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हमास ने इसराइल पर क्या किसी ख़ास टाइमिंग से किया हमला?

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BBC Hindi

, मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023 (08:41 IST)
मोहम्मद शाहिद, बीबीसी संवाददाता
इस साल 28 अगस्त को एयर सेशल्स एयरलाइंस के विमान को तकनीकी कारणों से सऊदी अरब के जेद्दा एयरपोर्ट पर लैंड करना पड़ा था। सऊदी अरब में आपातकालीन लैंडिंग की सूचना जैसे ही पायलट ने दी.. वैसे ही यात्रियों में तनाव छा गया।
 
एक यात्री ने उस घटना का ज़िक्र करते हुए बताया था, “यह बहुत डरावना था। लेकिन हम सबका बहुत अच्छे से (सऊदी लोगों ने) स्वागत किया। हम यह देखकर बहुत ख़ुश थे कि ठीक और सुरक्षित हैं।”
 
दरअसल इस ख़ौफ़ की वजह इसराइल और सऊदी अरब थे क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं। उस समय एचएम022 नामक फ़्लाइट में 128 इसराइली यात्री सवार थे जो सकुशल अगले दिन तेल अवीव पहुंचे।
 
इस घटना के बाद इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने सऊदी अरब प्रशासन की तारीफ़ की। उन्होंने ट्वीट किया, “मैं सऊदी प्रशासन की बहुत सराहना करता हूं कि उन्होंने इसराइली यात्रियों के प्रति गर्मजोशी दिखाई, जिनका विमान संकट में था और उसे जेद्दा में मजबूरन आपाताकलीन लैंडिंग करनी पड़ी।”
 
इस घटनाक्रम को इसराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते सामान्य करने की दिशा में अहम माना गया क्योंकि काफ़ी समय से ऐसी चर्चाएं चल रही थीं कि अमेरिका की मध्यस्थता में दोनों देश बातचीत कर रहे हैं।
 
बीते महीने यह साफ़ हो गया कि इसराइल और सऊदी अरब रिश्ते सामान्य करने की दिशा में बातचीत कर रहे हैं।
 
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने बीते महीने ही यह कहा था कि इसराइल सऊदी अरब के साथ शांति के क़रीब है और यह मध्य-पूर्व को नया आकार दे सकता है।
 
हालांकि अब हमास के इसराइल पर हमले के बाद मध्य-पूर्व की शांति पर असर पड़ा है। इसराइल और ग़ज़ा में 1200 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं और माना जा रहा है कि इस घटना के बाद अब इसराइल और सऊदी अरब के बीच बातचीत भी पटरी से उतर जाएगी।
 
अमेरिका का क्या कहना है?
इसराइल और सऊदी अरब के बीच मध्यस्थता कर रहे अमेरिका ने साफ़ कर दिया है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने की दिशा में बातचीत जारी रहनी चाहिए।
 
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा है कि इसमें कोई हैरत भरी बात नहीं होगी कि दोनों देशों के बीच बातचीत की कोशिशें बाधित हों।
 
वहीं अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फ़िनर ने कहा है कि यह दोनों देशों के हित में है कि वो बातचीत की संभावनाएं जारी रखें।
 
हमास के इसराइल के हमले को लेकर इसकी टाइमिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि हमास ने इतने बड़े पैमाने पर ये हमला उस समय किया है जब इसराइल और सऊदी अरब रिश्ते सामान्य करने की दिशा में थे।
 
वहीं डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में ‘अब्राहम अकॉर्ड्स’ समझौता लाया गया जिसके बाद इसराइल के यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान के साथ रिश्ते सामान्य हो चुके हैं।
 
सऊदी अरब के कारण हमास ने किया ये हमला?
सवाल ये उठता है कि इसराइल के साथ अरब देशों के सामान्य होते रिश्तों की वजह से क्या हमास जैसे चरमपंथी संगठन ने इतना बड़ा हमला किया?
 
