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जोसेफ़िन बेकर: एक डांसर और जासूस की असाधारण कहानी

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BBC Hindi

, मंगलवार, 30 नवंबर 2021 (16:32 IST)
30 नवंबर यानी मंगलवार को जोसेफ़िन बेकर की याद में पेरिस में सम्मान समारोह आयाजित किया जाएगा। उनकी याद में पट्टिका लगाई जाएगी। ये सबकुछ उसी जगह होगा, जहां फ्रांस की संस्कृति की गौरवशाली महान परंपराओं को संजोया गया है। इनमें वोल्टेयर से लेकर विक्टर ह्यूगो और मैरी क्यूरी से लेकर यूं जैक रोसू तक शामिल हैं।
 
बेकर से पहले, अभी तक यह सम्मान सिर्फ़ 5 अन्य महिलाओं को मिला है। साथ ही यह पहला मौक़ा है जब एक अश्वेत महिला के नाम यह सम्मान दिया जाएगा।
 
बेकर मूल रूप से अमेरिकी थीं। दुनिया आज भी उन्हें उनके उत्तेजक और सम्मोहक डांस परफॉर्मेंस की वजह से जानती है। जिसमें वह व्यावहारिक रूप से नग्न दिखती थीं। ऐसे में उनका नाम फ्रांस के सबसे अधिक सम्मानित और श्रेष्ठ नायकों में कैसे शामिल हो गया?
 
बेकर का पूरा और असली नाम फ्रेडा जोसेफ़िन मैकडोनाल्ड था। आज भी उनका नाम 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध की सबसे मशहूर कल्चरल आइकन में से एक है।
 
लेकिन बेकर सिर्फ़ एक डांसर नहीं थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वह एक नायिका के तौर पर सामने आयीं और उसके बाद उनकी शख़्सियत का एक और रूप सिविल राइट एक्टिविस्ट (नागरिक अधिकार कार्यकर्ता) के तौर पर दुनिया ने देखा।
 
अपने पूरे जीवन के दौरान बेकर ने अलग-अलग तरह की चुनौतियों का सामना किया और चुनौतियों को पार भी किया। सांस्कृतिक चुनौती से लेकर नस्लीय भेदभाव की चुनौती। हर अड़चन का उन्होंने डटकर मुक़ाबला किया।
 
ग़रीबी से सेलिब्रेटी बनने तक का सफ़र
 
बेकर का जन्म 3 जून 1906 को मिसौरी के सेंट लुइस में हुआ था। उनका बचपन मुश्किलों में गुज़रा। उनके पिता ड्रम बजाने का काम करते थे। जब बेकर काफी छोटी थीं, तभी उनके पिता ने अपने परिवार को छोड़ दिया। इसके बाद उनकी मां (जो कि आधी अश्वेत थीं) ने अपने बच्चों को पालने के लिए कपड़े धोने का काम करना शुरू कर दिया।
 
परिवार की परिस्थितियां ऐसी थीं कि नन्हीं बेकर को आठ साल की उम्र में ही काम करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने काफ़ी कुछ सहा। 14 साल की उम्र तक आते-आते उनकी शादी हो चुकी थी और वो दो बार अलग हो चुकी थीं। उनके नाम के साथ का जुड़ा सरनेम 'बेकर' उन्हें उनके दूसरे पति से मिला।
 
अपनी किशोरावस्था में उनकी स्थिति इस क़दर दयनीय थी कि वह सड़कों पर रहने के लिए मजबूर थीं। भूख मिटाने के लिए वो कूड़े के ढेर में फेंके गए खाने पर निर्भर थीं। एक बार उन्होंने बताया था कि वह सेंट लुइस की सड़कों पर थीं और ज़बरदस्त ठंड थी। उनके पास खुद को ठंड से बचाने के लिए कोई साधन नहीं था, इसलिए उन्होंने डांस करना शुरू कर दिया था।
 
लेकिन उनमें प्रतिभा थी और कुछ अनूठा भी। जादू-सा। जिसके बलबूते पहले वह एक वॉडेविल (एक प्रकार की नाट्य शैली) ग्रुप से जुड़ीं और उसके बाद एक डांस ग्रुप का हिस्सा बन गईं। इस डांस ग्रुप का नाम था- द डिक्सी स्टेपर्स। इस डांस ग्रुप की बदौलत वह साल 1919 में न्यूयॉर्क जाने के लिए प्रेरित हुईं।
 
इसके बाद उनके जीवन में एक अहम मोड़ आया। उनकी मुलाक़ात नयी प्रतिभाओं को मौक़ा देने वाले एक शख़्स से हुई, जो एक मैगज़ीन शो के लिए कलाकारों को खोज रहा था। पेरिस में यह पहला शो था जो ख़ासतौर पर अश्वेत लोगों के साथ किया जा रहा था। हर महीने एक हज़ार डॉलर के वादे के साथ बेकर फ्रांस पहुंच गईं, जहां से उनकी ज़िंदगी हमेशा, हमेशा के लिए बदल गई।
 
