ नहीं सोचा।'
 
यहां के अधिकतर मुसलमान भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मतदान कर रहे हैं। शिक्षा, रोजगार या बेहतर सड़क उनके मुद्दे नहीं हैं। वो सिर्फ मोदी हराओ नारे के इर्द-गिर्द गोलबंद हो रहे हैं।
 
यहां एक तरफ मोदी के राष्ट्रवाद से प्रेरित अगड़ी जातियां हैं जो अपनी तंगहाली को भुलाकर मोदी के पीछे खड़ी हैं तो दूसरी ओर वंचित मुसलमान, दलितों और पिछड़ों का गठजोड़ है जो अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ और सहारनपुर में रैलियां की हैं। मुख्यमत्री योगी आदित्यनाथ ने भी छह रैलियां की हैं। वहीं समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल ने भी देवबंद में विशाल रैली करके अपनी ताक़त दिखा दी है।
 
जातीय समीकरण बागपत और मुजफ्फरनगर जैसी सीटों पर गठबंधन को थोड़ा आगे दिखाते हैं लेकिन बाकी सीटों पर मुकाबला बेहद कड़ा है। इस मुक़ाबले में स्थानीय मुद्दे दिखाई नहीं देते।
 
एक युवा मोहम्मद अरशद कहते हैं, 'जनता से वोट शिक्षा, सड़क या रोजगार के मुद्दे पर नहीं मांगे जा रहे हैं। कोई जाति की बात कर रहा है, कोई हिंदू की तो कोई सिर्फ़ मुसलमान की।'
 
वो कहते हैं, 'बीजेपी वाले वोटरों से कह रहे हैं कि कोई मुसलमान न जीत जाए। गठबंधन वाले कह रहे हैं कि बीजेपी न जीत जाए। कोई जनता के मुद्दों की बात कर ही नहीं रहा है। हमारा सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा है, जब शिक्षा होगी तो हमें रोजगार भी मिलेगा। रोजगार होगा तो सामाजिक सुरक्षा भी आएगी लेकिन कोई इसकी तो बात कर ही नहीं रहा है।'
 
अरशद कहते हैं, 'और नेता ही क्या जनता भी तो सवाल नहीं कर रही है। बस धर्म-जात देख रही है। अब वोटर अपने-अपने धर्म जात पर मर रहे हैं। बाद में जीतने वाले नेता कह देंगे कि पहले धर्म पर मरे थे, अब मरते रहो।'

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