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ़ इंटरनैशनल स्टडीज़ के फ़ॉर्मर डीन प्रोफ़ेसर अश्विनी के। महापात्रा कहते हैं कि हमास का इतना बड़े पैमाने पर हमला ईरान और इसराइल के बीच बढ़ते तनाव का नतीजा है क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर हमला सिर्फ़ एक दिन में नहीं हो सकता है।
 
“इस हमले की प्लानिंग बहुत पहले से हो रही थी। सऊदी अरब और इसराइल के बीच बातचीत के लिए ये हमला किया गया हो ऐसा नहीं लगता है लेकिन इस हमले से सऊदी अरब और इसराइल के बीच बातचीत पटरी से नहीं उतरेगी। हालांकि ये कुछ दिनों, कुछ महीनों या कुछ सालों के लिए टल ज़रूर सकती है। सऊदी अरब ये संदेश देता रहेगा कि वो फिलिस्तीन के साथ है लेकिन आतंकवाद के ख़िलाफ़ है।”
 
हमास के इसराइल पर हमले के बाद सऊदी अरब का बयान भी आया था लेकिन उसने ईरान की तरह हमास की तारीफ़ नहीं की बल्कि कूटनीतिक तरीक़े से जवाब दिया।
 
सऊदी अरब ने कहा था, ''हम दोनों पक्षों के बीच तनाव को तत्काल रोकने, नागरिकों की सुरक्षा और संयम बरतने की अपील करते हैं।''
 
बयान में आगे कहा गया, "लगातार कब्ज़े, फिलिस्तीनी नागरिकों को उनके वैध अधिकारों से वंचित रखने और बार-बार व्यवस्थित उकसावे के मद्देनज़र हम ऐसी स्थिति के पैदा होने को लेकर आगाह करते रहे हैं।"
 
''हम अंतरराष्ट्रीय समूहों से उनकी ज़िम्मेदारियों को निभाने और एक विश्वसनीय शांति प्रक्रिया को सक्रिय करने की अपील करते हैं, जिससे दो-राष्ट्र समाधान हो सके और क्षेत्र में सुरक्षा, शांति बहाल की जा सके, नागरिकों को बचाया जा सके।''
 
इसराइल और सऊदी अरब के बीच जिन मुद्दों को लेकर बातचीत चल रही थी उनमें दो-राष्ट्र (इसराइल और फिलिस्तीन) का समाधान अहम मुद्दा था। विश्लेषकों का अब मानना है कि दोनों देशों के बीच अगर बातचीत हुई तो दो-राष्ट्रों का मुद्दा पीछे चला जाएगा।
 
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फ़ॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर ए।के। पाशा कहते हैं कि हमास के हमले के बाद ये फिलिस्तीन-इसराइल का मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि ये आतंकवाद के ख़िलाफ़ इसराइल की लड़ाई बन चुका है।
 
वो कहते हैं कि अब इसराइल और सऊदी अरब के बीच बातचीत में दो-राष्ट्रों के समाधान का मुद्दा उतनी मज़बूती से नहीं उठाया जा सकेगा।
 
मध्य-पूर्व में इसराइल से बढ़ेगी तनातनी?
हमास के इसराइल पर हमले और फिर ग़ज़ा में इसराइल की जवाबी कार्रवाई में अब तक 1200 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
 
सोशल मीडिया पर इसराइल और ग़ज़ा दोनों जगहों की वीभत्स तस्वीरें और वीडियो सामने आ रहे हैं। वहीं अमेरिका को अब डर सताने लगा है कि इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा हो सकती है।
 
अमेरिका पहले ही घोषणा कर चुका है कि वो इसराइल की हर हालत में मदद करेगा। उसने एक युद्धपोत को भी इस क्षेत्र में भेजा है।
 
क्या मध्य-पूर्व में अस्थिरता पैदा होगी? इस सवाल पर प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, “इकोनॉमी और मिलिट्री पावर वाले सभी पश्चिमी देश इस समय इसराइल के साथ हैं और जिन अरब देशों ने इसराइल के साथ रिश्ते सामान्य किए हैं वो क्यों पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ जाएंगे।”
 