'द बनाना डांस'
 
वो अप्रैल 1926 का एक दिन था, जब बेकर ने मशहूर फ़ोलिस बर्जेर में परफॉर्मेंस दी। उस समय वह सिर्फ़ 19 साल की थीं। वहां उनके अनूठे शो ने पब्लिक को आश्चर्यचकित कर दिया। बेकर ने सिर्फ़ मोती पहन रखे थे।
 
ब्रा और केलों से बनी स्कर्ट जिस पर चमकीले पत्थर लगे हुए थे। अपने उत्तेजक डांस से उन्होंने लोगों के होश उड़ा दिये। इस डांस परफॉर्मेंस के ओपनिंग शो में, उस रात बेकर को 12 बार स्टैंडिंग ओवेशन (खड़े होकर सराहना) मिली। 'बनाना डांस' ने उन्हें रातोंरात सेलेब्रिटी बना दिया था। उन्होंने न केवल थिएटर में एक्टिंग और डांस किया, बल्कि चार फिल्में भी कीं।
 
वह 'मरमेड ऑफ द ट्रॉपिक्स' (1927), ज़ूज़ौ (1934), प्रिंसेस टैम टैम (1935) और फॉसे अलर्ट (1940) में नज़र आयीं। उस वक़्त के लिहाज़ से एक अश्वेत कलाकार का फ़िल्मों में नज़र आना कोई सामान्य बात नहीं थी।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया में अफ्रीकी और अफ्रीकी-अमेरिकी अध्ययम के लिए रिसर्च सेंटर के निदेशक और जीवनी लेखक बेनेता जूल्स रोसेट ने बीबीसी को बताया- 'अगर वह अमेरिका में रहतीं तो एक अश्वेत महिला के तौर पर जो कुछ भी उन्होंने हासिल किया, वह शायद हासिल नहीं कर पातीं।' रोसेट के मुताबिक़, बेकर में सबसे ख़ास बात यह थी कि उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि उनके लिए कुछ भी असंभव है।
 
बहादुर थीं बेकर
 
बेकर सिर्फ़ स्टेज पर या अपने परफॉर्मेंस के दौरान निडर और बहादुर नहीं होती थीं। वह अपनी ज़िंदगी में भी उतनी ही बहादुर थीं। बहुत से लोग उन्हें फ़ैशन आइकन के तौर पर याद करते हैं लेकिन बहुत से लोग उन्हें दूसरी वजहों से भी याद करते हैं। फ्रांस की राजधानी की खुली सड़कों पर जब वह अपने पालतू पशु के साथ चलती थीं तो नजरें उन पर रुक जाती थीं। उनके साथ उनका पालतू पशु चीता साथ होता था।
 
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जासूसी
 
जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा तो बेकर ने अपनी क़ीमती वेशभूषा को छोड़ दिया और वर्दी पहन ली। लंबे समय तक चले संघर्ष के दौरान उन्होंने फ्रेंच एयर फ्रोर्स वीमेन ऑक्ज़ीलरी में सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में कार्य किया। लेकिन जैसी की वो निडर थीं, उन्होंने अपनी शोहरत का फ़ायदा उठाया और जासूसी भी की।
 
अपने संपर्क और मिलने वाले निमंत्रण का फ़ायदा उठाते हुए उन्होंने दुश्मन सेना की गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त की। उनके योगदान के लिए उन्हें चार्ल्स दी गॉल द्वारा लेज़न ऑफ़ ऑनर और मेडल ऑफ़ रेसिस्टेंस से सम्मानित किया गया था।
 
नागरिक अधिकारों के लिए उठाई आवाज़
 
बेकर ने नागरिक अधिकारों के लिए भी काम किया। साल 1963 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल रॉबर्ट कैनेडी की मदद से अमेरिका वापस आने के बाद उन्होंने नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग के साथ वॉशिंगटन के प्रसिद्ध मार्च में भी हिस्सा लिया। सैन्य वर्दी पहने वह एकमात्र महिला थीं, जिन्होंने लोगों को संबोधित किया था।
 
आख़िरी समय
 
अपने समय में दुनिया की सबसे अमीर अश्वेत महिला रहीं बेकर अपनी ज़िंदगी के आख़िर के सालों में दिवालिया हो गई थीं। साल 1975 में स्ट्रोक के कारण उनकी मौत हो गई। उनके अंतिम संस्कार के दौरान उन्हें सैन्य सम्मान के साथ विदाई दी गई।

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