प्रोफ़ेसर पाशा का भी मानना है कि इसराइल के साथ मध्य-पूर्व के देशों के आने वाले समय में रिश्ते और बेहतर होंगे।
 
वो कहते हैं, “हिज़बुल्लाह (लेबनान का चरमपंथी संगठन जो हमास का समर्थन करता है) अगर चाहता तो उत्तरी इसराइल पर हमला कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि इसराइल के साथ कोई जंग नहीं चाहता है। हमास की कॉल पर ये हमला हुआ है।”
 
ईरान के कहने पर हमास ने किया हमला?
इसराइल पर हमले के बाद इकलौता देश ईरान ही था जिसने खुलकर हमास की तारीफ़ की थी। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कहा था कि ईरान फिलिस्तीनियों के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता है।
 
हमास कह चुका है कि उसके इस हमले में ईरान ने उसकी मदद की है हालांकि संयुक्त राष्ट्र में ईरान के मिशन ने साफ़ किया है कि इस हमले में उसकी कोई भूमिका नहीं है।
 
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में ये भी साफ़ किया है कि अमेरिकी सरकार को इस हमले में ईरान का हाथ होने के अभी तक कोई सबूत नहीं मिले हैं।
 
वहीं ईरान सालों से हमास का समर्थन करता रहा है और उसने उसके लड़ाकों को हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराई है।
 
ईरान एक शिया बहुल देश है वहीं सऊदी अरब सुन्नी बहुल देश है। सऊदी अरब में मक्का और मदीना जैसे मुसलमानों की दो पवित्र जगहें मौजूद हैं। वहीं इसराइल के क़ब्ज़े वाले यरूशलम में मुसलमानों की तीसरी पवित्र जगह अल-अक़्सा मस्जिद है।
 
मध्य-पूर्व में ईरान और सऊदी अरब के बीच रेस लगी हुई है कि इस क्षेत्र में उनका प्रभुत्व बना रहे।
 
प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, “मध्य-पूर्व में इस्लाम बड़ा फ़ैक्टर है और इसी के बहाने कई देश ठेकेदार बनने की कोशिश करते हैं लेकिन ये कुल मिलाकर राजनीति है। इस क्षेत्र में प्रभाव और आधिपत्य जताने के लिए एक देश दूसरे देश से आगे निकलना चाहता है।”
 
वो कहते हैं, “ईरान शिया बहुल देश है जबकि हमास सुन्नी बहुल संगठन है लेकिन आपस में इन दोनों का इससे कोई लेना-देना नहीं है। मध्य पूर्व के कई मुस्लिम देशों के अंदर हालात ठीक नहीं हैं जिसकी वजह से वो हमास का समर्थन नहीं करते हैं। वहीं ईरान खुलकर हमास का समर्थन कर रहा है और इसका इस्तेमाल कर रहा है।‌”
 
“ईरान का मानना है कि वो मुस्लिम वर्ल्ड का लीडर है क्योंकि उसके पास आधुनिक हथियार हैं और इस्लामी क़ानून से वो देश चला रहा है। ईरान ही हमास जैसे चरमपंथी संगठनों की मदद कर रहा है।”
 
वहीं, प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं कि अब्राहम अकॉर्ड्स से लेकर सऊदी अरब के साथ इसराइल के रिश्ते सामान्य करने की प्रक्रिया ईरान के ख़िलाफ़ लामबंदी है और इस प्रक्रिया में हमास, हिज़बुल्लाह और फिलिस्तीनी क्षेत्र के नेता शामिल नहीं हैं।
 
हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच चीन की मध्यस्थता में रिश्ते सामान्य हुए थे और इस क्षेत्र में चीन का दख़ल बढ़ता जा रहा था।
 
प्रोफ़ेसर पाशा का मानना है कि इसराइल-फिलिस्तीन के नए संकट के साथ ही इस क्षेत्र में अमेरिका की फिर से एंट्री होने जा रही है जो अब तक कम हो गई थी।

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